प्लेटलेट्स ब्लड सेल्स होते हैं जो ब्लड क्लॉटिंग में अहम भूमिका निभाते हैं। जब किसी व्यक्ति को चोट लगती है तो यह ब्लड सेल्स खून को बहने से रोकते हैं। एक वयस्क व्यक्ति के खून में प्लेटलेट्स की रेंज 150,000 से 450,000 प्लेटलेट्स प्रति माइक्रोलीटर होती है। जब प्लेटलेट्स काउंट 150,000 प्रति माइक्रोलीटर से घट जाता है तो इसे लो प्लेटलेट्स कहा जाता है। लो प्लेटलेट काउंट की समस्या को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के रूप में भी जाना जाता है।
इंसान के ब्लड के मुख्य चार भाग होते हैं। एरिथ्रोसाइट्स (रेड ब्लड सेल्स), ल्यूकोसाइट्स (वाइट ब्लड सेल्स), थ्रोम्बोसाइट्स (ब्लड प्लेटलेट्स) और प्लाज्मा। प्लाज्मा लिक्विड फॉर्म में होता है। ब्लड के अन्य तीन भाग प्लाज्मा के अंदर तैरते हैं। थ्रोम्बोसाइट्स मुख्य रूप से बाहरी और आंतरिक चोटों के कारण होने वाली ब्लीडिंग को रोकता है। ब्लड में प्लेटलेट्स की उपस्थिति के बिना ब्लड क्लॉट (रक्त का थक्का) बनना और घावों से होने वाली ब्लीडिंग रुकना असंभव है। यदि ब्लड में पर्याप्त प्लेटलेट्स नहीं हैं, तो ब्लड क्लॉटिंग नहीं हो सकती है।
लो प्लेटलेट्स का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि खून में प्लेटलेट्स की संख्या किस हद तक कम हुई है। सामान्य स्थिति यानी कि जब प्लेटलेट काउंट बहुत कम (low) नहीं होता है, तो यह अपने आप मैनेज हो जाता है। जबकि प्लेटलेट बहुत कम (low) होने पर इसके इलाज की आवश्यकता होती है।
उक्त सभी परिस्थितियों में मरीज को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इन स्थितियों में इलाज की बेहद जरूरत होती है।
ऐसे मरीज जिनमें ब्लड प्लेटलेट की रेंज 150,000 से 400,000 तक के बीच होती है उन्हें किसी भी प्रकार के इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। लो प्लेटलेट के हल्के लक्षण वाले रोगियों में कुछ समय बाद ही प्लेटलेट की संख्या बढ़ने लगती है।
सामान्य से अधिक मात्रा में ब्लड प्लेटलेट कम होने पर इलाज की जरूरत होती है। इसका इलाज जांच के आधार पर और ब्लड प्लेटलेट के कम होने के कारणों पर निर्भर करता है। सफल इलाज होने के बाद ब्लड प्लेटलेट काउंट को सामान्य होने में एक सप्ताह का समय लग सकता है।