डीऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड या डीएनए एक मॉलिक्यूल है, जिसमें एक जीव के विकसित होने, जीवित रहने और अपने परिवार को बढ़ाने के निर्देश होते हैं. यह निर्देश हर सेल्स के अंदर मौजूद होते हैं और माता पिता से उनके बच्चो में पास होते हैं. डीएनए की एक मॉलिक्यूल चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है. हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है. इन चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है. इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शुगर भी पाया जाता है. इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की मॉलिक्यूल जोड़ती है. न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक सेल के लिए जरुरी डीएनए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है.
क्या है डीएनए?
डीएनए एक बहुत ही प्रचलित शब्द है जिससे हर एक पढ़ा लिखा इंसान परिचित होता है. यह जीवन के सारे रहस्यों और तथ्यों को समेटे होता है. डीऑक्सीराइबोज़ शुगर¸; गुआनिन¸ साइटोसिन, फॉस्फेट और एडेनिन¸ एवं थाइमिन जैसे प्युरिन एवं पायरीमिडीन प्रकार के नाइट्रोजन बेसेज़ से निर्मित डीएनए के अणुओं की संरचना दोहरे कुंडलिनी अथार्त् रस्सी से बने घुमावदार सीढ़ी जैसी होती है. यहां एकांतरित रूप से व्यस्थित डीऑक्सीराइबोज़ तथा फॉस्फेट के मॉलिक्यूल इस सीढ़ी की रस्सी का काम करते हैं.
डीएनए संरचना
डीएनए न्यूक्लियोटाइड नामक मॉलिक्यूल से बना है. हर न्यूक्लियोटाइड एक फॉस्फेट ग्रुप, एक शुगर ग्रुप और एक नाइट्रोजन बेस से बने होते हैं.
चार प्रकार के नाइट्रोज बेस इस प्रकार से हैं
सी और टी बसे जिनका एक रिंग होता है जिसे पाइरिमिडीन कहते हैं. वही ए और जी के दो रिंग होते हैं जिसे प्युरिंस बोलते हैं. डीएनए के न्यूक्लियोटाइड एक चेन की तरह स्ट्रक्चर बनाते है जो कोवैलेंट बॉन्ड से जुड़ा होता हैं, ये जुडाव एक न्यूक्लियोटाइड के डिऑक्सिराइबो शुगर और दुसरे न्यूक्लियोटाइड के फॉस्फेट ग्रुप के बीच होता है, यह स्ट्रक्चर एक के बाद दूसरा कर के डिऑक्सिराइबो शुगर और फॉस्फेट ग्रुप का एक चेन बनाते हैं. इस स्ट्रक्चर को शुगर – फॉस्फेट बैकबोन कहते हैं. वाटसन और क्रिक ने एक डीएनए का मॉडल प्रस्तुत किया जिसे हम डबल हेलिक्स कहते हैं क्योंकी इसमें दो लम्बे स्टैंड्स एक घूमी हुए सीढ़ी की तरह की तरह दीखते हैं.
डीएनए के विभिन्न संरचनात्मक पहलू-
समांतर ढंग से व्यस्थित ऐसी दोनों रस्सियों के प्रत्येक डीऑक्सीराइबोज़ के एक अणु जुड़ा होता है. ये अणु रस्सी से अन्दर की ओर उन्मुख होते हैं. इसमें इस तरह की व्यवस्था मौजूद होती है कि एक रस्सी से जुड़े एडेनिन हमेशा दूसरी रस्सी से जुड़े थाइमिन के सामने होते हैं. इसके साथ ही गुआनिन¸ दूसरी रस्सी से जुड़े साइटोसिन के सामने होते हैं. जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डीएनए कहते हैं. इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है. जहां तक बात है डीएनए अणु के संरचना की तो ये एक घुमावदार सीढ़ी की तरह दिखती है.
डीएनए और क्रोमोजोम-
आमतौर पर, डीएनए क्रोमोजोम के रूप में होता है. एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है. जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है. उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है. आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है. वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं.
