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Last Updated: Mar 09, 2023
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श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स)- शरीर रचना (चित्र, कार्य, बीमारी, इलाज)

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) का चित्र | White Blood Cells Ki Image श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) के अलग-अलग भाग श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) के कार्य | White Blood Cells Ke Kaam श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) के रोग | White Blood Cells Ki Bimariya श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) की जांच | White Blood Cells Ke Test श्वेत रक्त कोशिकाएं (वाइट ब्लड सेल्स) का इलाज | White Blood Cells Ki Bimariyon Ke Ilaaj श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) की बीमारियों के लिए दवाइयां | White Blood Cells ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) का चित्र | White Blood Cells Ki Image

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) का चित्र | White Blood Cells Ki Image

यह एक प्रकार का ब्लड सेल है जो कि बोन मेरो में बनता है और रक्त और लिम्फ टिश्यू में पाया जाता है। वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) शरीर के इम्यून सिस्टम का हिस्सा होते हैं। वे शरीर को संक्रमण और अन्य बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं। ये सेल्स, शरीर में प्रवेश करने वाले किसी भी अज्ञात जीव पर हमला करके, चोट या बीमारी का जवाब देने के लिए, ब्लड-स्ट्रीम और टिश्यूज़ के माध्यम से फैलते हैं।

वाइट ब्लड सेल्स, रक्त का लगभग 1% ही होते हैं, लेकिन उनका प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। जब शरीर संकट में होता है और किसी विशेष क्षेत्र पर हमला हो रहा होता है, तो हानिकारक पदार्थ को नष्ट करने और बीमारी को रोकने में मदद करने के लिए वाइट सेल्स तुरंत वहां पहुँचते हैं।

वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) के प्रकार ग्रैन्यूलोसाइट्स (न्यूट्रोफिल, ईसिनोफिल और बेसोफिल), मोनोसाइट्स और लिम्फोसाइट्स (टी कोशिकाएं और बी कोशिकाएं) हैं। रक्त में वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) की संख्या की जानकारी ब्लड टेस्ट से पता चलती है। इस टेस्ट का नाम है: कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी)। इसका उपयोग संक्रमण, सूजन, एलर्जी और ल्यूकेमिया जैसी स्थितियों को देखने के लिए किया जा सकता है। ल्यूकोसाइट और डब्ल्यूबीसी भी कहा जाता है।

वाइट ब्लड सेल्स(सफेद रक्त कोशिकाएं) रंगहीन होते हैं लेकिन माइक्रोस्कोप के नीचे जांच करने पर और डाई से रंगे जाने पर बहुत हल्के बैंगनी से गुलाबी रंग के रूप में दिखाई दे सकते हैं। इन बेहद छोटे सेल्स में एक अलग सेंट्रल मेम्ब्रेन (न्यूक्लियस) होती है और इनका गोल आकार होता है।

वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) उन सेल्स से उत्पन्न होते हैं जो हड्डियों (बोन मेरो) के सॉफ्ट टिश्यूज़ के भीतर शरीर में अन्य सेल्स(स्टेम सेल) में रूपांतरित होते हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) के अलग-अलग भाग

हेल्थ प्रोफेशनल्स ने वाइट ब्लड सेल्स के तीन मुख्य प्रकार के बारे में बताया है: ग्रैन्यूलोसाइट्स, लिम्फोसाइट्स और मोनोसाइट्स। नीचे दिए गए सेक्शंस में इनके बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है:

  1. ग्रैन्यूलोसाइट्स

    ग्रैन्यूलोसाइट्स, वो वाइट ब्लड सेल्स होते हैं जिनमें प्रोटीन युक्त छोटे ग्रैन्यूल्स होते हैं। ग्रैन्यूलोसाइट्स सेल्स तीन प्रकार के होते हैं:

