आपने अभी तक कई तरह के खरपतवार देखें होंगे या उनके बारे में सुना होगा। एक ही एक खरपतवार है सिंहपर्णी जिसे दुदल नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो सिंहपर्णी की गिनती खरपतवार के रूप में की जाती है, लेकिन यह खरपतवार हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। इसे कई लोग अपने घर की शोभा बढ़ाने के लिए गमलों में भी लगाते हैं। तो चलिए जानते हैं कि यह सिंहपर्णी है क्या और इसके क्या-क्या लाभ हैं। इसके साथ ही इसके दुष्प्रभावों के बारे में भी जानना आवश्यक है, ताकि इसके सेवन से हम किसी गंभीर बीमारी के गिरफ्त में न आ जाए।
वैसे तो सिंहपर्णी का इस्तेमाल लोग अपने बाग़-बगीचों में लगाकर घर की शोभा बढ़ाने के लिए करते हैं लेकिन इसकी गिनती एक खरपतवार में की जाती है, जो खेतों में या खेतों के किनारे बनी मेढों पर अपने आप निकल आते हैं। इसका पौधा आपको सालभर देखने को मिल सकता है। सिंहपर्णी का वैज्ञानिक नाम टराक्सकम (Taraxacum) है। इसके फूल पीले रंग के होते हैं। इसके पौधे की लम्बाई 10 से 12 इंच तक होती है। इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं और देखने में काफी आकर्षक होती हैं। सिंहपर्णी की जड़ें सफ़ेद रंग की होती हैं जिनका इस्तेमाल कई औषधीय दवाइयों में भी किया जाता है। इसके पौधे को तोड़ने या काटने पर सफ़ेद रंग का दूध निकलता है।
सिंहपर्णी कई पौष्टिक तत्वों से भरपूर रहता है, जो कई बीमारियों के खिलाफ कारगर साबित हो सकता है। इस पौधे की खासियत यह है कि इसके फल, फूल, पत्तियां और जड़ें सभी औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं। इसी वजह से काफी लम्बे समय से पारम्परिक चिकित्सा में इस पौधे का प्रयोग किया जा रहा है। इसमें विटामिन बी6, विटामिन सी, राइबोफ्लेविन, थियामिन, खनिज कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम जैसे पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। इसके इलावा इसमें कॉपर, मैग्नीशियम, फोलेट और फॉस्फोरस भी पर्याप्त मात्रा में होता है। यह हमारे शरीर को निरोगी बनाने में मददगार हैं।
नीचे उल्लेखित सिंहपर्णी के सबसे अच्छे स्वास्थ्य लाभ हैं
कैल्शियम हड्डियों और दांतों के रूप में शरीर में मौजूद रहता है और सिंहपर्णी कैल्शियम से भरपूर है। इसी वजह से सिंहपर्णी से बनी चाय का सेवन दांतों की सड़न और शरीर में कैल्शियम की कमी को रोकने में मदद करता है। यह हार्मोन के स्राव, मांसपेशियों के सिकुड़ने, तंत्रिका के फैलने, रक्त के थक्के को सक्षम बनाने और रक्त के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।
सिंहपर्णी के पौधे से दूध की तरह का पदार्थ निकलता है, जो त्वचा को कई तरह के लाभ प्रदान करने में सक्षम है। इसकी प्रकृति अत्यधिक क्षारीय प्रकृति है इसलिए इसमें कवकनाशी, कीटाणुनाशक और कीटनाशक गुण होते हैं। सिंहपर्णी के तने को तोड़ने पर जो रस बच जाता है उसका उपयोग छालरोग, एक्जिमा, दाद आदि जैसी समस्याओं को दूर रखने के लिए भी किया जा सकता है। त्वचा के संक्रमण को बचाने में सिंहपर्णी को औषधीय रूप से प्रयोग में लाया जाता है।
सिंहपर्णी की गिनती एक प्रभावी जड़ी-बूटी के रूप में की जाती है, जिसका उपयोग मूत्राशय विकार, गुर्दे की समस्याओं, मूत्र पथ में संक्रमण और शरीर के प्रजनन अंगों पर बने सिस्ट की उपस्थिति से लड़ने की स्थिति में किया जा सकता है।
सिंहपर्णी अग्न्याशय की कोशिकाओं को सक्रिय करता है और शरीर में इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है। यह ब्लड शुगर की आवश्यक मात्रा को बनाए रखने में भी मदद करता है। दरअसल सिंहपर्णी में मूत्रवर्धक गुण होते हैं, जिसकी वजह से शरीर में मौजूद अतिरिक्त शुगर को बाहर निकालने में सक्षम बनाता है। अगर अग्न्याशय इंसुलिन को प्रभावी ढंग से संसाधित नहीं कर पाता है, तो शरीर में ग्लूकोज का ठीक से उपयोग नहीं हो पाता है और रक्तप्रवाह में जमा हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप मधुमेह होता है। चाय, जूस आदि के रूप में सिंहपर्णी के निरंतर उपयोग से इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है।
सिंहपर्णी मूत्रवर्धक गुणों के अलावा एक डिटॉक्सिफायर और एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में भी काम करता है। मुँहासे विशेष रूप से यौवन के दौरान शरीर में होने वाले शारीरिक और हार्मोनल परिवर्तनों का परिणाम है। यह मुंहासे विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल पाने की वजह से निकलते हैं। सिंहपर्णी हार्मोन के प्रभावी स्राव को सक्षम बनाता है। चाय या जूस के रूप में सिंहपर्णी का सेवन करने पर इन विषाक्त पदार्थों को मूत्रमार्ग के रास्ते बाहर निकाला जा सकता है। इसे तेल के रूप में भी त्वचा पर लगाया जा सकता है।