डीएनए के मॉलिक्यूल की लंबाई निश्चित नहीं होती है मतलब नाइट्रोजन बेस के योग से बनी सीढ़ियों की कुल संख्या डीएनए के अलग–अलग मॉलिक्यूल में अलग–अलग हो सकती है. साथ ही इनकी व्यवस्था भी डीएनए के अलग–अलग मॉलिक्यूल्स में ही नहीं बल्कि एक मॉलिक्यूल के विभिन्न हिस्सों में भी अलग–अलग ढंग से हो सकती है. कितने एडेनिन–थाइमिन से बने डंडों के बाद साइटोसिन–गुआनिन के योग से बने कितने डंडे व्यवस्थित होंगे – यह डीएनए के अलग–अलग अणुओं की ही नहीं¸ अपितु इसके किसी एक अणु के विभिन्न हिस्सों की भी अपनी विशिष्टता होती है. यह विशिष्टता डीएनए के अणु के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से संरचनात्मक रूप से ही नहीं¸ बल्कि कार्य–रूप में भी अलग करती है.
क्या छुपा है डीएनए के एक अणु में?
डीएनए के मॉलिक्यूल का एक हिस्सा इन नाइट्रोजन बेसेज़ की विशिष्ट व्यवस्था के रूप में कूट भाषा में वह रहस्य छिपाए रहता है¸ जिसके बल किसी एक प्रोटीन–विशेष के अणुओं का निर्माण किया जा सकता है तो किसी दूसरे हिस्से से किसी अन्य प्रोटीन–विशेष के मॉलिक्यूल का. डीएनए के जिस हिस्से से एक प्रकार के प्रोटीन का निर्माण संभव है¸ उसे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है तो दूसरे भाग को¸ जिससे किसी अन्य प्रकार के प्रोटीन के मॉलिक्यूल्स का निर्माण संभव है – दूसरे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है. किसी सेल में इतने जीन्स अवश्य होते हैं जिनके द्वारा सेल की संरचना के साथ–साथ जीवन पर्यंत चलने वाली विभिन्न बायो-केमिकल प्रतिक्रियाओं के संचालन में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स के मॉलिक्यूल्स का निर्माण किया जा सके.
Every human being is different and so are their bodies, their genes, their DNA, their choices, metabolism rate, brain and the senses. But, when it comes to losing the extra pounds, we all just run after a standard diet plan and fitness regime, aren’t we? But does that help to lose the required amount of weight and the inches that too within the stipulated amount of time? No! This is because when we follow a standardized diet plan, our body might or might not respond to it.
For example, if our body metabolizes fat or carbohydrate at a faster rate and as per the standardized diet plan, we chuck out the carbs and the fat from our diet, there will be a sudden decrease in the energy level which is obviously not the result you wanted, isn’t it?
But with DNA diet, losing weight has become an easy job. With DNA diets, you don’t need to think about painful surgical body contouring procedures. So, let’s understand a little about DNA Diet.
What is a DNA Diet?
For successful body contouring or weight loss, you need to understand your body requirement first. DNA Diet is a process where the doctors first analyze the daily nutritional requirement of your body. The quantities as well as the ratio in which you need to have nutrients like proteins, vitamins, carbs, etc.
A complete action plan customized for you will be handed over to you. In this action plan, all the details about how much to eat, when to eat and what to eat, will be described. It is like a menu for your daily intake, and it is entirely personalized by your genetics.
What are the constituents of DNA Diet?
The DNA Diets comprises of every detail about your food intake. For example, in your breakfast, which fruit you should eat, how many breads you should have, whether you should eat egg or milk, everything will be mentioned in the plan.
Few things to know before opting for DNA Diet
It is essential to clean up the toxins not only from your body but the surrounding environment too. Cleaning up the toxins will help you to gain the results from DNA diet faster. Try to stick to organic products so that you don’t add up toxins during your DNA diet.
It is imperative to understand your family health history. As DNA diet depends on the genetics you have, few things cannot be altered if you have gained them from the genes.
DNA Diet is the new thing in the world of body contouring and weight loss. It is, of course, a futuristic approach to have a better health and body without going under the knife. If you wish to discuss about any specific problem, you can consult a Cosmetic Physician.
डीएनए की खोज वर्ष 1953 में जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने की थी जिसके लिए उन्हें वर्ष 1962 में नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. डीएनए, दरअसल सभी जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में मौजूद तंतुनुमा अणु के डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल को कहते हैं. डीएनए में ही सभी जीवों के आनुवांशिक गुण मौजूद होते हैं. आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में हमारे शरीर में मौजूद रहने वाला डीएनए सभी जीवित कोशिकाओं के लिए अनिवार्य है. इस लेख के माध्यम से हम डीएनए टेस्ट के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे.
डीएनए टेस्ट क्या है?
