अवलोकन

Last Updated: Feb 18, 2023
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कान- शरीर रचना (चित्र, कार्य, बीमारी, इलाज)

कान का चित्र | Ear Ki Image कान की संरचना kan ka structure कान के भाग Ear ke part कान के कार्य | Ear Ke Kaam कान के रोग | Ear Ke rog कान की जांच | Ear Ke Test कान का इलाज | Ear Ki Bimariyon Ka Ilaj कान के लिए मेडिकेशन | Ear ki Dawaiyan

कान का चित्र | Ear Ki Image

कान का चित्र | Ear Ki Image

कान हमारे जीवन जीने के लिए बेहद उपयोगी और जरूरी अंग है। कान के जरिए किसी भी प्रकार की ध्वनि या शोर को सुना जा सकता है। कान एक प्रकार के पेयर्ड ऑर्गन्स हैं, जो आपके सिर के दोनो तरफ होते हैं। इनका काम सुनना और संतुलन बनाना है।

कान की संरचना kan ka structure

कान बाहरी, मध्य और आंतरिक कुल तीन प्रमुख भागों में बंटा होता है। इसके बाहरी हिस्से को पिन्ना कहते हैं। यह त्वचा से ढकी हुई रिज्ड कार्टिलेज से बना होता है। कान तक पहुंचने वाली किसी भी प्रकार की ध्वनि, पिन्ना के माध्यम से ही एक्सटर्नल ऑडिटरी कैनाल तक जाती है। यह कैनाल एक छोटी ट्यूब की तरह होती है जो टिम्पेनिक मेम्ब्रेन (कान का पर्दा) में जाकर समाप्त होती है।

ध्वनि के कारण कान (Ear) के मध्य भाग में स्थित ईयरड्रम (कान का पर्दा) और उससे जुड़ी छोटी हड्डियों में कंपन होने लगता है। यह कंपन कॉक्लिया तक जाता है। यह स्पाइरल सेप में होता है जो ध्वनि को नर्व इम्पलस में बदलकर मस्तिष्क तक पहुंचाता है।

कान के भाग Ear ke part

  1. एक्सटर्नल या बाहरी कान
    • पिन्ना: यह कान का बाहरी भाग होता है।
    • एक्सटर्नल ऑडिटरी कैनाल: यह एक प्रकार की ट्यूब है जो बाहरी कान को आंतरिक या मध्य कान से जोड़ती है।
    • टिम्पेनिक मेम्ब्रेन (ईयरड्रम): टिम्पेनिक मेम्ब्रेन एक प्रकार से बाहरी कान को मध्य कान से अलग करती है। इसे कान का पर्दा भी कहते हैं।

  2. मध्य कान (टिम्पेनिक कैविटी)
    • ओसीक्लेस: कान की छोटी हड्डियों को ओसीक्लेस कहते हैं। यह कान की तीन प्रकार की बेहद छोटी हड्डियां मैलस, इंकसल और स्टेप्स से बनी होती है। ये तीनों हड्डियां आपस में जुड़ी होती हैं। इनका काम ध्वनि तरंगों को आंतरिक कान तक पहुंचाना होता है।
    • यूस्टेशियन ट्यूब: यूस्टेशियन ट्यूब म्यूकस के साथ ठीक नाक और गले के अंदर एक लाइन में होती है। यह ट्यूब मध्य कान को नाक के पिछले हिस्से से जोड़ती है। इसका काम मध्य कान में प्रेशर को बराबर करने में मदद करना है। जिससे कि ध्वनि तरंगों को आसानी से निर्रधारित स्थान तक पहुंचाया जा सके।

  3. भीतरी कान
    • कॉक्लिया: इसमें नर्व होती है जो सुनने का काम करती है।
    • वेस्टिब्यूल: इसमें रिसेप्टर्स होते हैं। इनका काम संतुलन बनाना होता है।
    • सेमी-सर्कुलर कैनाल्स: इस भाग में रिसेप्टर्स का समूह होता है, जो संतुलन बनाने का काम करता है।

कान के कार्य | Ear Ke Kaam

  • सुनना: जब ध्वनि तरंगें कान के ईयरड्रम (कान का पर्दा) यानी की टिम्पेनिक मेम्ब्रेन में प्रवेश करती हैं तो इसमें वाइब्रेशन होता है। यह वाइब्रेशन मध्य कान में स्थित ओसीक्लेस तक जाती है। जहां से ओसीक्लेस इन ध्वनि तरंगों को आंतरिक कान तक पहुंचाती है। इन तरंगों को स्टीरियोसिलिया यानी की छोटे हेयर सेल्स की मदद से इलेक्ट्रिक एनर्जी में बदला जाता है। इसके बाद इन तरंगों को नर्व फाइबर्स की मदद से मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है।
  • संतुलन: आंतरिक कान में सेमी-सर्कुलर कैनाल्स होती हैं। यह कैनाल फ्लूइड और बालों जैसे सेंसर से भरी होती है। जब आप सिर को हिलाते हैं, तो इन लूप के आकार की कैनाल्स के अंदर का फ्लूइड गति करता है। इसके कारण कान के अंदर के बाल हिलते हैं। ये बाल इस सूचना को वेस्टिबुलर नर्व के साथ मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं। इसके बाद मस्तिष्क, मांसपेशियों को संतुलित करने के लिए संकेत भेजता है।

