Glucose 6 Phosphate Dehydrogenase (G6PD Quantitative) Tips

पीलिया का होम्योपैथिक उपचार

MBBS,Advanced Trauma Life Support (ATLS)
General Physician, Alwar
पीलिया का होम्योपैथिक उपचार

पीलिया क्या है

पीलिया एक ऐसी चिकित्सकीय अवस्था है जिसके कारण व्यक्ति की त्वचा, म्यूकस मेंब्रेन और आंखों का रंग पीला पड़ जाता है। रोगी को पेशाब भी पीला हो सकता है। दरअसल यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक अंतर्निहित बीमारी का संकेत है।

पीलिया का दूसरा नाम इक्टेरस भी है। इससे पहले कि हम पीलिया के लिए 5 सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक दवाओं के बारे में बात करें, आइए समस्या को थोड़ा बेहतर समझें।

रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ने से पीलिया होता है। यह पीले-नारंगी रंग का होता है। बिलीरुबिन शरीर में आरबीसी के टूटने का उप-उत्पाद है। आरबीसी के टूटने के बाद लिवर इसे खून से प्रोसेस करता है।

आरबीसी की क्षति से बिलीरुबिन का स्तर बढ़ सकता है। साथ ही, इस बिलीरुबिन को प्रोसेस करने में लिवर की अक्षमता भी इसे शरीर में एकत्रित करने का कारण बन सकती है।

सारांश - पीलिया में पीड़ित की त्वचा, म्यूकस मेंब्रेन और आंखों का रंग और पेशाब पीला पड़ जाता है। दरअसल यह अंतर्निहित बीमारी का संकेत है। रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ने से पीलिया होता है।

पीलिया किस कारण होता है

पहले ही जैसा बताया जा चुका है, पीलिया का मतलब बिलीरुबिन के बढ़ने के कारण पीले रंग का मलिनकिरण होता है। बिलीरुबिन की यह वृद्धि विभिन्न कारणों या बीमारियों के कारण हो सकती है।

यह लाल रक्त कोशिकाओं के बढ़ते विनाश के कारण हो सकता है। ऐसे में हो सकता है कि लिवर पूरे बिलीरुबिन को प्रोसेस न कर पाए। एक अन्य स्थिति में, आरबीसी का विनाश नहीं बढ़ता है लेकिन लिवर बिलीरुबिन की सामान्य मात्रा को भी संसाधित करने में सक्षम नहीं होता है।

लिवर से जुड़ी कई बीमारियों में ऐसा हो सकता है। तीसरी स्थिति में शरीर प्रसंस्कृत बिलीरुबिन को बाहर नहीं निकाल पाता है और यह रक्त में एकत्रित हो जाता है। पीलिया के कुछ सामान्य कारण नीचे दिए गए हैं-

  • मलेरिया- मलेरिया आरबीसी की क्षति का कारण बन सकता है जिसके परिणामस्वरूप बिलीरुबिन बढ़ जाता है।
  • रक्त विकार- सिकल सेल रोग या थैलेसीमिया पीलिया का कारण बन सकता है।
  • हेपेटाइटिस- लीवर के संक्रमण से पीलिया हो सकता है जैसा कि हेपेटाइटिस ए या हेपेटाइटिस बी या हेपेटाइटिस सी के विभिन्न रूपों में होता है। अधिकतर, ये संक्रमण मूल रूप से वायरल होते हैं। वे तीव्र या जीर्ण हो सकते हैं।
  • एल्कोहलिक सिरोसिस- लंबे समय तक बहुत अधिक शराब का सेवन करने से लिवर सिरोसिस हो सकता है। ऐसे मामलों में लिवर अपना सामान्य काम नहीं कर पाता है।
  • पित्त नलिकाओं की रुकावट- पित्त नलिकाएं पतली नलियां होती हैं जो पित्त को यकृत और पित्ताशय से आंतों तक ले जाती हैं। कुछ मामलों में, वे अवरुद्ध हो सकती हैं। यह पित्त पथरी या कुछ कैंसर के कारण हो सकता है।
  • दवाएं- स्टेरॉयड, गर्भ निरोधक गोलियां या दर्द निवारक जैसी कुछ दवाएं भी लिवर को नुकसान पहुंचा सकती हैं और बिलीरुबिन के स्तर को बढ़ा सकती हैं।

सारांश- पीलिया के सामान्य कारणों में मलेरिया, रक्त विकार, हेपेटाइटिस, एल्कोहलिक सिरोसिस, पित्त नलिकाओं की रुकावट जैसे बहुत से कारण हैं।

पीलिया के लक्षण

पीलिया का मुख्य लक्षण आंखों का पीला पड़ना है। यह आमतौर पर सबसे पहला लक्षण होता है। बाद में यह पीलापन पूरे शरीर में मुंह, छाती, पेट और त्वचा तक फैल जाता है। इसके कुछ अन्य लक्षण भी हैं-

  • आंखों, मुंह और त्वचा का पीलापन। यह पीलापन त्वचा के नीचे फैल जाता है। गंभीर मामलों में, आंखें भूरी भी हो सकती हैं।
  • पेशाब भी गहरे पीले रंग का हो जाता है।
  • मल सामान्य भूरे रंग के बजाय हल्के पीले रंग का हो सकता है।
  • पूरे शरीर में खुजली हो सकती है।
  • थकान की अनुभूति हो सकती है और व्यक्ति आसानी से थक जाता है।
  • मतली या उल्टी हो सकती है।
  • कुछ मामलों में रोगी को पेट में दर्द हो सकता है।
  • रोगी का वजन घट सकता है ।
  • पीलिया के अन्य लक्षणों के साथ कुछ रोगियों को बुखार भी हो सकता है।

