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Last Updated: Dec 06, 2022
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रक्त(ब्लड): कोशिकाएं(सेल्स), कार्य, रोग, उपचार, दवाएं और बहुत कुछ

रक्त(ब्लड) खून (ब्लड) का चित्र| Blood Ki Image खून(ब्लड) के अलग-अलग भाग खून(ब्लड) के कार्य | Blood Ke Kaam खून (ब्लड) के रोग | Blood Ki Bimariya खून(ब्लड) की जांच | Blood Ke Test खून(ब्लड) का इलाज | Blood Ki Bimariyon Ke Ilaaj ब्लड की बीमारियों के लिए दवाइयां | Blood ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

रक्त(ब्लड) खून (ब्लड) का चित्र| Blood Ki Image

रक्त(ब्लड) खून (ब्लड) का चित्र| Blood Ki Image

जिंदा रहने के लिए, हर व्यक्ति के लिए खून (ब्लड) की जरूरत होती है। शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन और पोषक तत्व लाने का काम खून का है, जिससे शरीर के सारे हिस्से अपना काम करते रहें। रक्त, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य वेस्ट मैटेरियल्स को शरीर से निकालने के लिए फेफड़ों, किड्नीज और पाचन तंत्र में ले जाता है। ब्लड(खून) इन्फेक्शन से भी लड़ता है, और पूरे शरीर में हार्मोन का संचालन करता है।

रक्त (खून), ब्लड सेल्स (रक्त कोशिकाओं) और प्लाज्मा से मिलकर बना होता है। प्लाज्मा, एक पीले रंग का फ्लूइड होता है जिसमें नुट्रिएंट्स, प्रोटीन्स, हार्मोन और वेस्ट प्रोडक्ट्स होते हैं। विभिन्न प्रकार के ब्लड सेल्स के अलग-अलग काम होते हैं।

खून(ब्लड) के अलग-अलग भाग

खून(ब्लड), निम्नलिखित कंपोनेंट्स से मिलकर बना होता है:

  • प्लाज्मा
  • लाल रक्त कोशिकाएं (रेड ब्लड सेल्स)
  • सफेद रक्त कोशिकाएं (वाइट ब्लड सेल्स)
  • प्लेटलेट्स

  1. प्लाज्मा
    मनुष्यों में, ब्लड में लगभग 95% प्लाज्मा होता है। प्लाज्मा 92% पानी है, और शेष 8% में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • ग्लूकोज़
    • हार्मोन
    • प्रोटीन
    • मिनरल साल्ट्स
    • फैट
    • विटामिन

    ब्लड के शेष 45% में मुख्य रूप से रेड और वाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स होते हैं। ब्लड को प्रभावी ढंग से काम करने में इनमें से प्रत्येक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