    • बासोफिल्स: ये शरीर में मौजूद कुल वाइट ब्लड सेल्स के मात्रा 1% होते हैं। आमतौर पर एलर्जी की प्रतिक्रिया के बाद इनकी संख्या में वृद्धि होती है।
    • ईसिनोफिल्स: पैरासाइट्स के कारण होने वाले संक्रमणों का जवाब देने के लिए, ये सेल्स जिम्मेदार हैं। वे शरीर में सामान्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के साथ-साथ इंफ्लेमेटरी प्रतिक्रिया में भी भूमिका निभाते हैं।
    • न्यूट्रोफिल्स: ये शरीर में मौजूद कुल वाइट ब्लड सेल्स में सबसे ज्यादा होते हैं। वे स्कवेंजर्स(मैला ढोने वालों) के रूप में कार्य करते हैं, शरीर में मौजूद बैक्टीरिया और फंगस को घेरने और नष्ट करने में मदद करते हैं।
  2. लिम्फोसाइट्स
    इन वाइट ब्लड सेल्स में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • बी सेल्स: इनको बी-लिम्फोसाइट्स के रूप में भी जाना जाता है। ये सेल्स इम्यून सिस्टम को संक्रमण के प्रति प्रतिक्रिया करने में मदद करने के लिए एंटीबॉडी उत्पन्न करती हैं।
    • टी सेल्स: इनको टी-लिम्फोसाइट्स के रूप में भी जाना जाता है। ये वाइट ब्लड सेल्स, संक्रमण पैदा करने वाले सेल्स को पहचानने और हटाने में मदद करते हैं।
    • नेचुरल किलर सेल्स: ये सेल्स वायरल सेल्स के साथ-साथ कैंसर सेल्स पर हमला करने और मारने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

  3. मोनोसाइट्स

    मोनोसाइट्स, वो वाइट ब्लड सेल्स होते हैं जो शरीर में कुल वाइट ब्लड सेल्स की संख्या का लगभग 2-8% बनाते हैं। ये तब मौजूद होते हैं जब शरीर पुराने संक्रमणों से लड़ता है।

    वे उन सेल्स को निशाना बनाते हैं और नष्ट कर देते हैं, जो संक्रमण का कारण बनते हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) के कार्य | White Blood Cells Ke Kaam

  1. न्यूट्रोफिल

    न्यूट्रोफिल, शरीर में मौजूद कुल वाइट ब्लड सेल्स का लगभग आधा हिस्सा बनाते हैं। वे आम तौर पर बैक्टीरिया या वायरस से लड़ने के लिए, इम्यून सिस्टम के पहले सेल्स होते हैं। वे शरीर के इम्यून सिस्टम में मौजूद अन्य सेल्स को भी सिग्नल्स भेजते हैं ताकि वो उस स्थान पर आ सकें।

    न्यूट्रोफिल, मवाद में पाए जाने वाले मुख्य सेल्स हैं। एक बार बोन मेरो से निकल जाने के बाद, ये सेल्स लगभग आठ घंटे तक जीवित रहते हैं। आपका शरीर प्रतिदिन लगभग 100 अरब इन सेल्स का निर्माण करता है।

  2. ईसिनोफिल्स

    ईसिनोफिल्स, बैक्टीरिया से लड़ने में भी भूमिका निभाते हैं। पैरासाइट्स से होने वाले संक्रमण (जैसे कीड़े) के प्रति लड़ने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इनका मुख्या कार्य है: एलर्जी के लक्षणों को ट्रिगर करना। ईसिनोफिल्स, कुछ हानिरहित के खिलाफ भी इम्यून सिस्टम को अलर्ट कर देते हैं जैसे कि फूलों के पॉलेन को एक विदेशी आक्रमणकारी के रूप में पहचानना।

    ईसिनोफिल्स, रक्तप्रवाह में मौजूद वाइट ब्लड सेल्स के 5% से अधिक नहीं होते हैं। हालांकि, डाइजेस्टिव ट्रैक्ट में इनकी अधिक संख्या होती है।

  3. बासोफिल्स

    बासोफिल्स, कुल वाइट ब्लड सेल्स का लगभग 1% ही होते हैं। ये सेल्स, अस्थमा में अपनी भूमिका के लिए सबसे अच्छी तरह से जाने जाते हैं। हालांकि, वे पैथोजन्स के खिलाफ लड़ने में महत्वपूर्ण हैं, जो रोग पैदा कर सकते हैं।

    उत्तेजित होने पर, ये सेल्स अन्य रसायनों के बीच हिस्टामाइन छोड़ते हैं। इसका परिणाम वायुमार्ग की सूजन और संकुचन हो सकता है।

  4. लिम्फोसाइट्स (बी और टी)

    इम्यून सिस्टम में लिम्फोसाइट्स भी आवश्यक हैं। वे दो प्रकार के होते हैं: बी सेल और टी सेल।
    बी लिम्फोसाइट्स (बी सेल्स), ह्यूमरल इम्यूनिटी के लिए जिम्मेदार हैं, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है जिसमें एंटीबॉडी शामिल हैं। बी सेल्स, एंटीबॉडी का उत्पादन करते हैं जो कि एक प्रकार के संक्रमण को याद रखते हैं । यदि आपका शरीर फिर से उस रोगजनक के संपर्क में आता है तो वे तैयार रहते हैं।
    टी सेल्स, विदेशी आक्रमणकारियों को पहचानते हैं और उन्हें सीधे मारने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये सेल्स भी मेमोरी रखते हैं और एक संक्रमण के ठीक होने के बाद अगर दोबारा से उसे देखते हैं तो तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं।