सारांश - पीलिया के सामान्य लक्षणों में आंखों, पेशाब , मुंह और त्वचा का पीलापन, पूरे शरीर में खुजली, थकान, उल्टी या पेट में दर्द हो सकता है। कुछ मामलों में रोगी का वजन घट सकता है।

पीलिया का इलाज

प्रचलित एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली में शायद ही पीलिया का कोई इलाज है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लिवर सभी एलोपैथिक दवाओं को प्रोसेस करता है।

जब लिवर पहले से ही काम नहीं कर रहा हो, कोई एलोपैथिक दवा देने से समस्या और भी बढ़ सकती है। इसलिए डॉक्टर पाचन तंत्र के लिए सिर्फ आराम करने की सलाह देते हैं।

उन्हें लगता है कि लिवर अपने आप फिर से सामान्य रूप से काम करना शुरू कर देगा। इसलिए वे भारी भोजन, मसाले और नॉन वेज न लेने की सलाह देते हैं। डॉक्टर भी ऐसे खाद्य पदार्थों की सलाह देते हैं जो पेट के लिए हल्के हों जैसे गन्ने का रस।

सारांश- एलोपैथी में पीलिया का कोई खास इलाज नही है। डाक्टर आपको परहेज और आराम की सलाह देते हैं।

पीलिया का होम्योपैथिक इलाज

एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के विपरीत, होम्योपैथी में पीलिया के लिए अच्छा उपचार उपलब्ध है। ऐसी कई होम्योपैथिक दवाएं हैं जो लिवर के सामान्य कामकाज को पुनर्जीवित कर सकती हैं।

ये होम्योपैथिक दवाएं बहुत प्रभावी हैं और लिवर की कार्यप्रणाली को जल्दी ठीक करती हैं। उपचार शुरू करने के तुरंत बाद बिलीरुबिन का स्तर कम होना शुरू हो जाता है। सही होम्योपैथिक दवा का चुनाव रोगी के लक्षणों पर निर्भर करता है।

होम्योपैथी में पीलिया का कोई निश्चित इलाज नहीं है। जैसा कि अन्य मामलों में होता है, प्रत्येक रोगी के लिए उपचार को अलग-अलग करना होता है। एक रोगी में मौजूद सभी लक्षणों को ध्यान में रखा जाता है।

सारांश - होम्योपैथी में पीलिया के लिए कई प्रभावी दवाएं हैं। सही होम्योपैथिक दवा का चुनाव रोगी के लक्षणों पर निर्भर करता है। प्रत्येक रोगी के लिए उपचार अलग-अलग हो सकता है।

पीलिया के लिए सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक दवाएं

पीलिया के इलाज के लिए कई होम्योपैथिक दवाएं हैं। किसी रोगी को कौन सी दवा देनी है यह उसके लक्षणों पर निर्भर करता है।

कार्डुस मैरियनस

यह पित्ताशय की भागीदारी के साथ पीलिया के लिए सबसे अच्छी होम्योपैथिक दवाओं में से एक है। सेंट मैरी थीस्ल इस दवा का सामान्य नाम है। यदि रोगी को लिवर क्षेत्र में दर्द होता है, लिवर बढ़ा हुआ है, लगातार मिचली आ रही है और उल्टी हो रही है।

इसके अलावा रोगी को हरे अम्लीय द्रव की उल्टी हो रही है, कब्ज और दस्त हो रहे हैं, तो उसे इस दवा से लाभ हो सकता है।

इन लक्षणों में रोगी को यहां तक कि लिवर की बीमारी के साथ टांगों, पैरों और अन्य आश्रित भागों में सूजन भी हो सकती है।

चेलिडोनियम

यह दाहिने कंधे के ब्लेड के ठीक नीचे दर्द के साथ पीलिया के लिए सबसे अच्छी होम्योपैथिक दवाओं में से एक है।

यह दवा जिन रोगियों को दी जाती है उनके लक्षणों में दर्द स्थिर रहता है, पूरे पेट में आर-पार और लिवर क्षेत्र के आसपास कसाव का अहसास होता है, गर्म चीजों को खाने-पीने की इच्छा होती है। मुँह का स्वाद कड़वा होता है।

नक्स वोमिका

यह शराब के दुरुपयोग के कारण पीलिया के लिए सबसे अच्छी होम्योपैथिक दवाओं में से एक है। इसमें लम्बे समय तक शराब का सेवन करने से लिवर खराब हो जाता है।

रोगी अकसर अधिक तेल मसाले युक्त भोजन का सेवन भी कर रहे होते हैं। इसमें  रोगी प्राय: चिड़चिड़े स्वभाव का होता है। ठंड के प्रति असहिष्णुता होती है और हर समय ठंडक महसूस होती है।

पेट में दर्द होता है जो आमतौर पर खाने के बाद बढ़ जाता है। सुबह के समय मतली अधिक होती है। लिवर खराब होने लगता है। लिवर के क्षेत्र में तीव्र दर्द होता है। इन लक्षणों में नक्स वोमिका काफी लाभकारी होती है।

ब्रायोनिया

यह बढ़ी हुई प्यास के साथ पीलिया के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवाओं में से एक मानी जाती है। इसमें म्यूकस मेंब्रेन का सूखापन बढ़ जाता है। यह सूखापन बढ़ी हुई प्यास में परिलक्षित होता है।

रोगी को हमेशा प्यास लगती है। वह बड़ी मात्रा में पानी पीता है। यह पानी की कमी कब्ज का कारण भी बनती है। मल सूखा और सख्त होता है। लिवर के आसपास दर्द होता है। पेट में दबाव पड़ने से दर्द बढ़ सकता है।

