भारत में तम्बाकू और गुटखे की लत काफी अधिक लोगो में पाई जाती है। शौक में खाने से शुरु होने वाली ये आदत कब लत में बदल जाती है इसका सेवन करने वाला समझ ही नहीं पाता। ये जानते हुए भी कि गुटखा सेहत के लिए बहुत हानिकारक है लोग इस लत को छोड़ नहीं पाते। गुटखा छोड़ने के लिए सबसे अधिक जिस चीज़ की ज़रूरत होती है वो है इच्छाशक्ति। इसलिए अगर आपने भी गुटखा और तम्बाकू छोड़ने का मन बना लिया है तो जानिए आप इस पर अमल कैसे कर सकते हैं।
कई बार गुटखा खाने वाले खुद की तुलना शराब का सेवन करने वालों से करते हैं। पर सच्चाई ये है कि शराब का कम मात्रा में सेवन करने से शरीर को कोई गम्भीर नुक्सान नहीं होता। पर गुटखा स्वास्थ्य को कई बड़ी बीमारियां दे सकता है। यहां तक कि ये लोगों की जान तक ले सकता है। आइए जानते हैं क्या है गुटखा खाने के नुकसान और कैसे आप इस नशे को बाय-बाय कर सकते हैं।
हम में से अधिकतर लोग ये समझते हैं कि फेफड़ों को नुक्सान केवल धूम्रपान से पहुंचता है ।पर गुटखा भी आपके फेफड़ों के लिए खतरनाक हो सकता है।जानकार मानतें हैं कि लम्बे समय तक गुटखे का सेवन करते रहने से फेफड़े कमज़ोर हो सकते हैं औऱ धीरे धीरे गलने की कगार पर आ जाते हैं। ये समस्या गम्भीर रूप लेकर कैंसर में भी बदल सकती है।
वैसे तो लिवर कैंसर के बहुत से कारण हो सकते हैं। कोई भी नशे की लत आपके लिवर को क्षति पहंचा सकता है ।पर गुटखा खाने वालों को ये समझने की आवश्यकता है कि गुटखा भी उन्हें लिवर कैंसर की तरफ धकेल सकता है। लगातार गुटखे का सेवन करने से उनके लिवर में संक्रमण हो सकता है जो बाद में कैंसर में तब्दील हो सकता है।
गुटखे का सेवन करने से पुरुषों में नपुंसकता का खतरा बढ़ा जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकतर पुरुषों में ये इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का कारण बन सकता है। लम्बे समय तक गुटखा खाने वालें पुरुषों में कामेच्छा में कमी आ सकती है और उनके स्पर्म की गुणवत्ता पर भी खराब प्रभाव पड़ सकता है।इरेक्टाइल डिस्फंक्शन पुरुषों के आत्मविश्वास पर गहरा आघात पहुंचा सकता है।साथ ही उनकी शादीशुदा ज़िंदगी पर भी खराब असर डाल सकता है।
गुटखा खाने वालों में सबसे अधिक होने वाली बीमारी मुंह का कैंसर है। लगातार गुटखा खाते रहने से गाल के अंदर या जीभ पर घाव बन जाते हैं जो कैंसर का रूप ले लेते हैं। इस प्रकार का कैंसर भारत में गुटखे के कारण होने वाली सबसे अधिक मौतों का कारण बनता है।कैंसर के कारण खाने पीने और यहां तक कि रोगी के बोलने की क्षमता तक खत्म हो जाती है।
लगातार गुटखा खाने से आपके दांत भी खराब हो जाते हैं। दांतों पर गुटखे में मिलाए जाने वाले केमिकल का रंग चढ़ जाता है। इसके अलावा दांतों की जड़े ढीली पड़ जाती है। इतना ही नहीं बिना ज़रूरत गुटखे जैसी कठोर चीज़ चबाने से आपके दांत घिस जाते हैं औऱ अंदर से खोखले हो सकते हैं।
वर्तमान समय में लोग तेज़ी से फास्ट फूड की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। स्थिति ये है कि जो फास्ट फूड 90 के दशक में भारत में बस आया ही था वो आज हर गली नुक्कड़ का हिस्सा बन चुका है। कहीं भी नज़र डालें फास्ट फूड के ठेलों और दुकानों की कतारें नज़ार आएंगी। इतना ही नहीं इन सभी दुकानों में भीड़ की कोई कमी नहीं होती।
सप्ताह के हर दिन यहां उतने ही ग्राहक उमड़ते देखे जा सकते हैं जितने की वीकेंड पर। हालांकि फास्ट फूड स्वाद से भरपूर होता है पर इसके खाने से होने वाले नुक्सान की लिस्ट हर कोई गिना सकता है। कभी-कभी फास्ट फूड खाने से आपके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन जहां आप लगातार बर्गर और फ्राइज़ खाने लगते हैं, वहां समस्या बढ़ जाती है।
जो लोग नियमित रूप से फास्ट फूड खाते हैं, वे अक्सर सिरदर्द से पीड़ित होते हैं, दांतों में तकलीफ का अनुभव करते हैं, उनका वजन बढ़ जाता है और बीपी और कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी बढ़ जाता है। पर ऐसा नहीं है कि फास्ट फूड आफको सिर्फ नुक्सान ही पहुंचा सकता है। इसके कुछ लाभ भी हैं।
हालांकि इन दिनों लोग इंटरमिटेंट फास्टिंग के ज़रिए वज़न कम करने की कोशिश कर रहे हैं पर और यह एक लोकप्रिय तरीका बन गया है। पर ज़रूरी नहीं कि आप भी इस रेस में शामिल हों। कई बार ये तरीका आपको सूट नहीं करता है। ऐसा भी हो सकता है कि आपको वज़न घटाने की ज़रूरत ही ना हो। ऐसे में खाना स्किप कर देना एक अस्वस्थ आदत मानी जाती है। जानकार मानते हैं कि वजन कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने द्वारा उपभोग की जाने वाली कैलोरी की संख्या को कम करें। इसके साथ ही व्यायाम के माध्यम से अतिरिक्त कैलोरी को जलाएँ। भोजन छोड़ना इसका विकल्प नहीं हो सकता क्योंकि इससे आपको थकान हो सकती है। साथ ही आप कुछ आवश्यक पोषक तत्वों को खो देते हैं। इसलिए आप फास्ट फूड खाएं पर कोशिश करें कि एक स्वस्थ फास्ट फूड का चयन करें। स्वस्थ फास्ट फूड से मतलब है कि ऐसा भोजन जिसमें तेल मसालों का प्रयोग कम किया जाता हो।
जानकार मानते हैं कि एक औसत परिवार जिसमें पति पत्नी दोनों ही काम पर जाते हैं वो सिर्फ घर के काम काज औऱ दिन भर की गतिविधियों को प्रबंधित करने में लगभग दो घंटे बिता रहा है। इसका मतलब है कि घर पर खाना बनाने के लिए बहुत कम समय हो सकता है। चूंकि फ़ास्ट फ़ूड उद्योग लगभग हर जगह उपलब्ध है, इसलिए आप अपने शेड्यूल को प्रबंधित करने के साथ ही आसानी से भोजन का इंतेज़ाम भी कर सकते हैं। यदि आप घर पर लंच या डिनर बनाने की कोशिश करते हैं तो ज्यादा समय लगता है।पर फास्ट फूड को चुनने में 50% कम समय लगता है। आज की भागती दौड़ती ज़िंदगी में जितना समय भी बच सके वो आप खुद के आराम औऱ परिवार के साथ बिताकर उसका उपयोग कर सकते हैं।
फास्ट फूड आइटम अनी कम कीमतों की वजह से भी काफी लोकप्रिय हैं। आप अपने बजट के हिसाब से फास्ट फूड का चयन कर सकते हैं। ये उन लोगों के लिए आसान विकल्प है जिनके पास खाना पकाने का विकल्प मौजूद नहीं है या फिर सीमित संसाधनों में उन्हें अपना पेट भी भरना है। हालाँकि आप हर दिन तीन फास्ट फूड खाना नहीं खाना चाहेंगे, लेकिन कम दामों में मिलने वाला ये भोजन ना सिर्फ पेट भर शरीर की ज़रूरत के हिसाब से ऊर्जा पैदा करने के लिए काफी होता है। यदि आप खाने के लिए जैविक और ताजा उपजे उत्पादों को तरजीह देते हैं तो उसके लिए आपको काफी अधिक कीमत भी चुकानी पड़ती है।एक कम आमदनी वाले परिवार के लिए बाहर खाना वास्तव में सबसे सस्ता विकल्प हो सकता है।
जब आप घर में खाना बनाते हैं तो कई बार खाना अच्छा बनता है पर कई बार खराब भी बन जाता है। पर जब आप फास्ट फूड आर्डर करते हैं तो आप हर बार अच्छे खाने की उम्मीद कर सकते हैं। आजकल हर जगह कई अंतर्राष्ट्रीय श्रृंखलाएं भी मौजूद हैं जो कम दामों में अच्छा औऱ आपकी पसंद का खाना परोसती हैं। खाने कते स्वपाद के साथ आपको उत्कृष्ट सेवा भी प्रदान की जाती है जैसे खाना समय से पहुंचे और आपको मिलने तक उसकी गर्माहट बनी रहे।
हालांकि ये माना जाता है कि फास्ट फूड में कैलोरी बहुत अधिक होती हैं।पर सच्चाई ये भी है कि अगर आप किसी वेश्विक रेस्तरां से खाना मंगवाते हैं तो वे खऱाने में मौजूद कैलोरी की गणना प्रदान करते हैं ताकि आप अपने खाने के बारे में एक स्मार्ट निर्णय ले सकें। पोषण संबंधी जानकारी की पूरी खाने के पैकेट पर उपलब्ध कराई जाती है। यही नहीं ये जानकारी आपको उनकी वेबसाइट पर ऑनलाइन भी मिल जाएगी। इसका मतलब है कि फास्ट फूड उद्योग से ऑर्डर करने के लिए आप क्या चुनते हैं, इसके बारे में एक अच्छा विकल्प चुनने के लिए आपके पास जानकारी मौजूद होती है।
यदि आप फास्ट फूड को चुनते हैं तो ज़रूरी नहीं कि आप अधिक कैलोरी का सेवन कर रहे हों। ऐसे कई रेस्तरां हैं जो आपको मेनू पर स्वस्थ विकल्प प्रदान करते हैं ताकि आप अपने स्वास्थ्य के हिसाब से विकल्प चुन सकें।रेस्तरां आपको मैदे की जगह आटे की ब्रेड या बन का विकल्प देते हैं। इतना ही नहीं कई बार तो मैदे की जगह मल्टीग्रेन औऱ अलसी जैसे विकल्प तक मौजूद होते हैं जो आपके खाने के स्वस्थ बनाते हैं। आपकी ज़रूरत के हिसाब से वसा में कमी भी जा सकती है। आप वसा की जगह अधिक सब्ज़िया जैसे गोभी, गाजर,सलाद के पत्ते आदि को चुन सकते हैं। ऐसे में आप अपने शरीर की आवश्यकता के हिसाब से खाना चुनिकर फास्ट फूड को भी हेल्दी बना सकते हैं।
