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Last Updated: Dec 06, 2022
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ब्रेन(दिमाग)- शरीर रचना (चित्र, कार्य, बीमारी, इलाज)

ब्रेन(दिमाग) का चित्र | Brain Ki Image ब्रेन(दिमाग) के अलग-अलग भाग ब्रेन(दिमाग) के कार्य | Brain Ke Kaam ब्रेन(दिमाग) के रोग | Brain Ki Bimariya ब्रेन(दिमाग) की जांच | Brain Ke Test ब्रेन(दिमाग) का इलाज | Brain Ki Bimariyon Ke Ilaaj ब्रेन(दिमाग) की बीमारियों के लिए दवाइयां | Brain ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

ब्रेन(दिमाग) का चित्र | Brain Ki Image

ब्रेन(दिमाग) का चित्र | Brain Ki Image

मस्तिष्क का वजन लगभग तीन पाउंड होता है जो शरीर के सभी कार्यों को नियंत्रित करता है, बाहरी दुनिया से प्राप्त जानकारी को इन्टरप्रेट करता है। इंटेलिजेंस, क्रिएटिविटी, इमोशन, और मेमोरी, मस्तिष्क द्वारा शासित कई चीजों में से कुछ हैं। स्कल के भीतर संरक्षित, मस्तिष्क सेरेब्रम, सेरिबैलम और ब्रेनस्टेम से बना होता है।

हमारी पांच इंद्रियों के माध्यम से, मस्तिष्क को जानकारी प्राप्त होती है: साइट(दृष्टि), स्मेल (गंध), टच (स्पर्श), टेस्ट (स्वाद) और हियरिंग (श्रवण)। यह संदेशों को इस तरह से इकट्ठा करता है जो हमारे लिए अर्थपूर्ण होता है, और उस जानकारी को हमारी स्मृति में संग्रहीत कर सकता है। हमारे विचारों, मेमोरी, स्पीच, बाहों, पैरों की गति और हमारे शरीर के भीतर कई अंगों के कार्य को, मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

सेंट्रल नर्वस सिस्टम(CNS), मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से बना होता है। पेरीफेरल नर्वस सिस्टम, स्पाइनल नर्व्ज़ से बना होता है जिनकी ब्रांचेज रीढ़ की हड्डी से निकलती हैं और क्रेनियल नर्व्ज़ जिनकी ब्रांचेज मस्तिष्क से निकलती हैं।

ब्रेन(दिमाग) के अलग-अलग भाग

मस्तिष्क कई सारे भागों से मिलकर बना होता है। दिमाग के सभी हिस्से मिलकर काम करते हैं, लेकिन हर भाग की अपनी खास जिम्मेदारियां होती हैं। मस्तिष्क की तीन बेसिक यूनिट्स होती हैं: फोरब्रेन, मिडब्रेन और हिंडब्रेन।

हिंडब्रेन में ब्रेन स्टेम, रीढ़ की हड्डी का ऊपरी भाग, और टिश्यू की एक रिंकल वाली लेयर शामिल होती है जिसे सेरिबैलम कहा जाता है।

ब्रेनस्टेम के सबसे ऊपरी हिस्से को मिडब्रेन कहा जाता है, जो कुछ रिफ्लेक्स क्रियाओं को नियंत्रित करता है और आंखों की मूवमेंट्स और अन्य वोलंटरी मूवमेंट्स के नियंत्रण में शामिल सर्किट का हिस्सा है। फोरब्रेन मानव मस्तिष्क का सबसे बड़ा और सबसे अधिक विकसित हिस्सा है: इसमें मुख्य रूप से सेरेब्रम और इसके नीचे की संरचनाएं छिपी होती हैं।

ब्रेन(दिमाग) के कार्य | Brain Ke Kaam

  • मस्तिष्क कई विशिष्ट क्षेत्रों से बना होता है जो एक साथ मिलकर काम करते हैं:
  • कॉर्टेक्स, ब्रेन सेल्स की सबसे बाहरी लेयर है। कॉर्टेक्स में सोच और वोलंटरी मूवमेंट्स की शुरुआत होती है।
  • ब्रेन स्टेम, स्पाइनल कॉर्ड और मस्तिष्क के बाकी हिस्सों के बीच होता है। सांस लेने और सोने जैसे बेसिक फंक्शन्स को यहां नियंत्रित किया जाता है।
  • बेसल गैन्ग्लिया, ब्रेन के सेंटर में स्ट्रक्चर्स का एक समूह है। बेसल गैन्ग्लिया, मस्तिष्क के कई अन्य क्षेत्रों के बीच संदेशों को कोऑर्डिनेट करता है।
  • सेरिबैलम, ब्रेन के बेस पर और पीछे की तरफ होता है। सेरिबैलम समन्वय और संतुलन के लिए जिम्मेदार है।
  • मस्तिष्क, टिश्यूज़ की एक लेयर से घिरा होता है जिसे मेनिन्जेस कहा जाता है। स्कल, मस्तिष्क को चोट से बचाने में मदद करता है।