पोडोफाइलम

यह लिवर क्षेत्र में दर्द के साथ पीलिया के लिए सबसे अच्छी होम्योपैथिक दवाओं में से एक है। इसमें रोगी को पेट में कमजोरी या डूबने की जैसी अनुभूति होती है। रोगी उदर क्षेत्र में दर्द की शिकायत करता है।

पेट के बल लेटने से यह दर्द दूर हो जाता है। पीलिया के साथ डायरिया भी हो सकता है। इस दवा को लेने से लक्षणों में राहत मिल सकती है।

निष्कर्ष

पीलिया यानी जॉनडिस किसी अंतर्निहित बीमारी का संकेत है। रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ने से पीलिया होता है। इसेक लक्षणों में आंखं, त्वचा पेशाब का पीलापन से लकेर थकान, वजन घटना तक शामिल है। इसका होम्योपैथी में कई इलाज है। कई दवाएं हैं पर कौन से दवा इस्तेमाल होगी यह रोगी के लक्षणों पर निर्भर है। 

हल्दी के औषधीय गुण

Dr. Ashish Sharma 90% (498 ratings)
M.Sc - Psychology, PGDEMS, Bachelor of Ayurveda, Medicine and Surgery (BAMS)
Ayurvedic Doctor, Delhi
हल्दी के औषधीय गुण
हल्दी के गुण अनंत हैं। हल्दी पर रोज नए शोध हो रहे हैं। भारतीय आहार शैली में यह आदिकाल से शामिल रही है। किसी समय इसे रंग के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता था। यह एक सर्वगुण संपन्न एंटीबायोटिक्स तो है ही, प्राकृतिक चमत्कार के रूप में भी इसकी ख्याति है। यह कैंसर से लेकर अल्झाइमर्स तक कई बीमारियों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। इन २० कारणों की वजह से हल्दी को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिएः
1. यह एक प्राकृतिक एंटिसेप्टिक एवं एंटिबैक्टेरियल एजेन्ट है। हल्दी का पावडर जले और कटे अंग पर लगाने से संक्रमण का जोखिम कम हो जाता है।
2. हल्दी को फूलगोभी के साथ मिलाकर खाने से प्रोस्टेट कैंसर की आशंका जाती रहती है। इसके अलावा अगर प्रोस्टेट कैंसर हो तो उसका बढ़ना रुक जाता है।
3. हल्दी स्तन कैंसर को फेफड़ों में जाने से रोक देती है।
4. हल्दी से मेलानोमा यानी काले तिल उभरना रुक सकता है। इसके अलावा हल्दी त्वचा का रूप निखारने के लिए सदियों से भारत में इस्तेमाल की जाती रही है।
5. बचपन में होने वाले ल्यूकेमिया यानी रक्तकैंसर का जोखिम कम हो जाता है।
6. लिवर शुद्धि के लिए यह एक प्राकृतिक छन्नी है।
7. हल्दी मस्तिष्क में बनने वाले एम्लोयड प्लॉक की वृद्धि एवं निर्माण रोककर एल्जाइमर्स की बढ़त पर रोकथाम कर लेती है।
8. यह कई प्रकार के कैंसर की वृद्धि पर रोकथाम लगाती है।
9. यह दाह और जलन को दूर करने का एक प्राकृतिक पदार्थ है। यह कई एंटी-इन्फ्लेमेटरी ड्रग्रस से बेहतर काम करती है और इसके कोई साइड-इफेक्ट्स भी नहीं होते।
10. यह प्राकृतिक दर्द-निवारक है।
11. हल्दी मल्टीपल स्क्लेरोसिसस की रोकथाम करने में समर्थ है।
12. यह वजन कम करने के साथ फैट मेटाबोलिज्म में मदद करती है।
13. अर्से से इसे अवसाद दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है।
14. हल्दी आर्थ्राइटिस और रिह्यूमेटाइड ऑर्थ्राइटिस का प्राकृतिक निरोधक है।
15. हल्दी कीमोथैरेपी में इस्तेमाल की जाने वाली दवा पैक्लिटेक्सेल के प्रभाव को बढ़ा देती है और इसके साइड-इफेक्ट्स को कम कर देती है।।
16. पैंक्रियाज ग्रंथि के कैंसर पर हल्दी के प्रयोग पर हुए शोधों के नतीज़े सकारात्मक आ रहे हैं।
17. किसी भी ग्रंथि में नई रक्त नलिकाओं के निर्माण को हल्दी सफलतापूर्वक रोक देती है।
18. घाव को जल्दी भरने के साथ-साथ यह क्षतिग्रस्त त्वचा को भी ठीक करती है।
19. सोरायसिस सहित त्वचा की कई बीमारियों के इलाज़ में हल्दी से मदद मिलती है।
20. कच्ची हल्दी पर हुए प्रयोगों से पता चलता है कि इससे शराब के कारण क्षतिग्रस्त हुए लिवर को ठीक करने में मदद मिलती है।

सावधानियाँ...
पित्ताशय की पथरी एवं पित्त की रुकावट के मरीजों को हल्दी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाएँ हल्दी का खूब उपयोग करती हैं लेकिन इससे गर्भाशय की प्रक्रिया भी तेज होने लगती है इसलिए किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह से इसे इस्तेमाल करना चाहिए
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शीघ्रपतन!

Dr. Mahender Kumar Gera 87% (90 ratings)
B.A.M.S.
Ayurvedic Doctor, Rewari
शीघ्रपतन!