डीएनए टेस्ट एक प्रकार का चिकित्सा परिक्षण होता है जो क्रोमोजोम, प्रोटीन या जीन्स में हो रहे परिवर्तन को पता लगाता है. डीएनए टेस्ट का परिणाम एक संदेहास्पद जेनेटिक स्थिति का पता लगाता है या किसी व्यक्ति में जेनेटिक डिसऑर्डर विकसित होने की संभावनाओं को निर्धारित करता है. जेनेटिक काउंसलर रोगी को टेस्ट के फायदे और नुकसान से संबंधित जानकारी देते हैं और टेस्ट के सामाजिक तथा भावनात्मक विषयों पर बात करते हैं. इस समय विज्ञान के पास करीब 1200 प्रकार के डीएनए टेस्ट मौजूद हैं. डीएनए टेस्ट की मदद से अब हम नवजात शिशु में मौजूद किसी भी बीमारी का पता लगा सकते हैं. इस टेस्ट का ज़्यादातर इस्तेमाल किसी भी खानदान का उत्तराधिकारी घोषित करने और कई बार अपराधों को सुलझाने में भी किया जाता है.
डीएनए टेस्ट के विभिन्न इस्तेमाल-
मनुष्य के जींस में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं. ये जिन को आप आनुवांशिक की मूलभूत इकाई है जो कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती है. कहने का अर्थ ये हुआ कि ये एक किताब की तरह है जिसमें आपकी सभी आनुवांशिक जानकारियाँ मौजूद रहती हैं. यही नहीं उन्हें होने वाली बीमारियों का लेखा-जोखा भी इसमें मौजूद होता है. इसलिए ही कहते हैं कि इंसान का डीएनए अमर रहता है यानि उसकी मृत्यु नहीं होती है. आपको बता दें कि यदि किसी के डीएनए में पररिवर्तन पाया जाता है तो उसे हम म्यूटेशन कहते हैं. यह परिवर्तन कोशिकाओं में उपस्थित किसी दोष की वजह से संभव हो पाता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से होता है. इसके अतिरिक्त ये किसी रासायनिक तत्व या किसी विषाणु के वजह से भी हो सकता है. आइए अब हम डीएनए टेस्ट के विभिन्न उपयोगों के बारे में जानें.
नवजात शिशु की जांच के लिए – शिशु के जन्म लेने के तुरंत बाद नवजात शिशु की जांच की जाती है, इसकी मदद से उन आनुवांशिक विकारों का पता लगाया जा सकता है जिनका समय पर इलाज संभव होता है.
नैदानिक टेस्टिंग – किसी विशिष्ट जेनेटिक या क्रोमोजोम संबंधी समस्या को पता करने के लिए क्लिनिकल टेस्टिंग की जाती है. आमतौर पर जब शारीरिक संकेतों और लक्षणों के आधार पर किसी विशेष समस्या स्थिति पर संदेह होता है तो जेनेटिक टेस्टिंग का उपयोग निदान की पुष्टि के लिए किया जाता है.
जन्मपूर्व टेस्टिंग – पैदा होने से पहले भ्रूण के क्रोमोजोम या जीन्स के परिवर्तनों का पता लगाने के लिए प्री-बर्थ टेस्टिंग की जाती है. अगर नवजात में क्रोमोजोम या जेनेटिक संबंधी डिसऑर्डर होने की अधिक जोखिम है तो, इस प्रकार की परिक्षण अक्सर प्रेगनेंसी के दौरान की जाती है.
कैरियर आइडेंटिफिकेशन – अगर आप किसी जेनेटिक डिसऑर्डर से पीड़ित हैं, तो कैरियर आइडेंटिफिकेशन की मदद से इसका पता लगाया जाता है. इसमें यह पता लगाना होता है कि आप वाहक हैं या नहीं, क्योंकि यह जानकारी आपको बच्चे पैदा करने से संबंधित निर्णय लेने में आपकी मदद कर सकता है.
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Our unique DNA structure determines how your body processes carbohydrates, protein and fats and what types of food your body can metabolize easily. Thus, some people can enjoy cheesy pastas without it affecting their weight while others need to avoid it completely.
Unlike generic diets that typically have a 50-50 percent chance of success, a DNA based diet is customized to your body’s requirements and can help you, lose weight/fat, correct your blood parameters, and make your fitter and healthy. In a study involving over 150 obese people, following a diet plan customized to the individual’s DNA structure saw the participants lose 33% more weight than by calorie counting. This type of diet also reduced their BMI and increased their muscle mass.