कान के रोग | Ear Ke rog

  • मास्टॉयडाइटिस: कान के ठीक पीछे मास्टॉयड हड्डी के संक्रमण को मास्टॉयडाइटिस कहा जाता है। यह मध्य कान के संक्रमण के कारण होता है। इससे मवाद से भरे सिस्ट बनने लगते हैं।बेनिग्न पैरॉक्सिस्मल पोजिशनल वर्टिगो (BPPV): इस स्थिति में आंतरिक कान ठीक से काम नहीं करता इससे चक्कर आने लगते हैं। यह एक सामान्य बीमारी है। हालांकि यह किसी भी प्रकार की मेडिकल इमरजेंसी का कारण नहीं है।
  • कोलेस्टीटोमा: इस स्थिति में मध्य कान और उसके आसपास की हड्डियों में एक प्रकार की त्वचा बनने लगती है। इससे सुनने की क्षमता में कमी आती है और कान से बदबूदार तरल पदार्थ भी निकलता है।
  • सरूमेन (ईयर वैक्स) इम्पेक्शन: इसे कान का मैल कहते हैं। ईयर वैक्स के कारण ईयर कैनाल ब्लॉक हो सकती है और ईयरड्रम से चिपक सकती है। इसके कारण ईयरड्रम में वाइब्रेशन कम होने लगता जिससे सुनने में परेशानी होती है।
  • कान के पर्दे का फटना: बहुत तेज आवाज, हवा के दबाव में अचानक परिवर्तन, संक्रमण, या बाहरी वस्तुएं कान के पर्दे को फाड़ सकती हैं। कान के पर्दे का छोटा छेद आमतौर पर कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है।
  • एकॉस्टिक न्यूरोमा: यह एक प्रकार का नॉन-कैंसरयुक्त ट्यूमर है। यह कान से मस्तिष्क तक जाने वाली वैस्टिबुलोकौक्लियर नामक नर्व में होता है। यह नर्व दो भागों से मिलकर बनी होती है। इसका एक भाग ध्वनि को ट्रांसमिट करता है और दूसरा भाग संतुलन बनाता है।
  • कान का दर्द: कान में होने वाले कई प्रकार के दर्द किसी रोग को जन्म दे सकता है।
  • ओटिटिस मीडिया: यह मध्य कान में संक्रमण के कारण होता है। इसके कारण मध्य कान में सूजन की स्थिति पैदा होती है। ऐसे में हमारे सुनने की क्षमता में कमी आती है। यह कान के पर्दे के एकदम पीछे वाला भाग होता है। यह स्थिति बच्चों में अधिक देखने को मिलता है।
  • स्विमर ईयर: इसे तैराक का कान या ओटिटिस एक्सटर्ना भी कहते हैं। यह बाहरी कान के हिस्से यानी कि पिन्ना और ईयर कैनाल में सूजन या संक्रमण के कारण होता है।
  • मेनियर रोग: यह कान के आंतरिक हिस्से को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण चक्कर आने और सुनने की समस्या के साथ कानों में ध्वनि आना या टिनियस रोग हो सकता है। कई मामलों में मेनेयर रोग केवल एक ही कान को प्रभावित करता है।
  • टिनिटस: कभी-कभी अपने आप ही एक या दोनों में कानों में कोई ध्वनि सुनाई देती है। इसे अक्सर लोग कानों में सीटी बजना कहते हैं। यह टिनियस रोग के कारण होता है। सामान्यतः यह स्थिति बढ़ती उम्र के साथ होती है।