संभोग करते समय कम समय में शुक्र स्खलन हो जाना, मन में बुरी भावनाएँ उत्पन्न होने से शुक्र-वीर्य स्खलन होना मतलब शीघ्रपतन इन दिनों यह बीमारी बहुत ज्यादा प्रभाव दिखाने लगी है।

कारण:

अत्यधिक स्त्री संभोग, कम उम्र में संभोग, हस्तमैथुन की आदत, स्ट्रैस, ब्रह्यचर्य का पालन न करना, अत्यधिक मैथुनेच्छा, काफी गरम स्वभाव वाले भोजन का सेवन, मद्यपान-धूम्रपान, तम्बाकू का सेवन इत्यादि शीघ्रपतन की समस्या उत्पन्न करने में सहायक होते हैं। शरीर में किसी भी कारण से गरमी बढ़ना भी शीघ्रपतन को बढ़ा सकता है।

उपरोक्त वजह से लिंग की मांसपेशियों व नाड़ियों में कमज़ोरी आ जाती है। वीर्य को रोकने की क्षमता कम हो जाती है और वीर्य पतला बनने से वीर्य स्खलन बहुत जल्दी हो जाता है।

आज के जमाने में बढ़ा हुआ स्ट्रैस या अन्य कोई मानसिक कमज़ोरी भी शीघ्रपतन की समस्या का निर्माण कर सकती है। डायबिटीज़ की बीमारी में भी शीघ्रपतन की समस्या दिखाई देती है।

शीघ्रपतन के रोकथाम में ध्यान रखने योग्य बातें:

  • ब्रह्यचर्य पालन

  • मसालेदार पदार्थों का परहेज

  • स्ट्रैस मैनेजमेंट

  • नशीले पदार्थों का सेवन बन्द करना

  • चाय-कॉफी का सेवन कम करना

  • डॉक्टर से तुंरत चिकित्सा संबधी परामर्श करना

घरेलू उपचार:

  • दूध के साथ जायफल का सेवन शीघ्रपतन को रोकता है।

  • शतावर का दूध के साथ सेवन करना शीघ्रपतन में लाभप्रद है।

  • रात के समय 4-5 बादाम पानी में भिगोकर रखें, दूसरे दिन सुबह ऊपरी छिलका निकालकर दूध में पीसकर उस दूध का सेवन करना चाहिए।

  • मक्खन और मिश्री का नित्य सेवन शीघ्रपतन में लाभप्रद है।

  • अधिक प्याज का सेवन शीघ्रपतन को बढ़ाता है इसलिए कच्चे प्याज का सेवन बंद करें।

  • अदरक से शरीर में रक्त का संचार बढ़ता है। अदरक के सेवन से लिंग को रक्त संचार ज्यादा होने से लिंग की ताकत बढती है और शीघ्रपतन की समस्या कम होती है।

  • छुआरे का घी के साथ सेवन शीघ्रपतन में लाभप्रद है।

  • हरे ताज़ा आंवलों के 10 ग्राम रस में मधु 50 ग्राम मिलाकर चाट लें। इस प्रयोग से वीर्य का पतलापन दूर हो जायेगा।

क्या ना करें:

  • सुबह देर तक सोना व रात में देर तक जागना।

  • बहुत ज्यादा स्त्री चिंतन से बचें।

  • योगासन व प्राणायाम का नियमित अभ्यास करें।

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तुलसी अर्क के फायदे

Dr. Sanjeev Kumar Singh 92% (194 ratings)
BAMS
Ayurvedic Doctor, Lakhimpur Kheri
तुलसी अर्क के फायदे

भारत में तुलसी का पौधा लगभग हर घर में पाया जाता है।यह ना सिर्फ एक धार्मिक महत्व का पौधा है बल्कि इसके औषधीय गुण भी बेजोड़ हैं। तुलसी के लाभ अनंत हैं, और इस प्राकृतिक औषधि का अर्क आपके शरीर को फिट रख सकता है और विभिन्न संक्रमणों से लड़ सकता है। यह डेंगू और मलेरिया जैसे घातक बुखारों को आपसे दूर रखता है और सामान्य सर्दी के लक्षणों से भी आपकी सुरक्षा करता है।

आयुर्वेद के अनुसार तुलसी का अर्क खांसी, बदहजमी और हिचकी जैसे रोगों में भी उपयोगी है। यह गले में खराश, ब्रोंकाइटिस और ब्रोन्कियल अस्थमा में मदद करता है। यह प्राकृतिक औषधि आपके शरीर को बीमारियों से बचाती है। इस प्रकार आपको स्वस्थ और सक्रिय रखने में सक्षम होती है। तुलसी में एंटीमाइक्रोबियल, एंटी-एलर्जी और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो नाक के श्लेष्म झिल्ली की सूजन को रोकते हैं।

तुलसी का उपयोग लंबे समय से दुनिया भर में होता आ रहा है। अपने कड़वे स्वाद के बावजूद, यह गहरे ऊतकों में प्रवेश करने और कई बीमारियों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जानी जाती है। तुलसी कई प्रकार की होती है।इन दिनों पंच तुलसी का अर्क बहुत लोकप्रिय है। आइए जानते हैं कि तुलसी का अर्क आप किन किन बीमारियों में प्रयोग कर सकते हैं।

पंच तुलसी अर्क क्या है

आयुर्वेद में पारंपरिक दवाओं की तैयारी के लिए तुलसी को सबसे मूल्यवान और समग्र औषधीय पौधे के रूप में स्थान प्राप्त है। इसके अनेक गुणों के कारण इसे 'जड़ी-बूटियों की रानी' और 'प्राकृतिक औषधि की माता' के रूप में जाना जाता है। पंच तुलसी का अर्क आयुर्वेद और प्राकृतिक स्वास्थ्य का पालन करने वालीं सभी पद्धतियों में उपयोग किया जाता है। पंच तुलसी का अर्क  5 विभिन्न प्रकार के तुलसी के अर्क का मिश्रण हैं और ये बहुत से रोगों में लाभ प्रदान करता है । इसे बनाने में श्यामा तुलसी, विष्णु तुलसी, रामा तुलसी, निम्बू तुलसी, वन तुलसी का प्रयोग किया जाता है। यह अर्क एक प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर है। यह एंटी बैक्टीरियल और एंटीवायरल आयुर्वेदिक अर्क आपको खांसी और जुकाम से राहत देता है। पंच तुलसी के अर्क का उपयोग करने से सांस, जोड़ों और पाचन स्वास्थ्य को ठीक रखने में मदद मिलती है। इस अर्क के सेवन से तनाव में राहत मिलती है।साथ ही ये आपकी त्वचा को भी फायदा पहुंचाता है। पंच तुलसी का अर्क एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है । पंच तुलसी के अर्क की 5 से 10 बूंदों को गर्म पानी या चाय में मिलाकर पीने से दिन कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों में राहत मिल सकती है।इसका सेवन दिन में दो या तीन बार किया जा सकता है।