सिंहपर्णी में विटामिन-सी और ल्यूटोलिन भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। विटामिन-सी और ल्यूटोलिन में कैंसर पैदा करने वाले मुक्त कणों को ख़त्म करने के गुण होते है। यही वजह है कि सिंहपर्णी शरीर को डिटॉक्सीफाई तो करता ही है, साथ ही ट्यूमर के विकास और कैंसर कोशिकाओं की प्रगति को भी रोकता है। चूंकि ल्यूटोलिन कैंसर कोशिकाओं को ख़त्म करने में सहायक है इस वजह से सिंहपर्णी के सेवन से कैंसर कोशिकाओं के प्रजनन गुण ख़त्म हो जाते हैं। यह प्रोस्टेट कैंसर के खिलाफ सबसे सफल औषधियों में सिंहपर्णी की गिनती की जाती है।
शरीर से अतिरिक्त चर्बी और टॉक्सिन्स पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाते हैं। सिंहपर्णी के मूत्रवर्धक गुणों के कारण, जड़ी-बूटी के सेवन से बार-बार पेशाब आने की इच्छा को बढ़ावा मिलता है जिससे पानी का वजन कम होता है। इसके अलावा, सिंहपर्णी में कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है, जो इसे वजन घटाने का एक स्वस्थ मार्ग बनाता है।
सिंहपर्णी अपने मूत्रवर्धक गुणों के कारण पेशाब को बढ़ावा देता है जिसे शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करने का एक प्रभावी तरीका माना जाता है। सिंहपर्णी में मौजूद आवश्यक फाइबर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करते हैं और इसके पोटैशियम सामग्री के माध्यम से दबाव को भी नियंत्रित करते हैं।
शरीर में पित्त उत्पादन में वृद्धि के कारण पीलिया जैसी बीमारी होती है। यह बीमारी शरीर के चयापचय को प्रभावित करता है जिससे यकृत के विकार पैदा होते हैं। पीलिया का इलाज तब किया जा सकता है जब पित्त उत्पादन कम मात्रा में हो। अगर पहले से बना हुआ पित्त शरीर से समाप्त हो जाए तो वायरल संक्रमण समाप्त हो जाता है। अपने मूत्रवर्धक, कीटाणुनाशक और विषहरण गुणों के कारण सिंहपर्णी द्वारा इसका इलाज किया जा सकता है।
सिंहपर्णी मूत्रवर्धक और डिटॉक्सिफाइंग गुणों से भरा हुआ है। इस वजह से यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सक्षम बनाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि शरीर को हानिकारक रसायनों का कोई संचय होने से बचाया जाना चाहिए, क्योंकि यही हानिकारक रसायन मूत्र पथ के किसी भी विकार को जन्म देने के कारक होते हैं। सिंहपर्णी मूत्र पथ को किसी भी माइक्रोबियल संक्रमण से रोकता है, साथ ही पहले से उत्पन्न विकार को ख़त्म करने में भी सहायक होता है।
सिंहपर्णी में आयरन, विटामिन और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है। प्रोटीन सामग्री और विटामिन-बी लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को सक्षम करते हैं और रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाते हैं। इसके यह गुण एनीमिया को दूर रखने में कारगर है।
सिंहपर्णी में फाइबर के तत्व भी पाए जाते हैं जो प्रभावी पाचन और स्वस्थ आंतों के कार्य को सुनिश्चित करने में सहयोगी है। फाइबर दस्त की घटना को रोकता है और कब्ज की संभावना को कम करने के लिए मल को मोटा बनाता है। सिंहपर्णी यह भी सुनिश्चित करता है कि शरीर किसी भी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार से प्रभावित न हो। अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण सिंहपर्णी शरीर को वायरल संक्रमण की संभावना से भी बचाता है।
सिंहपर्णी को हम विभिन्न तरीके से प्रयोग में ला सकते हैं, जो निम्नलिखित है।
सिंहपर्णी अपनी ब्लड शुगर को संतुलन करने वाले गुण के लिए जाना जाता है। हालांकि, पहले से ही इसके लिए दवाएं लेने वाले लोगों को सिंहपर्णी के सेवन से बचने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है और शरीर को अच्छे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। सिंहपर्णी का रस जलन पैदा करता देखा गया है। इसके अलावा जिन लोगों को रैगवीड, मैरीगोल्ड और डेजी पौधों से एलर्जी की शिकायत है, उन्हें सिंहपर्णी का सेवन करने से मुंह और गले में खुजली की समस्या हो सकती है।
सिंहपर्णी पौधे की खेती सबसे पहले यूरेशिया में लगभग 30 मिलियन वर्ष पहले हुई थी। यह प्राचीन काल से मिस्र, रोमन, यूनानियों और चीनी लोगों द्वारा पारंपरिक हर्बल औषधि के रूप में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला पौधा था। यह आज ज्यादातर उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया में एक जंगली पौधे के रूप में उगता है।