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Last Updated: Feb 07, 2023
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न्यूट्रोफिल्स- शरीर रचना (चित्र, कार्य, बीमारी, इलाज)

चित्र अलग-अलग भाग कार्य रोग जांच इलाज दवाइयां

न्यूट्रोफिल्स का चित्र | Neutrophils Ki Image

न्यूट्रोफिल्स का चित्र | Neutrophils Ki Image

न्यूट्रोफिल, प्रतिरक्षा प्रणाली ( इम्यून सिस्टम) को संक्रमण से लड़ने और चोटों को ठीक करने में मदद करते हैं। शरीर में वाइट ब्लड सेल्स का सबसे आम प्रकार है: न्यूट्रोफिल। एक सम्पूर्ण न्यूट्रोफिल काउंट से यह पता चलता है कि शरीर में पर्याप्त न्यूट्रोफिल हैं या नहीं या फिर आपकी गिनती स्वस्थ सीमा से ऊपर या नीचे है।

न्यूट्रोफिल, इम्म्यून सिस्टम के कामकाज के लिए इसीलिए आवश्यक हैं क्योंकि वे बैक्टीरिया और वायरस जैसे पैथोजन्स को दूर करता है। वास्तव में, अधिकांश वाइट ब्लड सेल्स जो प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) की प्रतिक्रिया का नेतृत्व करती हैं, वे न्यूट्रोफिल हैं।

वाइट ब्लड सेल्स तीन प्रकार के होते हैं: ग्रैन्यूलोसाइट्स, लिम्फोसाइट्स और मोनोसाइट्स। न्यूट्रोफिल, ईओसिनोफिल और बेसोफिल सेल्स के साथ-साथ ग्रैन्यूलोसाइट्स का सबसेट होते हैं। साथ में, वाइट ब्लड सेल्स शरीर को संक्रमण और चोट से भी बचाते हैं।

न्यूट्रोफिल्स के अलग-अलग भाग

परिपक्व(मैच्योर) न्यूट्रोफिल में 3-5 न्यूक्लिअर लोब होते हैं, और इममैच्योर न्यूट्रोफिल में लोब की संख्या कम होती है और हाइपरसेग्मेंटेड में भी अधिक लोब्स होते हैं। फीमेल्स में एक 'ड्रमस्टिक' जैसी होती है जो न्यूक्लियस से बाहर निकलती है।

न्यूट्रोफिल में प्राइमरी और सेकेंडरी ग्रैन्यूल्स होते हैं। प्राइमरी ग्रैन्यूल्स एजुरोफिलिक (बरगंडी रंग के) होते हैं और इनमें इलास्टेज और मायलोपरोक्सीडेज जैसे जहरीले मीडिएटर्स(मध्यस्थ) होते हैं। सेकेंडरी ग्रैन्यूल्स हल्के- गुलाबी होते हैं और इसमें लैक्टोफेरिन जैसे प्रोटीन होते हैं; ये आमतौर पर प्रकाश माइक्रोस्कोपी द्वारा दिखाई नहीं देते हैं।

सामान्य ब्लड स्मीयर में सबसे ज्यादा मौजूद ल्यूकोसाइट है: न्यूट्रोफिल। प्रत्येक 1000 रेड ब्लड सेल्स में एक न्यूट्रोफिल होता है। वे ग्रैन्यूलोसाइट्स के आकार में सबसे छोटे होते हैं। न्यूट्रोफिल में एक विशिष्ट मल्टीलोब्ड न्यूक्लियस होता है, जिसमें 3 से 5 लोब जेनेटिक मैटेरियल के पतले स्ट्रैंड्स से जुड़े होते हैं। न्यूट्रोफिल के साइटोप्लाज्म में कई बैंगनी ग्रैन्यूल्स होते हैं जिन्हें एजुरोफिलिक या प्राइमरी ग्रैन्यूल्स कहा जाता है जिसमें माइक्रोबिसाइडल एजेंट होते हैं। न्यूट्रोफिल में छोटे, सेकेंडरी ग्रैन्यूल्स भी होते हैं जो लाइसोजाइम, जिलेटिनेज, कोलेजनेज और कई अन्य एंजाइमों को घर देती हैं।

न्यूट्रोफिल्स के कार्य | Neutrophils Ke Kaam

इम्यून फंक्शन में न्यूट्रोफिल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सर्कुलेशन में सबसे ज्यादा मात्रा में मौजूद वाइट ब्लड सेल्स के रूप में, वे इम्यून सिस्टम के सबसे पहले काम करने वाले कारक हैं और चोटों और संक्रमणों की जगहों पर तेजी से जाकर उसको ठीक करते हैं। उनका प्राथमिक कार्य है: रोग पैदा करने वाले माइक्रोब्स पर हमला करके और उन्हें मारकर संक्रमण को रोकना।