फास्ट फूड में स्वस्थ कल्प भी मौजूद होते हैं। ऐसी कॉम्बो मील के विकल्प मौजूद होते हैं जो आपको कम खर्च में सम्पूर्ण भोजन मुहैया करा सकते हैं। यदि आप कुछ समय पहले से अपने ऑर्डर की योजना बनाते हैं तो आप ऐसे स्मार्ट विकल्प चुन सकते हैं जो बहुत किफायती हों औऱ जिनमें उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ शामिल हों। सैंडविच ऑर्डर करते समय मेयोनीज़ को हटाने का अनुरोध करें या फिर प्रोसेस्ड चीज़ की जगह पनीर के इस्तेमाल पर ज़ोर दें।एक कॉम्बों मील चुनने पर एक हेल्दी सैंडविच एक साइड विकल्प औऱ एक हेल्दी ड्रिंक मंगा सकते हैं।
जब हम फास्ट फूड विकल्पों के बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो आम तौर पर बर्गर, सैंडविच ,पिज़्जा या चाउमिन जैसी चीज़ें ही दिमाग में आती है। पर संस्कृति ,हर देश में फास्ट फूड के अपने विकल्प होते हैं। यदि आप इन खानों के अलावा ऐसे विकल्प तलाशें जो दूसरे देशों और समुदायों से आपको रूबरू करा सकते हैं तो इससे बेहतर क्या होगा। किसी देश का सूप आपको अच्छा लग सकता है तो कहीं का डेज़र्ट।आप कम दामों में कभी चाइनीज़ तो कभी मैक्सिकन और भी इटैलियन व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं।
इतालवी आइटम नियमित रूप से उसी गति से उपलब्ध होते हैं जैसे बर्गर जॉइंट ऑफर करता है।
हमने आपको फास्ट फूड से होने वाले कई फायदों की जानकारी दी पर इनसे होने वाले नुकसान से भी इंकार नहीं किया जा सकता। अधिक तैलीय फास्ट फूड खाने से आपका कोलेस्ट्राल बढ़ सकता है जो हाई बीपी औऱ हृदय रोग का कारण बन सकता है।इसके अलावा अधिक मसालों औऱ मैदे के इस्तेमाल के कारण फास्ट फूड कई बार आपके पाचन के लिए समस्या खड़ी कर देता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। ऐसे में ये शरीर में शुगर लेवल को भी बढ़ा सकता है। लगातार फास्ट फूड खाने से आप अधिक कैलोरी का सेवन कर सकते हैं जो मोटापे का कारण बन सकता है।
ऐसे में फास्ट फूड खाने वालों को यही सलाह दी जाती है कि वो अपने विवेक का इस्तेमाल कर खाने का चुनाव करें। अगर आपको किसी तरह कि परेशानी का अनुभव होता है तो चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम (आईबीएस) एक आम विकार है जो बड़ी आंत को प्रभावित करता है। यह एक प्रकार का कार्यात्मक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) विकार है। यह आपकी आंत और मस्तिष्क के एक साथ काम करने की समस्याओं से संबंधित है।इन समस्याओं के कारण आपका पाचन तंत्र बहुत संवेदनशील हो जाता है। इसमें आपकी आंत की मांसपेशियां के सिकुड़ने में बदलाव आ जाता है ।जिससे व्यक्ति के पेट में दर्द,ऐंठन, सूजन, गैस और दस्त या कब्ज हो सकते हैं। अगर आपको लम्बे समय से आईबीएस है तो आपको हमेशा इसे प्रबंधित करने की आवश्यकता होगी।
आईबीएस से पीड़ित कुछ ही लोगों में गंभीर लक्षण होते हैं। कुछ लोग आहार, जीवन शैली और तनाव को प्रबंधित करके अपने लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। अधिक गंभीर लक्षणों का इलाज दवा और परामर्श से किया जा सकता है।
विशेषज्ञ आपके मल त्याग की समस्याओं के प्रकार के आधार पर आईबीएस को वर्गीकृत करते हैं। आपको किस प्रकार का आईबीएस है उसी के अनुसार आपका उपचार किया जा सकता है। अक्सर, आईबीएस से पीडत लोगों में कुछ दिनों में सामान्य मल त्याग होता है और अन्य दिनों में असामान्य होता है। लक्षणों के आधार पर इसे तीन वर्गों में बांटा गया है-
आंतों की दीवारें मांसपेशियों की परतों के साथ पंक्तिबद्ध होती हैं जो सिकुड़ती हैं क्योंकि वे आपके पाचन तंत्र के माध्यम से भोजन को स्थानांतरित करती हैं। संकुचन जो मजबूत होते हैं और सामान्य से अधिक समय तक चलते हैं, वे गैस, सूजन और दस्त का कारण बन सकते हैं। कमजोर आंतों का संकुचन भोजन के मार्ग को धीमा कर सकते हैं और कठोर, शुष्क मल का कारण बन सकता है।
जब आपका पेट गैस या मल से फैलता है तो आपके पाचन तंत्र की नसों में असामान्यताएं आपको अधिक परेशानी का अनुभव करा सकती हैं। मस्तिष्क और आंतों के बीच खराब समन्वयित संकेत आपके शरीर की पाचन प्रक्रिया में सामान्य रूप से होने वाले परिवर्तनों पर अधिक प्रतिक्रिया दे सकते हैं।इसके परिणामस्वरूप दर्द, दस्त या कब्ज हो सकता है।
आईबीएस बैक्टीरिया या वायरस के कारण होने वाले दस्त (गैस्ट्रोएंटेराइटिस) के गंभीर हमले के बाद विकसित हो सकता है। आईबीएस आंतों में अत्यधिक बैक्टीरिया के कारण भी हो सकता है।
तनावपूर्ण घटनाओं के संपर्क में आने वाले लोगों में, विशेष रूप से बचपन में आईबीएस के अधिक लक्षण होते हैं।
आपकी आंतों में मौजूद बैक्टीरिया, कवक और वायरस में परिवर्तन के कराण भी आपको आईबीएस हो सकता है।ऐसे बैक्टीरिया जो आम तौर पर आंतों में रहते हैं और स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं उनमें बदलाव के चलते ये समस्या उत्पन्न होती है। माना जाता है कि आईबीएस वाले लोगों में रोगाणु स्वस्थ लोगों से भिन्न हो सकते हैं।
यह स्थिति अक्सर लोगों में उनकी किशोरावस्था के अंत से लेकर 40 के दशक की शुरुआत तक होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को आईबीएस होने की संभावना दोगुनी हो सकती है। आईबीएस एक ही परिवार के कई सदस्यों को हो सकता है।
इसका कोई विशिष्ट उपचार नहीं है लेकिन आईबीएस से पीड़ित लोग इसका प्रबंधन कर के सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। उपचार के विकल्पों में आहार और जीवन शैली में परिवर्तन शामिल हैं।
एक आहार विशेषज्ञ आपको ऐसा आहार बनाने में मदद कर सकता है जो आपके जीवन के अनुकूल हो। अपने आहार में फाइबर बढ़ाएं। अधिक फल, सब्जियां, अनाज और नट्स खाएं। आहार में पूरक फाइबर शामिल करें। भरपूर पानी पिएं। दिन में करीब 4 लिटर पानी पीने से आपको लक्षणों में राहत मिल सकती है। कैफीन वाले पदार्थों जैसे कॉफी, चॉकलेट, चाय और सोडा से बचें। पनीर और दूध के उत्पादों को सीमित करें। आईबीएस वाले लोगों में लैक्टोज असहिष्णुता अधिक आम है। इसलिए दूध के बजाय अन्य स्रोतों से कैल्शियम प्राप्त करना सुनिश्चित करें, जैसे ब्रोकली, पालक, सैल्मन या सप्लीमेंट्स।
अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने के लिए खुद को सक्रिय रखें।नियमित रूप से व्यायाम करना सुनिश्चित करें। धूम्रपान आपके लिए हानिकारक है, इसे न करें।योग के ज़रिए विश्राम तकनीकों का अभ्यास करें। खाली पेट ना रहें। हर दो घंटे पर कुछ खाते रहें जिससे पेट खाली न रहे। अपने खाने में शामिल खाद्य पदार्थों को रिकॉर्ड करें ताकि आप यह पता लगा सकें कि कौन से खाद्य पदार्थ आईबीएस के लक्षण बढ़ा रहे हैं। लाल मिर्च, हरी प्याज, रेड वाइन, गेहूं और गाय का दूध आमतौर पर आईबाएस को ट्रिगर करता है।
आईबीएस की कोई सटीक चिकित्सा नहीं है। चिकित्सक आपको इसके लक्षणों को नियंत्रित करने की दवाएं ही दे सकते हैं।जैसे दस्त, कब्ज या पेट दर्द में मदद करने वाली दवाओं की सलाह ही रोगी को दी जाती है। इसके अलावा प्रोबायोटिक्स आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। ये आपके शरीर में अच्छे बैक्टीरिया पहुंचाता है जिससे आपको आराम महसूस हो सकता है।
डॉक्टर से कब मिलें अगर आपको आईईबीएस के गंभीर लक्षण नज़र आएं तो चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है।कई बार बिगड़ते लक्षण अधिक गंभीर स्थिति का संकेत दे सकते हैं।ये कोलन कैंसर की तरफ इशारा कर सकते हैं। अधिक गंभीर संकेतों और लक्षणों में शामिल हैं:
आईबीएस का कोई इलाज नहीं है।इसलिए ये आपके जीवन भर आपके साथ रहेगा। लेकिन यह आपके जीवनकाल को छोटा नहीं करता है और इसके इलाज के लिए आपको सर्जरी की आवश्यकता नहीं होगी। अपना जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों, दवाओं और तनावपूर्ण स्थितियों सहित अपने ट्रिगर्स को पहचानने और उनसे बचने का प्रयास करें। एक आहार विशेषज्ञ आपकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार पौष्टिक आहार की योजना बनाने में आपकी सहायता कर सकता है। यदि लक्षणों में सुधार नहीं होता है तो अपने चिकित्सक से बात करें औऱ इसका समाधान करें।।