कान की जांच | Ear Ke Test

  • कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी स्कैन): सीटी स्कैन के जरिए कान और उसके आसपास के स्ट्रक्चर की इमेज ली जाती है। इसके जरिए कान के इन्फेक्शन की सही जानकारी प्राप्त की जाती है।
  • मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग: इस स्थिति में मैग्नेटिक फील्ड में रेडियो तरंगों का उपयोग करके एक स्कैनर की मदद से कान और उसके आसपास के स्ट्रक्चर्स की हाई-रेजोल्यूशन इमेज ली जाती है।
  • बोन कंडक्शन टेस्टिंग: यह एक प्रकार का टोन टेस्ट है, जो ध्वनि के प्रति आपके आंतरिक कान की प्रतिक्रिया को मापता है। इसके लिए कान के पीछे एक कंडक्टर लगाया जाता है, जो हड्डी के माध्यम से आंतरिक कान में छोटे वाइब्रेशन भेजता है। यदि इस टेस्ट के परिणाम प्योर-टोन ऑडियोमेट्री से अलग है तो आपका ऑडियोलॉजिस्ट इस जानकारी से आपके हियरिंग लॉस के प्रकार को समझ पाएगा।
  • स्पीच टेस्टिंग: यह टेस्ट आपके स्पीच रिसेप्शन थ्रेशोल्ड (SRT) को मापने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट को शांत या शोरगुल वाले वातावरण में किया जाता है। इस दौरान बैकग्राउंड शोर से स्पीच को अलग करने की क्षमता को मापा जाता है।
  • ऑडिटरी टेस्टिंग: इस टेस्ट में ऑडियोलॉजिस्ट अलग-अलग वॉल्यूम और फ्रीक्वेंसी की ध्वनियों के जरिए कान की सुनने की क्षमता को मापता है।
  • प्योर टोन टेस्टिंग: इस टेस्ट में विभिन्न स्थितियों और वॉल्यूम में आपकी सुनने की क्षमता को मापा जाता है। इसके लिए एयर कंडक्शन का उपयोग किया जाता है। टेस्ट के दौरान आपको एक विशेष प्रकार के हेडफोन को पहनकर एक बूथ में बैठना होगा। इसके बाद डॉक्टर हेडफोन के माध्यम से ध्वनियों की एक सीरीज को प्रसारित करेंगे। इसके बाद टेस्ट का परिणाम एक ऑडियोग्राम पर अंकित किया जाएगा।
  • टिम्पैनोमेट्री: इस टेस्ट में आपके कान के पर्दे की गति को मापा जाता है। इसके जरिए तरल पदार्थ, मोम बिल्डअप, ईयरड्रम परफोरेशन (ईयरड्रम में होल) या ट्यूमर बनने की स्थिति का पता लगाया जाता है।
  • ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पांस (ABR): इस टेस्ट के जरिए विशेष प्रकार की हियरिंग लॉस सेंसरीन्यूरल का पता लगाया जाता है। ABR टेस्ट में इलेक्ट्रोड को आपके सिर, स्कैल्प या कान के लोब से अटैच किया जाता है। इसके लिए आपको विशेष प्रकार के हेडफोन पहनने होते हैं। इसके बाद अलग-अलग तीव्रता की ध्वनियों की मदद से आपकी ब्रेनवेव गतिविधि को मापा जाता है।
  • एकॉस्टिक रिफ्लेक्स टेस्टिंग: यह टेस्ट मध्य कान की मांसपेशियों के संकुचन को मापता है। इसके जरिए आपकी सुनने की क्षमता और हियरिंग लॉस के प्रकार की जानकारी मिलती है।

कान का इलाज | Ear Ki Bimariyon Ka Ilaj

  • एंटीबायोटिक्स: कान में वैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण को एंटीबायोटिक्स की मदद से ठीक किया जा सकता है।
  • सेरुमेनोलिटिक्स (ईयर-वैक्स ड्रॉप्स): मिनरल ऑयल के सोल्यूशन की ड्रॉप, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड या पानी के सोल्यूशन की मदद से ड्रॉप्स ईयरवैक्स की समस्या को दूर किया जा सकता है।
  • इरीगेशन: नमक के पानी और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की मदद से कान को साफ किया जाता है। इसके जरिए सेरुमेन इंफेक्शन का इलाज भी किया जा सकता है।
  • सर्जरी: कान के गंभीर रोग जैसे एकॉस्टिक न्यूरोमा को हटाने के लिए सर्जरी आवश्यक होती है। जिन बच्चों को बार-बार कान का संक्रमण होता है उन्हें ड्रेनेज ट्यूब लगाने के लिए भी सर्जरी करानी पड़ती है।
  • एक्सरसाइज: कुछ एक्सरसाइज रेजीमेंस बीपीपीवी के लक्षणों में सुधार कर सकती हैं।

कान के लिए मेडिकेशन | Ear ki Dawaiyan

  • एंटीहिस्टामाइन: हिस्टामाइन ब्लॉकर्स से आंतरिक कान पर प्रभाव पड़ता है, जो वर्टिगो के लक्षणों को कम कर सकता है।
  • नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाई: नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं (NSAID) के उपयोग से कान के संक्रमण का इलाज नहीं हो सकता है। हालांकि इससे दर्द को कम किया जा सकता है। कान के इलाज में इबुप्रोफेन का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इबुप्रोफेन के इस्तेमाल से मतली, चक्कर आना और कब्ज जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
  • एंटीबायोटिक्स: कान के संक्रमण के इलाज के लिए सबसे अधिक पेनिसिलिन का उपयोग किया जाता है। पेनिसिलिन युक्त एंटीबायोटिक एमोक्सिसिलिन दवा को कान के संक्रमण के इलाज के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस दवा के इस्तेमाल से मतली, उल्टी और दाने होने की शिकायत हो सकती है।
  • सेरुमेनोलिटिक्स (ईयर-वैक्स ड्रॉप्स): मिनरल ऑयल युक्त सोल्यूशन की कुछ ड्रॉप्स के साथ हाइड्रोजन पेरॉक्साइड और पानी के मिश्रण के उपयोग से कान की मैल को साफ किया जा सकता है।

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Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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