  • न्यूट्रोफिल और संक्रमणपैथोजन्स (रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव) जब शरीर में प्रवेश करते हैं तो उनके कारण संक्रमण होता है। जब ऐसा होता है, रक्तप्रवाह में न्यूट्रोफिल की संख्या बढ़ जाती है, और संक्रमण वाली जगह पर न्यूट्रोफिल मूव करने लगते हैं। वहां पहुँचने पर, वे फागोसाइटोसिस के माध्यम से पैथोजन्स को नष्ट कर देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, न्यूट्रोफिल अटैक करने वाले पैथोजन्स को घेर लेते हैं और उन्हें अपने ग्रैन्यूल्स के द्वारा नष्ट कर देते हैं। ये ग्रैन्यूल्स, डाइजेस्टिव एन्ज़इम्स के छोटे पैकेट होते हैं। शरीर से पैथोजन्स को साफ करने और संक्रमण को ठीक करने में, न्यूट्रोफिल बहुत मदद करते हैं।
  • न्यूट्रोफिल और सूजनआमतौर पर संक्रमण या चोट के परिणामस्वरूप टिश्यू डैमेज हो जाते हैं और इसके कारण शरीर में सूजन हो जाती है। इंफ्लेमेटरी प्रतिक्रिया में न्यूट्रोफिल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और टिश्यू डैमेज वाली जगह पर सबसे पहले पहुँचते हैं। वाइट ब्लड सेल्स जो कि न्यूट्रोफिल का रूप हैं, वे ही घाव को ठीक करने में मदद करते हैं और साथ ही संक्रमण से लड़ते हैं। वे तेजी से रक्तप्रवाह से घायल टिश्यू में प्रवेश करते हैं जहां उनका काम होता है, अटैक करने वाले पैथोजन्स को मारकर घाव के संक्रमण को रोकना। यदि कोई घाव संक्रमित हो जाता है, तो पैथोजन्स से लड़ने में कई न्यूट्रोफिल मारे जाएंगे और संक्रमित जगह में जमा हो जाएंगे। ये मृत सेल्स, पस बनने का कारण बनते हैं।

न्यूट्रोफिल्स के रोग | Neutrophils Ki Bimariya

  • न्यूट्रोपेनिया: जब रक्त में न्यूट्रोफिल की संख्या बहुत कम हो जाती है, तो न्यूट्रोपेनिया के रूप में जानी जाने वाली स्थिति विकसित हो सकती है। हालांकि सभी वाइट ब्लड सेल्स संक्रमण से लड़ने में शरीर की क्षमता में योगदान करते हैं, परन्तु न्यूट्रोफिल विशिष्ट बीमारियों, विशेष रूप से बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • साइक्लिक न्यूट्रोपेनिया: चक्रीय न्यूट्रोपेनिया एक दुर्लभ ब्लड स्थिति है जिसका पता तब चलता है जब शरीर में वाइट ब्लड सेल्स की मात्रा असामान्य रूप से कम हो जाती है। इसे 'साइक्लिक न्यूट्रोफिल सिंड्रोम' भी कहा जाता है।
  • चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम: चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम की विशेषता है: ओकुलोक्यूटेनियस ऐल्बिनिज़म। इस स्थिति की पहचान है: इम्यूनोलॉजिकल कमजोरी, और आसानी से चोट लगना और खून बहना। चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम से पुरुष अधिक प्रभावित होते हैं।
  • श्वाचमैन-डायमंड सिंड्रोम: श्वाचमन-डायमंड सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी है जो शरीर के कई अंगों और टिश्यूज़ को प्रभावित करती है, विशेष रूप से बोन मेरो, पैंक्रियास और हड्डियां। न्यूट्रोफिल सहित नए ब्लड सेल्स का उत्पादन, बोन मैरो के प्राइमरी कार्यों में से एक है।
  • दवाओं से होने वाला न्यूट्रोपेनिया: दवाएं या तो न्यूट्रोफिल की जेनेरेशन को कम कर सकते हैं या फिर उनके विनाश को बढ़ा सकती हैं। जिससे दोनों दवा-प्रेरित न्यूट्रोपेनिया हो सकते हैं। कीमोथेराप्यूटिक दवाओं में आमतौर पर बोन मेरो माइलॉयड प्रोजेनिटर सेल्स को दबाने का प्रभाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन में कमी आ सकती है।
  • क्रोनिक ग्रैनुलोमैटस रोग (सीजीडी के रूप में भी जाना जाता है): क्रोनिक ग्रैनुलोमैटस रोग, जिसे सीजीडी भी कहा जाता है, जेनेटिक रूप से मिली एक स्थिति होती है। इस स्थिति में, शरीर में वाइट ब्लड सेल्स जिन्हें फागोसाइट्स के रूप में जाना जाता है, बैक्टीरिया और फंगस की विशिष्ट प्रजातियों को खत्म करने में असमर्थ होते हैं। जिन लोगों को सीजीडी है, उन्हें बैक्टीरिया और फंगल संक्रमण का खतरा होता है, जो कभी-कभी घातक हो सकता है।