  2. लाल रक्त कोशिकाएं (रेड ब्लड सेल्स) या एरिथ्रोसाइट्स
    रेड ब्लड सेल्स का आकार-थोड़ा सा इंडेंट, चपटी डिस्क जैसा होता है। इनका कार्य है-ऑक्सीजन को फेफड़ों से ले जाना और उन तक फिर से वापिस लाना। हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन है जिसमें आयरन होता है और ऑक्सीजन को अपने गंतव्य तक पहुंचाता है। एक रेड ब्लड सेल का लाइफ स्पैन(जीवन काल) 4 महीने का होता है, और जब उनका समय समाप्त हो जाता है तो शरीर नियमित रूप से उनकी जगह को दूसरे रेड ब्लड सेल्स से रिप्लेस कर देता है। मानव शरीर प्रति सेकंड लगभग 2 मिलियन ब्लड सेल्स (रक्त कोशिकाओं) का उत्पादन करता है।
    पुरुषों में, खून की एक बूंद (माइक्रोलीटर) में रेड ब्लड सेल्स की अपेक्षित संख्या है: 4.5-6.2 मिलियन। महिलाओं में, खून की एक बूंद (माइक्रोलीटर) में रेड ब्लड सेल्स की अपेक्षित संख्या है: 4.0-5.2 मिलियन।
  3. श्वेत रक्त कोशिकाएं (वाइट ब्लड सेल्स) या ल्यूकोसाइट्स
    खून में, वाइट ब्लड सेल्स का प्रतिशत 1% से भी कम है। ये सेल्स, बीमारी और संक्रमण के खिलाफ महत्वपूर्ण सुरक्षा बनाती हैं। एक माइक्रोलीटर खून में, वाइट ब्लड सेल्स की संख्या आमतौर पर 3,700-10,500 के बीच होती है। यदि वाइट ब्लड सेल्स के स्तर में कोई परिवर्तन है, यानि कि उनकी संख्या ज्यादा हो गयी है या फिर कम हो गयी है तो, रोग का संकेत मिल सकता है।
  4. प्लेटलेट्स, या थ्रोम्बोसाइटोसिस
    ब्लीडिंग को होने से रोकने या पूरी तरह से बंद करने के लिए, प्लेटलेट्स क्लॉटिंग प्रोटीन के साथ इंटरैक्ट करते हैं। प्रति माइक्रोलीटर रक्त में, 150,000 से 400,000 प्लेटलेट्स होना चाहिए।
    रेड ब्लड सेल्स, वाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स का उत्पादन, बोन मेरो द्वारा किया जाता है और वहां से वे ब्लड फ्लो में प्रवेश करते हैं। प्लाज्मा ज्यादातर पानी होता है जो आंतों द्वारा अंतर्ग्रहण भोजन और फ्लूइड से अब्सॉर्ब होता है। फिर हृदय उन्हें, ब्लड वेसल्स के माध्यम से पूरे शरीर में, रक्त के रूप में पंप करता है।

खून(ब्लड) के कार्य | Blood Ke Kaam

रक्त, शरीर के निम्नलिखित कार्यों को करता है:

  • फ्लूइड कनेक्टिव टिश्यू: खून(ब्लड), एक फ्लूइड कनेक्टिव टिश्यू है जिसमें 55% प्लाज्मा होता है और 45% में वाइट ब्लड सेल्स, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स शामिल हैं। चूँकि ये जीवित कोशिकाएँ प्लाज्मा में सस्पेंडेड रहती हैं, इसलिए रक्त को फ्लूइड कनेक्टिव टिश्यू के रूप में जाना जाता है, न कि केवल फ्लूइड के रूप में।
  • कोशिकाओं (सेल्स) को ऑक्सीजन प्रदान करता है: रक्त, फेफड़ों से ऑक्सीजन को अब्सॉर्ब करता है और शरीर के विभिन्न सेल्स तक पहुंचाता है। वेस्ट कार्बन डाइऑक्साइड, रक्त द्वारा फेफड़ों तक पहुंचाई जाती है और बाहर निकाल दी जाती है।
  • नुट्रिएंट्स और हार्मोन को ट्रांसपोर्ट करता है: विटामिन, मिनरल्स, ग्लूकोज और प्रोटीन जैसे पचने वाले नुट्रिएंट्स, छोटी आंत की लाइनिंग करने वाली विली की कैपिलरीज के माध्यम से रक्त में अब्सॉर्ब होते हैं। एंडोक्राइन ग्लांड्स द्वारा स्रावित हार्मोन को रक्त द्वारा विभिन्न अंगों और टिश्यूज़ में भी ले जाया जाता है।
  • होमियोस्टेसिस: गर्मी को अब्सॉर्ब करके या फिर उसे शरीर से बाहर निकाल कर, रक्त शरीर के आंतरिक तापमान को बनाए रखने में मदद करता है।
  • चोट के स्थान पर ब्लड क्लॉट्स बनना: चोट वाली जगह पर प्लेटलेट्स, ब्लड क्लॉट्स के बनने में मदद करते हैं। प्लेटलेट्स फाइब्रिन के साथ मिलकर चोट वाली जगह पर क्लॉट बनाते हैं।
  • किडनी और लीवर में वेस्ट को ले जाना: रक्त, किडनी में प्रवेश करता है जहां इसे रक्त प्लाज्मा से नाइट्रोजनयुक्त वेस्ट को निकालने के लिए फ़िल्टर किया जाता है। लीवर भी, रक्त से टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है।
  • पैथोजन्स के खिलाफ शरीर की सुरक्षा: वाइट ब्लड सेल्स, इन्फेक्शन से लड़ते हैं। इन्फेक्शन होने पर, वाइट ब्लड सेल्स तेजी से बढ़ते हैं (गुणा होते हैं)।

