गुदा के अंदर की परत में दरार आने को गुदा का फिशर कहा जाता है।ये दरार उस जगह होती है जहां से आप मल त्याग करते हैं। गुदा में दरार या कट आ जाने के कारण मांसपेशियां खुल जाती हैं। मांसपेशियों में होने वाली क्षति के कारण उनमें ऐंठन और दर्द हो सकता है जिससे फिशर की दरारें और बढ़ जाती हैं।मांसपेशियों में स्पास्म यानी ऐंठन के कारण अत्यधिक दर्द होता है और घाव भरना कठिन हो जाता है। इसके अलावा मल त्याग करने के कारण फिशर आसानी से ठीक नहीं हो पाता।
फिशर के कारण आमतौर पर मल त्याग करने के दौरान मल के साथ ब्लड बाहर आ सकता है। फिशर छोटे बच्चों में बेहद आम समस्या होती है। लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकती है। फिशर की ज्यादातर समस्याएं खान-पान में बदलाव करके ठीक हो सकती हैं। हालांकि फिशर के कुछ मामलों में दवाओं की आवश्यकता हो सकती है। वहीं, गंभीर स्थिति में इसे सर्जरी के जरिए ठीक किया जा सकता है। एनल फिशर कोई गंभीर बीमारी नहीं है। इसे डॉक्टरी इलाज के जरिए ठीक किया जा सकता है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान भी एनल फिशर होने की संभावना हो सकती है।
एनल फिशर को दो प्रकार होते हैं। पहला एक्यूट फिशर और दूसरा क्रॉनिक फिशर
एनल फिशर होने पर निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं।
गुदा का फिशर होने के कई कारण हो सकते हैं।आम कारणों की बात करें तो इनमें शामिल हैं-
क्रोहन डिज़ीज़ या आंतों से संबंधित संक्रामक रोग
एनल फिशर होने पर आपको फाइबर का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। इससे मल कठोर नहीं होगा और मल त्याग करते समय गुदा की दरारों पर कम ज़ोर पड़ेगा। यहां कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों के बारे में बताया गया है जो एनल फिशर के रोगियों को फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
गुदा के फिशर में जिन चीज़ों को खाने से परहेज़ करना चाहिए उनमें शामिल हैं-
मैदे से बनी खाद्य सामग्री
ज्यादा तेल औऱ मसाले वाला भोजन
जंक फूड
प्रोसेस्ड फूड
ऐसी कोई भी चीज़ जिसको खाने से कब्ज़ होने की आशंका हो।
अगर आपको फिशर होने की आशंका है तो सबसे पहले अपने खान पान पर ध्यान दें।
खाने में हरी सब्ज़ियां औऱ उच्च फाइबर वाली चीज़ों का प्रयोग करें। ऐसा करने से मल त्याग करने में आसानी होगी।
भरपूर पानी पिएं- इससे नियमित रूप से मल त्याग कर सकेंगे
मल त्याग करते समय ज्यादा ज़ोर ना लगाएं वरना समस्य़ा बढ़ सकती है।
कब्ज़ से बचने के लिए स्टूल सॉफ्टनर का प्रयोग करें।
फिशर होने पर बाहर का तला भुना ,अधिक मसाले वाला भोजन ना खाएं।
मल त्याग के बाद गुदा को साफ करते समय अधिक दबाव ना डालें
अधिक देर तक कमोड पर ना बैठें
ऐसी चीज़ों से परहेज़ करें जो कब्ज़ का कारण बनती हों।
फिशर के कुछ घरेलू उपचार भी हो सकते हैं जैसे-
ये छोटे प्लास्टिक के टब होते हैं जो कमोड पर फिट हो जाते हैं।इसमें थोड़ा गर्म पानी भरें फिर उस पर बैठकर सिंकाई करें ।इसपर इस प्रकार बैठना है जिससे आपका गुदा क्षेत्र पानी में डूब जाए। लगभग 10 से 15 मिनट तक सिंकाई से आराम मिल सकता है। आप सामान्य टब में बैठकर भी सिंकाई कर सकते हैं।
खाने में फाइबर की मात्रा बढ़ाने मल को बहुत सख्त होने और कब्ज पैदा करने से रोका जा सकता है। उच्च फाइबर खाद्य पदार्थों में चोकर, साबुत अनाज,फलियाँ, दलिया,अलसी , छोले आदि शामिल हैं।
फाइबर सप्लीमेंट्स - आप ऐसे पाइबर सप्लीमेंट्स ले सकते हैं जो मल त्याग करने तो आसान बनाते हैं। इनका सेवन करने से कब्ज़ की समस्या कम होती है और मल त्यागने में परेशानी नहीं होती।
अगर आपको लम्बे समय से कब्ज़ की समस्या है तो लैक्सेटिव लेने से आपको राहत मिल सकती है। इससे आप नियमित रूप से मल त्याग कर सकेंगे और फिशर के कारण गुदा पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ेगा।