मस्तिष्क को फंक्शनल सेक्शंस में बांटा गया है, जिन्हें लोब्स कहा जाता है:

  • फ्रंटल लोब
  • टेम्पोरल लोब
  • पेरिएटल लोब
  • ऑक्सिपिटल लोब
  • सेरिबैलम
  • ब्रेन स्टेम

प्रत्येक लोब का एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट कार्य होता है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है:

  1. फ्रंटल लोब के फंक्शन
    • ध्यान
    • एकाग्रता
    • सेल्फ-मॉनिटरिंग
    • आर्गेनाइजेशन
    • एक्सप्रेसिव लैंग्वेज (बोलना)
    • मोटर प्लानिंग और इनिशियेशन
    • क्षमताओं के बारे में जागरूकता
    • सीमाओं के बारे में जागरूकता
    • व्यक्तित्व
    • मेन्टल फ्लेक्सिबिलिटी
    • बिहेवियर को निषेध करना
    • भावनाएं
    • प्रॉब्लम सॉल्विंग
    • प्लानिंग
    • जजमेंट
    • फ्रंटल लोब पर आई चोट किसी व्यक्ति की भावनाओं, आवेगों और व्यवहार को नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है या घटनाओं को याद करने या बोलने में कठिनाई का कारण बन सकती है।
  2. ब्रेन स्टेम फंक्शन
    • साँस लेना
    • उत्तेजना
    • चेतना
    • हृदय गति
    • नींद और जागने का चक्र
    • ब्रेन स्टेम, शरीर के अनैच्छिक कार्यों को नियंत्रित करता है जो जीवित रहने के लिए आवश्यक हैं, जैसे कि सांस और हृदय गति।
  3. टेम्पोरल लोब के फंक्शन्स
    • मेमोरी
    • भाषा को समझना
    • सिक्वेंसिंग
    • सुनवाई
    • आर्गेनाइजेशन
    • टेम्पोरल लोब की चोट से व्यक्तियों को संचार या स्मृति के साथ कठिनाई हो सकती है।
  4. पेरिएटल लोब के फंक्शन्स
    • स्पर्श की अनुभूति
    • स्पाटिअल परसेप्शन (गहराई बोध)
    • साइज, शेप, रंग की पहचान
    • विज़ुअल परसेप्शन
    • पेरिएटल लोब की चोट से, पांच प्राथमिक इंद्रियों में परेशानी हो सकती है।
  5. सेरिबैलम के फंक्शन्स
    • बैलेंस और कोआर्डिनेशन
    • स्किल्ड मोटर एक्टिविटी
    • विज़ुअल परसेप्शन
    • सेरिबैलम की चोट संतुलन, मूवमेंट और कोऑर्डिनेशन को प्रभावित कर सकती है।
  6. ऑक्सिपिटल लोब के फंक्शन्स
    • दृष्टि
    • किसी के ऑक्सिपिटल लोब पर चोट लगने से, वस्तुओं के शेप और साइज को देखने या समझने में परेशानी हो सकती है।

