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Last Updated: Dec 06, 2022
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आँखें- शरीर रचना (चित्र, कार्य, बीमारी, इलाज)

आँखों का चित्र | Eyes Ki Image आँखों के अलग-अलग भाग आँखों के कार्य | Eyes Ke Kaam आँखों के रोग | Eyes Ki Bimariya आँखों की जांच | Eyes Ke Test आँखों का इलाज | Eyes Ki Bimariyon Ke Ilaaj आँखों की बीमारियों के लिए दवाइयां | Eyes ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

आँखों का चित्र | Eyes Ki Image

आँखों का चित्र | Eyes Ki Image

आंखें, हमारे शरीर का वो अंग हैं जिनके कारण हम देख पाते हैं। आँखें, प्रकाश का पता लगाती हैं और ऑप्टिक नर्व के माध्यम से मस्तिष्क को संकेत भेजती हैं। आँखें, शरीर के सबसे जटिल अंगों में से एक हैं, और कई हिस्सों से बनी होती हैं। प्रत्येक अलग-अलग भाग आपके देखने की क्षमता में योगदान देता है। आँखों की सहायता से, हम सभी दिशाओं में लगभग 200 डिग्री देख सकते हैं, जिसमें सामने की दिशा और दोनों साइड्स भी शामिल हैं। आंखों के कुछ हिस्से, इमेजिज, मूवमेंट्स और गहराई को देखने के लिए एक साथ काम करते हैं।

आँखों के अलग-अलग भाग

आंख के निम्नलिखित भाग होते हैं:

  • आईरिस: ये आँखों का रंगीन हिस्सा होता है। आंखों के रंग के आधार पर, आईरिस नीले, हरे, हेज़ेल या भूरे रंग का हो सकता है।
  • कॉर्निया: यह एक क्लियर लेयर है जो आईरिस के ऊपर फैली हुई होती है। पानी और कोलेजन से मिलकर, कॉर्निया बना होता है। आंसू से कॉर्निया की रक्षा होती है और वे इसे चिकनाई युक्त रखते हैं।
  • पुतली(प्यूपिल): आँखों का काला घेरा जो आपकी आईरिस के बीच में एक ओपनिंग या विंडो के जैसी है। यह आपकी आंख में जाने वाले प्रकाश को नियंत्रित करने के लिए फैलती या सिकुड़ती है।
  • स्क्लेरा: आपकी आंख के सफेद हिस्से जो आईरिस को घेरते हैं।
  • कंजंक्टिवा: एक क्लियर और पतला टिश्यू है जो स्क्लेरा को कवर करता है और आपकी पलकों के अंदर की रेखाओं को लाइन करता है।
  • लेंस: ये पुतली (प्यूपिल) के पीछे होता है। लेंस, आंख में आने वाले प्रकाश पर फोकस करता है और आपकी आंख के पीछे उसको भेजता है।
  • रेटिना: ये सेल्स का एक ऐसा कलेक्शन है जो आपकी आंख के पिछले हिस्से के अंदर की लाइन को बनाता है। रेटिना, हमारे नर्वस सिस्टम का हिस्सा होते हैं। ये प्रकाश को महसूस कर उसे इलेक्ट्रिकल इम्पलसेस या न्यूरल सिग्नल्स में परिवर्तित करता है। रेटिना में कुछ रॉड्स (सेल्स जो आपको कम रोशनी में देखने में मदद करती हैं) और कोन्स (सेल्स जो रंग का पता लगाती हैं) होते हैं।
  • मैक्यूला: एक छोटा सी जगह, जो रेटिना का हिस्सा है। मैक्युला, सेंट्रल विज़न के लिए ज़िम्मेदार है और इसकी सहायता से हमें डिटेल्स और कलर्स को देखने में मदद मिलती है।
  • ऑप्टिक नर्व: ये रेटिना के पीछे होती है। यह सिग्नल्स को, रेटिना से मस्तिष्क तक ले जाती है। फिर मस्तिष्क उस विज़ुअल इनफार्मेशन को इन्टरप्रेट करता है जिससे आपको पता चलता है कि आप क्या देख रहे हैं।
  • मांसपेशियां: ये आपकी आंख की पोजीशन और मूवमेंट, आपकी आंख में कितना प्रकाश जाता है और आपकी आंखों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को नियंत्रित करती हैं।
  • विट्रियस: यह एक पारदर्शी जेल होता है जिससे पूरी आंख भरी होती है। यह आंख के आकार की रक्षा और रखरखाव करता है।