न्यूट्रोफिल्स की जांच | Neutrophils Ke Test

न्यूट्रोफिल के स्वास्थ्य की जांच करने वाले निम्नलिखित टेस्ट हैं:

  • कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी): एक कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी) टेस्ट से ब्लड सैंपल में सेल्स की जांच की जाती है जिससे यह पता चलता है कि आपके शरीर में कितने सेल्स हैं। एक सीबीसी के द्वारा, चिकित्सा स्थितियों का निदान करने में सहायता मिलती है और व्यक्त्वि के समग्र स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए यह टेस्ट बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है।
  • एब्सोल्यूट न्यूट्रोफिल काउंट (एएनसी): एक एएनसी निर्धारित करता है कि व्यक्ति के ब्लड सैंपल में कितने न्यूट्रोफिल सेल्स हैं।
  • बोन मेरो बायोप्सी: बोन मेरो बायोप्सी के द्वारा यह पता चलता है कि आपके शरीर में कितने सेल्स हैं और ये भी कि वे कहां ग्रो करते हैं। आपका हेल्थ-केयर प्रोवाइडर बोन मैरो के एक छोटे से सैंपल को निकालता है और उसकी जांच करता है। बोन मैरो में ही सेल का उत्पादन शुरू होता है, इसलिए बायोप्सी यह निर्धारित करती है कि आपका शरीर स्वस्थ मात्रा में सेल्स का उत्पादन कर रहा है या यदि फिर कुछ निश्चित स्थितियां मौजूद हैं।
  • लिम्फोसाइट्स का फ्लो साइटोमेट्री: फ्लो साइटोमेट्री, सेल्स या पार्टिकल्स के गुणों की जांच करने के लिए लैब में की जाने वाली एक तकनीक है। इस प्रक्रिया के दौरान, सेल्स या पार्टिकल्स का एक सैंपल पहले एक फ्लूइड में ससपेंड किया जाता है और फिर एक मशीन में इंजेक्ट किया जाता है जो एक फ्लो साइटोमीटर होता है। एक कंप्यूटर एक मिनट से भी कम समय में लगभग 10,000 सेल्स पर एनालिसिस और प्रोसेसिंग करने में सक्षम है।
  • पीसीआर: पीसीआर टेस्ट, जिसे पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है, विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोगों के साथ-साथ जेनेटिक परिवर्तनों के निदान के लिए भी एक अत्यधिक कुशल और सटीक तरीका है। यदि लिए गए ब्लड सैंपल में पैथोजन्स के डीएनए या आरएनए पाए जाते हैं तो उनके कारण न्यूट्रोफिल की संख्या कम हो जाती है।
  • न्यूट्रोफिल के खिलाफ एंटीबॉडी के लिए टेस्ट: एक एंटीन्यूट्रोफिल साइटोप्लाज्मिक एंटीबॉडी टेस्ट (एएनसीए टेस्ट) एक ब्लड टेस्ट है जो रक्त में एंटीन्यूट्रोफिल साइटोप्लाज्मिक एंटीबॉडी (एएनसीए) की उपस्थिति की जांच करता है।
  • एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी: अधिकांश मामलों में, एक पॉजिटिव एएनए टेस्ट से पता चलता है कि आपके इम्यून सिस्टम ने आपके स्वयं के टिश्यूज़ पर हमला शुरू कर दिया है, जो यह कहने का एक और तरीका है कि आपने ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया का अनुभव किया है। हालांकि, कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो स्वस्थ हैं लेकिन फिर भी उनके टेस्ट का रिजल्ट पॉजिटिव आता है।

