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Last Updated: May 10, 2023
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कोलोस्ट्रम - शरीर रचना (चित्र, कार्य, बीमारी, इलाज)

कोलोस्ट्रम का चित्र अलग-अलग भाग कार्य रोग जांच इलाज दवाइयां

कोलोस्ट्रम का चित्र | Colostrum Ki Image

कोलोस्ट्रम का चित्र | Colostrum Ki Image

कोलोस्ट्रम, एक ब्रैस्ट फ्लूइड है जो मानव, गायों और अन्य स्तनधारियों के शरीर द्वारा ब्रैस्ट मिल्क के निकलने से पहले बनता है। यह बहुत पौष्टिक होता है और इसमें उच्च स्तर के एंटीबॉडी पाए जाते हैं, जो प्रोटीन कहलाते हैं। यह संक्रमण और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं।

कोलोस्ट्रम शिशुओं और नवजात पशुओं में विकास और स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। शोध से पता चलता है कि बोवाइन कोलोस्ट्रम का सेवन करने से इम्यूनिटी को बढ़ाया जा सकता है। इससे संक्रमण से लड़ने में मदद मिल सकती है और जीवन भर आंतों के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।

कोलोस्ट्रम, ब्रैस्ट मिल्क (स्तन के दूध) का पहला रूप है जो जन्म देने के बाद स्तन ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होता है। नवजात शिशु की इम्यूनिटी बनाने के लिए, यह पोषक तत्वों और एंटीबॉडी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। बच्चे के जन्म के दो से चार दिनों के भीतर यह स्तन के दूध में बदल जाता है। कोलोस्ट्रम, सामान्य स्तन के दूध की तुलना में गाढ़ा और अधिक पीला होता है।

कोलोस्ट्रम सप्लीमेंट को आमतौर पर गायों के कोलोस्ट्रम से बनाया जाता है। इस सप्लीमेंट को बोवाइन कोलोस्ट्रम के रूप में जाना जाता है।

बोवाइन कोलोस्ट्रम मानव कोलोस्ट्रम के जैसा ही होता है - विटामिन, मिनरल्स, फैट्स, कार्बोहाइड्रेट, रोग से लड़ने वाले प्रोटीन, ग्रोथ हार्मोन और पाचन एंजाइम से भरपूर।

बोवाइन कोलोस्ट्रम, अभी कुछ समय में काफी लोकप्रिय हो गया है, क्योंकि वे इम्यूनिटी को बढ़ावा दे सकते हैं, संक्रमण से लड़ सकते हैं और आंत के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं।

इन सप्लीमेंट्स के लिए गायों से कोलोस्ट्रम को पास्चुरीकृत किया जाता है और सुखाकर इसे गोलियों या पाउडर के रूप में बदल दिया जाता है। पाउडर को तरल पदार्थ के साथ मिलाया जा सकता है। बोवाइन कोलोस्ट्रम में आमतौर पर हल्का पीला रंग और एक सूक्ष्म स्वाद और गंध होती है जो छाछ जैसा दिखता है।

कोलोस्ट्रम के अलग-अलग भाग

कोलोस्ट्रम में इम्यूनिटी बढ़ाने वाले गुणों के साथ बायोएक्टिव कंपोनेंट्स भी होते हैं: इम्युनोग्लोबुलिन, लैक्टोफेरिन, लाइसोजाइम, लैक्टोपेरोक्सीडेज, α-लैक्टाल्बुमिन, β-लैक्टोग्लोबुलिन, या फैट्स जो महत्वपूर्ण विटामिन और पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड का वहन करता है।