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डीएनए को डीऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड भी कहा जाता है. यह एक मॉलिक्यूल है जो एक जीवित कोशिकाओं के क्रोमोजोम में पाए जाते है. डीएनए मॉलिक्यूल की रचना एक घुमावदार सीढियों के अनुरूप होती है. डीएनए में जेनेटिक गुण होते है जो एक जीवित प्राणी के विकास, प्रजनन वृद्धि और कार्य के लिए निर्देश होते है. यह आपके वंसज को बढाता है. यह निर्देश हर कोशिकाओ के अंदर पाए जाते हैं और माता पिता से उनके बच्चो में चले आते हैं. डीएनए की एक मॉलिक्यूल चार अलग-अलग तत्वों से बना है जो न्यूक्लियोटाइड का एक डबल स्ट्रैंन्डस पॉलीमर होता है. हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है. यह चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है. इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शक्कर भी पाया जाता है. इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की अणु जोड़ती है. न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक कोशिका के लिए अवश्य प्रोटीनों की निर्माण होता है. अतः डीएनए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है.
डीएनए संरचना-
डीएनए न्यूक्लियोटाइड नामक अणुओं से बना है. प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड एक फॉस्फेट ग्रुप, एक शुगर ग्रुप और एक नाइट्रोजन बेस से बने होते हैं.
चार प्रकार के नाइट्रोज बेस इस प्रकार से हैं-
सी और टी बसेस जिनका एक रिंग होता है उसे पाइरिमिडीन बोलते हैं. वही ए और जी के दो रिंग होते हैं जिसे प्युरिंस बोलते हैं. डीएनए के न्यूक्लियोटाइड एक चेन की तरह संरचना बनाते है जो कोवैलेंट बॉन्ड से जुड़ा होता हैं, ये जुडाव एक न्यूक्लियोटाइड के डिऑक्सिराइबो शुगर और दुसरे न्यूक्लियोटाइड के फॉस्फेट ग्रुप के बिच होता है यह संरचना एक के बाद दूसरा कर के डिऑक्सिराइबो शुगर और फॉस्फेट ग्रुप का एक चेन बनाते हैं. इस संरचना को शुगर – फॉस्फेट बैकबोन कहते हैं. वाटसन और क्रिक ने एक डीएनए का मॉडल प्रस्तुत किया जिसे हम डबल हेलिक्स कहते हैं क्यों की इसमें दो लम्बे स्टैंड्स एक घूमी हुए सीढ़ी की तरह की तरह दीखते हैं.
क्या है डीएनए ?
आज के समय में शायद ही ऐसा कोई पढ़ा लिखा इंसान हो जिसने डीएनए के बारे में ना सुना हो, हमारे जीवन के सारे रहस्यों अथवा जटिलता इस डीएनए के अंदर निहित है. डीऑक्सीराइबोज़ शुगर¸; गुआनिन¸ साइटोसिन, फॉस्फेट तथा एडेनिन¸ एवं थाइमिन जैसे प्युरिन एवं पायरीमिडीन प्रकार के नाइट्रोजन बेसेज़ से निर्मित डीएनए के अणुओं की संरचना दोहरे कुंडलिनी अथार्त् रस्सी से बने घुमावदार सीढ़ी जैसी होती है. यहां एकांतरित रूप से व्यस्थित डीऑक्सीराइबोज़ तथा फॉस्फेट के अणु इस सीढ़ी की रस्सी का काम करते हैं.
डीएनए के विभिन्न संरचनात्मक पहलू-
समांतर ढंग से व्यस्थित ऐसी दोनों रस्सियों के प्रत्येक डीऑक्सीराइबोज़ के एक अणु जुड़ा होता है. ये अणु रस्सी से अन्दर की ओर उन्मुख होते हैं. इसमें इस तरह की व्यवस्था मौजूद होती है कि एक रस्सी से जुड़े एडेनिन हमेशा दूसरी रस्सी से जुड़े थाइमिन के सामने होते हैं. इसके साथ ही गुआनिन¸ दूसरी रस्सी से जुड़े साइटोसिन के सामने होते हैं. जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डीएनए कहते हैं. इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है. जहां तक बात है डीएनए अणु के संरचना की तो ये एक घुमावदार सीढ़ी की तरह दिखती है.
डीएनए और क्रोमोसोम-
डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है. एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है. जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है. उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है. आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है. वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं.