आँखों के कार्य | Eyes Ke Kaam

  • प्रकाश, आपकी आंख में कॉर्निया से माध्यम से अंदर आता है और फिर आपके लेंस तक जाता है। आपकी पुतली (प्यूपिल), आंख में जाने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए, बड़ी और छोटी होती रहती है।
  • आप जो देख रहे हैं, उसपर फोकस करने के लिए, आपका कॉर्निया और लेंस उस प्रकाश को रेफ्रेक्ट (मोड़) करते हैं।
  • प्रकाश आपकी आंख के पीछे रेटिना तक पहुंचता है, और रेटिना फिर उन इमेजिज को इलेक्ट्रिकल इम्पलसेस या सिग्नल्स में बदल देता है।
  • इन सिग्नल्स को आपके मस्तिष्क के उस हिस्से में, रेटिना द्वारा ट्रांसफर किया जाता है जो दृष्टि (विज़ुअल कोर्टेक्स) के लिए जिम्मेदार है। ऑप्टिक नर्व, एक बार में दोनों आंखों से सिग्नल्स को लेती है।
  • आपका मस्तिष्क आपके द्वारा देखी गई चीजों को इन्टरप्रेट करता है। दोनों आंखों की विज़ुअल इनफार्मेशन को मस्तिष्क द्वारा जोड़ा जाता है और फिर इसे एक साथ लाकर एक क्लियर इमेज बनाई जाती है।

आँखों के रोग | Eyes Ki Bimariya

आयु से संबंधित मैक्यूलर डीजेनेरेशन: इस स्थिति के कारण, जैसे-जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे सेंट्रल विज़न का नुकसान होता है।