मवेशियों मे होने वाला लंपी स्किन डिजीज जिसे लंपी रोग या लंपी त्वचा रोग भी कहा जाता है। यह रोग मवेशियों का एक वायरल संक्रमण है। मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है, यह मध्य पूर्व, एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों में भी फैल गया है। रोग के लक्षणों की बात करें तो मवेशियों में बुखार, लैक्रिमेशन, हाइपरसैलिवेशन और विशिष्ट त्वचा का फटना शामिल हैं। क्लीनिकल हिस्टोपैथोलॉजी, वायरस अलगाव, या पीसीआर द्वारा इसका पता लगाया जाता है। एटेन्यूएटेड टीके प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
लंपी त्वचा रोग भारत में पहली बार 2019 में ओडिशा से रिपोर्ट किया गया था। हालांकि, वर्तमान में गुजरात और राजस्थान समेत की राज्यों में मवेशी इसकी चपेट में हैं। मवेशियों के बीच संक्रामक लंपी त्वचा रोग (एलएसडी) का प्रसार अधिक से अधिक क्षेत्रों से प्रभावित हो रहा है, जो अब तक भारत के छह राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में 5,000 से अधिक मवेशियों की जान ले चुका है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों से भी हजारों मवेशियों में संक्रमण के मामले सामने आए हैं। 15% तक की मृत्यु दर के साथ वर्तमान प्रकोप काफी व्यापक और घातक है, विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान सहित देश के पश्चिमी हिस्सों में इसका प्रभाव काफी ज्यादा है।
समय के बीतने के साथ देश में इसके और ज्यादा फैलने की आशंका जताई गई है क्योंकि वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण के प्रयास अभी उतने तेज नहीं हो सके हैं। इस सबके बावजूद माना जा रहा है सरकार मवेशियों की सेहत लेकर जिस तरह गंभीर है उससे जल्द ही भारत में बने टीके को बाजार में पूरी तेजी से उतारा जा सकता है।
लंपी त्वचा रोग मवेशियों की एक संक्रामक, विस्फोटक बीमारी है जो कभी-कभी घातक रुप ले लेती है। इस बीमारी में त्वचा और शरीर के अन्य भागों पर गांठों का होना ही इसक सबके बड़ा लक्षण है। जीवाणु संक्रमण की सेकेंडरी स्टेज अक्सर स्थिति को और ज्याद गंभीर बना देते हैं। इस बीमारी का कारक वायरस चेचक से संबंधित है। लंपी त्वचा रोग छिटपुट रूप में पाया जाता है पर ये महामारी का रूप भी अकसर ले लेता है। अकसर, संक्रमण के नए केंद्र प्रारंभिक प्रकोप से दूर क्षेत्रों में दिखाई देते हैं। यह बीमारी सबसे ज्यादा अधिक गर्मी और नमी वाले मौसम में होती है, लेकिन यह सर्दियों में नहीं होती ऐसा नहीं है। ये बीमारी सर्दियों में भी हो सकती है। मवेशियों में रोग की विशेषता त्वचा की गांठों के विकास से पहचानी जाती है। ये बीमारी बुखार, लिम्फ नोड्स के बढ़ने और अवसाद से जुड़ी होती है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः दूध की उपज कम हो जाती है, गर्भवती जानवरों में गर्भपात और सांडों में बाँझपन होता है।
संक्रमित मवेशियों में बुखार के अलाव कई लक्षण होते हैं जैसे लैक्रिमेशन, नाक से स्राव और हाइपरसैलिवेशन। इसके बाद अतिसंवेदनशील मवेशियों में त्वचा और शरीर के अन्य हिस्सों पर खास तौर पर गांठें देखी जाती हैं। इसका बीमारी का इन्क्यूबेशन पीरियड 4-14 दिन है।
मवेशियों की गांठें यानी नोड्यूल अच्छी तरह से घिरे हुए, गोल, थोड़े उभरे हुए, दृढ़ और दर्दनाक होते हैं। ये नोड्यूल्स संपूर्ण कटिस और जीआई, श्वसन और जननांग पथ के म्यूकोसा में पाए जाते हैं। नोड्यूल्स थूथन पर और नाक और मुख म्यूकस झिल्ली के भीतर विकसित हो सकते हैं। इन नोड्यूल्स में टिश्यू का एक फर्म, मलाईदार-ग्रे या पीले रंग का द्रव्यमान होता है। रीजनल लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं, और एडिमा थन, छाती और पैरों में विकसित होती है। इसके परिणाम स्वरूप, जानवर बेहद कमजोर हो सकता है। समय के साथ, ये उभार वाले नोड्यूल्स या तो समाप्त हो जाते हैं या फिर त्वचा की नेक्रोसिस की वजह से आसपास की त्वचा से अलग एक कठोर, उभरे हुए क्षेत्र के तौर पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। बाद में ये क्षेत्र धीरे-धीरे अल्सर बना देते हैं जो ठीक तो हो जाते हैं पर इनके निशान बन जाते हैं।
इस बीमारी की वजह से मवेशी की जीवन गुणवत्ता पर 5% -50% का असर पड़ता है; आमतौर पर इस बीमारी में मृत्यु दर कम होती है। सबसे बड़ा नुकसान दूध की कम उपज, जानवर की सेहत और गुणवत्ता में कमी, और मवेशी की स्किन गुणवत्ता होती है।
अकसर लंपी रोग को चिकित्सकीय रूप से कम खतरनाक स्यूडो लंपी त्वचा रोग समझ लिया जाता है। इस भ्रम की वजह एक हर्पीसवायरस (गोजातीय हर्पीसवायरस 2) होती है। ये रोग चिकित्सकीय रूप से समान हो सकते हैं, हालांकि दुनिया के कुछ हिस्सों में हर्पीसवायरस घाव गायों के टीट्स और थन तक ही सीमित लगते हैं, और इस बीमारी को बोवाइन हर्पीज मैमिलिटिस कहा जाता है।
स्यूडो लंपी त्वचा रोग एक हल्का रोग है, लेकिन इसकी पहचान जानवर को अलग कर उसके विस्तृत परिक्षण से ही हो सकती है। लंपी त्वचा रोग के चेचक वायरस को प्रारंभिक त्वचा के घावों में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी द्वारा पहचाना जा सकता है। पीसीआर द्वारा इन दो बीमारियों की पहचान और उसमें अंतर के बारे में जाना जा सकता है। डर्माटोफिलस कांगोलेंसिस भी मवेशियों में त्वचा की गांठ का कारण बनता है।
हाल के वर्षों में अफ्रीका के अपने मूल स्थान से परे लंपी त्वचा रोग का प्रसार चिंताजनक है। क्वारेंटाइन का उपयोग भी बहुत प्रभावी साबित नहीं हुआ है। इस बीमारी का प्रसार टीकाकरण से ही रोका जा सकता है। टीकाकरण नियंत्रण का सबसे आशाजनक तरीका प्रदान करता है और बाल्कन देशों में इस तरह के टीकाकरण से इस रोग के प्रसार को प्रभावी रूप से रोका गया था। वैसे तो लंपी त्वचा रोग मुख्य रूप से मवेशियों की बीमारी है, पर इस बीमारी के भैंस, ऊंट, हिरण और घोड़े में हल्की लक्षण और बीमारी के साक्ष्य भी मिले हैं।
भारत में प्रभावित राज्य वर्तमान में गोट-पॉक्स के टीके के माध्यम से खतरे से लड़ रहे हैं जिसे लंपी त्वचा रोग के लिए विशिष्ट टीके के अभाव में आपातकालीन उपयोग के लिए अधिकृत किया गया है। राहत की बात यह है कि देश में ही इस लंपी त्वचा रोग के लिए टीका बना लिया गया है। एनआरसीई द्वारा आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (एलवीआरएल), लजतनगर (यूपी) के सहयोग से वैक्सीन विकसित की गई है। एनआरसीई वर्तमान में नए विकसित एलएसडी टीकों की सीमित मात्रा में 'गौशालाओं' और उन डेयरी किसानों को मुफ्त में आपूर्ति कर रहा है जिनके पास प्रभावित राज्यों में बड़ी संख्या में मवेशी हैं। हाल ही में बनाए स्वदेशी टीकों - लंपी-प्रोवैक्सइंड - का कर्मशियल प्रोडक्शन भी शुरु होने वाला है जिससे इसकी व्यापकता पर रोक लगाई जा सकेगी।
माध्यमिक संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं और अच्छी नर्सिंग से राहत मिल सकती है। लेकिन अगर ये बीमारी मवेशियों के झुंड के भीतर बड़ी संख्या में फैल चुकी है तो इससे इलाज प्रभावित हो सकता है।
इस बीमारी से ग्रस्त जानवरों को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एंटीपायरेटिक्स जैसे कि वेटलगिन, मेलॉक्सिकैम, केटोप्रोफेन इत्यादि के साथ प्रबंधित या ठीक किया जा सकता है। हालांकि, अगर बुखार बना रहता है या जानवर नाक से निर्वहन / श्वसन लक्षण दिखाता है, तो एंटीबायोटिक्स जैसे सीफ्टियोफुर, एनरोफ्लोक्सासिन, या सल्फोनामाइड्स को माध्यमिक संक्रमण की जांच के विचार किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, एंटीसेप्टिक मरहम को त्वचा पर लगाया जा सकता है इस एंसीसेप्टिक में मक्खी, कीड़े मकोड़े भगाने वाले गुण भी होने चाहिए। प्रभावित पशुओं का उपचार फार्म में ही किया जाना चाहिए; उन्हें अस्पतालों या पॉलीक्लिनिकों में नहीं ले जाया जाना चाहिए, क्योंकि उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण इन जानवरों में अक्सर तेज बुखार या अतिताप विकसित होता है।