इन डंडों के बीच की दूरी 0.34 नैनो मीटर एवं डीआक्सीराइबोज़ तथा फॉस्फेट से बनी दोनों रस्सियों के बीच की दूरी 2 नैनो मीटर होती है. इन रस्सियों का घुमाव प्रत्येक 34 नैनो मीटर के बाद आता है अथार्त् किन्ही भी दो घुमाओं के बीच एडेनिन–थाइमिन अथवा साइटोसिन–गुआनिन के योग से बने दस डंडे होते हैं. डीएनए के अणु कितने सूक्ष्म होते हैं¸ इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मीटर का अरबवां हिस्सा एक नैनो मीटर कहलाता है.
हां¸ बस डीएनए के अणु की लंबाई निश्चित नहीं होती अथार्त् नाइट्रोजन बेस के योग से बनी सीढ़ियों की कुल संख्या डीएनए के अलग–अलग अणुओं में अलग–अलग हो सकती है. साथ ही इनकी व्यवस्था भी डीएनए के अलग–अलग अणुओं में ही नहीं बल्कि एक अणु के विभिन्न हिस्सों में भी अलग–अलग ढंग से हो सकती है.कितने एडेनिन–थाइमिन से बने डंडों के बाद साइटोसिन–गुआनिन के योग से बने कितने डंडे व्यवस्थित होंगे – यह डीएनए के अलग–अलग अणुओं की ही नहीं¸ अपितु इसके किसी एक अणु के विभिन्न हिस्सों की भी अपनी विशिष्टता होती है. यह विशिष्टता डीएनए के अणु के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से संरचनात्मक रूप से ही नहीं¸ बल्कि कार्य–रूप में भी अलग करती है.
क्या छुपा है डीएनए के एक अणु में?
डीएनए के अणु का एक हिस्सा इन नाइट्रोजन बेसेज़ की विशिष्ट व्यवस्था के रूप में कूट भाषा में वह रहस्य छिपाए रहता है¸ जिसके बल किसी एक प्रोटीन–विशेष के अणुओं का निर्माण किया जा सकता है तो किसी दूसरे हिस्से से किसी अन्य प्रोटीन–विशेष के अणुओं का. डीएनए के जिस हिस्से से एक प्रकार के प्रोटीन का निर्माण संभव है¸ उसे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है तो दूसरे भाग को¸ जिससे किसी अन्य प्रकार के प्रोटीन के अणुओं का निर्माण संभव है – दूसरे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है. किसी कोशिका में इतने जीन्स अवश्य होते हैं जिनके द्वारा कोशिका की संरचना के साथ–साथ जीवन पर्यंत चलने वाली विभिन्न जैव–रासायनिक प्रतिक्रियाओं के संचालन में प्रयुक्त होने वाले नाना प्रकार के प्रोटीन्स के अणुओं का निर्माण किया जा सके.
Isn’t it frustrating when you and a friend decide to follow a diet plan and exercise regimen only to see that you don’t lose as much weight as your friend? This is most probably due to you and your friend’s different DNA structure. Just as people put on weight in different ways, people also lose weight in different ways. Your DNA not only determines our height and the color of your eyes, but also the diet and workouts/sports best suited to you. Your DNA can also guide you to know your risk score toward lifestyle diseases such as obesity, hypertension, diabetes and heart disease.
Our unique DNA structure determines how your body processes carbohydrates, protein and fats and what types of food your body can metabolize easily. Thus, some people can enjoy cheesy pastas without it affecting their weight while others need to avoid it completely.
Unlike generic diets that typically have a 50-50 percent chance of success, a DNA based diet is customized to your body’s requirements and can help you, lose weight/fat, correct your blood parameters, and make your fitter and healthy. In a study involving over 150 obese people, following a diet plan customized to the individual’s DNA structure saw the participants lose 33% more weight than by calorie counting. This type of diet also reduced their BMI and increased their muscle mass.
Getting started with this diet is easy.
So, don’t give up on losing weight, or correcting your blood parameters, or building your fitness level, just yet. Listen to what your genes are telling you and find an easy way to fit into your old jeans. If you wish to discuss about any specific problem, you can consult a Dietitian/Nutritionist.
जेनोटिक टेस्टिंग एक प्रकार का मेडिकल टेस्ट होता है जिसमें जैव, क्रोमोसोम्स और प्रोटीन की पहचान की जाती है. इस टेस्ट के माध्यम से यह पताया लगाया जा सकता है क्या कोई व्यक्ति किसी ऐसी स्थिति जैसे हेल्थ प्रॉब्लम से ग्रस्त है, जिससे उसकी आने वाली पीढ़ियों निकट भविष्य में ग्रस्त हो सकती है. इसके अलावा, इससे जीन की जांच भी होती है जो हमारे माता-पिता से मिलते है. यह टेस्ट उचित इलाज का चयन करने और यह जानने में मदद करता है कि संबंधित समस्या उपचार के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दे सकती है. आइए इस लेख के माध्यम से हम डीएनए टेस्ट कैसे होता है ये जानें ताकि इस विषय में हमारी जागरूकता बढ़ सके.
