कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी को आम भाषा में टॉक थेरेपी भी कहा जाता है. इस धरती पर मानसिक तनाव की वजह से आए नकारात्मक सोच को बदलकर सकारत्मक जीवन की तरफ लाने की कोशिश होती है. काफी लोग किन्हीं कारणों की वजह से नकारात्मक सोच धारण कर लेते हैं. इस थेरेपी में काउंसलर कई सत्र में पीड़ित से इंटरैक्ट करके इन्हीं नकारात्मक सोच को बाहर निकालकर जिंदगी को नई दिशा देने की कोशिश करते हैं.
यह थेरेपी दिमागी परेशानियां जैसे कि डिप्रेशन पोस्ट ट्रॉमेटिक डिसऑर्डर या खाना सही से ना खाने का डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए काफी कारगर होती है. इस थेरेपी का उद्देश्य है कि आपकी जिंदगी दोबारा सही तरीके से चल सके. काउंसलर आपसे बात करके आपको आपकी परेशानियों का उपाय देते हैं और आपको एक जिम्मेदाराना व्यक्ति बनाने की कोशिश करते हैं. यह थेरेपी आपको बदसलूकी या हिंसा से बाहर निकाल सकते हैं. इस थेरेपी में कुछ दवाइयां भी दी जा सकती हैं ताकि आप अपनी नकारात्मक सोच से बाहर आ सके.
इस थेरेपी को टॉप थेरेपी भी कहते हैं इस थेरेपी में काउंसलर आपसे बातचीत के द्वारा आपकी उम्र नकारात्मक सोच उनके बारे में जानने की कोशिश करते हैं. कुछ ऐसी बातें हो सकती हैं जो आपको मानसिक तनाव दे या परेशान करते हैं इन्हीं बातचीत के जरिए काउंसलर इन बातों को खोज निकालते हैं. इसके लिए जरूरी है कि आप अपने काउंसलर के साथ सहयोग करें और खुलकर अपनी परेशानियों को बताएं. बताई गई बातों पर काउंसलर फिर आपको उपाय बताते हैं. काउंसलर यह थेरेपी आपके बचपन में ही शुरू कर सकते हैं और यह थेरेपी जवानी तक चल सकती है. आमतौर पर 5 या 6 सत्र होने के बाद काउंसलर इस नतीजे पर पहुंचता है जिस वजह से आपकी जिंदगी में परेशानियां आ रही हैं. जबकि हो सकता है इस दौरान कुछ ऐसी बातों को याद करना पड़े जो काफी दुख दायक हो सकती हैं. कई बार काउंसलर आपको कुछ करने के लिए सलाह दे सकते हैं ताकि आप अपने डर और अपने परेशानियों पर काबू ना कर सके जैसे कि काउंसलर आपको एक भीड़ भाड़ वाले इलाके में अकेले सामान खरीदने के लिए भेज सकते हैं ताकि आप अपने डर पर काबू कर सकें. आखिर में काउंसलर दवाइयों का भी उपयोग कर सकते हैं.
कोई भी व्यक्ति जो मानसिक स्वास्थ्य विकारों से ग्रस्त है जैसे अवसाद और पोस्ट ट्रॉमेटिक सिंड्रोम, तनाव विकार या खाने का विकार उपचार के लिए योग्य हो सकता है. यह उपचार कोई भी व्यक्ति किसी भी उम्र किसी भी समय करवा सकता है.
यह उपचार कोई भी व्यक्ति करवा सकता है जिन्हें पोस्ट ट्रॉमेटिक सिंड्रोम या आत्मविश्वास की परेशानियां होती है. इस उपचार में काउंसलर और मरीज के बीच बातों के कई सत्र हो सकते हैं. इसलिए यह उपचार कोई भी व्यक्ति किसी भी उम्र किसी भी समय करवा सकता है.
ऐसे उपचार के लिए कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हैं क्योंकि उनमें रोगी और परामर्शदाता के बीच एक श्रृंखला शामिल होती है. बाद में कुछ दवाएं शामिल हो सकती हैं, और ऐसे मामलों में, आपको साइड इफेक्ट्स और दवाओं के प्रभावों की प्रकृति के बारे में अपने डॉक्टर से चर्चा करनी पड़ सकती है.
इस उपचार मे आपके जीवनशैली और आपके वातावरण मे बहुत सारे बदलाव लाने पड़ सकते है. थेरेपिस्ट का मुख्य उदेश्य होता है आपको सही दिशा दिखाना इसलिए उनको करने का पता किया जाता है. जिनके वजह से आपकी ऐसी स्तिथी बनी है उनके कारणों को जान कर उनसे दूर रहने की सलहा दी जाती है. उदाहरण के लिए, यदि आपकी हालत का कारण तनाव के कारण है जो आप अपने काम में सामना करते हैं तो आपको भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए कार्यस्थल में बदलाव की तलाश करनी होगी.
उपचार योजना हर व्यक्ति पर निर्भर करती है और हर व्यक्ति की ज़रूरत के अनुसार अनुकूलित की जाती है। नतीजतन, उपचार की अवधी भिन्न हो सकती है। इसमें आमतौर पर एक परामर्शदाता और रोगी के बीच एक सत्र होता है और औसत उपचार योजना में 10 से 20 सत्र होते हैं।.
फिर, यह चिकित्सा केंद्र और किसी व्यक्ति के सत्रों की संख्या पर निर्भर करता है. प्रत्येक सत्र में औसत 300 रुपये की लागत हो सकती है. दवाओं के मामले में, लागत अतिरिक्त हो सकती है.
उपचार के परिणाम इलाज करने वाले व्यक्ति पर निर्भर करते हैं. उपचार अधिक स्थाई हो सकता है जब व्यक्ति सही प्रकार से सहयोग कर रहा होता है. इसके अलावा दवा के परिणाम अलग-अलग हो सकते हैं.
वैकल्पिक उपचार के रूप में मनुष्य को अपने आपको ऐसे कामों में व्यस्त रखना है जिन कामों में उसका दिल लगे या वह उसके पसंदीदा काम है. इनमें मनोरंजन खेलकूद योगा जैसे विकल्प शामिल हैं. इन मामलों में जरूरी है कि इंसान खुद की अहमियत को समझें और इसके लिए वह यात्रा अभ्यास और उपचार जैसे विभिन्न चैनलों के माध्यम से जान सकता है.