तुलसी के अर्क के लाभ

1. इम्यूनिटी बढाए

तुलसी में इम्यूनो मॉड्यूलेटरी प्रभाव होता है। इसके अर्क का उपयोग दालचीनी, काली मिर्च, सोंठ और किशमिश के साथ मिलाकर एक आयुर्वेदिक काढ़े में भी होता है जो प्रतिरक्षा-बढ़ाने का काम करता है। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए इसका दिन में दो बार सेवन किया जा सकता है।

2. घाव भरे

तुलसी में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण भरपूर मात्रा में होते हैं। ये शरीर के लिए सुरक्षात्मक लाभ प्रदान करते हैं। खासतौर पर आपके दिल, लीवर और किडनी के लिए ये बेहद लाभदायक हैं। तुलसी का अर्क तोज़ से घाव भरने में मदद करता है।

3. शरीर के लिए एंटीबैक्टीरियल सुरक्षा

तुलसी के लाभ किसी एक दायरे में बंधे हुए नहीं हैं।इसके एंटी बैक्टीरियल गुणों के कारण इसका लाभ व्यापक स्तर पर मिलता है। तुलसी का अर्क अपने एंटीवायरल, एंटीबैक्टीरियल, एंटिफंगल और एंटीप्रोटोजोअल गुणों के कारण विभिन्न प्रकार के रोगजनकों के खिलाफ कार्य कर सकता है।

4. सांस की बीमारी में लाभ

तुलसी के अर्क का उपयोग सर्दी-खांसी जैसी सांस संबंधी बीमारियों से भी राहत पाने के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में इसका उपयोग ब्रोन्कियल अस्थमा के साथ-साथ ब्रोंकाइटिस के उपचार के रूप में भी प्रचलित है।

5. शारीरिक और मानसिक तनाव से राहत

अपने एडाप्टोजेनिक गुणों के कारण, तुलसी का अर्क आपके शरीर को तनाव से निपटने और बेहतर तरीके से प्रबंधित करने में मदद करता है। इसमें न केवल मनोवैज्ञानिक तनाव बल्कि शारीरिक, रासायनिक और मेटाबालिज़्म से संबंधित तनाव भी शामिल है। तुलसी में मौजूद ओसिमुमोसाइड्स ए और बी जैसे यौगिक होते हैं, जो तनाव को कम करते हैं और मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन और डोपामाइन को संतुलित करते हैं। इसलिए इसे एक एंटी-स्ट्रेस एजेंट के रूप में जाना जाता है।

6. पाचन स्वास्थ्य के लिए अच्छा

स्वस्थ आहार और व्यायाम की कमी के कारण इन दिनों लोगों में पाचन संबंधी समस्याएं काफी आम हैं। पेट से संबंधित सभी समस्याओं के लिए तुलसी के अर्क की बूंदें बेहद फायदेमंद होती हैं। चाहे पेट की ख़राबी हो या दस्त, कब्ज या एसिडिटी - तुलसी का अर्क आपके पेट के लिए सुखदायक माना जाता है।  तुलसी का अर्क शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और पाचन स्वास्थ्य में मदद करने के लिए जाना जाता है। इसने एस्चेरिचिया कोलाई जैसी मुश्किल से संभलने वाली स्थिति में भी लाभ पहुंचा कर बेहतर परिणाम दिए हैं। दरअसल ई. कोलाई के कुछ प्रकार दस्त का कारण बन सकते हैं।ये पाचन को खराब करते हैं औऱ पेट संबंधी रोगों को बढ़ाते हैं पर तुलसी का अर्क इनसे छुटकारा दिलाने में प्रभावशावली है। तुलसी के अर्क के साथ कुछ नींबू और अदरक का रस मिलाकर रोजाना इसका सेवन करने से आप तेजी से बेहतर हो सकते हैं। आप सुबह गुनगुने पानी में तुलसी का अर्क भी रख सकते हैं।

7. संक्रमण से मुक्ति

तुलसी का अर्क प्रदूषण और अन्य संक्रामक स्थितियों जैसे अस्थमा, एनीमिया, माइग्रेन, सामान्य एलर्जी, त्वचा पर चकत्ते, खुजली, फ्लू आदि से जुड़ी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से लड़ने में मदद करता है। यह अल्सर और मुंह में संक्रमण के लिए भी बहुत उपयोगी है।

8. उच्च रक्तचाप को कम करे

तुलसी का अर्क हृदय से संबंधित रोगों से लड़ने और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह छाती में जमाव, हृदय रोग और ऐसी स्थितियों से उत्पन्न कमजोरी को दूर करने में लाभकारी है।

9. एंटी-वायरल गुण

तुलसी के पौधे का उपयोग दवाओं में किया जाता है और इसमें विभिन्न चिकित्सीय गुण और फाइटोकेमिकल्स होते हैं जो रोगजनक रोगाणुओं के खिलाफ एंटीबैक्टीरियल एजेंट के रूप में कार्य करते हैं। तुलसी के पत्तों के अर्क में एंटी-वायरल गुण होते हैं और वायरस के विकास के खिलाफ रोकथाम करता है। तुलसी का अर्क एक उत्कृष्ट एंटीबैक्टीरियल एजेंट है जिसका उपयोग खाद्य उत्पादों में और दवा के रूप में भी किया जाता है।

