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Last Updated: Feb 07, 2023
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स्केलेटल सिस्टम का चित्र | Skeletal System Ki Image

चित्र अलग-अलग भाग कार्य रोग जांच इलाज दवाइयां

स्केलेटल सिस्टम का चित्र | Skeletal System Ki Image

स्केलेटल सिस्टम का चित्र | Skeletal System Ki Image

स्केलेटल सिस्टम आपके शरीर के लिए एक सपोर्ट स्ट्रक्चर के रूप में काम करता है। यह शरीर को उसका आकार देता है, गति देता है, ब्लड सेल्स का निर्माण करता है, अंगों को सुरक्षा प्रदान करता है और मिनरल्स को स्टोर करता है। सपोर्ट स्ट्रक्चर को मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम भी कहा जाता है।

मानव स्केलेटल सिस्टम में शरीर की सभी हड्डियाँ, कार्टिलेज, टेंडॉन्स और लिगामेंट्स होते हैं। किसी भी व्यक्ति के शरीर के वजन का लगभग 20 प्रतिशत, स्केलेटल से बना होता है।

एक वयस्क के स्केलेटल में 206 हड्डियाँ होती हैं। बच्चों के स्केलेटल में अधिक हड्डियाँ होती हैं, जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, आपस में वो जुड़ जाती हैं।

पुरुष और महिला, दोनों के स्केलेटल सिस्टम में भी कुछ अंतर होते हैं। पुरुष स्केलेटल आमतौर पर लंबा होता है और इसमें हड्डी का मास अधिक होता है। दूसरी ओर, महिला स्केलेटल में गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के लिए एक चौड़ी पेल्विस होती है।

उम्र या लिंग के बावजूद, स्केलेटल सिस्टम को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, जिसे एक्सियल स्केलेटन और एपेनडीक्यूलर स्केलेटन के रूप में जाना जाता है।

स्केलेटल सिस्टम के अलग-अलग भाग

स्केलेटल सिस्टम, कई अलग-अलग हिस्सों का एक नेटवर्क है जो मिलकर काम करता है जिससे आप आपको मूवमेंट करने में मदद मिलती है। आपके स्केलेटल सिस्टम के मुख्य भाग हैं: हड्डियाँ, जो कि कठोर संरचनाएँ होती हैं जिससे आपके शरीर की रूपरेखा (स्केलेटल) बनती है। एक वयस्क मानव स्केलेटन में 206 हड्डियाँ होती हैं। प्रत्येक हड्डी, तीन मुख्य लेयर्स से बनी होती है:

  • पेरिओस्टेम: पेरीओस्टेम एक सख्त मेम्ब्रेन होती है जो हड्डी के बाहर वाले हिस्से को कवर करती है और उसकी रक्षा करती है।
  • कॉम्पैक्ट हड्डी: पेरीओस्टेम के नीचे, कॉम्पैक्ट हड्डी होती है जो कि सफेद, कठोर और चिकनी होती है। यह स्ट्रक्चरल सपोर्ट देती है और सुरक्षा प्रदान करती है।
  • स्पंजी हड्डी: हड्डी की आंतरिक परत कॉम्पैक्ट हड्डी की तुलना में नरम होती है। इसमें मैरो को संचित करने के लिए छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें पोर्स कहते हैं।

स्केलेटल सिस्टम के अन्य कंपोनेंट्स हैं:

  1. कार्टिलेज: यह चिकना और लचीला पदार्थ होता है जो कि हड्डियों की टिप्स को कवर करता है जहाँ वे मिलते हैं। इसकी मदद से हड्डियां बिना फ्रिक्शन(आपस में रगड़े बिना) मूव कर पाती हैं। जब कार्टिलेज घिस जाता है, जैसा कि गठिया में होता है, तो इसके कारण दर्द हो सकता है और चलने-फिरने में समस्या हो सकती है।
  2. जॉइंट: जॉइंट वो होता है, जहाँ पर शरीर में दो या दो से अधिक हड्डियाँ जुड़ती हैं। तीन तरह के जॉइंट्स होते हैं। वो हैं:
    • जॉइंट जो मूव नहीं करते: ऐसे जॉइंट, हड्डियों को बिल्कुल भी हिलने नहीं देते हैं जैसे कि स्कल बोन्स के बीच के जॉइंट्स ।
    • आंशिक रूप से मूव करने योग्य जॉइंट: ये जॉइंट, सीमित गति करने की अनुमति देते हैं। जैसे कि: रिब केज में जॉइंट, आंशिक रूप से मूव हो सकते हैं।
    • मूव होने वाले जॉइंट: मूव होने वाले जॉइंट के कारण, व्यक्ति अलग-अलग दिशाओं में मूव कर सकता है। आपकी कोहनी, कंधे और घुटने मूव होने वाले जॉइंट्स हैं।
  3. लिगामेंट्स: स्ट्रोनोग कनेक्टिव टिश्यूज़ के बैंड जिन्हें लिगामेंट कहा जाता है, हड्डियों को एक साथ रखते हैं।
  4. टेंडन्स: टेंडन, टिश्यूज़ के बैंड होते हैं जो मांसपेशियों के सिरों को हड्डी से जोड़ते हैं।