घबराएं नहीं ये कोरोना की तरह नहीं
कोरोना के ड़र से सहमे हम सभी के लिए लंपी रोग से ड़रने की जरुरत नहीं है। मनुष्यों के लिए राहत की बात यह है कि यह रोग जूनोटिक नहीं है यानी ये रोग मवेशियों या दूसरे जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलता है, और इसलिए दूध पाश्चुरीकरण/उबालने के बाद मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है।
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स्तन वसा, संयोजी ऊतक, और लोब में विभाजित ग्रंथि ऊतक से बना होता है। स्तन कैंसर तब शुरू होता है जब स्तन में कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर निकलने लगती हैं। नलिकाएं का एक नेटवर्क लोब से निपल तक फैलता है। एक स्तन आमतौर पर दूसरे से छोटा होता है। महीने में अलग-अलग समय पर आपके स्तन अलग-अलग महसूस कर सकते हैं स्तनों के लिए आपकी अवधि के ठीक पहले लंपट महसूस करना आम बात है। आपके स्तन महीने में अलग-अलग समय पर अलग-अलग महसूस हो सकते हैं। स्तनों का आपकी अवधि के ठीक पहले लंपट महसूस होना आम बात है।
स्तन कैंसर सामान्यतः कोशिकाओं जो स्तन के नलिकाएं होती हैं, में शुरू होता है। स्तन कैंसर तब शुरू होता है जब स्तन में कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर बढ़ने लगती हैं। कोशिकाओं का यह उत्परिवर्तन एक ट्यूमर को जन्म देता है, जिसे एक गांठ के रूप में महसूस किया जा सकता है। अगर अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो घातक कोशिका अंततः शरीर के अन्य भागों में फैल सकती हैं, एक प्रक्रिया जिसे मेटास्टैसिस कहा जाता है।
स्तन कैंसर के लक्षण
स्तन में एक गांठ आमतौर पर स्तन कैंसर से जुड़ा है, लेकिन अधिकतर समय, स्तन में गांठ कैंसर नहीं होता। किशोरावस्था में हार्मोनल परिवर्तन से लेकर क्षतिग्रस्त वसा ऊतक तक, महिलाओं में शुरुआती 20 से लेकर शुरुआती 50 की उम्र तक सभी स्तन गांठों में से 90 प्रतिशत से ज्यादा गैर-कर्कश (सौम्य) हैं।
स्तम्भों में लंप्स स्तन संक्रमण, फाइब्रोकाइसटिक स्तन रोग (ढेलेदार स्तन), फाइब्रोएडीनोमा (गैर-कन्सेसर ट्यूमर), वसा-परिगलन (क्षतिग्रस्त ऊतक) जैसे कई अन्य कारणों के कारण हो सकते हैं।
यद्यपि अधिकांश स्तन गांठ कम गंभीर स्थितियों के कारण होते हैं, नए, पीड़ारहित गांठें फिर भी स्तन कैंसर का सबसे आम लक्षण हैं। एक महिला अपने स्तन में बदलाव देख सकती है, और मामूली असामान्य दर्द जो दूर जाता प्रतीत नहीं होता। इन परिवर्तनों के लिए देखें:
- निपल कोमलता, या स्तन या अंडरआर्म क्षेत्र में या उसके पास एक गांठ या मोटा होना।
- त्वचा की बनावट में परिवर्तन या स्तन की त्वचा में छिद्रों का इज़ाफ़ा
- स्तन में एक गांठ
- स्तन के माप या आकार में कोई भी अस्पष्टीकृत परिवर्तन
- स्तन पर कहीं भी गढ़ा
- स्तन की अस्पष्ट सूजन (खासकर अगर यह केवल एक तरफ है)
- स्तन का अस्पष्ट संकुचन (खासकर अगर यह केवल एक तरफ है)
- निप्पल जो थोड़ा सा आवक हो जाता है, या उलटा हो गया है
किसी भी प्रकार के निप्पल निर्वहन, विशेष रूप से साफ़ निर्वहन या खूनी निर्वहन स्तन कैंसर का संकेत हो सकता है। एक दूधिया निर्वहन जब महिला स्तनपान नहीं कर रही है, हालांकि स्तन कैंसर से जुड़ा नहीं है, लेकिन एक डॉक्टर द्वारा जांच कराया जाना चाहिए।
इन लक्षणों में से एक या अधिक होने का मतलब यह नहीं है कि आपको स्तन कैंसर है। यदि आप इन संकेत और लक्षणों में से किसी का अनुभव करते हैं, तो एक पूर्ण मूल्यांकन के लिए अपने चिकित्सक को देखें।
किसी व्यक्ति के रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाने की स्थिति को हाइपरयूरिसीमिया कहा जाता है। यह स्थिति गाउट और गुर्दे की पथरी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है
हमारे शरीर में प्यूरीन नाम का एक रसायन होता है जो कई खाद्य पदार्थों में भी पाया जाता है। प्यूरीन के टूटने से यूरिक एसिड का उत्पादन होता है। गुर्दे आमतौर पर रक्त प्रवाह से यूरिक एसिड को फ़िल्टर करते हैं।
हाइपरयूरिसीमिया तब होता है जब यूरिक एसिड का स्तर गुर्दे के ठीक से काम करने के लिए बहुत अधिक होता है। समय के साथ, हाइपरयूरिसीमिया गाउट या गुर्दे की पथरी जैसी अधिक गंभीर स्थितियों को जन्म दे सकता है।
इन स्थितियों में तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता होती है। शोध बताते हैं कि हर पांच में से लगभग एक व्यक्ति में यूरिक एसिड का उच्च स्तर होता है।
सारांश- रक्त में बहुत अधिक यूरिक एसिड बढ़ने को हाइपरयूरिसीमिया कहते हैं। शरीर के रसायन प्यूरनी के टूटने से यूरिक एसिड बनती है। जब यूरिक एसिड इतनी बढ़ जाती है कि गुर्दे ठीक से काम नहीं कर पाता तो हारपरयूरिसीमिया होता है। इसे गाउट या गुर्दे की पथरी हो सकती है।
लंबे समय तक लोग मानते थे कि हाइपरयूरिसीमिया गाउट के समान है। यानी यह एक ऐसी बीमारी जो आपके जोड़ों को प्रभावित करती है। लेकिन अध्ययनों से पता चला है कि जब आपको हाइपरयूरिसीमिया के साथ भी हो सकता है।
वास्तव में, उच्च यूरिक एसिड स्तर वाले अधिकांश लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। आपके शरीर द्वारा बहुत अधिक यूरिक एसिड का उत्पादन करने या बहुत कम मात्रा में इसे शरीर से निकाल पाने के परिणामस्वरूप हाइपरयूरिसीमिया हो सकता है।
आप बहुत अधिक यूरिक एसिड का उत्पादन कर सकते हैं यदि:
यदि आपका वजन अधिक है, तो आपको हाइपरयूरिसीमिया का भी खतरा है। अधिक वजन वाले बच्चों और किशोरों में, हाइपरयूरिसीमिया अक्सर मेटाबालिज़्म सिंड्रोम से जुड़ी समस्याओं साथ होता है जैसे शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध, क्रोनिक किडनी रोग और उच्च रक्तचाप।
सारांश- हाइपरयूरिसीमिया होने के कई कारण है। मूल कारण गुर्दों का यूरिक एसिड नहीं निकाल पाना है। इसका मोटापे से लेकर शराब पीने की लत और दवाओं से लेकर शरीर में प्यूरीन से भरपूर आहार तक बहुत से कारण हैं। कुछ बीमारिया जैसे डाउन सिंड्रोम, हायपोथायराडिज्म और दवाएं भी इसका कारण हो सकती हैं।
हाइपरयूरिसीमिया वाले अधिकांश लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं और उन्हें लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। शोध के अनुसार, सामान्य आबादी के लगभग 21 प्रतिशत और अस्पतालों में 25 प्रतिशत लोगों को बिना लक्षण वाला एसिम्पटोमैटिक हाइपरयूरिसीमिया है।
वहीं बहुत से लोग इस रोग के कारण गाउट से पीड़ित हो सकते हैं। यह हाइपरयूरिसीमिया की सबसे आम जटिलता है। यह एक विकार है जहां यूरिक एसिड ऊतकों और रक्त में बनता है और जोड़ों में दर्द का कारण बनता है।
हाइपरयूरिसीमिया का एक अन्य सामान्य लक्षण गुर्दे की पथरी का बनना है, जिससे पेट या बाजू में तेज दर्द, मतली और उल्टी हो सकती है।
सारांश- ज्यादातर लोगों को बिना लक्षण यानी एसिम्पटोमैटिक हायपरयूरिसीमिया होता है। वहीं कुछ लोगों गाउट रोग हो सकता है। इसमें जोडों में दर्द होता है। इसके अलावा गुर्दे की पथरी, पेट या बाजू में दर्द और उल्टी भी आम लक्षण हैं।
हाइपरयूरिसीमिया इतनी सामान्य समस्या है कि इसके लिए कोई परीक्षण नियमित नहीं है । यदि आपमें गाउट या गुर्दे की पथरी के लक्षण दिख रहे हैं, तो आपका डॉक्टर हाइपरयूरिसीमिया के लिए आपका परीक्षण करेगा।
हाइपरयूरिसीमिया का टेस्ट संभावित रूप से शारीरिक परीक्षण, लैब टेस्ट और अल्ट्रासाउंड से होता है-
यदि आपको गाउट है, तो आपके जोड़ सूजे हुए और गर्म होंगे। गाउट आमतौर पर बड़े पैर की अंगुली को प्रभावित करता है, लेकिन यह आपके शरीर में किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है।
आमतौर पर यह एक समय में एक जोड़ को प्रभावित करता है। यदि आपको गुर्दे की पथरी है, तो आपकी पीठ के निचले हिस्से का एक विशेष क्षेत्र स्पर्श करने पर संवेदनशील होगा।
आपके डॉक्टर आपके यूरिक एसिड के स्तर का परीक्षण करने के लिए ब्लड टेस्ट का आदेश दे सकते है। आपका लिंग, आयु और आहार आपके डायग्नोसिस को प्रभावित कर सकते हैं।