कोलोस्ट्रम में मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, विटामिन और मिनरल्स की भरपूर मात्रा होती है। इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभ ज्यादातर विशिष्ट प्रोटीन कंपाउंड्स से जुड़े होते हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • लैक्टोफेरिन: लैक्टोफेरिन एक प्रोटीन है जो शरीर को संक्रमण के प्रति प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाता है, जिसमें बैक्टीरिया और वायरस के कारण होने वाले संक्रमण भी शामिल हैं।
  • ग्रोथ फैक्टर्स: ग्रोथ फैक्टर्स, हार्मोन्स होते हैं जिनसे हमारा विकास होता है। बोवाइन कोलोस्ट्रम में विशेष रूप से दो प्रोटीन-आधारित हार्मोन, इंसुलिन जैसे ग्रोथ फैक्टर 1 और 2, या आईजीएफ -1 और आईजीएफ -2 का उच्च स्तर होता है।
  • एंटीबॉडी: एंटीबॉडी प्रोटीन होते हैं, जिन्हें इम्युनोग्लोबुलिन के रूप में भी जाना जाता है। इनका उपयोग प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने के लिए किया जाता है। बोवाइन कोलोस्ट्रम एंटीबॉडी आईजीए, आईजीजी और आईजीएम (1, 2) में समृद्ध है।

कोलोस्ट्रम को अपना रंग कैरोटेनॉयड्स (एक एंटीऑक्सीडेंट) और विटामिन ए से मिलता है। विटामिन ए बच्चे की दृष्टि, त्वचा और प्रतिरक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोलोस्ट्रम मैग्नीशियम से भरपूर होता है, जो बच्चे के दिल और हड्डियों को मज़बूत करता है, और कॉपर और ज़िंक, जो प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

कोलोस्ट्रम और ब्रैस्ट मिल्क के बीच निम्नलिखित अंतर हैं:

  • कोलोस्ट्रम, इम्युनोग्लोबिन से भरपूर होता है जिससे बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिलता है और उसे बीमारी से बचाता है।
  • कोलोस्ट्रम में दो गुना प्रोटीन होता है।
  • कोलोस्ट्रम में चार गुना ज्यादा जिंक होता है।
  • कोलोस्ट्रम में फैट और चीनी कम होती है इसलिए इसे पचाना आसान होता है।
  • कोलोस्ट्रम गाढ़ा और अधिक पीला होता है।

स्तन के दूध के तीन अलग-अलग चरण होते हैं: कोलोस्ट्रम, ट्रांज़िशनल दूध और मैच्योर दूध।

  • कोलोस्ट्रम: यह पहला दूध है, जो बच्चे को जन्म के दो से चार दिनों के बीच रहता है।
  • ट्रांज़िशनल दूध: ये जन्म के लगभग चार दिन बाद शुरू होता है और लगभग दो सप्ताह तक रहता है।
  • मैच्योर दूध: दूध जो जन्म के लगभग 14 दिनों से लेकर दूध का उत्पादन समाप्त होने तक रहता है।

कोलोस्ट्रम के कार्य | Colostrum Ke Kaam

कोलोस्ट्रम में प्रोटीन की मात्रा अधिक और फैट्स और चीनी की कम मात्रा होती है। इसमें अधिक मात्रा में वाइट ब्लड सेल्स होते हैं जो एंटीबॉडी उत्पन्न करते हैं। ये एंटीबॉडी, बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं, उसे संक्रमण से बचाते हैं। कोलोस्ट्रम बेहद गाढ़ा और पोषक तत्वों से भरपूर होता है, यहां तक ​​कि छोटी डोज़ में भी।

स्तनों या स्तन ग्रंथियों का कार्य है: बच्चे की भूख को शांत करने के लिए दूध का उत्पादन करना। बच्चे के जन्म के बाद, पहले दूध के रूप में, कोलोस्ट्रम का महत्व बहुत अधिक है। इसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और एंटीबॉडी होते हैं। क्योंकि, जन्म के बाद बच्चे को केवल थोड़े से कोलोस्ट्रम की आवश्यकता होती है, इसलिए दूध पीने के दौरान वो चूसना, निगलना और सांस लेना सीख जाते हैं।

कोलोस्ट्रम के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:

  • बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है।
  • आंतों को कोट करके, उन्हें स्वस्थ बनाने में मदद करता है। यह हानिकारक जीवाणुओं को अवशोषित होने से रोकने में मदद करता है।
  • नवजात शिशु के लिए आदर्श पोषण होता है।
  • इसका एक लैक्सेटिव प्रभाव भी होता है जो बच्चे को मेकोनियम (आपके बच्चे का पहला शौच) साफ करने में मदद करता है और पीलिया होने की संभावना को कम करता है।
  • पचने में आसान होता है।
  • समय से पहले हुए शिशुओं में ब्लड शुगर का स्तर कम होने से रोकने में मदद करता है।

कोलोस्ट्रम के रोग | Colostrum Ki Bimariya

  • रेनॉड सिंड्रोम: जिन माताओं को निप्पल क्षेत्र में असामान्य दर्द हो रहा है, वे स्तन, एरोला और निप्पल में रक्त के प्रवाह में कमी से पीड़ित हो सकती हैं। ब्लड फ्लो में कमी, ब्लड वेसल्स के सिकुड़ने के कारण होती है, जिसे रेनॉड सिंड्रोम या फेनोमेनन के रूप में जाना जाता है।
  • गैलेक्टोरिया: यह एक दूधिया रंग का, निप्पल से होने वाला डिस्चार्ज है जो स्तनपान के सामान्य दूध उत्पादन से संबंधित नहीं है। गैलेक्टोरिया अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन यह एक अंतर्निहित समस्या का संकेत हो सकता है। यह आमतौर पर महिलाओं में होता है, यहां तक ​​कि उन महिलाओं में भी जिन्हें कभी बच्चे नहीं हुए या रजोनिवृत्ति के बाद।
  • स्तनपान की कमी: नर्सिंग के दौरान, दूध की आपूर्ति कई परिस्थितियों के परिणामस्वरुप कम हो सकती है। इसमें शामिल हैं: समय की विस्तारित अवधि के लिए स्तनपान में देरी करना, बार-बार पर्याप्त स्तनपान नहीं कराना, स्तनपान की जगह फार्मूला मिल्क देना, अपर्याप्त लैच तकनीक का उपयोग करना और कुछ दवाओं का उपयोग करना शामिल है। कभी-कभी पिछली ब्रेस्ट सर्जरी के कारण भी दूध बन सकता है।
  • मास्टिटिस: ये स्थिति मुख्य रूप से स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रभावित करती है। इस स्थिति के कारण, एक या दोनों स्तनों में लालिमा, सूजन और दर्द हो सकता है। मास्टिटिस, ब्रैस्ट टिश्यू की सूजन है जिसमें कभी-कभी संक्रमण शामिल होता है। सूजन के परिणामस्वरूप स्तन दर्द, सूजन, गर्मी और लालिमा होती है।
  • प्रोलैक्टिन (पीआरएल) की कमी: इसे एंटीरियर पिट्यूटरी सेल्स के नुकसान के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो पीआरएल को स्त्रावित करते हैं, जिससे सीरम में पीआरएल का स्तर कम या बिलकुल भी नहीं होता है।
  • हाइपरलैक्टेशन: स्तनपान के दौरान शुरुआत में, यह पूर्ण, रिसाव वाले स्तनों में परिणत होता है जो दूध पिलाने के बाद विशेष रूप से नरम नहीं होते हैं। दर्दनाक दूध की कमी, गंभीर अतिसार, और स्तन दर्द अक्सर होते हैं।