ब्रेन(दिमाग) के रोग | Brain Ki Bimariya

  • सिरदर्द: सिरदर्द कई प्रकार के होते हैं; कुछ गंभीर हो सकते हैं और कुछ नहीं भी होते हैं। आमतौर पर एनाल्जेसिक/दर्द निवारक के साथ इनका इलाज किया जाता है।
  • स्ट्रोक (ब्रेन इन्फार्क्शन): मस्तिष्क के टिश्यूज़ की एक जगह में अचानक ब्लड फ्लो और ऑक्सीजन बाधित हो जाती है इसीलिए वो टिश्यू मर जाते हैं। ब्लड क्लॉट, या मस्तिष्क में रक्तस्राव, अधिकांश स्ट्रोक का कारण होता है।
  • ब्रेन एन्यूरिस्म: बैन की एक आर्टरी में एक कमजोर जगह विकसित हो जाती जिसके कारण उसमें सूजन आ जाती है। ब्रेन एन्यूरिस्म रप्चर, स्ट्रोक का कारण बन सकता है।
  • सबड्यूरल हेमाटोमा: ड्यूरा के भीतर या नीचे रक्तस्राव, जो कि स्कल के अंदर की परत होती है। एक सबड्यूरल हेमाटोमा मस्तिष्क पर दबाव डाल सकता है, जिससे न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं।
  • एपिड्यूरल हेमाटोमा: आमतौर पर सिर में चोट लगने के कुछ ही समय बाद, स्कल के अंदर और स्कल की लाइनिंग के अंदर टफ टिश्यू के बीच रक्तस्राव होता है। शुरुआत होती है, हल्के लक्षणों से जो तेजी से बढ़ते हैं जिससे बेहोशी और मौत तक हो सकती है, यदि इलाज न किया जाए।
  • इंट्रासेरेब्रल हेमरेज: मस्तिष्क के अंदर ब्लीडिंग होना।
  • कंकशन: ब्रेन इंजरी, जिसके कारण मस्तिष्क के कार्य में एक अस्थायी गड़बड़ी होती है। अचानक से लगने वाली सिर की चोटें सबसे अधिक चोट का कारण बनती हैं।
  • सेरेब्रल एडीमा: चोट या इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन के जवाब में मस्तिष्क के टिश्यू की सूजन।
  • ब्रेन ट्यूमर: मस्तिष्क के अंदर कोई भी असामान्य रूप से होने वाली टिश्यू की वृद्धि। चाहे घातक (कैंसर) या सौम्य, ब्रेन ट्यूमर आमतौर पर सामान्य मस्तिष्क पर पड़ने वाले दबाव के कारण समस्याएं पैदा करते हैं।
  • ग्लियोब्लास्टोमा: एक आक्रामक, घातक ब्रेन ट्यूमर (कैंसर)। ब्रेन ग्लियोब्लास्टोमा तेजी से बढ़ता है और इसका इलाज करना बहुत मुश्किल होता है।
  • हाइड्रोसिफ़लस: स्कल के अंदर सेरेब्रोस्पाइनल (ब्रेन) फ्लूइड की असामान्य रूप से बढ़ी हुई मात्रा। आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फ्लूइड ठीक से सर्क्युलेट नहीं होता है।
  • नार्मल प्रेशर हाइड्रोसिफ़लस: हाइड्रोसिफ़लस का एक रूप, जिसके कारण अक्सर डिमेंशिया और मूत्र असंयम की समस्या होती है। इससे चलने में समस्या भी होती है। बढ़े हुए फ्लूइड के बावजूद मस्तिष्क के अंदर दबाव सामान्य रहता है।
  • मेनिनजाइटिस: आमतौर पर संक्रमण से मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी के आसपास की लाइनिंग में सूजन हो जाती है। गर्दन में अकड़न, गर्दन में दर्द, सिरदर्द, बुखार और नींद न आना इसके सामान्य लक्षण हैं।
  • एन्सेफलाइटिस: ब्रेन टिश्यूज़ की सूजन, आमतौर पर वायरस के संक्रमण से होती है। बुखार, सिरदर्द और भ्रम इसके सामान्य लक्षण हैं।
  • दर्दनाक मस्तिष्क की चोट: सिर की चोट से स्थायी रूप से मस्तिष्क की क्षति हो सकती है। स्पष्ट रूप से मानसिक दुर्बलता, या अधिक सूक्ष्म व्यक्तित्व और मनोदशा में परिवर्तित हो सकते हैं।
  • पार्किंसंस रोग: मस्तिष्क के सेंटर में स्थित नर्व्ज़ धीरे-धीरे खराब हो जाती हैं, जिससे मूवमेंट और कोऑर्डिनेशन में समस्याएं आती हैं। हाथों का कांपना एक सामान्य शुरुआती संकेत है।
  • हनटिंग्टन रोग: यह एक ऐसा इनहेरिटेड नर्व डिसऑर्डर है जो मस्तिष्क को प्रभावित करता है। डिमेंशिया और मूवमेंट्स को नियंत्रित करने में कठिनाई होना इसके लक्षण हैं।
  • मिर्गी: दौरे पड़ने की प्रवृत्ति। सिर की चोट और स्ट्रोक से मिर्गी हो सकती है, लेकिन आमतौर पर इसके किसी भी कारण की पहचान नहीं हो पाई है।
  • डिमेंशिया: मस्तिष्क में नर्व टिश्यूज़ की मृत्यु या खराबी के परिणामस्वरूप कॉग्निटिव फंक्शन में कमी आना।
  • अल्जाइमर रोग: कुछ अज्ञात कारणों से, मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में नर्व्ज़ खराब हो जाती हैं, जिससे प्रगतिशील डिमेंशिया होता है। अल्जाइमर रोग, डिमेंशिया का सबसे आम रूप है।
  • मस्तिष्क में फोड़ा: आमतौर पर बैक्टीरिया के कारण मस्तिष्क में इन्फेक्शन की एक पॉकेट बन जाती है। उस जगह का इलाज एंटीबायोटिक्स से किया जाता है और सर्जिकल रूप से ड्रेनेज किया जाता है।