खून (ब्लड) के रोग | Blood Ki Bimariya

खून के कई प्रकार के रोग होते हैं जिनका निदान और उपचार हेमेटोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। इनमें से कुछ सौम्य (नॉन-कैंसरयुक्त) हैं और अन्य ब्लड कैंसर के प्रकार होते हैं। इन रोगों में, तीनो प्रकार के ब्लड सेल्स (रेड ब्लड सेल्स, वाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स) में से एक या अधिक शामिल हो सकते हैं। वे क्लॉट्स में शामिल रक्त प्रोटीन को भी रोगग्रस्त कर सकते हैं। हर प्रकार के डिसऑर्डर को उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। हेमेटोलॉजिस्ट द्वारा इलाज किए जाने वाले कुछ ब्लड डिसऑर्डर्स हैं:

  • रेड ब्लड सेल डिसऑर्डर्स: यह डिसऑर्डर होने पर, रेड ब्लड सेल में कमी या असामान्यताएं हो सकती हैं।
  • एनीमिया: रेड ब्लड सेल्स(लाल रक्त कोशिकाओं) की संख्या में कमी होने से अक्सर कमजोरी और पीलापन होता है। एनीमिया के कई संभावित कारण हो सकते हैं।
  • एप्लास्टिक एनीमिया: इस एनीमिया में, बोन मेरो सभी तीन प्रकार के ब्लड सेल्स: रेड ब्लड सेल्स, वाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पाता है।
  • सिकल सेल एनीमिया: यह एक इनहेरिटेड ब्लड डिसऑर्डर है, जहां ब्लड सेल्स सिकल (या 'सी') के आकार के होते हैं और वो ब्लड फ्लो को अवरुद्ध करते हैं। सिकल सेल के इक्कट्ठा होने से, अंगों में सही से रक्त नहीं पहुँच पाता है और दर्द, गंभीर संक्रमण और अंग क्षति हो सकती है।
  • थैलेसीमिया: यह एक हेरेडिटरी डिसऑर्डर है जो हीमोग्लोबिन को प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन, एक मॉलिक्यूल होता है जो ऑक्सीजन ले जाता है।
  • वाइट ब्लड सेल डिसऑर्डर्स: यह डिसऑर्डर होने पर, सफेद रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में असामान्यताएं हो सकती हैं।
  • मायलोफिब्रोसिस: बोन मेरो, एनीमिया और एक बढ़े हुए स्प्लीन में रेशेदार सामग्री द्वारा होने वाली एक पुरानी बीमारी। इसे एग्नोजेनिक माइलॉयड मेटाप्लासिया के रूप में भी जाना जाता है।
  • मायलोमा: ये प्लाज्मा सेल्स का एक कैंसर है, जो कि एक प्रकार के वाइट ब्लड सेल्स होते हैं।
  • माइलोडिसप्लासिया: यह डिसऑर्डर्स का एक समूह है, जब बोन मेरो ठीक से काम नहीं करता है और पर्याप्त मात्रा में ब्लड सेल्स का उत्पादन नहीं करता है।
  • ल्यूकेमिया: रोगों का एक समूह होता है जिसमें वाइट ब्लड सेल्स अनियंत्रित रूप से बढ़ते हैं। इन रोगों को इस आधार पर वर्गीकृत किया जाता है कि रोग कितनी तेजी से बढ़ता है और किस प्रकार के सेल्स प्रभावित होते हैं।
  • लिम्फोमा: एक ट्यूमर जो लिम्फ नोड्स या अन्य लिम्फोइड टिश्यू में उत्पन्न होता है।
  • प्लेटलेट डिसऑर्डर: आमतौर पर प्लेटलेट्स में कमी के कारण आसानी से चोट लग सकती है और अत्यधिक रक्तस्राव होता है।
  • इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिक पुरपुरा (आईटीपी): यह एक क्लीनिकल डिसऑर्डर है, इसमें प्लेटलेट्स की संख्या में कमी होने से ब्लीडिंग होती है, और आसानी से चोट लग जाती है।
  • एसेंशियल: एक विकार जिसमें प्लेटलेट्स का अधिक उत्पादन होता है, जिससे ब्लड क्लॉट्स बनना और ब्लीडिंग दोनों ही हो सकते हैं।
  • क्लॉटिंग डिसऑर्डर्स: ब्लड क्लॉट्स के बनने की क्षमता को प्रभावित करने वाली समस्याएं, जिसके कारण अत्यधिक रक्तस्राव या अत्यधिक क्लॉट्स बनने लगते हैं।
  • हीमोफिलिया: ब्लड क्लॉटिंग के फैक्टर्स में से एक में समस्या के कारण होने वाला रक्तस्राव विकार।
  • वॉन विलेब्रांड रोग: एक वंशानुगत बीमारी जिसमें वॉन विलेब्रांड फैक्टर की कमी होती है। ये फैक्टर प्लेटलेट फ़ंक्शन को प्रभावित करता है। इसके होने पर, अत्यधिक रक्तस्राव होता है।
  • हाइपरकोएगुएबिल स्थिति: ये इन्हेरिट हुई असामान्यताएं हैं जो किसी व्यक्ति के ब्लड क्लॉट्स के विकास के जोखिम को बढ़ाती हैं। उदाहरणों में फैक्टर वी लीडेन म्यूटेशन, प्रोटीन सी की कमी और ल्यूपस एंटी-कोएगुलेंट शामिल हैं।
  • हेमोक्रोमैटोसिस: एक डिसऑर्डर जो तब होता है, जब रोगी अपने दैनिक आहार से अतिरिक्त मात्रा में आयरन को अब्सॉर्ब करते हैं। हृदय, लीवर, पैंक्रियास जैसे अंगों में अतिरिक्त आयरन का संचय हो सकता है। यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो मधुमेह, हृदय रोग और लीवर फेलियर भी हो सकता है।