स्केलेटल सिस्टम के कार्य | Skeletal System Ke Kaam

स्केलेटल सिस्टम के सबसे स्पष्ट कार्य हैं: ग्रॉस फंक्शन्स - जो कि अवलोकन करने पर दिखाई देते हैं। किसी भी व्यक्ति को देखकर ये पता लगाया जा सकता है कि हड्डियाँ किस प्रकार सपोर्ट कर रही हैं, कैसे मूवमेंट को आसान बनाती हैं और मानव शरीर की रक्षा करती हैं।

स्केलेटल सिस्टम की हड्डियाँ और कार्टिलेज, शरीर के बाकी हिस्सों को सहारा देने वाले मचान की तरह होते हैं। स्केलेटल सिस्टम के बिना, व्यक्ति सिर्फ अंगों, मांसपेशियों और त्वचा का बना हुआ एक मॉस होगा।

मांसपेशियों के जुड़ने के लिए हड्डियां उन पॉइंट्स के रूप में कार्य करती हैं जिनसे मूवमेंट करना संभव हो पाता है। जबकि कुछ हड्डियाँ केवल मांसपेशियों को सपोर्ट करती हैं, अन्य हड्डियां, मांसपेशियों के संकुचन के दौरान उत्पन्न होने वाली फाॅर्स को ट्रांसमिट भी करती हैं।

मैकेनिकल दृष्टिकोण से, हड्डियाँ लीवर (lever -उत्तोलक) के रूप में कार्य करती हैं और जॉइंट्स (जोड़) के रूप में कार्य करते हैं। जब तक एक मांसपेशी एक जॉइंट को फैलाती और सिकुड़ती नहीं है, तब तक एक हड्डी हिलने वाली नहीं है। हड्डियां आंतरिक अंगों को ढंककर चोट से भी बचाती हैं। उदाहरण के लिए, पसलियां आपके फेफड़ों और हृदय की रक्षा करती हैं, वर्टिब्रल कॉलम (रीढ़) की हड्डियां आपकी रीढ़ की हड्डी की रक्षा करती हैं, और आपके क्रैनियम (स्कल) की हड्डियां आपके मस्तिष्क की रक्षा करती हैं।

स्केलेटल सिस्टम के रोग | Skeletal System Ki Bimariya

  1. ऑस्टियोपोरोसिस: उम्र बढ़ने के साथ-साथ, हड्डियों में समस्या होना सामान्य है। हड्डियों की यह समस्या पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम नहीं मिलने से होती है। हड्डियों जल्दी टूट सकती हैं यानी कमज़ोर हो जाती हैं और छोटे छिद्रों से भर जाती हैं जबकि हड्डियों को कठोर और सख्त होना चाहिए।
  2. मोच और टियर: हड्डियों की तरह, कनेक्टिव टिश्यू भी क्षति के लिए अतिसंवेदनशील है। समय के साथ, टिश्यू खराब हो जाते हैं। ट्रॉमा या बीमारी से भी नुकसान हो सकता है।‌
  3. आर्थराइटिस: जब किसी व्यक्ति के जॉइंट्स खराब हो जाते हैं, तो इस स्थिति के कारण दर्द हो सकता है जहां हड्डियां मिलती हैं, यानी कि जॉइंट्स पर। आर्थराइटिस एक ऐसी स्थिति है जिसका निदान किया जा सकता है। आर्थराइटिस की समस्या उम्र, चोट या लाइम रोग जैसी चिकित्सा स्थितियों के कारण हो सकती है।
  4. ओस्टियोसारकोमा: इस प्रकार का कैंसर हड्डियों में बनता है और ट्यूमर का कारण बन सकता है। इस ट्यूमर के कारण फ्रैक्चर हो सकता है।
  5. फ्रैक्चर: हड्डी पर किसी भी तरह के दबाव के कारण वह टूट सकती है, जिसे फ्रैक्चर भी कहा जाता है। जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, उसकी हड्डियाँ कमजोर होती जाती हैं और फ्रैक्चर होने की संभावना अधिक होती जाती है।‌फ्रैक्चर के निम्नलिखित प्रकार हैं:
    • स्टेबल: इसे क्लोज्ड फ्रैक्चर भी कहते हैं। यह तब होता है, जब टूटी हुई हड्डी के दो टुकड़े लाइन में आ जाते हैं।
    • स्ट्रैस फ्रेक्चर: जब आप किसी विशेष हड्डी का अत्यधिक उपयोग करते हैं, तो यह लगातार दबाव से टूट सकती है।
    • ओपन फ्रैक्चर: इसे कंपाउंड फ्रैक्चर भी कहा जाता है। यह तब होता है जब टूटी हुई हड्डी से त्वचा में छेद हो जाता है।

