यह एक प्रकार का ब्लड सेल है जो कि बोन मेरो में बनता है और रक्त और लिम्फ टिश्यू में पाया जाता है। वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) शरीर के इम्यून सिस्टम का हिस्सा होते हैं। वे शरीर को संक्रमण और अन्य बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं। ये सेल्स, शरीर में प्रवेश करने वाले किसी भी अज्ञात जीव पर हमला करके, चोट या बीमारी का जवाब देने के लिए, ब्लड-स्ट्रीम और टिश्यूज़ के माध्यम से फैलते हैं।
वाइट ब्लड सेल्स, रक्त का लगभग 1% ही होते हैं, लेकिन उनका प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। जब शरीर संकट में होता है और किसी विशेष क्षेत्र पर हमला हो रहा होता है, तो हानिकारक पदार्थ को नष्ट करने और बीमारी को रोकने में मदद करने के लिए वाइट सेल्स तुरंत वहां पहुँचते हैं।
वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) के प्रकार ग्रैन्यूलोसाइट्स (न्यूट्रोफिल, ईसिनोफिल और बेसोफिल), मोनोसाइट्स और लिम्फोसाइट्स (टी कोशिकाएं और बी कोशिकाएं) हैं। रक्त में वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) की संख्या की जानकारी ब्लड टेस्ट से पता चलती है। इस टेस्ट का नाम है: कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी)। इसका उपयोग संक्रमण, सूजन, एलर्जी और ल्यूकेमिया जैसी स्थितियों को देखने के लिए किया जा सकता है। ल्यूकोसाइट और डब्ल्यूबीसी भी कहा जाता है।
वाइट ब्लड सेल्स(सफेद रक्त कोशिकाएं) रंगहीन होते हैं लेकिन माइक्रोस्कोप के नीचे जांच करने पर और डाई से रंगे जाने पर बहुत हल्के बैंगनी से गुलाबी रंग के रूप में दिखाई दे सकते हैं। इन बेहद छोटे सेल्स में एक अलग सेंट्रल मेम्ब्रेन (न्यूक्लियस) होती है और इनका गोल आकार होता है।
वाइट ब्लड सेल्स(श्वेत रक्त कोशिकाएं) उन सेल्स से उत्पन्न होते हैं जो हड्डियों (बोन मेरो) के सॉफ्ट टिश्यूज़ के भीतर शरीर में अन्य सेल्स(स्टेम सेल) में रूपांतरित होते हैं।
हेल्थ प्रोफेशनल्स ने वाइट ब्लड सेल्स के तीन मुख्य प्रकार के बारे में बताया है: ग्रैन्यूलोसाइट्स, लिम्फोसाइट्स और मोनोसाइट्स। नीचे दिए गए सेक्शंस में इनके बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है:
ग्रैन्यूलोसाइट्स, वो वाइट ब्लड सेल्स होते हैं जिनमें प्रोटीन युक्त छोटे ग्रैन्यूल्स होते हैं। ग्रैन्यूलोसाइट्स सेल्स तीन प्रकार के होते हैं:
मोनोसाइट्स, वो वाइट ब्लड सेल्स होते हैं जो शरीर में कुल वाइट ब्लड सेल्स की संख्या का लगभग 2-8% बनाते हैं। ये तब मौजूद होते हैं जब शरीर पुराने संक्रमणों से लड़ता है।
वे उन सेल्स को निशाना बनाते हैं और नष्ट कर देते हैं, जो संक्रमण का कारण बनते हैं।
न्यूट्रोफिल, शरीर में मौजूद कुल वाइट ब्लड सेल्स का लगभग आधा हिस्सा बनाते हैं। वे आम तौर पर बैक्टीरिया या वायरस से लड़ने के लिए, इम्यून सिस्टम के पहले सेल्स होते हैं। वे शरीर के इम्यून सिस्टम में मौजूद अन्य सेल्स को भी सिग्नल्स भेजते हैं ताकि वो उस स्थान पर आ सकें।
न्यूट्रोफिल, मवाद में पाए जाने वाले मुख्य सेल्स हैं। एक बार बोन मेरो से निकल जाने के बाद, ये सेल्स लगभग आठ घंटे तक जीवित रहते हैं। आपका शरीर प्रतिदिन लगभग 100 अरब इन सेल्स का निर्माण करता है।
ईसिनोफिल्स, बैक्टीरिया से लड़ने में भी भूमिका निभाते हैं। पैरासाइट्स से होने वाले संक्रमण (जैसे कीड़े) के प्रति लड़ने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इनका मुख्या कार्य है: एलर्जी के लक्षणों को ट्रिगर करना। ईसिनोफिल्स, कुछ हानिरहित के खिलाफ भी इम्यून सिस्टम को अलर्ट कर देते हैं जैसे कि फूलों के पॉलेन को एक विदेशी आक्रमणकारी के रूप में पहचानना।