ब्रेन(दिमाग) की जांच | Brain Ke Test

  • कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी स्कैन): एक स्कैनर से बहुत सारे एक्स-रे लिए जाते हैं। इन एक्स-रे को एक कंप्यूटर द्वारा, ब्रेन और स्कल की विस्तृत इमेजेज में परिवर्तित करता है।
  • मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई स्कैन): एक मैग्नेटिक फील्ड में रेडियो वेव्स का उपयोग करके, एक एमआरआई स्कैनर ब्रेन और सिर के अन्य हिस्सों की अत्यधिक विस्तृत इमेजेज बनाता है।
  • एंजियोग्राफी (ब्रेन एंजियोग्राम): एक विशेष पदार्थ को नसों में इंजेक्ट किया जाता है(जिसे डॉक्टर 'कॉन्ट्रास्ट एजेंट' कहते हैं) और यह मस्तिष्क में जाता है। मस्तिष्क के एक्स-रे वीडियो लिए जाते हैं, जिससे मस्तिष्क की आर्टरीज में समस्या का पता चल जाता है।
  • मैग्नेटिक रेजोनेंस एंजियोग्राफी (एमआरए): इस प्रक्रिया में, मस्तिष्क की आर्टरीज का एक विशेष एमआरआई स्कैन किया जाता है। एक एमआरए स्कैन, ब्लड क्लॉट्स या स्ट्रोक के कारण का पता चल सकता है।
  • लुम्बर पंचर (स्पाइनल टैप): रीढ़ की हड्डी की नसों के आसपास की जगह में एक सुई डाली जाती है, और परीक्षण के लिए फ्लूइड को निकाला जाता है। मेनिन्जाइटिस का संदेह होने पर, लुम्बर पंचर अक्सर किया जाता है।
  • इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी): सिर पर त्वचा पर लगाए गए इलेक्ट्रोड के माध्यम से, मस्तिष्क की गतिविधि की निगरानी की जाती है। ईईजी से दौरे, या अन्य मस्तिष्क समस्याओं का निदान करने में मदद मिल सकती है।
  • न्यूरोकॉग्निटिव परीक्षण: इस प्रक्रिया में, समस्या सुलझाने की क्षमता, अल्पकालिक स्मृति और अन्य जटिल मस्तिष्क कार्यों के लिए टेस्ट किये जाते हैं।
  • ब्रेन बायोप्सी: दुर्लभ स्थितियों में, ब्रेन की स्थिति का निदान करने के लिए, ब्रेन के एक बहुत छोटे से टुकड़े की आवश्यकता होती है। ब्रेन की बायोप्सी आम तौर पर केवल तभी की जाती है जब उचित उपचार प्रदान करने के लिए जानकारी की आवश्यकता होती है।