एनल फिशर के इलाज के लिए डॉक्टर मरीज के फिजिकल टेस्ट करेंगे। चिकित्सक आपके फिशर से प्रभावित क्षेत्र यानी गुदा और उसके आसपास के क्षेत्र की दरारों को करीब से देखेंगे। इसके बाद कुछ और परीक्षण कराने की सलाह भी दे सकते हैं।
एनोस्कोपी: एनोस्कोपी में रोगी की गुदा के अंदर एक पतला ट्यूब डाला जाता है। इस ट्यूब के ज़रिए चिकित्सक फिशर में आए कट या दरारों की स्थिति को जांचता है।
फ्लेक्सिबल सिग्मोइडोस्कोपी: इस प्रक्रिया में रोगी की गुदा में एक पतली, लचीलीट्यूब डाली जाती है जिसके सिरे पर कैमरा मौजूद होता है। इसे कोलन के निचले हिस्से में डाला जाता है।
कोलोनोस्कोपी: कोलोन की जांच करने के लिए रेक्टम में एक ट्यूब डाली जाती है। यह ट्यूब फ्लेक्सिबल होती है। यह जांच 50 वर्ष से अधिक उम्र के पीड़ितों, या फिर पेट दर्द, दस्त जैसे लक्षणों अथवा पेट के कैंसर से पीड़ित लोगों में की जाती है।
अगर आपको एक्यूट फिशर है तो दवाओं के माध्यम से उसे नियंत्रित किया जा सकता है।इसके लिए चिकित्सक कुछ दवाएं लेने की सलाह दे सकते हैं जैसे-
नाइट्रो ग्लिसरीन: इसे गुदा के आसपास फिशर से प्रभावित क्षेत्र पर लगाया जाता है। इससे फिशर के घाव का उपचार तेज़ी से हो सकता है। साथ ही यह एनल स्फ्लिंकटर को रिलैक्स करने में मदद करती है।हालांकि इसे इस्तेमाल करने से आपको तेज़ सिर दर्द की शिकायत हो सकती है।
टॉपिकल एनेस्थेटिक क्रीम: लाइडोकेन हाइड्रोक्लोराइड जैसी जवा के इस्तेमाल से दर्द में आराम मिल सकता है।
बोटूलिनम टॉक्सिन टाइप ए (बोटॉक्स) इंजेक्शन: इसको लगाने से अनल स्फ्लिंकटर की मांसपेशिया सुन्न पड़ जाती है और आसानी से रिलैक्स हो जाती हैं जिससे ऐंठन में राहत मिल सकती है।
ब्लड प्रेशर की दवाएं: आपके चिकित्सक आपको ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने की दवाएं दे सकते हैं। ये दवाएं भी एनल स्फ्लिंक्टर को रिलैक्स करने में मदद करते हैं।
अधितकर एक्यूट एनल फिशर में सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन अगर फिशर की समस्या पुरानी है तो इसका दवाओं से इलाज करना मुश्किल होता है।ऐसे में विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके लिए सर्जरी ही सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है।
एनल फिशर सर्जरी की तैयारी
एनल फिशर की सर्जरी कराने जा रही रोगी से यह अपेक्षा की जाती है कि वो अपनी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूरी जानकारी डाक्टर को देगा।
जैसे वो पहले से कौन से दवा ले रहा है
उसे ब्लड प्रेशर या शुगर जैसी बीमार तो नहीं है।
क्या वो धूम्रपान तो नहीं करता। ऐसी स्थित में उसे आपरेशन के दो हफ्ते पहले धूम्रपान बंद करना होगा।
अगर वो खून को पतला करने वाली कोई दवा जैसे एस्परिन ले रहा।
यदि ऐसा हुआ तो डाक्टर उसे आपरेशन से कुछ दिन पहले से दवा लेने से मना कर सकते हैं क्योंकि इन दवाओं से ब्लीडिंग का खतरा काफी बढ़ जाता है।
सर्जरी के समय से कम से 12 घंटे या फिर सर्जरी वाले दिन के एक रात पहले करीब आधी रात के बाद से रोगी को कुछ खाने पीन को नहीं दिया जाता है।
सर्जरी से पहले डॉक्टर एक रेचक नाम की दवा जो कोलन को खाली करने के लिए इस्तेमाल होती है उसे दे सकते है। या फिर एनीमा प्रक्रिया भी निर्देशित कर सकता है।
सर्जरी के ज़रिए एनल स्फिंक्टर की मांसपेशियों को रिलैक्स करने की कोशिश की जाती है ।ऐसा करने से इन मांसपेशियों में होने वाला स्पास्म या ऐंठन कम होती है औऱ दर्द में कमी आती है।
एनल फिशर की सर्जरी में लेटरल इंटरनल स्फिंकटेरोटोमी (एलआईएस) नाम की प्रक्रिया करते हैं ।इसमें एनल स्फिंकटर की मांसपेशियों में से एक छोटा सा टुकड़ा काटकर हटा दिया जाता है।इससे गुदा के आसपास दर्द में कमी आती है। शोध बताते है कि पुराने फिशर के लिए सर्जरी किसी भी चिकित्सा उपचार की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी है। इसे दो तरीकों से किया जा सकता है।