खून(ब्लड) की जांच | Blood Ke Test

  • कम्पलीट ब्लड काउंट: कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी) आपके रक्त में प्रत्येक प्रमुख सेल के 10 विभिन्न कंपोनेंट्स के स्तर की जांच करती है: वाइट ब्लड सेल्स, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स।
  • बेसिक मेटाबोलिक पैनल: बेसिक मेटाबोलिक पैनल (बीएमपी) आमतौर पर रक्त में आठ कंपोनेंट्स के स्तर की जांच करता है:
    • कैल्शियम
    • शुगर
    • सोडियम
    • पोटैशियम
    • बाइकार्बोनेट
    • क्लोराइड
    • ब्लड यूरिया नाइट्रोजन (बीयूएन)
    • क्रिएटिनिन

    इस परीक्षण के लिए आपको, रक्त निकलने से कम से कम 8 घंटे पहले कुछ भी नहीं खाना चाहिए।
  • कॉम्प्रिहेन्सिव मेटाबोलिक पैनल: कॉम्प्रिहेन्सिव मेटाबोलिक पैनल (सीएमपी) में बीएमपी के सभी मेज़रमेंट्स के साथ-साथ अतिरिक्त प्रोटीन और लीवर फंक्शन्स से संबंधित पदार्थ शामिल होते हैं।
  • लिपिड पैनल: यह परीक्षण दो प्रकार के कोलेस्ट्रॉल के स्तर की जाँच करता है:
    1. हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल), या 'अच्छा' कोलेस्ट्रॉल
    2. लो-डेंसिटी वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल), या 'खराब' कोलेस्ट्रॉल
  • थायराइड पैनल:एक थायराइड पैनल, या थायराइड फ़ंक्शन टेस्ट, यह जांच करता है कि आपका थायरॉयड कितनी अच्छी तरह से अपना कार्य कर रहा है और कुछ हार्मोन पर कैसी प्रतिक्रिया कर रहा है।
  • कोएगुलेशन पैनल: कोएगुलेशन परीक्षण से यह पता चलता है कि आपके ब्लड क्लॉट्स कितने अच्छे हैं और आपके रक्त क्लॉट्स को बनाने में कितना समय लगता है। उदाहरणों में प्रोथ्रोम्बिन टाइम (पीटी) टेस्ट और फाइब्रिनोजेन एक्टिविटी टेस्ट शामिल हैं।
  • डीएचईए-सल्फेट सीरम टेस्ट: डिहाइड्रोएपिएंड्रोस्टेरोन (डीएचईए) हार्मोन आपके एड्रिनल ग्लांड्स से आता है। यह परीक्षण डीएचईए-सल्फेट सीरम की मात्रा को मापता है।
  • सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट: आपके लीवर के द्वारा सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) को बनाया जाता है, जब आपके शरीर में टिश्यूज़ में सूजन होती है। उच्च सीआरपी स्तर विभिन्न कारणों से सूजन का संकेत देते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन
    • शारीरिक आघात से संबंधित या धूम्रपान जैसी आदतों से संबंधित
    • ऑटोइम्यून बीमारियां, जैसे ल्यूपस या रहूमटॉइड आर्थराइटिस
    • मधुमेह से संबंधित सूजन
    • सूजन
    • कैंसर