वे इस ब्लड टेस्ट के माध्यम से यह पता लगाएंगे कि आपका कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी), लिपिड प्रोफाइल, कॉम्प्रिहेंसिव मेटाबॉलिक पैनल (सीएमपी), और कैल्शियम और फॉस्फेट का स्तर कितना है।
इन सभी टेस्ट के जरिए यह समझने में मदद मिलेगी कि आपके शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के पीछे कारण क्या हो सकता है। यूरिक एसिड की मात्रा का परीक्षण करने के लिए आपके डॉक्टर आपको 24 घंटे की अवधि में अपना मूत्र एकत्र करने के लिए कह सकते हैं।
यदि आपको गुर्दे की पथरी का संदेह है तो आपके डॉक्टर आपको किडनी के अल्ट्रासाउंड कराने का निर्देश दे सकते हैं।
सारांश- हाइपरयूरिसीमिया की डायगनोसिस आमतौर पर लक्षण सामान्य होने की वजह नहीं की जाती। जब यूरिक एसिड बढ़ने के लक्षण जैसे गाउट, दर्द, उल्टी आदि हो तो शारीरिक परीक्षण, ब्लड टेस्ट, अल्ट्रासाउंड के जरिए लक्षणों की जांच की जाती है।
आपके डॉक्टर एक यूरिक एसिड स्तर कम करने वाली दवा लिख सकते हैं :
यदि आप कीमोथेरेपी से गुजर रहे हैं और आपके यूरिक एसिड का स्तर बढ़ा हुआ है लेकिन कोई संबंधित लक्षण नहीं है, तो भी आपके डॉक्टर इसके स्तर को कम करने के लिए दवा लेने की सलाह दे सकते हैं। इससे आपको ट्यूमर लाइसिस सिंड्रोम से बचाया जा सकेगा।
यदि आपको गाउट या गुर्दे की पथरी है, तो आपको यह देखने के लिए निरंतर निगरानी की आवश्यकता हो सकती है कि उपचार के साथ आपकी स्थिति में सुधार हो रहा है या नहीं।
सारांश- हायपरयूरिसीमिया के लिए कोई विशिष्ट दवा नहीं है। डाक्टर आपको यूरिक एसिड को कम करने की दवा दे सकते हैं। इसके अलावा वे आपको गाउट, गुर्दे की पथरी से जुडे लक्षणों या उनके इलाज की दवा दे सकते हैं। कीमोथेरैपी के दौरान डाक्टर की प्राथमिकत आपको ट्यूमर लाइसिस सिंड्रोम से बचाने की होगी।
हाइपरयूरिसीमिया होने के कई कारण हो सकते हैं। ऐसे में अगर इसका इलाज कराने की जरुरत है तो आप इन विशेषज्ञों का सलाह ले सकते हैं:
निष्कर्ष- रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ने को हाइपरयूरिसीमिया कहा जाता है। हायपरयूरिसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें ज्यादातर लक्षण नहीं होते। यदि लक्षण होते है तो वो गाउट या फिर गुर्दे की पथरी के तौर पर सामने आते हैं। इसकी डायगनोसिस और इलाज भी लक्षणों के आधार पर ही किया जाता है।
बेडसोर तब होते हैं जब कोई व्यक्ति लम्बे समय तक बिस्तर पर एक ही अवस्था लेटा रहे। यह स्थिति किसी बीमारी के कारण, गतिहीन होने के कारण, बेहोशा, या दर्द महसूस करने में असमर्थता के कारण हो सकती है।
बेडसोर ऐसे अल्सर होते हैं जो त्वचा के उन क्षेत्रों पर होते हैं जो लगातार बिस्तर पर लेटने, व्हीलचेयर में बैठने या लंबे समय तक कास्ट पहनने के कारण हो सकते हैं। बेडसोर को प्रेशर इंजरी, प्रेशर सोर, प्रेशर अल्सर या डीक्यूबिटस अल्सर भी कहा जाता है।
कमजोर वृद्ध लोगों में बेडसोर एक गंभीर समस्या हो सकती है। ये प्रभावित व्यक्ति को मिलने वाली देखभाल की खराब गुणवत्ता से संबंधित हो सकते हैं।
यदि एक गतिहीन या विकलांग व्यक्ति को अकसर करवट नहीं दी जाती है, सही स्थिति में नहीं रखा जाता है, और उसे अच्छा पोषण और त्वचा की देखभाल नहीं दी जाती है, तो बेडसोर विकसित हो सकते हैं।
मधुमेह, सर्कुलेशन संबंधी समस्याएं और खराब पोषण वाले लोगों को बेड सोर होने का अधिक जोखिम हो सकता है।
एक बेडसोर तब विकसित होता है जब त्वचा को रक्त की आपूर्ति 2 से 3 घंटे से अधिक समय तक के लिए कट जाती है। जैसे ही त्वचा को रक्त की आपूर्ति मिलनी बंद होती है ,उस क्षेत्र की त्वचा मृत हो जाती है।
बेडसोर पहले लाल, दर्दनाक क्षेत्र के रूप में शुरू होता है, जो अंततः बैंगनी हो जाता है। अगर बेडसोर को अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो त्वचा टूट कर खुल सकती है और वह क्षेत्र संक्रमित हो सकता है।
बेडसोर गहरे भी हो सकते हैं। यह मांसपेशियों और हड्डी में फैल सकता है। एक बार बेडसोर विकसित हो जाने के बाद, यह अक्सर ठीक होने में बहुत अधिक समय ले सकता है ।
बेडसोर की गंभीरता, व्यक्ति की शारीरिक स्थिति और अन्य बीमारियों (जैसे मधुमेह) की उपस्थिति के आधार पर, बेडसोर को ठीक होने में दिन, महीने या साल भी लग सकते हैं।
उपचार प्रक्रिया में मदद के लिए कई बार इससे ग्रस्त व्यक्ति को सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
बेडसोर अक्सर शरीर के इन हिस्सों में होते है:
लम्बी अवधि तक बिस्तर पर लेटे रहने, बेहोश होने, दर्द महसूस करने में असमर्थ होने या गतिहीन होने से बेडसोर विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। बेडसोर का जोखिम तब बढ़ जाता है अगर व्यक्ति को प्रतिदिन सही ढंग से करवट नहीं दिलाई जाती या उन्हें घुमाया नहीं जाता है।
इसके अलावा उचित पोषण की कमी और त्वचा की सही देखभाल ना होने से भी बेडसोर का खतरा बढ़ जाता है। मधुमेह, शरीर में ब्लड सर्कुलेशन संबंधी समस्याएं और कुपोषण वाले लोग इसके अधिक जोखिम में हैं।
बेडसोर को 4 चरणों में बांटा गया है, कम से कम गंभीर से लेकर सबसे गंभीर स्थित तक । इनमें शामिल हैं:
जब बेड सोर काफी अधिक मोटाई वाले ऊतक तक पहुंच कर त्वचा को नुकसान पहुंचा चुका होता है तो उसे किसी चरण के तहत नहीं देखा जाता।
इस स्थिति में घाव एस्कर से ढंक चुका होता है जो मृत कोशिकाओं की परत होती है। स्लो टैन, ग्रे, ग्रीन, ब्राउन या पीले रंग का हो सकता है। एस्कार आमतौर पर टैन, भूरा या काला होता है।
चिकित्सक उन लोगों की त्वचा का निरीक्षण करके बेडसोर का निदान करते हैं जिन्हें इनके होने का जोखिम है। उनकी गंभीरता के अनुसार उनके उपचार का स्वरूप निर्धारित किया जाता है।
रोगी की स्थिति की गंभीरता के आधार पर चिकित्सक बेडसोर के विशिष्ट उपचार का रास्ता निकालते हैं। त्वचा में घाव होने के बाद उपचार अधिक कठिन हो सकता है, और इलाज की दिशा में निम्नलिखित कदम शामिल हो सकते हैं:
आपके चिकित्सक बेडसोर को करीब से जांचेंगे। वे उपचार के लिए बेडसोर के आकार, गहराई और प्रतिक्रिया का परीक्षण करेंगे।
एक बार बेडसोर विकसित होने के बाद, इसे ठीक होने में कुछ दिन, महीने या साल भी लग सकते हैं। यह संक्रमित भी हो सकता है, जिससे बुखार और ठंड लग सकती है।
एक संक्रमित बेडसोर को साफ होने में काफी समय लग सकता है। जैसे-जैसे संक्रमण आपके शरीर में फैलता है, यह मानसिक भ्रम, तेज़ दिल की धड़कन और सामान्य कमजोरी भी पैदा कर सकता है।
हर दिन हड्डी के क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने के साथ लालिमा वाले क्षेत्रों (त्वचा के घाव का पहला संकेत) के लिए त्वचा का निरीक्षण करके बेडसोर को रोका जा सकता है। बेडसोर्स को रोकने और मौजूदा घावों को गंभीर होने से रोकने के अन्य तरीकों में शामिल हैं:
हर किसी की इच्छा होती है कि उसकी टोन्ड और स्लिम जांघें हों। लेकिन उसी तरह एक सच्चाई ये भी है किटारगेटेड फैट को कम करना बहुत मुश्किल होती है। कई बार ये सामान्य तरीकों से संभव नहीं होता है। आप पूरे शरीर के वजन को कम किए बिना अकेले अपनी जांघों से वसा कम नहीं कर सकते। आप केवल अपनी जांघों और शरीर के निचले हिस्से को टोन कर सकते हैं, इसलिए यह पतला दिखाई देता है और आप अपने पसंदीदा शॉर्ट्स या स्कर्ट को आत्मविश्वास के साथ कैरी कर सकती हैं। आइए हम आपको कुछ तरीके और एक्सरसाइज बताते हैं जिनसे आप अपनी जांघों को टोन कर सकते हैं।
स्क्वैट्स करने से आपकी हैमस्ट्रिंग, ग्लूट्स, लोअर बैक और काफ पर असर पड़ता है। इन इलाकों को लक्षित कर की जाने वाले इस् व्यायाम को एक साथ बढ़ाना नहीं है। आपको ये एक्सरसाइज 10 बार करने से शुरू करनी है। इसके बाद आप जैसे-जैसे आप इसके साथ सहज हों, इसकी संख्या को आगे बढ़ानी है। स्क्वैट्स करने के लिए जमीन पर सीधे खड़े हो जाएं और अपने पैरों को इतनी दूर रखें कि जितने आपके कंधों की चौड़ाई हो। अपनी बाहों को अपने सामने फैलाएं उतनी ही बांहें फैलांए जितने में आप सहज हों। अपने घुटनों को मोड़ें और नीचे जाएं जैसे कि आप एक कुर्सी पर बैठने जा रहे हैं। आपके घुटने आपके पैर की उंगलियों के पीछे रहने चाहिए। मूल स्थिति में वापस आने से पहले इस स्थिति में 2-3 सेकंड के लिए रुकें।