ओपन स्फिंक्टरोटॉमी में की प्रक्रिया में सर्जन त्वचा पर एक छोटा सा कट लगाते हैं जिससे वो स्फिंक्टर मसल्स को देख सकें। इस कट को आम तौर पर खुद से सूख कर ठीक होने के लिए छोड़ दिया जाता है। वहीं क्लोज्ड स्फिंक्टरोटॉमी में सर्जन त्वचा के अंदर एक ब्लेड ले जाते हैं जिसेस वो स्फिंक्टर मसल्स को ढूंढ सके और फिर उन्हें सर्जरी के दौरन काट देते हैं। इस प्रक्रिया की सबसे खराब बात ये है कि इसमें ज्यादातर पीड़ित का अपने पेशाब करने की वृत्ति पर नियंत्रण खत्म हो जाता है।
इन दो सर्जिकल विकल्पों के साथ ही फिशरेक्टॉमी और एनल एडवांसमेंट प्लैप के विकल्प भी मौजूद हैं।
फिशर की सर्जरी के बाद आमतौर पर एक या दो हफ्तों के बीच रोगी सामान्य दिनचर्या में लौट सकता है। दफ्तर जाने वाले लोग इस अवधि के बाद आफिस जाना शुरु कर सकते हैं। हालांकि आपकी गुदा को पूरी तरह ठीक होने में 6 हफ्तों का समय लग सकता है।
इस सर्जरी को लोकल एनेस्थीसिया के साथ किया जाता है।
सर्जरी के लिए कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) लेजर का ज्यादातर प्रयोग होता है।
एक खास प्रभावित क्षेत्र पर लेजर फोकस करके एसका उपयोग किया जाता है।
ये ज्यादा कंट्रोल्ड प्रक्रिया है
सामान्य और परंपरागत तौर पर की जाने वाली सर्जरी के साथ ही अब एनल फिशल के लिए अब लेजर सर्जरी भी बहुत भी लोकप्रिय विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आ रही है। लेजर सर्जरी की प्रक्रिया आधे घंटे के अदंर ही हो जाती है लेकिन यह बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली है। यह पूरी तरह से सुरक्षित भी है। सामान्य सर्जी में मरीज के आपरेशन के दौरान काफी बड़ा कट लगता है। इस कट के परिणाम स्वरूप बहुत ज्यादा खून निकलता है।
फिशर की सर्जरी के बाद इस बात का ख़ास ध्यान रखना जरूरी है की अपने खान-पान में ऐसी किन चीजों को शामिल करें जो आपकी हीलिंग में मदद करे। आइये जानते हैं:
फिशर के सफल इलाज के बाद आपका यह जानना भी जरूरी है कि आपका इलाज ठीक हुआ है और आपकी बीमारी ठीक हो रही है।
आपका फिशर रिकवरी फेज में है या ठीक हो रहा है, इसके निम्नलिखित लक्षण हैं -
भारत में फिशर का इलाज सर्जरी की लागत करीब 35 हज़ार से लेकर 50 हज़ार तक का खर्च आ सकता है। हालांकि किसी व्यक्ति के इलाज में कितना खर्च आएगा ये कई बातों पर निर्भर करता है। सबसे पहले तो ये कि आपकी समस्या का स्तर क्या है। अगर बीमारी गंभीर रूप ले चुकी है तो सर्जरी की लागत अधिक हो सकती है। इसके अलावा आप किस अस्पताल में और किस डॉक्टर से ये सर्जरी करा रहे हैं इसपर भी सर्जरी की लागत निर्भर करती है।
एनल फिशर गुदा के अंदर की परत में दरारे या कट आने को कहते हैं। यह स्थिति काफी दर्दनाक होती है। इसमें हर बार मल त्याग करने पर दरारें बढ़ सकती हैं और उनमें स् रक्त स्राव हो सकता है। एनल फिशर दो प्रकार का होता है- एक्यूट और क्रॉनिक।
अगर आपको फिशर की समस्या बीते 6 हफ्तों के अंदर ही हुई है तो यह एक्यूट फिशर है ।पर अगर आपकी समस्या 6 हफ्तों से अधिक पुरानी है तो य़ह क्रॉनिक फिशर कहलाता है। फिशर का घरेलू इलाज करने के लिए गर्म पानी की सिंकाई ,लैकसेटिव और फाइबर सप्लीमेंट लिए जा सकते हैं।
इसके अलावा उच्च मात्रा में फाइबर वाला खाना खाने की सलाह दी जाती है। नियमित व्यायाम और भरपूर पानी पीना भी आवश्यक है। शुरुआती एनल फिशर को दवाओं के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है।इसमें ऐसे ट्यूब और दवाएं दी जाती हैं जो एनल स्फिंकटर को रिलैक्स करें ।इसके अलावा क्रॉनिक एनल फिशर के लिए सर्जरी ही सबसे अच्छा विकल्प है क्योंकि इससे समस्या स्थायी रूप से ठीक हो सकती है।