इसे व्यापक विकास विकार (Pervasive Developmental Disorder) के रूप में भी जाना जाता है। यह आत्मकेंद्रित, एस्परगर सिंड्रोम, रिटेट सिंड्रोम, एटिपिकल ऑटिज्म (Autism, Asperger Syndrome, Rett Syndrome, Atypical Autism) और बचपन से ही पायी जाने वाली बीमारी है यह रोग लोगो में ज़्यादातर बचपन से होता है । इस बीमारी से जुड़ी मुख्य समस्याएं भाषा को समझना, लोगों से से मिलने जुलने में कठिनाई, असामान्य खेल कौशल और दोहराए जाने वाली शारीरिक गतिविधियाँ (understanding language, difficulty relating to people, unusual play skills and repetitive body movements) हैं। पीडीडी (Pdd) वाले बच्चों को उपचार के विकल्पों के संयोजन के साथ इलाज किया जा सकता है। जिसमें विभिन्न उपचार शामिल हैं, जैसे कि प्ले थेरेपी, संवेदी एकीकरण चिकित्सा और सामाजिक कौशल प्रशिक्षण (play therapy, sensory integration therapy, and social skills training) । हालांकि पीडीडी (Pdd) का कोई मुकम्मल इलाज नहीं है। इसका उपचार दवा प्रबंधन के माध्यम से किया जा सकता है। इसके इलाज में मरीज़ के हिसाब से अलग अलग तरह की दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। विशिष्ट व्यवहार समस्याओं का समाधान करने के लिए। परिवार आउटरीच (Family Outreach) को अक्सर बच्चों और वयस्कों में पीडीडी (Pdd) के लिए एक परिवार केंद्रित उपचार के रूप में अनुशंसित किया जाता है।
यह बीमारी स्वयं जीवन के लिए खतरा नहीं है, लेकिन इसके साथ कई व्यवहार और सामाजिक मुद्दे जुड़े हुए हैं। पीडीडी (Pdd) से पीड़ित बच्चों को उनकी सीखने की क्षमता की जांच करने के लिए एक शिक्षा विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। और यदि कोई इस बीमारी से पीड़ित है तो सीखने की अक्षमता और उनके लिए विशिष्ट शिक्षा योजनाओं को डिजाइन किया जाता है ताकी वो जल्दी ठीक हो सके। इस बीमारी में कब्ज जैसी चिकित्सा समस्याएं, अक्सर होती हैं और इसका इलाज लक्षणों से किया जा सकता है।
इस बीमारी में भाषण चिकित्सा (Speech therapy) भी आवश्यक हो सकती है, और संचार उपकरणों (communication devices) का उपयोग उस बच्चे के लिए किया जाता है जो गैर-मौखिक (non-verbal) है। मोटर डेफिकित्स और संवेदी प्रसंस्करण (motor deficits and sensory processing deficits) से पीड़ित लोगों के लिए व्यावसायिक चिकित्सक (Occupational therapists) भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। मनोवैज्ञानिक (Psychologists) अक्सर रोगी के सामाजिक संबंधों और बातचीत (social relationships and interactions) को बेहतर बनाने के लिए एक निश्चित प्रकार की चिकित्सा के विकास में मदद करते हैं। अक्सर सामाजिक कार्यकर्ता प्रभावित व्यक्ति के लिए वित्तीय संसाधन खोजने में मदद करते हैं। प्रभावित व्यक्ति के मनोरोग अस्पताल (psychiatric hospitalization) में भर्ती होने से पहले पूर्ण चिकित्सा मूल्यांकन किया जाता है, यहां तक कि मनोरोग अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, जब रोगी को बहुत ज़्यादा सुरक्षा और इलाज की ज़रूरत महसूस होती है।
पीडीडी (Pdd) का निदान (diagnosed) तब किया जाता है जब बच्चा सामाजिक सामाजिक व्यवहार, समस्याग्रस्त मोटर, संवेदी, संज्ञानात्मक, दृश्य कौशल विकास, खराब विकसित भाषण, कर्मकांड (atypical social behavior, problematic motor, sensory, cognitive, visual skill development, poorly developed speech, ritualistic behaviour) संबंधी व्यवहार दिखाता है। ऐसे लक्षण डॉक्टर के लिए पीडीडी (Pdd) की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त सबूत साबित होते हैं। प्रारंभिक निदान (diagnosed) एक सफल परिणाम के लिए उच्चतम अवसर प्रदान करता है और इसके बाद मुख्य उपचार की आवश्यकता होती है। जब बच्चे को पहली बार पीडीडी (Pdd) के साथ का निदान (diagnosed) किया जाता है, तो बच्चे के विभिन्न व्यवहार संबंधी मुद्दे के समाधान के लिए कई दवाएं निर्धारित की जाती हैं, यह पूरी तरह से बच्चे की विशिष्ट आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। डेक्सट्रैम्पैथिमाइन सल्फेट, मिथाइलफेनिडेट हाइड्रोक्लोराइड और पेमोलिन (dextroamphetimine sulfate, methylphenidate hydrochloride and pemoline) जैसे उत्तेजक पीडीडी (Pdd) के लक्षणों के लिए निर्धारित किए जा सकते हैं।