खून(ब्लड) का इलाज | Blood Ki Bimariyon Ke Ilaaj

  • प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन: ब्लड डोनर्स के प्लेटलेट्स को बाकी रक्त से अलग किया जाता है और एक प्लास्टिक बैग में जमा किया जाता है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब प्लेटलेट का स्तर बेहद कम होता है।
  • प्रोथ्रोम्बिन कॉम्प्लेक्स: यह एक रिकॉम्बिनेंट फोर फैक्टर कंसन्ट्रेट है (फैक्टर्स II, VII, IX, और X) है जिनका उपयोग तब किया जाता है जब फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा के समान संकेत दिखते हैं। यह एक बहुत ही पसंदीदा विकल्प है उपचार करने का।
  • क्रायोप्रेसिपिटेट: प्रोटीन को ब्लड फ्लो से अलग किया जाता है और फ्लूइड रूप में उनको फ्रीज किया जाता है। यह उन प्रोटीनों की जगह ले सकता है जो ब्लड क्लॉट्स को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, खासकर तब जब किसी व्यक्ति में इनके स्तर में गिरावट आती है, जैसा कि थैलेसीमिया के मामले में होता है।
  • फेश फ्रोजेन प्लाज्मा: डोनर्स के प्लाज्मा को रक्त से अलग किया जाता है और उनके संरक्षण के लिए, संग्रहीत किया जाता है। यह ब्लड क्लॉट्स को कम करने और उनके संचय से संबंधित, रक्तस्राव की रोकथाम में सहायता करता है।
  • कीमोथेरेपी: ये थेरेपी कैंसर सेल को मार देती है। ल्यूकेमिया और लिम्फोमा होने पर कीमोथेरेपी दी जाती है।
  • एंटी-कोएगुलेशन: रक्त को पतला करना और ब्लड क्लॉट्स को बनने से रोकना, एक उच्च जोखिम वाला काम है। उनके उपचार के लिए हेपरिन, एनोक्सापारिन और वार्फरिन (कौमडिन) का उपयोग किया जाता है।
  • एंटीप्लेटलेट दवाएं: एस्पिरिन और क्लोपिडोग्रेल प्लेटलेट के कामकाज में हस्तक्षेप करते हैं और ब्लड क्लॉट्स को रोकने में मदद करते हैं, इसलिए दिल के दौरे और स्ट्रोक को कम करते हैं।
  • एंटीबायोटिक्स: बैक्टेरिसाइडल और पैरासाइट को खत्म करने की दवाओं के उपयोग से, ब्लड इन्फेक्शन का इलाज किया जा सकता है।
  • ब्लड ट्रांस्फ्यूज़न: ब्लड डोनर्स के आरबीसी को उनके प्लाज्मा से अलग किया जाता है और एक छोटे बैग में रखा जाता है। सुपरसैचुरेटेड आरबीसी को एक बेनेफिशियरी में ट्रांसफ़्यूज़ करने से रक्त हानि की भरपाई होती है।
  • एरिथ्रोपोइटिन: इस हार्मोन को किडनी द्वारा बनाया जाता है जो आगे आरबीसी उत्पादन को उत्तेजित करता है। यह एनीमिया के लक्षणों को ठीक करने के लिए दिया जा सकता है।