न्यूट्रोफिल्स का इलाज | Neutrophils Ki Bimariyon Ke Ilaaj

  • हाइड्रॉक्सीयूरिया का उपयोग करके साइटोटॉक्सिक थेरेपी: न्यूट्रोफिलिया के इलाज के लिए अत्यधिक हाइड्रेशन थेरेपी के साथ साइटोटॉक्सिक ड्रग थेरेपी का उपयोग किया जाता है जिससे इम्मयूनिटी बढ़ती है और विभिन्न संक्रमणों का उपचार भी किया जाता है।
  • प्लाज्मा ट्रांस्फ्यूज़न: फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा को सेंट्रीफ्यूगेशन या एफेरेसिस द्वारा पूरे रक्त से अलग किया जाता है। ट्रांस्फ्यूज़न तक प्लाज्मा को 18 डिग्री सेल्सियस पर फ्रोजेन रखा जाता है। डोनर फेलोबॉमी के बाद एफएफपी को 8 घंटे फ्रीज किया जाना चाहिए।
  • बोन मेरो ट्रांसप्लांट: इस उपचार से अस्वस्थ मेरो को स्वस्थ मेरो से बदला जाता है। यह प्रक्रिया ग्रैनुलोमेटस न्यूट्रोफिलिक रोग के रोगियों के इलाज के लिए और न्यूट्रोफिलिया के रोगियों के लिए भी जानी जाती है। इसे ब्लड या मेरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) भी कहते हैं।
  • लम्बर ड्रेन: लीक होने वाली सीएसएफ की कंटीन्यूअस लम्बर ड्रेनेज (सीएलडी) में न्यूट्रोफिलिक बीमारियों और क्रोनिक ग्रैनुलोसाइटिक न्यूट्रोफिलिया के इलाज में, कुछ मोर्बिडिटीज़ के साथ अच्छी सफलता दर है।
  • इंटरफेरॉन गामा इंफ्यूज़न थेरेपी: अंतःशिरा इम्युनोग्लोबुलिन (आईवीआईजी) का उपयोग न्यूट्रोफिलिया के इलाज के लिए किया जाता है। इंटरफेरॉन-गामा (आईएफएन-गामा) और इंटरल्यूकिन-6 (आईएल-6) के प्लाज्मा स्तरों पर आईवीआईजी के प्रभाव का मूल्यांकन माध्यमिक ग्रैनुलोमेटस न्यूट्रोफिलिया वाले व्यक्तियों में किया गया था।
  • एग्रेसिव हाइड्रेशन थेरेपी: लैक्टेटेड रिंगर सोल्यूशन के साथ एग्रेसिव हाइड्रेशन, सामान्य सेलाइन सॉल्यूशन न्यूट्रोफिल की पुरानी स्थितियों को प्रभावी ढंग से रोक सकता है।

न्यूट्रोफिल्स की बीमारियों के लिए दवाइयां | Neutrophils ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

  • न्यूट्रोफिल में दर्द के लिए एनाल्जेसिक: थ्रोम्बो-फ्लेबिटिस और ग्रैनुलोमेटस रोग के कारण, शरीर द्वारा प्रोस्टाग्लैंडिंस रिलीज़ होते हैं। एनाल्जेसिक दवाएं हैं जिनका उपयोग दर्द को दूर करने और शरीर द्वारा उत्पन्न प्रोस्टाग्लैंडीन की मात्रा को कम करने के लिए किया जाता है।
  • न्यूट्रोफिल में संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स: एम्पीसिलीन-सल्बैक्टम प्लस डॉक्सीसाइक्लिन, सी. ट्रैकोमैटिस, एन. गोनोरिया के खिलाफ प्रभावी है, और वे ग्रैनुलोमेटस रोग और न्यूट्रोपेनिया के रोगनिरोधी उपचार में बहुत अधिक सहायक हैं।
  • न्यूट्रोफिल के लिए कीमोथेराप्यूटिक दवाएं: कीमोथेरेपी में उपयोग की जाने वाली दवाएं हैं: साइक्लोफॉस्फेमाईड, डॉक्सोरूबिसिन और 5-फ्लूरोरासिल। ऐसा इसीलिए क्योंकि व्यक्ति गंभीर रूप से इम्यूनोडेफिशिएंट होता है तो एंटीबायोटिक्स और एंटीफंगल उपयोगी होते हैं।
  • न्यूट्रोफिलिया के लिए एंटीफंगल: ग्रैनुलोमेटस रोग दवाओं के रोगनिरोधी उपचार के लिए जैसे माइकोस्टैटिन, फ्लुकोनाज़ोल, ल्यूलिकोनाज़ोल और क्लोट्रिमेज़ोल का भी उपयोग किया जाता है और नियोमाइसिन के टोपिकल सोल्यूशन भी ज्ञात हैं।
  • न्यूट्रोफिल के संक्रमण के इलाज के लिए एंटीवायरल: क्योंकि न्यूट्रोफिलिया से पीड़ित व्यक्ति गंभीर रूप से इम्यूनोडेफिशिएंट होता है इसीलिए ये दवाएं उपयोग की जाती हैं। दवाएं लक्षणों की गंभीरता को कम कर सकती हैं और वायरल बीमारी की अवधि कम कर सकती हैं। उदाहरण हैं: एसिक्लोविर, वैलेसीक्लोविर, फैम्सिक्लोविर, पेन्सिक्लोविर, सिडोफोविर, फोसकारनेट और इम्म्यून रिस्पांस मॉड्यूलेटर।

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Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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