  5. मोनोसाइट्स

    मोनोसाइट्स, इम्यून सिस्टम के कचरा ट्रक हैं। ब्लड-स्ट्रीम में लगभग 5% से 12% वाइट ब्लड सेल्स मोनोसाइट्स हैं। इनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य शरीर में मृत सेल्स को साफ करना है।

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) के रोग | White Blood Cells Ki Bimariya

  1. वाइट ब्लड सेल्स की संख्या का अधिक होना

    यदि किसी व्यक्ति का शरीर आवश्यकता से अधिक वाइट ब्लड सेल्स का उत्पादन कर रहा है, तो डॉक्टर इसे ल्यूकोसाइटोसिस कहते हैं।

    इस स्थिति के कारण, निम्नलिखित चिकित्सीय स्थितियों का संकेत मिल सकता है:

    • एलर्जी प्रतिक्रियाएं, जैसे अस्थमा के दौरे के कारण
    • वे जो सेल्स के मरने का कारण बन सकते हैं, जैसे कि जलन, दिल का दौरा और आघात
    • सूजन की स्थिति, जैसे रूमेटोइड आर्थराइटिस, इंफ्लेमेटरी बोवेल डिजीज या वास्कुलाइटिस
    • संक्रमण, जैसे बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या पैरासाइट के साथ
    • ल्यूकेमिया
    • सर्जिकल प्रक्रियाएं जो सेल्स के मरने का कारण बनती हैं, उनके कारण भी ये स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

  2. वाइट ब्लड सेल्स की संख्या का कम होना

    यदि किसी व्यक्ति का शरीर कम वाइट ब्लड सेल्स का उत्पादन कर रहा है, तो डॉक्टर इसे ल्यूकोपेनिया कहते हैं।

    ल्यूकोपेनिया पैदा करने वाली स्थितियों में शामिल हैं:

    • ल्यूपस और एचआईवी जैसी ऑटोइम्यून स्थितियां
    • बोन मेरो डैमेज, जैसे रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी या टॉक्सिन्स के संपर्क में आने से
    • बोन मेरो डिसऑर्डर्स
    • ल्यूकेमिया
    • लिंफोमा
    • सेप्सिस, जो एक गंभीर प्रकार का संक्रमण है
    • विटामिन बी -12 की कमी
  3. एप्लास्टिक एनीमिया

    यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति का शरीर, बोन मेरो में स्टेम सेल को नष्ट कर देता है।

    नए वाइट ब्लड सेल्स, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स बनाने के लिए स्टेम कोशिकाएं जिम्मेदार होते हैं।

  4. ल्यूकेमिया

    ल्यूकेमिया एक प्रकार का कैंसर है जो ब्लड और बोने मेरो को प्रभावित करता है। ल्यूकेमिया तब होता है जब वाइट ब्लड सेल्स की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ती है और संक्रमण से लड़ने में सक्षम नहीं होती हैं।,/p>

  5. प्राथमिक मायलोफिब्रोसिस

    यह स्थिति किसी व्यक्ति के शरीर को कुछ प्रकार के ब्लड सेल्स का उत्पादन करने का कारण बनती है। यह एक व्यक्ति के बोन मेरो में निशान का कारण बनता है।

  6. इवांस सिंड्रोम

    यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है जिसमें शरीर का इम्म्यून सिस्टम रेड और वाइट ब्लड सेल्स के साथ-साथ अन्य स्वस्थ सेल्स को नष्ट कर देता है।

  7. HIV(एचआईवी)

    एचआईवी रोग के कारण, सीडी4 टी सेल्स नामक वाइट ब्लड सेल्स की संख्या बहुत कम हो जाती है। जब किसी व्यक्ति की टी सेल्स संख्या 200 से कम हो जाती है, तो डॉक्टर एड्स का निदान कर सकता है।

  8. मायलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम: यह स्थिति ब्लड सेल्स के असामान्य उत्पादन का कारण बनती है। इसमें बोन मेरो में वाइट ब्लड सेल्स भी शामिल हैं।
  9. मायलोप्रोलिफेरेटिव डिसऑर्डर: यह डिसऑर्डर विभिन्न स्थितियों के बारे में बताता है जो कि अपरिपक्व ब्लड सेल्स के अत्यधिक उत्पादन को ट्रिगर करता है। इसके परिणामस्वरूप बोन मेरो में सभी प्रकार के ब्लड सेल्स और ब्लड में बहुत अधिक या बहुत कम वाइट ब्लड सेल्स का अस्वास्थ्यकर संतुलन हो सकता है।
  10. दवाएं: कुछ दवाएं शरीर में वाइट ब्लड सेल्स की गिनती को बढ़ा या कम कर सकती हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) की जांच | White Blood Cells Ke Test