लंजेस आपके क्वाड्स, हैमस्ट्रिंग और ग्लूट्स को लक्षित करता है। इस अभ्यास को प्रत्येक पैर से 10-15 बार दोहराएं। जब आप व्यायाम करते हैं तो आप विविधताओं को भी आजमा सकते हैं और प्रत्येक हाथ में डंबल भी पकड़ सकते हैं। लंजेस करते समय जमीन पर लंबे समय तक खड़े हो जाएं और अपने पैरों को हिप-चौड़ाई से अलग रखें और अपने दोनों हाथों को अपने हिप्स पर रखें। अब अपने दाहिने पैर को एक फीट आगे ले जाएं। अपने शरीर को तब तक नीचे करें जब तक कि आपके आगे और पीछे के दोनों पैर 90 डिग्री का कोण न बना लें।आपका दाहिना पैर आपके पैर की उंगलियों को पार नहीं करना चाहिए और साथ ही, आपका पिछला पैर मुड़ा हुआ होना चाहिए लेकिन फर्श को छूना नहीं चाहिए।इस स्थिति में 2-3 सेकंड के लिए रुकें। प्रारंभिक स्थिति में वापस जाने के लिए अपनी दाहिनी एड़ी में दबाएं। बाएं पैर के साथ भी यही दोहराएं।
रिवर्स लंजेस जांघों और कूल्हे की मसल्स को टोन करने मे बहुत प्रभावी होती हैं। इसे आपको लंजेस की तरह की करना है पर इसमें आपको आगे की बजाय पीछे जाना है। रिवर्स लंजेस करते समय जमीन पर लंबे समय तक खड़े हो जाएं और अपने पैरों को हिप-चौड़ाई से अलग रखें और अपने दोनों हाथों को अपने हिप्स पर रखें। अब अपने दाहिने पैर को एक फीट पीछे ले जाएं। अपने शरीर को तब तक नीचे करें जब तक कि आपके आगे और पीछे के दोनों पैर 90 डिग्री का कोण न बना लें। लंजेस की ही स्थिति में 2-3 सेकंड के लिए रुकें। उसके बाद वापस आ जाएं। बाएं पैर के साथ भी यही दोहराना है इसमें भी आपको आगे के बजाय पीछे जाना है। इसी तरह आप वॉकिंग लंजेस कर सकते हैं आपको सबकुछ फारवर्ड लंजेस की तरह करना चाहिए बस अपने पैरों का इस्तेमाल कर प्रारंभिक स्थिति में आने बजाय आगे बढ़ते रहना चाहिए।
यह अभ्यास आपके क्वाड्स,एबडक्टर मसल्स,काफ और ग्लूट्स के लिए बहुत कारगर है। इसे प्रत्येक पैर से कम से कम 30 बार करें। पाइल स्क्वैट्स करने के लिए आप जमीन पर खड़े हो जाएं और अपने पैरों को चौड़ा रखें। आपके पैर की उंगलियां और घुटने बाहर की ओर होने चाहिए और आपके हाथ आपके कूल्हों पर होने चाहिए। धीरे-धीरे अपने शरीर को एक स्क्वाट स्थिति में कम करें। सुनिश्चित करें कि आप अपनी रीढ़ और धड़ को सीधा रखें। इस स्थिति में 2 सेकंड के लिए रुकें और फिर ऊपर की ओर अपने ग्लूट्स को फैलाते हुए ऊपर उठें। यही प्रक्रिया दोहराएं।
क्वाड्स और अबडक्टर मांसपेशियों के लिए सिंगल लेग सर्किल अच्छा व्यायाम है। इस एक्सरसाइज को प्रत्येक पैर से 15 बार दोहराना चाहिए। सिंगल लेग सर्कल्स करने के लिए आप जमीन पर सीधे खड़े हो जाएं और अपने पैरों को चौड़ा रखें। अब अपने दाहिने पैर को पंजों की ओर इशारा करते हुए आगे की ओर रखें। अपने दाहिने पैर को अपने घुटनों तक उठाएं और एक सर्कल बनाने के लिए इसे बाहर की ओर ले जाएं। इसे 10 बार करें और फिर बाएं पैर से भी यही दोहराएं।
यह कसरत आपके क्वाड, हैमस्ट्रिंग और ग्लूट्स को लक्षित कर उन्हें टोन और स्लिम करने में बहुत कारगर है। इस कसरत का 1 सेट से लेकर 5 सेट तक जैसे जैसे आप इसमें सहज हों दोहराव करते रहें। फारवर्ड बेंड स्टैंडिंग के लिए आप जमीन पर सीधे अपने पैरों को मिलाकर खड़े हो जाएं। अपने शरीर को आराम की स्थिति में रखें और हाथों को अपने बगल में रखें। अपने ऊपरी शरीर को आगे की ओर झुकाएं और धीरे-धीरे नीचे की ओर जाएं। अपने हाथों से अपने सामने जमीन या चटाई को छूने की कोशिश करें। आपका सिर आपके घुटनों को छूना चाहिए। इस स्थिति में कुछ सेकंड के लिए रुकें और धीरे-धीरे प्रारंभिक स्थिति में वापस आ जाएं।
किक बैक हैमस्ट्रिंग, क्वाड्स और ग्लूट्स के लिए बहुत ही कारगर एक्सरसाइज है। इस व्यायाम को दो सेटों में करना चाहिए। हर सेट में एक्सरसाइज को 10 बार दोहराएं। किक बैक करने के लिए आप फर्श पर अपने घुटनों के साथ बिल्ली की मुद्रा से शुरू करें, फर्श पर हथेली सपाट और पीठ सीधी। अपने शरीर को अपनी हथेलियों और बाएं घुटनों से सहारा देते हुए, अपने दाहिने पैर को सीधा करें। अब, अपने दाहिने पैर को अपने पैर की उंगलियों के साथ अपने कूल्हों से थोड़ा ऊपर उठाएं। इसे वापस सामान्य स्थिति में लाएं। इसे 10 बार दोहराएं फिर दूसरे पैर से भी ऐसा ही करें।
कई बार स्पोर्ट्स में आवश्यक दिशा का त्वरित परिवर्तन करना होता है। ऐसे खेल आपके पैरों को सभी कोणों से आकार देने में मदद करेगें। उन खेलों पर विचार करें जिनके लिए आपको अपनी जांघ की मांसपेशियों को एरोबिक रूप से काम करने की आवश्यकता होती है, जैसे:
सप्ताह में कम से कम दो दिन पूरे शरीर, मांसपेशियों को मजबूत करने वाली गतिविधियों में भाग लेने से आपको कैलोरी जलाने, वसा द्रव्यमान कम करने और अपनी जांघों को मजबूत करने में मदद मिल सकती है। शरीर के निचले हिस्से के व्यायाम जैसे कि लंजेस, दीवार पर बैठना, जांघ की भीतरी/बाहरी लिफ्ट और केवल अपने शरीर के वजन के साथ स्टेप-अप शामिल करें। प्रत्येक व्यायाम के तीन राउंड करें और हर सेट के बीच न्यूनतम आराम के साथ करें। आप टोटल फिटनेस के लिए लोवर बॉडी के साथ अपर बॉडी की एक्सरसाइज कर सकते हैं। इससे आपको दोहरा लाभ होगा। उदाहरण के लिए, कुछ डम्बल पकड़ें और लंग्स को बाइसेप्स कर्ल के साथ करें, या स्क्वाट को ओवरहेड शोल्डर प्रेस के साथ करें।
हम सभी के जीवन में तनाव होता है, लेकिन शोध से पता चलता है कि बहुत अधिक तनाव होने से वजन बढ़ना, उच्च रक्तचाप और सिरदर्द जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए अपने तनाव को नियंत्रण में रखना वजन घटाने के कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नियमित रूप से तनाव से निपटने के लिए आप योग, ध्यान या गहरी साँस लेने के व्यायाम गतिविधियों को आज़मा सकते हैं। व्यायाम तनाव के स्तर को कम करने में भी मदद कर सकता है। अपने तनाव को की समस्या को लेकर अपने डॉक्टर या चिकित्सक से बात करने पर विचार करें।
लिंग का आकार हमेशा से ही पुरुषों और महिलाओं में समान रुप से उत्सुकता, चिंता और कौतूहल का विषय रहा है। इसी चिंता और कौतूहल ने इसे कई मिलियन डॉलर के लिंग वृद्धि, या पुरुष वृद्धि, उद्योग में बदल दिया है। सर्जरी से लेकर पूरक तक और लोशन से लेकर उपकरण तक हर कुछ इस इंडस्ट्री का हिस्सा हैं।
यह कटू सत्य है कि लिंग का आकार बढ़ाने का कोई सिद्ध तरीका नहीं है। साथ ही बहुत से तरीकों के तो प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं।
कई पुरुष अपने लिंग का आकार बढ़ाने के लिए कई तरह के इलाज की तलाश करते हैं। हालांकि, शोध से पता चलता है कि, ज्यादातर मामलों में, उनका लिंग पहले से ही "सामान्य" आकार है। ज्यादातर इस चिंता से ग्रस्त लोगों को इस बात का पता ही नहीं होता कि उनका लिंग सही आकार का है।
कुछ लोग गोलियों, क्रीम और स्ट्रेचिंग उपकरणों सहित अन्य उत्पाद से लिंग के आकार को बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहे थे। वहीं कुछ लोग सर्जरी पर भी विचार करते हैं।
सर्जरी माइक्रोपेनिस नामक स्थिति वाले व्यक्ति की मदद कर सकती है। हालांकि, यह जोखिम भरा हो सकता है और यौन संतुष्टि में सुधार के लिए निश्चित नहीं है।
लिंग वृद्धि उत्पाद कई तरह के होते हैं इसमें ट्रैक्शन डिवाइस से लेकर वैक्यूम डिवाइस तक कई विकल्प मौजूद हैं।
ट्रैक्शन डिवाइस का उद्देश्य पेनाइल टिश्यू को खींचकर लिंग की लंबाई बढ़ाना है। एक व्यक्ति शिथिल लिंग को धीरे से लंबा करने के लिए उस पर एक वजन या छोटा फैला हुआ फ्रेम रखता है।
कई अध्ययनों ने अलग-अलग परिणामों के साथ कर्षण उपकरणों के प्रभावों की जांच की है। कुछ परिणाम बताते हैं कि उपकरण लिंग को 1–3 सेंटीमीटर (सेमी) तक लंबा कर सकते हैं। सामान्य तौर पर इसका प्रयोग पेरोनी की बीमारी में किया जाता है। इस बीमारी में लिंग की वक्रता या प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है। इस डिवाइस को दिन में 4-6 घंटे उपकरणों को पहनाना बेहतर माना जाता है। लेकिन यह कोई मानक नहीं इसे अपनी स्थिति के हिसाब से प्रयोग किया जाना चाहिए। कुछ वैज्ञानिक इसके परिणामों को लेकर संतुष्ट नहीं हैं।