कोलोस्ट्रम की जांच | Colostrum Ke Test

  • ब्लड टेस्ट: शरीर के प्रोलैक्टिन स्तरों को मापने के लिए। यदि महिला के शरीर में प्रोलैक्टिन स्तर अत्यधिक है, तो डॉक्टर थायरॉयड-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (TSH) स्तर की भी जांच करेगा।
  • प्रेगनेंसी टेस्ट: यह टेस्ट इसीलिए किया जाता है ताकि निप्पल डिस्चार्ज के संभावित कारण के रूप में इस ऑप्शन को नकारा न सके।
  • मैमोग्राफी, अल्ट्रासाउंड या दोनों: यदि आपकी शारीरिक जांच के दौरान, आपके डॉक्टर को स्तन में गांठ या स्तन या निप्पल में कोई अन्य परिवर्तन होता है, तो स्तन के टिश्यूज़ की इमेजेज प्राप्त करने के लिए।
  • कल्चर और सेंसिटिविटी एरोबिक टेस्ट: स्तन के दूध में पैथोजन्स के स्तर का पता लगाने के लिए, ब्रैस्ट मिल्क सैंपल पर कल्चर और सेंसिटिविटी एरोबिक टेस्ट किया जाता है। स्तन संक्रमण के उपचार के दौरान और उपचार के बाद एक बार किसी भी स्तन संक्रमण को सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण किया जाता है।
  • शारीरिक परीक्षा: इसके दौरान, डॉक्टर निप्पल के आसपास की जगह की धीरे से जांच करके, निप्पल से कुछ तरल पदार्थ निकालने की कोशिश कर सकता है। डॉक्टर स्तन गांठ या मोटे स्तन, टिश्यू के अन्य संदिग्ध जगहों की भी जांच कर सकता है।
  • बायोप्सी: जब गर्भावस्था के दौरान स्तन विकसित होते रहते हैं और ठोस और गांठदार महसूस करते हैं, तो यह संभव है कि ट्यूमर फ्लूइड को गलती से सामान्य टिश्यू के रूप में पहचाना जा सकता है। इसलिए, इस परीक्षण का उद्देश्य ट्यूमर के अस्तित्व की तलाश करना है।
  • अल्ट्रासोनोग्राफी: गर्भावस्था के दौरान स्तन अल्ट्रासाउंड व्यापक विशेषताओं के साथ बढ़े हुए, हाइपोचोजेनिक गैर-फैटी फाइब्रोग्लैंडुलर टिश्यू का पता चलता है।

कोलोस्ट्रम का इलाज | Colostrum Ki Bimariyon Ke Ilaaj

सप्लीमेंट्री फीडिंग: शिशु को पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान करने में यदि मां के दूध की आपूर्ति अपर्याप्त है तो फार्मूला या डोनर मिल्क की आवश्यकता होती है। नर्सिंग को रिप्लेस करने के बजाय, ब्रेस्टफीडिंग सेशन के तुरंत बाद सप्लीमेंट दिया जाना चाहिए।

कोलोस्ट्रम की बीमारियों के लिए दवाइयां | Colostrum ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

  • गैलेक्टागॉग्स: इसे लैक्टोगोगॉग्स के रूप में भी जाना जाता है। ये ऐसी दवाएं हैं जो मां के दूध उत्पादन की शुरुआत, जारी रखने या बढ़ाने में मदद करता है।
  • मेटोक्लोप्रमाइड: यह डोपामाइन को सेंट्रल नर्वस सिस्टम में रिलीज होने से रोककर स्तनपान को प्रोत्साहित करता है।
  • डोमपेरिडोन: जब स्वस्थ महिलाओं को दिया जाता है, तो डोमपेरिडोन औसत रक्त प्रोलैक्टिन के स्तर को बढ़ाता है।
  • मेटोक्लोप्रमाइड और क्लोरप्रोमज़ीन: इन दोनों में गैलेक्टोगॉग प्रभाव होते हैं जिसके कारण ये दोनों दवाएं, उन महिलाओं में दूध उत्पादन में सहायता करती हैं जो स्तनपान कराने में असमर्थ हैं।
  • एंटीसाइकोटिक सल्पीराइड: विशिष्ट एंटीसाइकोटिक सल्पीराइड हाइपोथैलेमिक प्रोलैक्टिन रिलीज करने वाले हार्मोन को बढ़ाकर गैलेक्टोगॉग के रूप में कार्य करता है।
  • थायरोट्रोपिन रिलीजिंग हार्मोन: इस हार्मोन के कारण, प्रोलैक्टिन और टीएसएच का स्त्राव बढ़ जाता है, जिससे स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को अधिक दूध का उत्पादन होता है।

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Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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