ब्रेन(दिमाग) का इलाज | Brain Ki Bimariyon Ke Ilaaj

  • थ्रोम्बोलिटिक्स: नसों में क्लॉट-बस्टिंग दवाओं को इंजेक्ट किया जाता है जिससे लक्षणों के शुरू होने के कुछ घंटों के भीतर दिया जाता है। ये दवाएं कुछ स्ट्रोक में सुधार कर सकती हैं या ठीक कर सकती हैं।
  • एंटीप्लेटलेट एजेंट: एस्पिरिन और क्लोपिडोग्रेल (प्लाविक्स) जैसी दवाएं ब्लड क्लॉट्स को रोकने में मदद करती हैं। इससे स्ट्रोक की संभावना कम हो सकती है।
  • कोलेलिनेस्टरेज़ इनहिबिटर: ये दवाएं हल्के या मध्यम स्तर के अल्जाइमर रोग में मस्तिष्क की कार्यक्षमता में थोड़ा सुधार कर सकती हैं। वे अल्जाइमर रोग को न तो धीमा करते हैं और न ही रोकते हैं।
  • एंटीबायोटिक्स: जब बैक्टीरिया के कारण मस्तिष्क में संक्रमण होता है, तो एंटीबायोटिक्स का उपयोग करके उन्हें मारा जा सकता है और इलाज की अधिक संभावना बन सकती है।
  • लेवोडोपा: एक दवा जो मस्तिष्क में डोपामाइन के स्तर को बढ़ाती है, जो पार्किंसंस रोग के लक्षणों को नियंत्रित करने में सहायक है।
  • ब्रेन सर्जरी: ब्रेन का ऑपरेशन, कुछ ब्रेन ट्यूमर को ठीक कर सकता है। मस्तिष्क की सर्जरी किसी भी समय की जा सकती है, जब मस्तिष्क में बढ़े हुए प्रेशर से मस्तिष्क के टिश्यू को खतरा होता है।
  • वेंट्रिकुलोस्टॉमी: मस्तिष्क (वेंट्रिकल्स) के अंदर प्राकृतिक स्थानों में एक ड्रेन डाली जाती है। वेंट्रिकुलोस्टॉमी आमतौर पर, मस्तिष्क के हाई प्रेशर को दूर करने के लिए किया जाता है।
  • क्रैनियोटॉमी: हाई प्रेशर से छुटकारा पाने के लिए एक सर्जन, स्कल के किनारे में एक छेद ड्रिल करता है।
  • लुम्बर ड्रेन: रीढ़ की हड्डी के चारों ओर फ्लूइड को निकालने के लिए, एक ड्रेन डाली जाती है। यह मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर प्रेशर को दूर कर सकता है।
  • रेडिएशन थेरेपी: यदि कैंसर मस्तिष्क को प्रभावित करता है, तो रेडिएशन से लक्षणों को कम किया जा सकता है और कैंसर के विकास को धीमा किया जा सकता है।

ब्रेन(दिमाग) की बीमारियों के लिए दवाइयां | Brain ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