एक वैक्यूम डिवाइस, जिसे पेनिस पंप के रूप में भी जाना जाता है, में एक ट्यूब होती है जो लिंग के ऊपर फिट होती है। हवा को बाहर निकालने से एक वैक्यूम बनता है जो लिंग में रक्त खींचता है, जिससे यह सूज जाता है। इरेक्टाइल डिसफंक्शन के इलाज के लिए लोग आमतौर पर वैक्यूम डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं। वैसे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं बताता है कि वे लिंग का आकार बढ़ा सकते हैं।
विभिन्न गोलियां और क्रीम लिंग के आकार को बढ़ाने का दावा करती हैं। इस तरह की क्रीम में आमतौर पर विटामिन, खनिज, जड़ी-बूटियाँ या हार्मोन होते हैं। हालांकि, इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि इनमें से कोई भी उत्पाद लिंग के आकार को बढ़ा सकता है। वास्तव में, परीक्षणों से पता चला है कि कुछ दवाओं में कीटनाशक, सीसा, पशु मल और ई. कोलाई जैसे हानिकारक पदार्थ होते हैं।
जेलकिंग एक ऐसा व्यायाम है जिसमें एक व्यक्ति अपने अंगूठे और तर्जनी के साथ बार-बार बिना स्तंभन वाले लिंग को खींचता है। इसका उद्देश्य रक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करना है, जिससे इरेक्शन के दौरान लिंग का आकार बढ़ सकता है। संभावित प्रतिकूल प्रभावों में चोट लगना, दर्द और फाइब्रोसिस, या निशान शामिल हैं, जो लिंग को छोटा कर सकते हैं।
लिंग की लंबाई और वृ मद्धि के लिए कई तरह के सर्जिकल विकल्प उपस्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे संभवतः लिंग के आकार को बढ़ाया जा सकता है।
लिंग वृद्धि में शरीर में कहीं और से लिंग में वसा कोशिकाओं को इंजेक्ट करना शामिल है। इसका उद्देश्य परिधि, या चौड़ाई बढ़ाना है। यह 12 महीनों के बाद औसतन 2.39–2.65 सेमी जोड़ सकता है।
हालांकि, संभावित दुष्प्रभावों में शामिल हैं:
लिंग की सूजन और विकृति
विकृति और निशान
गांठ
संक्रमण
सर्जरी के 1 साल के भीतर ग्राफ्ट नई मात्रा का 20-80% भी खो सकता है, इसलिए लोगों को वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए कई सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
लिंग की परिधि बढ़ाने के लिए एक अन्य विधि, अभी भी प्रायोगिक चरण में, लिंग की त्वचा को वापस खींचना और शाफ्ट के चारों ओर एक बायोडिग्रेडेबल मचान, या फ्रेम लपेटना शामिल है।
फ्रेम, जो बायोडिग्रेडेबल है, ऊतक कोशिकाओं से प्राप्त पदार्थों का उपयोग करता है।
सस्पेंसरी लिगामेंट लिंग को जघन क्षेत्र से जोड़ता है और इरेक्शन के दौरान सहायता प्रदान करता है। इस सर्जरी में, सर्जन लिंग की लंबाई बढ़ाने के लिए लिगामेंट को काट देता है। वे अतिरिक्त लंबाई की अनुमति देने के लिए लिंग के आधार पर एक त्वचा का भ्रष्टाचार भी कर सकते हैं। हालांकि, लिगामेंट को काटने से इरेक्शन के दौरान लिंग को सपोर्ट की कमी हो सकती है। इससे सेक्स के दौरान प्रवेश करना मुश्किल हो सकता है। औसतन, सस्पेंसरी लिगामेंट रिलीज फ्लेसीड लिंग की लंबाई को 1-3 सेमी (0.4-1.2 इंच) तक बढ़ा सकता है। हालांकि, व्यक्ति और उनके साथी के लिए संतुष्टि दर केवल 30-65% से लेकर होती है। इरेक्शन के दौरान सपोर्ट की कमी पैठ को मुश्किल बना सकती है।
यदि किसी व्यक्ति के निचले पेट में वसा का उच्च स्तर है, तो लिपोसक्शन के माध्यम से वसा को हटाने से दबे हुए लिंग का पता चल सकता है या लिंग बड़ा दिख सकता है। बैरिएट्रिक सर्जरी और एब्डोमिनोप्लास्टी का भी यह असर हो सकता है। यह व्यक्ति के आत्म-सम्मान को बढ़ा सकता है। हालांकि, वसा को वापस आने से रोकने के लिए उन्हें आहार और व्यायाम की सिफारिशों का पालन करने की आवश्यकता होगी।
लिंग वृद्धि के जोखिम और दुष्प्रभाव
लिंग वृद्धि हस्तक्षेप के जोखिम विधि ओर हर व्यक्ति के लिए भिन्न भिन्न होते हैं। अगर जोखिम की बात करें तो इनमें शामिल हैं-
सर्जरी से विकृति, सूजन और संक्रमण
शिश्न के ऊतकों को नुकसान, जिससे कमजोर इरेक्शन हो सकता है
वसा कोशिका इंजेक्शन के मामले में, परिधि को बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप को दोहराने की आवश्यकता है
चिंता और तनाव में वृद्धि अगर व्यक्ति सुधार नहीं देखता है
काम ना करने वाले उत्पादों पर पैसा बर्बाद करना
यदि किसी व्यक्ति को माइक्रोपेनिस नामक स्थिति है तो सर्जरी आवश्यक है। यह तब होता है जब एक स्तंभित व्यस्क लिंग 9.3 सेमी या इससे छोटा होता हो। माइक्रोपेनिस आमतौर पर हार्मोनल कारकों के परिणामस्वरूप होता है, और यह कुछ आनुवंशिक स्थितियों के साथ हो सकता है। डाक्टर इस तरह की सर्जरी का तब निर्देश देते हैं जब हार्मोनल उपचार काम नहीं करता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादातर पुरुषों का मानना है कि एक खड़े लिंग का औसत आकार 6 इंच से अधिक होता है।
औसत ढीला लिंग 9.16 सेमी (3.61 इंच [इन]) लंबा और 9.31 सेमी (3.66 इंच) परिधि में था।
औसत स्तंभित लिंग 13.12 सेमी (5.16 इंच) लंबा और 11.66 सेमी (4.59 इंच) परिधि में था।
विशेषज्ञों की माने तो 5% पुरुषों का लिंग 16 सेमी से अधिक लंबा होता है। अन्य 5% में, सीधा लिंग लगभग 10 सेमी से छोटा होगा। एक अध्ययन के अनुसार औसत स्तभन वाला लिंग 12.98 सेमी (5.11 इंच) मापा गया।
लिंग के आकार के बारे में पार्टनर से बात करें
एक अध्ययन के मुताबिक औसतन, सिजेंडर संबंधों में महिलाएं एक लंबी अवधि के साथी को पसंद करती हैं, जिसका लिंग 16 सेमी (6.3 इंच) लंबा और 12.2 सेमी (4.8 इंच) परिधि में होता है। यह औसत से बड़ा है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि पुरुषों के लिंग का आकार यौन संतुष्टि में महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक नहीं है।
बिना सर्जरी के भी सेक्स लाइफ हो सकती है बेहतर
लिंग के आकार के बारे में नकारात्मक भावनाएं किसी व्यक्ति के सेक्स के आनंद और जीवन की गुणवत्ता को बाधित कर सकती हैं। अधिकांश लिंग वृद्धि के तरीके लिंग के आकार को नहीं बढ़ाते हैं। हालांकि, निम्नलिखित युक्तियाँ लिंग के आकार को बढ़ाए बिना चिंता को रोकने या किसी व्यक्ति के यौन जीवन को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं:
आत्म-सम्मान बनाने और शरीर की छवि से संबंधित विकृत विचारों को ठीक करने में मदद करने के लिए परामर्श प्राप्त करना
लिंग को बड़ा दिखाने के लिए प्यूबिक हेयर को ट्रिम करना
वजन प्रबंधन- नियमित रूप से व्यायाम करना, जो शरीर के वजन को प्रबंधित करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, और सीधा होने के लायक़ समारोह में सुधार करने में मदद कर सकता है
एक आहार का पालन करना जो ताजे फल और सब्जियों में समृद्ध है और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में कम है और वसा और चीनी जोड़ा गया है
साथी के साथ चिंताओं को साझा करना
यौन संबंध बनाने के नए तरीकों की कोशिश करना, जैसे कि मुख मैथुन करना या फोरप्ले के दौरान सेक्स टॉय का उपयोग करना। लिंग बढ़ाने की लालसा को छोड़कर अगर साथी के साथ उनकी कामेच्छा के बारे मे बात की जाय तो बात बन सकती है। वैसे भी लिंग का साइज आपके और आपके साथी के बीच की बात है!
सूरज जब अपने चरम पर आग बरसा रहा हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मन करता है कि ठंडी जगह पर रहें और ठंड़ा ठंडा कुछ पीते रहें। गर्मी में सूरज से बचने के लिए स्कार्फ, कैप, गमछा निकल आता है। इस झुलसाती गर्मी में त्वचा की देखभाल बहुतज जरुरी है। यह जितना जरुरी है कई बार स्किन मैनेजमेंट उतना ही मुश्किल भी हो जाता है। कई बार गर्मी की वजह से आप हैवी क्रीम, लोशन से दूर रहना चाहते हैं क्योंकि इन चीजों की वजह से आपकी त्वचा बहुत ज्यादा तैलीय हो जाती है। परेशानी तो यह भी होती है कि अगर आप इन चीजों का इस्तेमाल ना करें तो आपकी त्वचा रूखी, सूखी, शुष्क, कमजोर, पतरदार और डीहाईड्रेट हो जाती है। इस दुविधा से आप भी हैं परेशान तो हम आपकी उलझन दूर कर देते हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि जब सिर पर चढ़ा सूरज आपकी त्वचा को झुलसाए तो क्या है उपाय!