10. त्वचा और बालों का रखे ख्याल

तुलसी का अर्क त्वचा के दाग-धब्बों को दूर करने में मदद करता है। साथ ही यह मुंहासों को रोकने में भी मदद करता है।यह एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होने के कारण  यह उम्र बढ़ने के लक्षणों को रोकने में मदद करता है।यह आपके बालों की जड़ों को मजबूत करता है जिससे बालों का झड़ना रुकता है। इसके अलावा  तुलसी के एंटीफंगल गुण फंगस के विकास को रोकते हैं और आपके स्कैल्प को स्वस्थ्य बनाए रखते हैं।

11. मधुमेह को नियंत्रित करे

तुलसी का अर्क मधुमेह को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।तुलसी के अर्क में कई विटामिन और खनिज भी होते हैं  जो शरीर में इंसुलिन के स्राव में मदद करते हैं। टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों के लिए तुलसी का अर्क अमृत के समान है।

12. वजन घटाने में मदद करे

अगर बहुत कोशिशों के बाद भी आपको अपने वजन में ज्यादा अंतर नजर नहीं आ रहा है तो तुलसी का अर्क निश्चित रूप से मदद कर सकता है। तुलसी का अर्क आपके शरीर में तनाव पैदा करने वाले हार्मोन की मात्रा को कम करता है, जिससे आपका वजन कम करने में मदद मिलती है। सुबह और शाम अपने कप ग्रीन टी में तुलसी के अर्क की कुछ बूंदों को मिलाने के साथ-साथ दिन भर तुलसी के अर्क में पानी मिलाकर पीते रहृने से लाभ होता है।

कुल मिलाकर तुलसी के कई फायदे हैं, जिससे तुलसी का अर्क सही विकल्प बन जाता है। कपिवा तुलसी सन्दूक की बूंदें किसी और की तरह नहीं हैं। रहस्यमय मथुरा से प्राप्त पांच बेहतरीन मिश्रणों के साथ, तुलसी सन्दूक एक से अधिक समस्याओं का समाधान करता है। आप बूंदों की सुगंध और स्वाद के प्यार में पड़ने के लिए भी बाध्य हैं।

तुलसी अर्क के उपयोग

सर्दी के लिए काढ़ा

हर बार जब आपको सर्दी ज़ुकाम हो तो बस अपने काढ़े में तुलसी के अर्क की एक या दो बूंद डालें और इसे पिएं। यदि समस्या बनी रहती है, तो आप दिन में दो बार ये काढ़ा ले सकते हैं।

चाय में करें शामिल

ग्रीन टी हो, दूध वाली चाय हो या कहवा - तुलसी के अर्क की कुछ बूंदों को मिलाने से हर तरह की चाय कई गुमा अधिक लाभकारी हो जाती है।

पानी को स्वस्थ बनाएं

जब खुद को स्वस्थ रखने की बात आती है तो पानी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। चमकती त्वचा, स्वस्थ बाल या यहां तक कि वजन कम करने का राज और कुछ नहीं बल्कि ढेर सारा पानी पीना है। अपने पानी में तुलसी के अर्क की कुछ बूँदें डालें और पूरे दिन इसके गुणों का लाभ लेते रहें।

जूस में मिलाएं

ताजे फलों और सब्जियों से निकाले गए रस अच्छे खाद्य पदार्थों के प्रमुख उदाहरण हैं। अपने पसंदीदा जूस में तुलसी के अर्क की कुछ बूंदों को मिलाने से आपको अपने आप को फिर से सक्रिय करने में मदद मिलेगी!।

तुलसी अर्क से  भाप लें

हर बार जब भी आपको ज़ुकाम हो गले में खराश या हल्का सिरदर्द हो तो भाप लेना सबसे अच्छा विकल्प है। अपनी आवश्यकता के अनुसार थोड़ा पानी उबालें। उसमें तुलसी के अर्क की कुछ बूंदें डालें। इससे भाप लेने पर आपको आराम मिलेगा।

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कलर विजन का इलाज

Dr. Sanjeev Kumar Singh 92% (194 ratings)
BAMS
Ayurvedic Doctor, Lakhimpur Kheri
कलर विजन का इलाज

कलर ब्लाइंडनेस- कुछ रंगों के बीच अंतर को देखने में असमर्थता है। इसे वर्णांधता- दृष्टि में खराब या कम रंग-दोष भी कहा जाता है। हालांकि बहुत से लोग आमतौर पर इस स्थिति के लिए "कलर ब्लाइंड" शब्द का उपयोग करते हैं, वास्तविक रंगदोष - जिसमें सब कुछ काले और सफेद रंगों में देखा जाता है - दुर्लभ है। रंग अंधापन आमतौर पर विरासत में मिला रोग है। पुरुषों में कलर ब्लाइंडनेस के साथ पैदा होने की संभावना अधिक होती है। वर्णांधता वाले अधिकांश लोग लाल और हरे रंग के कुछ रंगों में अंतर नहीं कर पाते हैं।

रंगों को कैसे देखती हैं हमारी आंखें

प्रकाश, जिसमें सभी रंग तरंगदैर्ध्य होते हैं, कॉर्निया के माध्यम से आपकी आंख में प्रवेश करता है और आपकी आंख के लेंस और पारदर्शी, जेली जैसा ऊतक (विट्रियस ह्यूम) से आपकी आंख के पीछे रेटिना के मैकुलर क्षेत्र में तरंग दैर्ध्य-संवेदनशील कोशिकाओं (शंकु) तक जाता है। शंकु प्रकाश की छोटी (नीला), मध्यम (हरा) या लंबी (लाल) तरंग दैर्ध्य के प्रति संवेदनशील होते हैं। इन कोशिकाओं में रसायन एक प्रतिक्रिया को ट्रिगर करते हैं और आपके मस्तिष्क को आपके ऑप्टिक तंत्रिका के माध्यम से वेवलेंथ की जानकारी भेजते हैं।