ब्लड की बीमारियों के लिए दवाइयां | Blood ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

  • सिलोसटाज़ोल: क्लॉडिकेशन और कोरोनरी वासोडिलेशन के समय जब इस दवा को दिया जाता है तो यह एक शक्तिशाली फॉस्फोडिएस्टरेज़ इन्हीबिटर की तरह काम करता है जो प्लेटलेट इन्हिबीशन में कमी के लिए जिम्मेदार होता है। इसके साइड इफेक्ट्स हैं: सिरदर्द, फ्लशिंग, गर्मी के प्रति असहिष्णुता और धड़कन।
  • हेपरिन: यह थ्रोम्बिन और प्लेटलेट फैक्टर की गतिविधि को कम करता है। इसका उपयोग डीप वीन थ्रोम्बोसिस और पल्मोनरी एम्बोलिस्म के इलाज के लिए किया जाता है। ब्लीडिंग के समय इसका उपयोग कन्ट्राइंडिकेटेड है।
  • एस्पिरिन: यह एक महत्वपूर्ण दवा है जो दर्द को कम करती है। यह एंटी-पायरेटिक(ज्वरनाशक) और एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा के रूप में भी काम करती है। गैस्ट्रिक ब्लीडिंग या किसी अन्य प्रकार की ब्लीडिंग के समय इसका उपयोग कन्ट्राइंडिकेटेड है।
  • क्लोपिडोग्रेल: यह एक एडीपी रिसेप्टर इन्हीबिटर है जो विशेष रूप से वैस्कुलर ब्लीडिंग के लिए दी जाती है। अचानक ब्लीडिंग होने पर इसका उपयोग कन्ट्राइंडिकेटेड है।
  • एपिक्साबन: यह एक फैक्टर एक्सए इन्हीबिटर है जो पल्मोनरी एम्बोलिस्म, डीप वेइन थ्रोम्बोसिस के उपचार के लिए दिया जाता है। यह एट्रियल फिब्रिलेशन की संभावना को भी कम करता है।
  • बिवालिरुडिन: यह एक थ्रोम्बिन इन्हीबिटर है, जिसका उपयोग ब्लीडिंग के समय कन्ट्राइंडिकेटेड है, साथ ही सीकेडी होने पर भी इसका उपयोग कन्ट्राइंडिकेटेड है।
  • वार्फरिन: ये दवा, विटामिन के पर निर्भर ब्लड क्लॉट्स के फैक्टर्स में वाई-कार्बोक्सिलेशन को रोकती है। उन्हें एट्रियल फाइब्रिलेशन और पोस्ट वैस्कुलर स्टेंटिंग (डीप वेइन थ्रोम्बोसिस और पल्मोनरी एम्बोलिस्म के लिए भी) के उपचार में एंटी-कोएगुलेंट के रूप में दिया जाता है।
  • साइक्लोस्पोरिन: यह सबसे महत्वपूर्ण कैल्सीनुरिन इन्हिबिटर्स में से एक है। इसका उपयोग ट्रांसप्लांट प्रक्रियाओं के समय किया जाता है। इसके विभिन्न दुष्प्रभाव हैं जिनमें नेफ्रोटॉक्सिटी, हाई ब्लड-प्रेशर, एलोपेसिया, मसूड़े की हाइपरप्लासिया, हिर्सुटिज्म, हाइपरलिपिडिमिया आदि शामिल हैं।
  • अल्टेपलेज़: यह एक शक्तिशाली टिश्यू प्लास्मिनोजेन एक्टिवेटर है, जो इस्केमिक स्ट्रोक की संभावना को कम करता है और पल्मोनरी एम्बोलिस्म और मायोकार्डियल इन्फार्क्शन के प्रबंधन के लिए भी है। रक्तस्राव होने पर और न्यूरोनल साइड इफेक्ट होने पर भी, इसका उपयोग कन्ट्राइंडिकेटेड है।

Content Details
Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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