स्केलेटल सिस्टम की जांच | Skeletal System Ke Test

  • सीआरपी का स्तर: सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी), एक इंफ्लेमेटरी मार्कर है जो बीएमडी के विपरीत होने के बावजूद, फ्रैक्चर या घायल इंजर्ड स्केलेटल सिस्टम कंपोनेंट्स के बढ़ते जोखिम से जुड़ा होता है।
  • सीरम वीआईटी डी3: इस ब्लड टेस्ट से विटामिन डी का स्टार पता लगाया जा सकता है जिससे आप स्वस्थ रह सकें। विटामिन डी हड्डियों और दांतों की मदद करता है। व्यायाम करने से भी मांसपेशियां, नसें, और प्रतिरक्षा प्रणाली अच्छी बनी रहती हैं।
  • डेक्सा स्कैन: ज्यादातर मामलों में, सबसे आम और भरोसेमंद प्रक्रिया है: ड्यूल एनर्जी एक्स-रे एब्सोप्टोमेट्री (डेक्सा) स्कैन।
  • एंटी-साइक्लिक सिट्रूलिनेटेड पेप्टाइड (एंटी-सीसीपी) एंटीबॉडी: रहूमटॉइड आर्थराइटिस में, सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस जैसे अन्य इंफ्लेमेटरी रुमेटोलॉजिकल रोगों की तुलना में स्तर अक्सर अधिक होते हैं।
  • आरए फैक्टर: इस तथ्य के बावजूद कि सूजन संबंधी गठिया से जुड़े अन्य रूमेटोलॉजिकल बीमारियों में स्तर बढ़ सकते हैं, जैसे सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमैटोसस, रहूमटॉइड आर्थराइटिस में स्तर अक्सर अधिक होते हैं।
  • स्ट्रेस एक्स-रे: जब स्केलेटल सिस्टम के क्षतिग्रस्त कॉम्पोनेन्ट पर दबाव डालता है तो एक एक्स-रे फिल्म ली जाती है। इस उपचार को जिसे स्ट्रेस फिल्म या स्ट्रेस टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है, टखने की असामान्यताओं का पता लगा सकता है जो कि नियमित एक्स-रे से पता नहीं चल सकता।
  • मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई स्कैन): एक एमआरआई स्कैनर एक स्ट्रांग मैगनेट और एक कंप्यूटर दोनों का उपयोग करता है। इसके द्वारा, स्केलेटल सिस्टम के घायल जगहों की बनाई गयी इमेजेज में बहुत उच्च स्तर का रिज़ॉल्यूशन होता है।

स्केलेटल सिस्टम का इलाज | Skeletal System Ki Bimariyon Ke Ilaaj

  • सिंडेस्मोटिक स्क्रू: रोगी के निचले पैर में, जहाँ पर हड्डियों में फ्रैक्चर हुआ है उनको ठीक करने के लिए एक स्क्रू का उपयोग किया जाता है। यह टखने को स्थिर करने में मदद करता है जबकि हाई एंकल सप्रेन्स ठीक हो जाते हैं। घाव ठीक होने के बाद स्क्रू को निकाल दिया जाएगा।
  • एंकल आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी: यह एक मिनिमली इनवेसिव एंकल सर्जरी है। इसमें टखने में चीरा लगाया जाता है और फिर वहां उपकरण डालए जाता है। एंडोस्कोप, एक उपकरण है जो सर्जन को टखने के जोड़ के भीतर देखने और उस इमेज को स्क्रीन पर प्रोजेक्ट करने की अनुमति देता है।
  • राइस थेरेपी: रेस्ट, आइस, कम्प्रेशन (एथलेटिक बैंडेज जैसी किसी चीज़ के साथ), और एलीवेशन, ये सब इस थेरेपी के भाग हैं। इस प्रक्रिया का उपयोग करके शुरू में अधिकांश टखने की चोटों का प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है।
  • टखने का स्थिरीकरण: अधिकांश टखने के फ्रैक्चर होने पर, टखने के स्थिरीकरण की आवश्यकता होती है, आमतौर पर कास्ट के उपयोग से। कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना ​​है कि स्थिरीकरण से टखने की मोच में भी मदद मिल सकती है।
  • स्केलेटल फ्यूजन सर्जरी: सर्जरी के बाद, स्केलेटल की हड्डियों को आपस में जोड़ दिया जाता है, जिससे उस जगह में मूवमेंट सीमित हो जाता है। सर्जरी के द्वारा हड्डियों को आपस में जोड़ने से गंभीर गठिया की पीड़ा से पीड़ित लोगों को मदद मिल सकती है।
  • एंकल रिप्लेसमेंट सर्जरी: कुछ आर्थोपेडिक विशेषज्ञों द्वारा एंकल रिप्लेसमेंट सर्जरी करवाने की सलाह दी जाती है, हालांकि परिणाम हमेशा उतने अच्छे नहीं होते जितने कि हो सकते हैं।