कोई भी उपचार शुरू करने से पहले ये जान लेना बहुत ज़रूरी होता है के आपको कौनसी बिमारी है, किस तरह की है और किस वजह से यह बिमारी हुई है। उसके बाद उस बिमारी से सम्बंधित एक अच्छे डॉक्टर का चयन करना ज़रूरी है ताकि आपका इलाज सही से हो सके और आप जल्दी ठीक हो जाएँ। उसके बाद आपको सिर्फ डॉक्टर की बताई हुई चीज़ो का पालन करना है। इससे आपको सही समय पर सही इलाज मिल जायेगा क्योकि अक्सर देखा गया है कि मरीज़ सही उपचार न लेने की वजह से अपनी हालत और ज़्यादा ख़राब कर लेते हैं। चूंकि इस बिमारी के इलाज के लिए एंटीसाइकोटिक दवाओं (antipsychotic medicines) का उपयोग किया जाता है, इसलिए प्रीरेक्विसाइट्स (prerequisites) का एक सेट होता है, जिसमें रोगी के वजन की सावधानीपूर्वक निगरानी करना, फास्टिंग लिपिड प्रोफाइल (fasting lipid profile) के साथ-साथ फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज (fasting plasma glucose) करना शामिल है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि इस बीमारी के इलाज में दवाओं के साथ- साथ मरीज को कई अलग- अलग तरह की थेरेपी (therapy) भी दि जाती हैं और चिकित्सा का उपयोग व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार भिन्न होता है। कई व्यक्तियों को भाषण (speech) के साथ-साथ भौतिक चिकित्सा (physical therapy) की भी आवश्यकता होती है।
हर व्यक्ति में बीमारी के अलग-अलग लक्षण होते हैं, क्योंकि इस बीमारी में कई अलग-अलग प्रकार के सिंड्रोम (syndromes) होते हैं। इसलिए उपचार के विभिन्न तरीके अलग-अलग व्यक्तियों पर लागू होते हैं, कोई भी दो व्यक्ति एक ही उपचार के लिए पात्र नहीं होते हैं। यह उनकी दृश्य-संज्ञानात्मक, संवेदी क्षमताओं के अनुसार बदलता रहता है, यह उनके बौद्धिक विकास / विकास (motor, visual-cognitive, sensory abilities, it also depends on their intellectual development/growth) पर भी निर्भर करता है।
जीवन के किसी न किसी रूप में बीमारी से पीड़ित लोग इस उपचार के लिए पात्र नहीं हैं। क्यों इसके इलाज में दि जा रही दवाई और थेरेपी ऐसे मरीज़ो को नुक्सान पंहुचा सकती है। इस बीमारी का इलाज शुरू करने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह बहुत ज़्यादा ज़रूरी है।
पीडीडी (Pdd) एक प्रकार की बीमारी है। जिसमें विभिन्न लक्षण शामिल होते हैं और आमतौर पर चिकित्सा के साथ-साथ लक्षणों का इलाज किया जाता है। जीवनशैली में कुछ प्रकार के परिवर्तन पीडीडी (Pdd) के सफल उपचार को सुनिश्चित कर सकते हैं, जिसमें चिकित्सा और निर्धारित दवाओं की निरंतरता के साथ-साथ शिक्षा के लिए एक अलग दृष्टिकोण, विशिष्ट शिक्षा कार्यक्रमों को पहले से उल्लेख किए गए शिक्षा विशेषज्ञों की मदद से डिज़ाइन किया जाना चाहिए व्यक्ति के विकास को समय के विशिष्ट अंतराल में मापा जाना चाहिए।
पीडीडी (Pdd) एक लाइलाज बीमारी है, लेकिन कई उपचार विकल्प उपलब्ध हैं जो प्रभावित व्यक्तियों के जीवन को बढ़ाने में मदद करते हैं। और इस बिमारी से काफी हद तक राहत पोहचाती है।कभी- कभी बीमारी अक्सर लोगो को बहुत ज़्यादा परेशान कर देती है। और उसकी वजह से मरीज़ इलाज करने से कतराने लगता है। इसलिए इलाज करते समय मरीज़ को थोड़ा सब्र से काम लेना चाहिए क्योकि कोई भी बिमारी बहुत जल्दी ठीक नहीं होती है। उसको ठीक होने में थोड़ा वक़्त तो लगता ही है।
स्टेम सेल उपचार (stem-cell treatment) के लिए लागत 3 लाख रुपये से 6 लाख रुपये के बीच हो सकती है। एंटी-साइकोटिक (Anti-psychotic) दवाओं की कीमत 500 से 10,000 रुपये के बीच हो सकती है।
जब तक उपचार जारी रखा जाता है, तब तक व्यवहार लक्षण बे (bay) पर रखे जाते हैं। चूंकि बीमारी लाइलाज है, इसलिए व्यक्ति को जीवन भर दवा की आवश्यकता होती है।
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