  • काली आँख (ब्लैक आई): चेहरे पर चोट के कारण आपकी आँख के चारों ओर सूजन और मलिनकिरण (खरोंच) का होना।
  • कैटरेक्ट: आपकी आंख के अंदर वाले लेंस में धुंधलापन होना। इस समस्या के कारण, धुंधली दृष्टि हो सकती है।
  • चालाज़ियन: एक तेल बनाने वाली ग्रंथि अवरुद्ध हो जाती है और फूलकर गांठ बन जाती है।
  • एमब्लायोपिया: इस स्थिति को अक्सर लेज़ी आई कहा जाता है और यह बचपन में शुरू होती है। इस समस्या के होने पर, एक आँख दूसरी से बेहतर देख पाती है, इसलिए आपका मस्तिष्क उस आँख से देखने के लिए उसका फेवर ज्यादा करता है। कमजोर आंख, जो भटक ​​भी सकती है और नहीं भी, उसे 'लेज़ी आई' कहा जाता है।
  • ऐस्टिग्मैंटिस्म: ये आपके कॉर्निया के कर्व सम्बंधित एक समस्या है। यदि आपको यह समस्या है तो आपकी आंख रेटिना पर उस तरह से लाइट को फोकस नहीं कर पायेगी, जिस तरह से उसे करना चाहिए। चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस या सर्जरी इसके कारण होने वाली धुंधली दृष्टि को सही कर सकते हैं।
  • कंजंक्टिवाइटिस: इस स्थिति को पिंक आई के रूप में भी जाना जाता है। यह कंजंक्टिवा का संक्रमण या सूजन है, एक क्लियर लेयर जो आपकी आंख के सामने वाले हिस्से को कवर करती है। एलर्जी, वायरस, या जीवाणु संक्रमण सभी इसका कारण बन सकते हैं।
  • डिप्लोपिया (डबल विजन): कई गंभीर स्थितियों के कारण, डबल विजन हो सकता है। इसे तत्काल चिकित्सा ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • ड्राई आई: या तो आपकी आँखों में पर्याप्त आंसू नहीं बनते हैं, या फिर आंसू की गुणवत्ता खराब होती है। आमतौर पर उम्र बढ़ने के कारण ये समस्या होती है लेकिन साथ ही ल्यूपस, स्क्लेरोडर्मा और सजोग्रेन सिंड्रोम जैसी मेडिकल समस्याएं भी इसका कारण हो सकती हैं।
  • कॉर्नियल एब्रेजन: आंख के सामने वाले स्पष्ट हिस्से पर होनी वाली खरोंच (कॉर्निया कहा जाता है) को कॉर्नियल एब्रेजन कहते हैं। दर्द, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता, या आंखों में जकड़न का अहसास इसके सामान्य लक्षण हैं।
  • मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी: हाई ब्लड शुगर के कारण, आंखों में ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचता है। इस स्थिति के कारण, ब्लड वेसल्स लीक करने लगती हैं या फिर आपके रेटिना में ओवरग्रो करती है जिससे आपकी दृष्टि खतरे में पड़ सकती है।
  • ग्लूकोमा: धीरे-धीरे और लगातार दृष्टि का नुकसान, आंख के अंदर बढ़े हुए प्रेशर के कारण होता है। इस स्थिति में, सबसे पहले आपका साइड विज़न ख़राब होता है, उसके बाद सेंट्रल विज़न। कई वर्षों तक, इस समस्या का पता नहीं चल पाता है।
  • हाइफेमा: आंख के सामने वाले हिस्से में, कॉर्निया और आईरिस के बीच में ब्लीडिंग होना। हाइपहेमा आमतौर पर ट्रॉमा के कारण होता है।
  • केराटाइटिस: कॉर्निया की सूजन या संक्रमण। यह आमतौर पर आपके कॉर्निया पर कीटाणुओं के स्क्रैच के कारण होता है।
  • मायोपिया (नियर-साइटेडनेस): आप दूर स्थित चीज़ों को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाएंगे। यह समस्या तब होती है, जब आपकी आँखें लेंस के लिए बहुत बड़ी हों जिसके कारण लाइट आपके रेटिना पर उस तरह से फोकस नहीं हो पाती है जिस तरह से उसे होना चाहिए।
  • स्टाई: आपकी पलक के किनारे पर एक लाल, दर्दनाक गांठ। ये बैक्टीरिया के कारण होती है।
  • यूवाइटिस (इरिटिस): आपकी आंख के रंगीन हिस्से में सूजन या संक्रमण हो जाता है। एक ओवरएक्टिव इम्यून सिस्टम, बैक्टीरिया या वायरस इसका कारण बन सकते हैं।
  • हाइपरोपिया (फार-साइटेडनेस): निकट की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखने में आपको समस्या होगी। यह समस्या तब होती है, जब आपकी आँखें लेंस के लिए बहुत छोटी हों जिसके कारण लाइट उस तरह से फोकस नहीं हो पाती है जिस तरह से उसे होना चाहिए। दूर दृष्टि, धुंधली भी हो सकती है और नहीं भी।
  • ऑप्टिक न्यूरिटिस: ऑप्टिक नर्व में सूजन हो जाती है, आमतौर पर ओवरएक्टिव इम्यून सिस्टम के कारण। परिणामस्वरूप: आमतौर पर एक आंख में दर्द और दृष्टि हानि हो सकती है।
  • टेरीगियम: आमतौर पर आपके आईबॉल के सफेद भाग के अंदर वाले हिस्से पर एक गाढ़े मॉस का होना। यह कॉर्निया के एक हिस्से को ढक सकता है और दृष्टि संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।
  • रेटिनाइटिस: रेटिना की सूजन या संक्रमण। यह एक दीर्घकालिक आनुवंशिक स्थिति (रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा) हो सकती है या किसी संक्रमण से आ सकती है।
  • स्कोटोमा: आपकी विज़ुअल फील्ड में ब्लाइंड या डार्क स्पॉट का होना।
  • स्ट्रैबिस्मस: जब आंखें एक ही दिशा में नहीं देखती हैं। आपका दिमाग एक आंख का फेवर ले सकता है। अगर यह किसी बच्चे को होता है, तो इससे दूसरी आंख की रोशनी कम हो सकती है।
  • रेटिनल डिटेचमेंट: आपकी आंख के पीछे से रेटिना ढीला हो जाता है। इस स्थिति के लिए, अधिकतर ट्रॉमा और डायबिटीज ज़िम्मेदार हैं। इसे अक्सर तत्काल सर्जिकल रिपेयर की आवश्यकता होती है।