गर्मी के दिनों में आमतौर पर लू का भी सामना करना पड़ सकता है। उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भारत में तो यह बहुत आम बात है। धूप और लू के थपेड़ों की वजह से धूल, धूप, गर्मी और गंदगी मिलकर आपकी त्वचा को क्षति पहुंचाने का काम करते हैं। ये चार फैक्टर्स मिलकर आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, पिगमेंटेशन बढ़ाते हैं और एजिंग के लक्षणों को उभारते हैं। त्वचा के इन 4 दुश्मनों के खिलाफ आपके पास तीन तीर हैं क्लीनर, टोनर, मॉस्चराइजर। एक शानदार और प्राकृतिक चमक और ग्लो के लिए क्लीनिंग, टोनिंग और मॉइस्चराइजिंग समय-समय पर करते हैं। याद रहे कि स्किन उत्पाद हमेशा अच्छे ब्रांड्स और भरोसेमंद होने चाहिए।
एलोवेरा जेल को अपने गुणों की वजह से कई बार आम भाषा में संजीवनी भी कह दिया जाता है। स्किन के लिए तो एलेवेरा एक तरह से रामबाण हैं । एलोवेरा, खास तौर पर हरे एलोवेरा, जेल का इस्तेमाल चेहरे और गर्दन पर करने से त्वचा को लाभ होता है। एलोवेरा सूदिंग एजेंट के तौर पर काम करता है, यह सूर्य के बहुत ज्यादा एक्सपोजर की वजह से खराब हुई त्वचा की कोशिकाओं को ठीक करता है। इसके साथ ही यह खराब हो चुकी कोशिकाओं की मरम्मत भी करता है। एलोवेरा को स्किन पर लगाने के अलावा आप एलोवेरा जूस को पी भी सकते हैं। एलोवेरा जूस को अगर आपने अपनी दिनचर्या में सुबह के समय रोज शामिल कर लिया तो आपकी त्वचा और पूरे शरीर को पर्याप्त हाइड्रेशन प्राप्त हो सकेगा।
स्किन के लिए विटामिन वैसे ही काम करती है जैसे कि किसी भी व्यक्ति के लिए खाना। विटामिन त्वचा के बचाव से लेकर मरम्मत तक के काम करती है। इसलिए आपको अपने डायट चार्ट में विटामिन ई और और विटामिन सी को शामिल करना चाहिए। गर्मियों के मौसमी सब्जियां, फल जैसे खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, गाजर में विटामिन भरपूर मात्रा में मिलता है साथ ही मिनरल भी अच्छी मात्रा में मिल जाता है। एंटीऑक्सिडेंट आपकी स्किन को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाते हैं और स्किन रिपेयर का भी काम करते हैं।.
जल ही जीवन है हम सबने सुना है पर तपती गर्मी में, समान्य दिनों के साथ ही, जल त्वचा का भी जीवन है। जब तापमान बहुत ज्यादा होता है तो उच्च तापमान से शरीर में इंटरनल सूजन भी आ सकती है। इससे चक्कर भी आत जाते हैं। इसके अलावा शरीर के साथ ही त्वचा भी बहुत जल्दी डीहाइड्रेट हो जाती है। इससे बचने के लिए आप खुद को हायड्रेट रखें। दिन में कम से कम 2-3 तीन लीटर पानी पिएं। यदि संभव हो तो इसके साथ ही ओआरएस या इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक भी पी सकते हैं। ऐसे किसी भी आहार से बचें जिसकी वजह से डीहाइड्रेशन हो सकता है। कैफीन और अल्कोहल यानी शराब से दूर रहें क्योंकि इससे डीहाई़ड्रेशन का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
रोजाना सोने से पहले ग्लिसरीन की एक पतली परत अपने चेहरे पर लगाएं। सुबह इसे साफ कर लें। ग्लिसरीन क्षतिग्रस्त त्वचा कोशिकाओं की मरम्मत करता है और पूरे दिन आपके चेहरे को हाइड्रेट रखता है।
गर्मियों में चिलचिलाती धूप में हानिकारक यूवी किरणों भी होती हैं और होंठों के संवेदनशील ऊतकों को नुकसान पहुंचाती है। होठों को तरोताजा और तरोताजा रखने के लिए, एसपीएफ़ 15 या उससे अधिक लेबल वाला एक अच्छा लिप बाम लगाएं और हर दिन लगाना जारी रखें।
नारियल का तेल एक चमत्कारी तेल है! दादी नानी से लेकर आम बोलचाल में इसके गुण का बखान हम सभी ने सुना है। इसके उपयोग के कई तरीके हैं - इसे अपने हाथों, क्यूटिकल्स और जोड़ों जैसे समस्या वाले क्षेत्रों पर लगा सकते हैं, इसे त्वचा पर रगड़ सकते हैं या कुछ बड़े चम्मच नारियल का तेल अपने स्नान के पानी में भी मिला सकतेहैं। नारियल का तेल स्किन के लिए चमत्कारी परिणाम देता है। त्वचा नारियल के तेल से नरम महसूस होती है।
गर्मी में तौलिया बहुत अच्छा साथी होता है। ये बहुत अच्छी तरह से पसीने को सोख लेता है।इसके इस्तेमाल का सही तरीका मालूम हो तो कहने से क्या। कई बार हम इसे अपनी त्वचा पर जोर से रगड़ लेते हैं। इससे त्वचा रूखी हो सकती है। इसके बजाय, नहाने के बाद गर्म करें। इसे थोड़ा ठंडा होने दें और फिर आराम से इसका इस्तेमाल करें। ठीक वैसे ही जैसे हम रुई के फाहे से अपने जख्मों में बह रहे खून को अवशोषित करने के लिए करते हैं। इस तरह, आप अपनी त्वचा पर बचे अतिरिक्त हाइड्रेशन को बंद कर देते हैं, इसी तरह पसीना पोछने गमछे का प्रयोग करने में भी सावधानी बरतनी चाहिए। कभी पसीना पोछने के लिए रगड़ कर गमछा, रुमाल तौलिए का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
ज्यादा खुशबू वाला परफ्यूम्ड साबुन आपकी त्वचा में जलन पैदा कर सकता है। इससे त्वचा का प्राकृतिक तेल निकल जाता है और रूखापन आ जाता है। इसके बजाय, प्राकृतिक साबुन या बाथ जैल का उपयोग करें।
सप्ताह में एक बार भाप लें। इससे रोमछिद्रों को खोलने में मदद मिलेगी। यह इसलिए भी जरुरी है क्योंकि क्योंकि गर्मियों के दौरान आपकी त्वचा गंदगी और तेल जमा होने की वजह से ब्लॉक हो जाती है। हफ्ते में एक बार भाप जरुरी है पर धूप में नहाने, या गर्म पानी से शॉवर लेने से बचना चाहिए। ऐसा करने पर आपकी त्वचा और भी रूखी हो जाएगी।
बेहतर है कि आप नहाते समय ठंडे पानी का उपयोग करें, यह आपकी त्वचा को ठंडा करने और मुंहासों को रोकने में मदद करेगा। नहाने से पहले बादाम के तेल की मालिश करें। बादाम का तेल आपकी त्वचा को पानी बनाए रखने और साफ और हाइड्रेटेड दिखने में मदद करता है।
घर से निकलने से पहले नियमित रूप से सनस्क्रीन का प्रयोग करें क्योंकि यह न केवल आपकी त्वचा को हानिकारक यूवी किरणों से बचाता है बल्कि आपकी त्वचा को रूखा होने से भी बचाता है। अगर आपकी त्वचा तैलीय है तो सामान्य सनस्क्रीन और अगर आपकी त्वचा रूखी है तो मॉइस्चराइजिंग सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। सुनिश्चित करें कि आप अपनी त्वचा के प्रकार के हिसाब से सनस्क्रीन खरीदनी है। अपनी त्वचा और बालों पर सनस्क्रीन स्प्रे का प्रयोग करें।
पपीता एक प्राकृतिक मॉइस्चराइजर है और त्वचा की नमी को मापने के लिए जाना जाता है। इसमें एंटी-एजिंग गुण भी होते हैं। गर्मी में त्वचा के लिए पपीता फेशियल पैक बहुत लाभकारी है। इसे घर में भी बना सकते हैं। इसका चिकना पेस्ट बनाने के लिए बस कुछ टुकड़ों को ब्लेंड करें और इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाएं। पपीते को टपकने से रोकने के लिए रुई के बड़े टुकड़े अपने चेहरे पर रखें। गर्म पानी से धोने से पहले इसे 15 मिनट तक चेहरे पर लगा रहने दें। सप्ताह में तीन बार दोहराएं। इसी तरह दही फेशियल पैक भी शानदार गुण वाला है। यह एक बहुत ही सरल लेकिन प्रभावी उपाय, दही फेशियल पैक गर्मियों में आपकी शुष्क त्वचा का इलाज करने का एक शानदार तरीका है क्योंकि दही नमी बनाए रखता है और आपकी त्वचा को प्राकृतिक रूप से मुलायम बनाता है। बस एक चम्मच शहद में 2 चम्मच दही मिलाएं और इस मिश्रण को अपने चेहरे पर समान रूप से लगाएं। पानी से धोने से पहले इसे पूरी तरह सूखने दें। हमेशा की तरह कम करें। कोमल, कोमल और चमकदार त्वचा पाने के लिए इसे एक महीने तक सप्ताह में 2 बार दोहराएं।
सूखी त्वचा केवल मृत त्वचा कोशिकाएं होती हैं जो गिरती नहीं हैं, त्वचा की सतह पर जितना अधिक निर्माण होगा, आपका चेहरा उतना ही शुष्क महसूस करेगा। इससे खुजली वाली सूखी त्वचा हो सकती है जिससे निपटने के लिए दर्द होता है। ऐसे कई तरह के फेस क्लीन्ज़र हैं जो धीरे-धीरे दैनिक उपयोग से अत्यधिक शुष्क त्वचा से छुटकारा पा सकते हैं जबकि शुष्क त्वचा को अच्छी तरह से हटाने के लिए स्क्रब भी उपलब्ध हैं। ध्यान दें कि रासायनिक स्क्रब से जलन हो सकती है, इसलिए पहले यह सुनिश्चित करने के लिए एक परीक्षण करें कि आपकी त्वचा सामग्री के प्रति संवेदनशील नहीं है।