  • स्प्यूटम कल्चर: स्प्यूटम कल्चर का मूल्यांकन, माइक्रो-ऑर्गनिज़म के विकास के लिए किया जाता है जो संक्रमण का पता लगाने में सहायक होता है।
  • एंटीबॉडी परीक्षण: रक्त में विभिन्न प्रकार के एंटीबॉडी मौजूद होते हैं, एंटीबॉडी के स्तर का मूल्यांकन किया जा सकता है कि रक्त में किस प्रकार के वाइट ब्लड सेल्स काम कर रहे हैं।
  • ब्लड कल्चर: रोगी के ब्लड सैंपल का उपयोग करके कल्चर मीडियम बनाया जाता है जिसमें रोग के उचित निदान और मूल्यांकन के लिए, विभिन्न बैक्टीरिया और अन्य माइक्रो-ऑर्गनिज़म के विकास का मूल्यांकन किया जाता है।
  • WBC काउंट: यह टेस्ट शरीर में WBC कि संख्या का पता लगाता है। इसका दूसरा नाम ल्यूकोसाइट टेस्ट है। WBC काउंट का प्रयोग अक्सर विभिन्न डिसऑर्डर्स की जांच के लिए किया जाता है जो सामान्य स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकते हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं (वाइट ब्लड सेल्स) का इलाज | White Blood Cells Ki Bimariyon Ke Ilaaj

  • ल्यूकेफेरेसिस: इसका उपयोग, रक्त से असामान्य वाइट ब्लड सेल्स को हटाने के लिए किया जाता है। यदि व्यक्ति के शरीर में वाइट ब्लड सेल्स की संख्या बहुत अधिक है, तो यह उपचार किया जा सकता है। रक्त में ल्यूकेमिया सेल्स की बहुत अधिक संख्या होने से, नार्मल सर्कुलेशन के साथ समस्या पैदा हो सकती है।
  • ग्रैनुलोसाइट कॉलोनी-स्टिमुलेटिंग फैक्टर्स और बोन मेरो से प्राप्त अन्य ग्रोथ फैक्टर्स: जब वाइट ब्लड सेल्स की संख्या बहुत कम होती है तो ये दोनों मिलकर, शरीर को अधिक
  • डब्ल्यूबीसी का उत्पादन करने में मदद कर सकते हैं। ग्रोथ फैक्टर्स के कुछ उदाहरण, जिनका उपयोग किया जा सकता है: फिलग्रासिम (न्यूपोजेन) और पेगफिलग्रेस्टिम (न्यूलास्टा)।
  • बोन मेरो ट्रांसप्लांट: बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन से या तो क्षतिग्रस्त मेरो को बदल सकते हैं या फिर ठीक कर सकते हैं। इनमें नियमित ब्लड सेल्स का उत्पादन शुरू करने में बोन मेरो की सहायता के लिए, अक्सर एक डोनर से शरीर में स्टेम सेल्स को निहित करना शामिल है।
  • ब्लड ट्रांस्फ्यूज़न: खोये हुए या फिर क्षतिग्रस्त ब्लड सेल्स को पुनर्स्थापित करने के लिए यह प्रक्रिया की जाती है। ट्रांस्फ्यूज़न के दौरान एक डोनर का स्वस्थ रक्त, रोगी में डाला जाता है।

श्वेत रक्त कोशिकाएं(वाइट ब्लड सेल्स) की बीमारियों के लिए दवाइयां | White Blood Cells ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

फिल्ग्रास्टिम इंजेक्शन का उपयोग कैंसर की दवाओं के कारण होने वाले न्यूट्रोपेनिया (कम सफेद रक्त कोशिकाओं) के इलाज के लिए किया जाता है। यह एक पदार्थ का सिंथेटिक (मानव निर्मित) रूप है जो आपके शरीर में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है जिसे कॉलोनी स्टिमुलेटिंग फैक्टर कहा जाता है। फिल्ग्रास्टिम, बोन मेरो को नए वाइट ब्लड सेल्स बनाने में मदद करता है।

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Written By
PhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child Care
Pharmacology
English Version is Reviewed by
MD - Consultant Physician
General Physician
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