आँखों की जांच | Eyes Ke Test

  • फंडोस्कोपिक एग्जाम: डॉक्टर आपकी पुतली को चौड़ा (डाइलेट) करने के लिए आपको विशेष आई ड्रॉप दे सकते हैं। फिर वे आंख के पिछले हिस्से में तेज रोशनी डालते हैं ताकि वे आपके रेटिना को देख सकें।
  • रिफ़्रैक्शन: यदि आपको दृष्टि की समस्या है, तो डॉक्टर आपकी दृष्टि को सही करने के लिए करेक्टिव लेंस का पता लगाने के लिए प्रत्येक आंख के सामने एक-एक करके बहुत सारे लेंस रखेंगे।
  • फ्लोरेसिन एंजियोग्राफी: डॉक्टर रेटिना की इमेजिज की एक सीरीज लेने के लिए, एक नस में एक फ्लोरोसेंट डाई इंजेक्ट करते हैं।
  • नियमित रूप से नेत्र परीक्षण: व्यस्क और बच्चों (जिनको आँखों के समस्या है), उनका नियमित रूप से आँखों का परीक्षण होना चाहिए।
  • टोनोमेट्री: ये टेस्ट, आंख में प्रेशर का पता लगाता है, जिसे इंट्रा-ऑक्यूलर प्रेशर कहा जाता है। आपका डॉक्टर ग्लूकोमा की जांच के लिए इसका इस्तेमाल करता है।
  • स्लिट लैंप एग्जामिनेशन: एक चिकित्सक या ऑप्टोमेट्रिस्ट माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखते हुए आपकी आंखों में लाइट की एक वर्टिकल स्लिट को डालते हैं। यह आंखों की कई समस्याओं का पता लगाने में मदद कर सकता है।
  • विज़ुअल एक्युटि टेस्ट: इस टेस्ट में आप एक टेस्ट रूम में दूर बैठकर कुछ अक्षरों को पढ़ेंगे। इस टेस्ट के माध्यम से डॉक्टर को दूर दृष्टि संबंधी समस्याओं का पता लगाने में मदद मिलती है। निकट से पढ़ने पर उन्हें निकट दृष्टि संबंधी समस्याओं का पता लगाने में मदद मिल सकती है।

