इसबगोल की भूसी के बारे में शायद ही कोई न जानता हो। पेट की कब्ज और गैस जैसी समस्याएं होने पर आज भी घर के बड़े-बूढ़े इसबगोल की भूसी खाने की सलाह देते हैं। हालांकि, यह कब्ज के अलावा अन्य कई शारीरिक समस्याओं से निजात दिलाने में कारगर है। तो चलिए जानते हैं कि इस इसबगोल की भूसी हमारे स्वास्थ्य के लिए किस तरह से लाभदायक है। साथ ही इसके दुष्प्रभाव के बारे में भी जानेंगे। हालांकि इसके पहले यह जान लेते हैं कि इसबगोल की भूसी कहते किसे हैं।
प्लांटागो ओवाटा नाम के पौधे के बीज को इसबगोल कहा जाता है जिसका अंग्रेजी में नाम साइलियम हस्क है। यह पौधा देखने में बिलकुल गेंहू के पौधे जैसा होता है। इस पौधे की पत्तियां छोटी-छोटी होती हैं और इसमें फूल भी होते हैं। पौधे की डालियों पर बीज लगे हुए होते हैं और इन बीजों पर सफ़ेद रंग का एक पदार्थ होता है। इसी पदार्थ को इसबगोल की भूसी कहा जाता है। इसबगोल की भूसी कई प्रकार से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करने का सामर्थ्य रखती है। यही वजह से पुराने समय से ही कई आयुर्वेदिक औषधियों में भी इसबगोल की भूसी का प्रयोग किया जाता रहा है।
इसबगोल की भूसी हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। इसकी वजह इसमें पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व हैं। इसबगोल की भूसी में फाइबर प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। इसके अलावा इसमें कैलोरी और प्रोटीन के गुण भी पाए जाते हैं इसबगोल की भूसी कब्ज की समस्या के लिए सबसे लोकप्रिय इलाज है। इसके अलावा यह वजन घटाने में भी कारगर साबित होती है। इसके अलावा इसबगोल की भूसी कई अन्य तरह की शारीरिक समस्याओं के लिए फायदेमंद है।
नीचे उल्लेखित इसबगोल के सबसे अच्छे स्वास्थ्य लाभ हैं
कब्ज की वजह से पेट में कई तरह की समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इसीलिए कब्ज होते ही उसका समाधान ढूढ़ना जरुरी होता है। इसबगोल की भूसी कब्ज की समस्या का रामबाण इलाज माना जाता है। दरअसल, इसबगोल में फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है जो लैक्सेटिव की तरह काम करती है। मात्र कुछ दिन ही इसबगोल की भूसी का सेवन करने से कब्ज़ की समस्या से छुटकारा मिल जाता है।
इसबगोल की भूसी में जिलेटिन मौजूद रहता है। यही जिलेटिन शरीर में मधमेह की समस्या को नियंत्रित करने में सहायक होता है। इसके अलावा इसबगोल की भूसी में मौजूद फाइबर की वजह से इंसुलिन और ब्लड शुगर लेवल कम होता है जिससे डायबिटीज को नियंत्रित करना आसान हो जाता है। इस बात की पुष्टि कई शोधों में भी की गई है।
इसबगोल की भूसी कोलेस्ट्रॉल से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा दिलाने में कारगर है। दरअसल, यह बढे हुए कोलेस्ट्रॉल की स्तर को कम करने में सहायक है। साथ ही यह गुल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाती भी है।
अगर आप अपने मोटापे से परेशान हैं तो आज हीइसबगोल की भूसी का नियमित सेवन शुरू करें। इसकी भूसी का सेवन करने की वजह से आपको डायटिंग करने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी। दरअसल, इसबगोल की भूसी खाने की वजह से देर तह पेट भरा हुआ महसूस होता है जिससे आप बेवजह कुछ खाने से बच जाते हैं। इसका असर आपके शरीर के वजन पर पड़ता है।
इसबगोल की भूसी में कोलेस्ट्रॉल बिलकुल भी नहीं होता। जबकि फाइबर प्रचुर मात्रा में मौजूद रहता है। इसी वजह से इसे अपने दैनिक आहार में शामिल करना हृदय स्वास्थ्य के लिए काफी हितकारी है। यह हृदय की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।
कई लोगों के मन में इसबगोल की भूसी को लेकर सवाल होगा कि इसका सेवक कब और कितनी मात्रा में करना सही होगा। इसके भी सोंच रहे होंगे कि क्या उम्र के हिसाब के से भी इसके खाने की मात्रा घटती या बढ़ती है। तो चलिए आज हम आपके इन सवालों का जवाब देते हैं।
दरअसल, अगर आप इसबगोल की भूसी का फायदा चाहते हैं तो सही तरीके से इसका सेवन करना पड़ेगा। दरअसल इसबगोल की भूसी को पानी में मिलाकर खाना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। इसे पानी में मिलाने से यह चिपचिपे जेली के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस मिश्रण में ना कोई गंध होती है ना ही कोई स्वाद होता है। इसके अलावा दही में मिलाकर भी इसका सेवन किया जा सकता है।
इसबगोल के साथ साइड इफेक्ट और एलर्जी बेहद दुर्लभ हैं। लेकिन जो लोग निगलने में कठिनाई और आंतों की रुकावट से पीड़ित हैं, उन्हें इससे बचना चाहिए क्योंकि इससे समस्या बढ़ सकती है। राइनाइटिस और एनाफिलेक्सिस इसबगोल के सामान्य दुष्प्रभाव हैं लेकिन ऐसा बहुत कम होता है।
इसबगोल भारत का मूल निवासी है और अब इसे पश्चिम एशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको और रूस के कुछ हिस्सों में भी उगाया जाता है। यह पौधा रबी की फसल है और इसे उगाने के लिए ठंडे, शुष्क और धूप वाले मौसम की आवश्यकता होती है। इसबगोल के लिए रेतीली या दोमट मिट्टी की जरूरत होती है जिसमें पानी का निकास अच्छा हो और पानी को जमा न होने दे। पौधों को कटाई के लिए तैयार होने में 5 से 6 महीने का समय लगता है। भारत इसबगोल की भूसी का सबसे बड़ा उत्पादक है। इसबगोल की खेती राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्यप्रदेश में अधिक की जाती है।
इसबगोल की बुआई के लिए अक्टूबर से नवम्बर के बीच का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इसके बीजों की बुआई कतारों में की जाती है और एक कतार से दूसरे कतार के बीच की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर होना जरूरी है।