डीएनए टेस्ट कैसे होता है?
डीएनए टेस्ट के लिए आपके शरीर से कुछ सैंपल लिया जाता है. इसमें आपके खून, उल्ब तरल, बाल या त्वचा आदि लिया जा सकता है. आपको बता दें कि उल्ब तरल या एम्नियोटिक फ्लूइड गर्भावस्था में भ्रूण के चारों ओर मौजूद तरल को कहते हैं. इसके अतिरिक्त आप डीएनए टेस्ट कराने वाले व्यक्ति के गालों के अंदरूनी भाग से भी सैंपल लिए जा सकते हैं. इन नमूनों के जाँच के लिए जगह-जगह पर मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएँ बनाईं गईं हैं. इन प्रयोगशालाओं में आप एक निश्चित रकम जो कि 10 से 40 हजार के बीच हो सकती है, चुका कर डीएनए टेस्ट करवा सकते हैं. जाँच की रिपोर्ट आपको 15 दिनों के अंदर मिल सकती है.
डीएनए टेस्ट कब करवाना चाहिए?
अगर आप या आपके परिवार का कोई सदस्य उम्र के एक पड़ाव पर आकार एक जैसे तरीके के रोगों से ग्रस्त हो जाते है तो आप डीएनए टेस्ट करवा सकते है. हम में से बहुत से लोगों को पता नही होता है कि उन्हें कौनसा वंशानुगत रोग है, ऐसे में डीएनए टेस्ट करवाया जा सकता है. जिन महिलाओं को गर्भपात हुआ है, उन्हें इस टेस्ट को करवाना चाहिए.
डीएनए टेस्ट किसलिए किया जाता है?
जेनेटिक टेस्ट की कई वजह हो सकती है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हो सकती हैं –
1. जन्म लेने से पहले शिशु में जेनेटिक संबंधी रोगों की जांच तलाश करने के लिए.
2. अगर किसी व्यक्ति के जीन में कोई रोग है और जो उसके बच्चों में फैल सकता है, तो डीएनए टेस्ट द्वारा इसकी जांच की जाती है.
भ्रूण में रोग की जांच करना.
व्यस्कों में रोग लक्षणों के विकसित होने से पहले ही जेनेटिक संबंधी रोगों की जांच करने के लिए.
जिन लोगों में रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, उनके टेस्ट करने के लिए. इससे किसी व्यक्ति के लिए सबसे बेहतर दवा और उसकी खुराक का पता लगाने में भी मदद मिलती है.
हर व्यक्ति में टेस्ट करवाने के और टेस्ट ना करवाने की कई अलग-अलग वजहें हो सकती हैं. कुछ लोगों के लिए यह जानना बहुत जरूरी होता है कि अगर उनमें टेस्ट का रिजल्ट पोजिटिव आता है तो क्या उस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है या इसका इलाज किया जा सकता है. कुछ मामलों में ईलाज संभव नहीं हो पाता, लेकिन टेस्ट की मदद से व्यक्ति अपने जीवन के कई जरूरी फैसले कर पाता है, जैसे परिवार नियोजन या बीमाकृत राशि आदि. एक आनुवंशिक परामर्शदाता आपको टेस्ट के फायदे व नुकसान से संबंधित सभी जानकारियां दे सकता है.
Cancer is a disease characterized by abnormal multiplication of cells in a particular part of the body. After starting in one body part, cancer cells spread to other body parts and lead to the formation of tumours (metastases) in other parts of the body. Throat cancer refers to the development of tumours in the different parts of the throat. Various parts of the throat include oropharynx (tonsil, soft palate, base of tongue), nasopharynx (part behind the nose), hypopharynx and larynx (voice box). Throat cancers are a common type of cancer in India. The most common causes of throat cancer are -
The risk of throat cancer can be reduced by avoided tobacco and alcohol. HPV infection can be avoided through safe sexual practices. These practices can prevent large majority of throat cancers. Other that prevention, timely testing for early diagnosis and immediate treatment when cancer is diagnosed will lead to successful outcomes.
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