आँखों का इलाज | Eyes Ki Bimariyon Ke Ilaaj

  • लासिक (LASIK-लेजर-असिस्टेड इन-सीटू केराटोमिलेसिस): डॉक्टर आपके कॉर्निया में एक पतला फ्लैप बनाता है और फिर इसे फिर से आकार देने के लिए एक लेज़र का उपयोग करता है। इस प्रक्रिया से एक्सेसिव फार-साइटेडनेस, नियर-साइटेडनेस और एस्टिग्माटिस्म में सुधार होता है।
  • फोटोरिफ्रैक्टिव केराटेक्टोमी (पीआरके): डॉक्टर आपके कॉर्निया से सरफेस सेल्स को रगड़ता है, फिर आपकी फार-साइटेडनेस, नियर-साइटेडनेस और एस्टिग्माटिस्म में सुधार के लिए लेजर का उपयोग करता है। सेल्स फिर से बढ़ते हैं और आपकी आंख ठीक उसी तरह से ठीक हो जाती है जब आप इसे खरोंचते हैं।
  • साइक्लोस्पोरिन आई ड्रॉप्स (सेक्वा, रेस्टैसिस): यह एंटी-इंफ्लेमेटरी आई ड्रॉप, सूजन के कारण होने वाली सूखी आंखों का इलाज कर सकती है।
  • लिफिटिग्रास्ट आई ड्रॉप्स (सीडरा): एक और प्रिस्क्रिप्शन स्ट्रेंथ वाली एंटी-इंफ्लेमेटरी आई ड्रॉप।
  • वारेनिक्लीन (तिरवाया): यह एक नई दवा(नेसल स्प्रे) है जिसे बेसल टियर(आंसू) के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रत्येक नॉस्ट्रिल(नथुने) में दिन में दो बार डाला जा सकता है।
  • पंक्टल प्लग: ये छोटे सिलिकॉन या कोलेजन प्लग होते हैं। इनको आपकी आँखों के टियर डक्ट्स में रखा जा सकता है ताकि आंसू जल्दी से निकल जाएं और उन्हें आंखों पर लंबे समय तक रोके रखा जा सके।
  • लेजर फोटोकोग्यूलेशन: एक डॉक्टर, खराब सर्कुलेशन वाले रेटिना के कुछ हिस्सों पर लेजर का उपयोग करता है या फिर सीधे असामान्य ब्लड वेसल्स का इलाज करता है। इस प्रक्रिया का उपयोग अक्सर डायबिटिक रेटिनोपैथी के लिए किया जाता है।
  • कैटरेक्ट सर्जरी: डॉक्टर, क्लॉउडी(धुंधले) कैटरेक्ट को हटा देता है और आपके प्राकृतिक लेंस को मानव निर्मित लेंस के साथ बदल देता है।
  • कॉन्टेक्ट लेंस और चश्मा: वे फार-साइटेडनेस, नियर-साइटेडनेस और एस्टिग्माटिस्म जैसी आंखों की सामान्य समस्याओं को ठीक करते हैं।
  • कृत्रिम आँसू: ये आई ड्रॉप आपके प्राकृतिक आँसुओं की तरह ही होती हैं। वे सूखी या इर्रिटेटिड आंखों का इलाज करने में मदद कर सकती हैं।

आँखों की बीमारियों के लिए दवाइयां | Eyes ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

  • सीका आई ड्रॉप्स: सीका आई ड्रॉप्स का उपयोग करके आँखों की सूजन का इलाज किया जा सकता है। ये दवा साइक्लोस्पोरिन दवाओं की क्लास से संबंधित हैं। साइक्लोस्पोरिन दवाओं में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। साथ ही यह दवा आंखों के सूखेपन के इलाज में भी प्रभावी है।
  • सूखी आंखों के लिए रेस्टासिस आई ड्रॉप्स: यह दवा, साइक्लोस्पोरिन दवाओं के वर्ग से सम्बंधित है, जिनमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। इन ड्रॉप्स का उपयोग, ड्राई आई सिंड्रोम के इलाज के लिए किया जाता है। साथ ही यह दवा आंखों के सूखेपन के इलाज में भी प्रभावी है।
  • सूजन के लिए सीडरा आई ड्रॉप्स: ये दवाएं आंखों की सूजन का इलाज करने के लिए उपयोग की जाने वाली, लिफिटेग्रास्ट युक्त आई ड्रॉप्स की श्रेणी में शामिल हैं।
  • बेसल टीयर्स (आँसू) के लिए टायरवाया स्प्रे: इन स्प्रे में वैरेनिकलाइन होता है। वैरेनिकलाइन एक ऐसी दवा है जिसे अभी हाल ही में खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा प्रमाणित किया गया है और आंखों में बेसल टीयर्स (आँसू) के उत्पादन के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इस दवा का उपयोग दिन में दो बार करना है।
  • ऐसीक्लोवीर आई ऑइंटमेंट: यह एंटीवायरल आई ऑइंटमेंट का उपयोग करता है। आंख की धुंधली दृष्टि को ठीक करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • ग्लूकोमा के लिए एसिटाज़ोलमाइड: यह दवा कार्बोनिक एनहाइड्रेज इन्हीबिटर के वर्ग से सम्बंधित है। इसका उपयोग ग्लूकोमा के इलाज के लिए किया जाता है। डायमॉक्स सामान्य ब्रांड नाम हैं।
  • एट्रोपिन आई ड्रॉप: यह दवा, एंटीमस्कैरिनिक वर्ग से सम्बंधित है।
  • एलर्जी के लिए एज़िलास्टीन आई ड्रॉप: यह आमतौर पर आपकी आंख की पुतली को बड़ा बनाने और आपकी आंख की मांसपेशियों को आराम देने के लिए उपयोग की जाती है।

Content Details
Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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