कलर ब्लाइंनेस (वर्णांधता) के प्रकार

यदि आपकी आंखें सामान्य हैं, तो आपको रंग दिखाई देता है। लेकिन अगर आपके शंकु में एक या अधिक तरंग दैर्ध्य-संवेदनशील रसायनों की कमी है, तो आप लाल, हरे या नीले रंग के रंगों में अंतर करने में असमर्थ होंगे।

सबसे आम वर्णांधता या दृष्टि रंग दोष लाल और हरे रंग के कुछ रंगों को देखने में असमर्थता है। दोष हल्के, मध्यम या गंभीर हो सकते हैं। अक्सर, लाल-हरे या नीले-पीले रंग की कमी वाला व्यक्ति दोनों रंगों के प्रति पूरी तरह से असंवेदनशील नहीं होता है। प्रकाश स्पेक्ट्रम में रंगों को देखना एक जटिल प्रक्रिया है जो आपकी आंखों की प्रकाश की विभिन्न तरंग दैर्ध्य पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता से शुरू होती है।

सामान्यतः, वर्णांधता वाले लोग नीले और पीले रंग के रंगों में अंतर नहीं कर पाते हैं। वर्णान्धता से प्रभावित लोग भेद नहीं कर पाते हैं:

लाल-हरे रंग की कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता)

नीले-पीले रंग रंग की कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता)

समग्र रंग की कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता)

लाल-हरे रंग की कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता):

यह कलर ब्लाइंडनेस का सबसे आम प्रकार है। इस प्रकार के कलर ब्लाइंडनेस में लाल और हरे रंग को पहचानने के लिए जिम्मेदार कोन सेल्स (कोशिकाओं) में हल्के संवेदनशील वर्णक की कमी होती है, जिसके कारण वे अच्छी तरह से विकसित नहीं होते हैं और सामान्य रूप से कार्य नहीं करते हैं। कोई भी व्यक्ति जो इस प्रकार के कलर ब्लाइंडनेस से प्रभावित है, उसे किसी भी स्थिति में लाल और हरे रंग को चुनना चुनौतीपूर्ण लगता है।

नीले-पीले रंग रंग की कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता):

इस प्रकार का रंग अंधापन लाल-हरे रंग की कमी से कम आम है। इस प्रकार के कलर ब्लाइंडनेस में कोन सेल्स जो नीले और पीले रंगों को पहचानने के लिए जिम्मेदार होती हैं, उनमें भी हल्के संवेदनशील वर्णक की कमी होती है, जिसके कारण वे अच्छी तरह से विकसित नहीं होते हैं और सामान्य रूप से कार्य नहीं करते हैं। जो व्यक्ति नीले रंग को समझने की कोशिश कर रहा है, वह अक्सर इसे हरे रंग से गलत पहचान लेता है और पीले को बैंगनी रंग से गलत पहचान लेता है।

समग्र रंग की कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता):

यह कलर ब्लाइंडनेस का सबसे दुर्लभ और अधिक गंभीर प्रकार है। इस प्रकार के कलर ब्लाइंडनेस में व्यक्ति किसी भी रंग में अंतर नहीं कर पाता है। रंग मूल्यांकन के लिए जिम्मेदार कोई भी कोन सेल रंग पर प्रतिक्रिया नहीं करता है, इसलिए व्यक्ति केवल ब्लैक, व्हाइट और ग्रे देखने में सक्षम होता है।

कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) के कारण

कलर ब्लाइंडनेस के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे:

वंशानुगत विकार- वंशानुगत कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक आम है। सबसे आम लाल-हरे रंग की वर्णांधता है,नीले-पीले रंग की कलर ब्लाइंडनेस कमी बहुत कम आम है। टोटल कलर ब्लाइंडनेस के ना के बराबर केस होते हैं। वंशानुगत रंग की कमी आमतौर पर दोनों आंखों को प्रभावित करती है, और गंभीरता आपके जीवनकाल में नहीं बदलती है।

बीमारियां- कुछ बीमारियां कलर ब्लाइंडनेस का कारण बन सकती हैं जैसे  सिकल सेल एनीमिया, मधुमेह, धब्बेदार अध: पतन, अल्जाइमर रोग, मल्टीपल स्केलेरोसिस, ग्लूकोमा, पार्किंसंस रोग, पुरानी शराब और ल्यूकेमिया। इस स्थिति में एक आंख दूसरी की तुलना में अधिक प्रभावित हो सकती है। इस तरह की स्थिति में अगर बीमारी का इलाज होता है तो वर्णांधता की स्थिति में सुधार देखा जाता है।

दवाओं के रिएक्शन- कुछ दवाएं दृष्टि में रंग दोष को प्रभावित कर सकती है। इन दवाओं में कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों, हृदय की समस्याओं, उच्च रक्तचाप, स्तंभन दोष, संक्रमण, तंत्रिका संबंधी विकार और मनोवैज्ञानिक समस्याओं की दवा शामिल है।

बढ़ती उम्र -  कई बार और कुछ लोगों में ऐसा देखन को मिला है कि जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, आपकी रंग देखने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है।

रसायनिक संपर्क-कार्यस्थल में कुछ रसायनों जैसे कार्बन डाइसल्फ़ाइड और उर्वरकों के संपर्क में आने से कलर ब्लाइंडनेस की स्थिति हो सकती है।