स्केलेटल सिस्टम की बीमारियों के लिए दवाइयां | Skeletal System ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

  • स्केलेटल सिस्टम में दर्द के लिए एनाल्जेसिक: एनाल्जेसिक, पेन किलर्स होते हैं। शरीर में प्रोस्टाग्लैंडीन के उत्पादन को कम करने में एनाल्जेसिक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एसिटामिनोफेन, इबुप्रोफेन और एस्पिरिन जैसी दवाएं एनाल्जेसिक की श्रेणी में आती हैं। उनकी मदद से स्केलेटल सिस्टम के विभिन्न दर्द को कम किया जा सकता है।
  • स्केलेटल सिस्टम में संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स: एंटीबायोटिक्स मायोसिटिस और हड्डी के अन्य संक्रमणों का इलाज करते हैं। बैक्टीरियल इन्फेक्शन्स के इलाज के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स लिखते हैं। एमोक्सिसिलिन, आमतौर पर उपयोग की जाने वाली एंटी-बैक्टीरियल दवा है।
  • स्केलेटल सिस्टम में दर्द को कम करने के लिए न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट्स की डोज़: चिकित्सा विशेषज्ञ ग्लूकोसामाइन और कॉन्ड्रोइटिन के उपयोग की सलाह देते हैं ताकि जोड़ों की परेशानी को दूर किया जा सके और स्केलेटल डेवलपमेंटल रिपेयर में तेजी लाई जा सके। कैल्शियम और विटामिन डी की डोज़, उम्र और आहार पर निर्भर करती है।
  • स्केलेटल सिस्टम की हड्डी के विकास के लिए बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स: बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स हड्डी का निर्माण करते हैं। बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स को कभी-कभी पामिटॉयल फ़ॉस्फ़ोनेट कहा जाता है, जो कि दवाओं का एक वर्ग है जिसे एंटीरेस्पेक्टिव्स के रूप में जाना जाता है। वे हड्डी के रिसॉर्बिंग प्रक्रिया को धीमा करके या इसे पूरी तरह से रोक कर ऐसा करते हैं।
  • स्केलेटल सिस्टम के संक्रमण के इलाज के लिए एंटीवायरल: कई दवाएं, जैसे कि अमैंटाडाइन, रिमांटाडाइन, ज़ानामिविर, ओसेल्टामिविर, रिबाविरिन, एसाइक्लोविर, गैन्सीक्लोविर और फोसकारनेट, यहाँ शामिल हैं।
  • स्केलेटल सिस्टम में दर्द को कम करने के लिए डीएमएआरडी: रूमेटिक रोग वाले रोगियों को अक्सर रोग-संशोधित एंटी-रूमेटिक दवाएं (डीएमएआरडी) दी जाती हैं। ये उपचार प्रभावी हैं क्योंकि वे रोग को नियमित तरीके से विकसित होने से रोकते हैं।
  • स्केलेटल सिस्टम के पेरीफेरल दर्द को कम करने के लिए: प्रीगैबलिन को फाइब्रोमायल्गिया और न्यूरोपैथिक दर्द से पीड़ित रोगियों के लिए निर्धारित किया जाता है। जब अन्य दौरे वाली दवाओं के साथ इसे दिया जाता है, तो यह आंशिक-प्रारंभिक दौरे के इलाज में भी प्रभावी होता है।
  • स्केलेटल सिस्टम की सूजन को कम करने के लिए स्टेरॉयड: प्रेडनिसोन, मिथाइलप्रेडनिसोलोन, डेक्सामेथासोन और हाइड्रोकार्टिसोन जैसी सिस्टमिक दवाएं आमतौर पर सभी प्रकार के हड्डी के संक्रमण के इलाज के लिए उपयोग की जाती हैं।

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Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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