  • क्लॉट्स के थ्रोम्बोलिसिस के लिए एंटीप्लेटलेट एजेंट: एंटीप्लेटलेट दवाएं, एक ऐसे उपचार का प्रकार हैं जो ब्लड क्लॉट्स के विकास के जोखिम को कम कर सकते हैं। दो दवाएं हैं जिन्हें एंटीप्लेटलेट एजेंट (प्लाविक्स) माना जाता है, वो हैं: एस्पिरिन और क्लोपिडोग्रेल। इनके उपयोग से, स्ट्रोक होने की संभावना में कमी होती है।
  • कोलिनेस्टरेज़ इनहिबिटर: कई दवाएं ऐसी होती हैं जिन्होंने रोगियों की कॉग्निटिव एबिलिटीज में सुधार किया है, जो कि मध्यम से गंभीर स्तर का अल्जाइमर रोग तक है। अल्जाइमर रोग को रोकने या किसी भी तरह से बीमारी के कोर्स में देरी करने में उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • सेरिब्रल इंफार्कट्स के लिए थ्रोम्बोलिटिक्स: इस प्रक्रिया में, क्लॉट्स को खत्म करने वाली दवाओं को सीधे रोगी की नसों में इंजेक्ट किया जाता है। लक्षणों की शुरुआत के बाद ही यदि पहले कुछ घंटों के दौरान, इन उपचारों को प्रदान कर दिया जाता है तो कुछ प्रकार के स्ट्रोक को कम करने और कुछ मामलों में स्ट्रोक्स ठीक करने की क्षमता होती है।
  • पार्किंसंस रोग के लिए लेवोडोपा: इस दवा का उपयोग पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए किया जाता है क्योंकि इसमें मस्तिष्क में डोपामाइन के स्तर को बढ़ाने की क्षमता है। इस वजह से, इस स्थिति से जुड़े लक्षणों के उपचार के लिए ये दवा बहुत सहायक है।
  • माइग्रेन और सिरदर्द के लिए एनाल्जेसिक: एनाल्जेसिक वो दवाएं होती हैं जो दर्द को कम करने और शरीर द्वारा उत्पादित प्रोस्टाग्लैंडीन की संख्या को कम करने के लिए ली जाती हैं। इन दवाओं को, किसी भी कार्डियोवैस्कुलर घटना के 48 घंटे बाद प्रशासित नहीं किया जाना चाहिए।
  • सेरेब्रल ब्लड प्रेशर को बनाए रखने के लिए बीटा-ब्लॉकर्स: वे हृदय पर पड़ने वाले तनाव को भी कम करते हैं। इस कारण से हृदय गति कम होती है और हार्ट फेलियर और अतालता जैसी विभिन्न प्रकार की हृदय संबंधी स्थितियों से बचने में मदद मिलती है। कुछ दवाओं के उदाहरण हैं: कर्वेडिलोल, बिसोप्रोलोल, और मेटोप्रोलोल सुक्किनेट।
  • ब्लड प्रेशर को बनाए रखने के लिए एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंजाइम इनहिबिटर्स (एसीई इनहिबिटर्स): वे फ्लूइड के बोझ को कम करते हैं, जिससे हृदय अपने स्ट्रोक की मात्रा को स्थिर रख पाता है। बड़ी और छोटी ब्लड आर्टरीज को रिलैक्स करके, वे ऐसा करते हैं। कैप्टोप्रिल, एनालाप्रिल, लिसिनोप्रिल, रामिप्रिल और ट्रांडोलाप्रिल एसीई इनहिबिटर के उदाहरण हैं जो अक्सर रोगियों को निर्धारित किए जाते हैं।
  • सेरेब्रल कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए लिपिड-लोअरिंग एजेंट: जिन लोगों में एथेरोस्क्लेरोसिस या आर्टेरियोस्क्लेरोसिस विकसित होने की संभावना अधिक होती है, उन्हें स्टैटिन दवाओं का उपयोग करना चाहिए जिससे कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम किया जा सके। इन दवाओं के कुछ उदाहरण एटोरवास्टेटिन और रोसुवास्टेटिन हैं।
  • सेरेब्रल ब्लड प्रेशर को बनाए रखने के लिए मूत्रवर्धक: ये दवाएं मूत्र और अन्य तरीकों से निकलने वाले पानी की मात्रा को बढ़ाकर, ब्लडस्ट्रीम के माध्यम से जाने वाले फ्लूइड की मात्रा को कम करती है, जो बदले में किसी अन्य कार्डियोवैस्कुलर घटना के जोखिम को कम करती है। मूत्रवर्धक, फ़्यूरोसेमाइड, टॉर्सेमाइड, बुमेटेनाइड, हाइड्रोक्लोरोथियाज़ाइड, मेटोलाज़ोन और इसी तरह की अन्य दवाएं मूत्रवर्धक के उदाहरण हैं जिनका अक्सर उपयोग किया जाता है।
  • सेरेब्रल ब्लड प्रेशर को बनाए रखने के लिए एंजियोटेंसिन रिसेप्टर ब्लॉकर्स: वे एंजेल टेंडन के मेटाबॉलिज़्म में गड़बड़ी पैदा करते हैं, जो रक्तचाप को नियंत्रित करने और कार्डियक आउटपुट को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता है। कुछ फार्मास्युटिकल साल्ट हैं जिनका उपयोग केवल उच्च प्रशिक्षित मेडिकल प्रोफेशनल्स द्वारा किया जाता है।
  • खून को पतला करने वाली दवाई के रूप में एस्पिरिन: इस दवा का उपयोग करके डॉक्टर ब्लड क्लॉट्स को बनने से रोकने के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिससे दिल का दौरा पड़ने की संभावना कम हो जाती है।
  • क्लोपिडोग्रेल (प्लाविक्स): क्लोपिडोग्रेल को जब लिया जाता है तो ब्लड क्लॉट्स के विकास को रोकने में मदद कर सकती है। इस दवा के कारण प्लेटलेट्स को आपस में क्लम्प होने और साथ में जुड़ने से रोका जाता है। किसी भी कार्डियोवैस्कुलर घटना के दौरान, इसे एक महत्वपूर्ण दवा माना जाता है।
  • एंटी-कोएगुलेंट के रूप में वार्फरिन: इस दवा से, विटामिन K पर निर्भर रहने वाले कोएगुलेशन फैक्टर्स के वाई-कार्बोक्सिलेशन को दबा देती है। एट्रिअल फिब्रिलेशन और रोगियों का इलाज करते समय, जिनका अभी-अभी आर्टेरियल स्टेंटिंग हुआ है, उन्हें एक एंटी-कोएगुलेंट (डीप वेनस थ्रोम्बोसिस और पल्मोनरी एम्बोलिस्म के लिए भी) के रूप में प्रशासित किया जाता है।

Content Details
Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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