ईसिनोफिल्स, रक्तप्रवाह में मौजूद वाइट ब्लड सेल्स के 5% से अधिक नहीं होते हैं। हालांकि, डाइजेस्टिव ट्रैक्ट में इनकी अधिक संख्या होती है।
बासोफिल्स, कुल वाइट ब्लड सेल्स का लगभग 1% ही होते हैं। ये सेल्स, अस्थमा में अपनी भूमिका के लिए सबसे अच्छी तरह से जाने जाते हैं। हालांकि, वे पैथोजन्स के खिलाफ लड़ने में महत्वपूर्ण हैं, जो रोग पैदा कर सकते हैं।
उत्तेजित होने पर, ये सेल्स अन्य रसायनों के बीच हिस्टामाइन छोड़ते हैं। इसका परिणाम वायुमार्ग की सूजन और संकुचन हो सकता है।
इम्यून सिस्टम में लिम्फोसाइट्स भी आवश्यक हैं। वे दो प्रकार के होते हैं: बी सेल और टी सेल।
बी लिम्फोसाइट्स (बी सेल्स), ह्यूमरल इम्यूनिटी के लिए जिम्मेदार हैं, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है जिसमें एंटीबॉडी शामिल हैं। बी सेल्स, एंटीबॉडी का उत्पादन करते हैं जो कि एक प्रकार के संक्रमण को याद रखते हैं । यदि आपका शरीर फिर से उस रोगजनक के संपर्क में आता है तो वे तैयार रहते हैं।
टी सेल्स, विदेशी आक्रमणकारियों को पहचानते हैं और उन्हें सीधे मारने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये सेल्स भी मेमोरी रखते हैं और एक संक्रमण के ठीक होने के बाद अगर दोबारा से उसे देखते हैं तो तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं।
मोनोसाइट्स, इम्यून सिस्टम के कचरा ट्रक हैं। ब्लड-स्ट्रीम में लगभग 5% से 12% वाइट ब्लड सेल्स मोनोसाइट्स हैं। इनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य शरीर में मृत सेल्स को साफ करना है।
यदि किसी व्यक्ति का शरीर आवश्यकता से अधिक वाइट ब्लड सेल्स का उत्पादन कर रहा है, तो डॉक्टर इसे ल्यूकोसाइटोसिस कहते हैं।
इस स्थिति के कारण, निम्नलिखित चिकित्सीय स्थितियों का संकेत मिल सकता है:
यदि किसी व्यक्ति का शरीर कम वाइट ब्लड सेल्स का उत्पादन कर रहा है, तो डॉक्टर इसे ल्यूकोपेनिया कहते हैं।
ल्यूकोपेनिया पैदा करने वाली स्थितियों में शामिल हैं:
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति का शरीर, बोन मेरो में स्टेम सेल को नष्ट कर देता है।
नए वाइट ब्लड सेल्स, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स बनाने के लिए स्टेम कोशिकाएं जिम्मेदार होते हैं।
ल्यूकेमिया एक प्रकार का कैंसर है जो ब्लड और बोने मेरो को प्रभावित करता है। ल्यूकेमिया तब होता है जब वाइट ब्लड सेल्स की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ती है और संक्रमण से लड़ने में सक्षम नहीं होती हैं।,/p>
यह स्थिति किसी व्यक्ति के शरीर को कुछ प्रकार के ब्लड सेल्स का उत्पादन करने का कारण बनती है। यह एक व्यक्ति के बोन मेरो में निशान का कारण बनता है।
यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है जिसमें शरीर का इम्म्यून सिस्टम रेड और वाइट ब्लड सेल्स के साथ-साथ अन्य स्वस्थ सेल्स को नष्ट कर देता है।
एचआईवी रोग के कारण, सीडी4 टी सेल्स नामक वाइट ब्लड सेल्स की संख्या बहुत कम हो जाती है। जब किसी व्यक्ति की टी सेल्स संख्या 200 से कम हो जाती है, तो डॉक्टर एड्स का निदान कर सकता है।
फिल्ग्रास्टिम इंजेक्शन का उपयोग कैंसर की दवाओं के कारण होने वाले न्यूट्रोपेनिया (कम सफेद रक्त कोशिकाओं) के इलाज के लिए किया जाता है। यह एक पदार्थ का सिंथेटिक (मानव निर्मित) रूप है जो आपके शरीर में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है जिसे कॉलोनी स्टिमुलेटिंग फैक्टर कहा जाता है। फिल्ग्रास्टिम, बोन मेरो को नए वाइट ब्लड सेल्स बनाने में मदद करता है।