कलर ब्लाइंजनेस का इलाज

अधिकांश तरीकों की कलर ब्लाइंडनेस का फिलहाल कोई इलाज नहीं है। अगर कलर ब्लाइंडनेस की समस्या कुछ दवाओं या आंखों की स्थिति के उपयोग से जुड़ी हुई है तो  दृष्टि की समस्या पैदा करने वाली दवा को बंद करने या नेत्र रोग का इलाज करने से  स्थिति सुधर सकती है।

अगर आपकी कलर ब्लाइंडनेस किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण हो रही है, तो आपका डॉक्टर उस स्थिति का इलाज करेगा जिसके कारण समस्या हो रही है। यदि आप कोई ऐसी दवा ले रहे हैं जो कलर ब्लाइंडनेस का कारण बनती है, तो आपका डॉक्टर आपके द्वारा ली जाने वाली मात्रा को समायोजित कर सकता है या आपको किसी दूसरी दवा पर स्विच करने का सुझाव दे सकता है।

यहां ध्यान  देने वाली  बात ये है कि ज्यादातर समय, कलर ब्लाइंडनेस गंभीर समस्याओं का कारण नहीं बनता है। अगर कलर ब्लाइंडनेस रोजमर्रा के कामों में समस्या पैदा कर रहा है, तो ऐसे उपकरण और तकनीक हैं जो मदद कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

चश्मा और कॉन्टैक्ट लेंस- विशेष कॉन्टैक्ट लेंस और चश्मा उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो कलर ब्लाइंड हैं। ऐसे चश्मों का उपयोग कर वे रंगों के बीच अंतर बेहतर ढंग से बात सकते हैं।

विजुअल एड्स- कलर ब्लाइंडनेस के साथ जीने में मदद करने के लिए विज़ुअल एड्स, ऐप्स और अन्य तकनीक का उपयोग किया जा  सकता है। उदाहरण के लिए, आप अपने फोन या टैबलेट के साथ एक तस्वीर लेने के लिए एक ऐप का उपयोग कर सकते हैं और फिर उस क्षेत्र के रंग का पता लगाने के लिए फोटो के हिस्से पर टैप कर सकते हैं।.

भारत में एक क्लीनिक का दावा है कि 15 साल की रिसर्च के बाद वो दुनिया की पहली ऐसी क्लीनिक है जो कलर ब्लाइंडनेस का इलाज कर सकती है। उनाक दवा है कि उन्होंने 1500 से ज्यादा मरीजों का इलाज भी किया है। उनका यह भी दावा कि उनके पेटेंट इलाज में रेटिना में न्यूरोट्रॉफिक कारकों को उत्तेजित करके कोशिका स्तर पर परिवर्तन लाया जाता है। यह कलर ब्लांइडनेंस के लिए जिम्मेदार कोन सेल्स को सक्रिय करता है। इसमें इलाज प्रक्रिया के एक भाग के रूप में इलेक्ट्रो-एक्यूपंक्चर को भी शामिल किया गया है।

घरेलू इलाज, लाइफस्टाइल से बनती है बात

अनुवांशिक कलर ब्लाइंडनेस का कोई इलाज नहीं है जो परिवारों में पारित हो गया है, लेकिन इसके असर को कम किया जा सकता है। कलर ब्लाइंडनेस का फिलहाल कोई इलाज नहीं है पर घरेलू उपाय और लाइफ स्टाइल के बदलाव पीड़ित को बहुत राहत पहुंचा सकते हैं।

·  कलर ब्लाइंडनेस वाले बच्चों को कुछ थिरैपी से मदद मिल सकती है।

·  रंगीन वस्तुओं का क्रम याद रखें- यदि ट्रैफिक लाइट जैसे अलग-अलग रंगों को जानना महत्वपूर्ण है, तो रंगों के क्रम को याद रखें।

·  उन रंगीन वस्तुओं को लेबल करें जिन्हें आप अन्य वस्तुओं के साथ मिलाना चाहते हैं। इसके लिए समान्य दृष्टि का व्यक्ति य़ापकी मदद कर सकता है। अपने कपड़ों को अपनी अलमारी या दराज में व्यवस्थित करें ताकि रंग जो एक साथ पहने जा सकते हैं वे एक दूसरे के पास हों।

भविष्य में है उम्मीद

भारत की क्लीनिक के दावे को लेकर अभी वैश्विक स्तर पर पड़ताल चल रही है। इसके सकारात्मक परिणाम बहुत उत्साहित कर सकते हैं। इसके साथ ही  कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों के लिए भविष्य में उम्मीद है।वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जीन थेरेपी विकसित की है जो  रंग दृष्टि दोष या  प्रकाश-संवेदनशील पिगमेंट के लिए जिम्मेदार जीन्स में ऐसे कोड्स को फिर से सक्रिय करती है। इससे कोन कोशिकाओं को उन रंगों का पता लगाने की इजाजत मिलती है जिन्हें वे पहले नहीं पहचान पाए थे। 

थेरेपी का परीक्षण जानवरों में किया गया है जिसके बहुत अच्छे परिणाम आए हैं। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में होने वाले मेडिकल साइंस के विकास से लाइलाज कलर ब्लाइंडनेस हो सकता है इतिहास बन जाए।

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नशा मुक्ति के उपाय

Dr. Sanjeev Kumar Singh 92% (194 ratings)
BAMS
Ayurvedic Doctor, Lakhimpur Kheri
नशा मुक्ति के उपाय

एडिक्शन यानी व्यसन एक ऐसी बीमारी है जिसमें कई तरह की हानिकारक स्थितियां और व्यवहार संभव हैं। व्यसन संबंधी संकेतों को अगर समय पर पहचान लिया जाय तो इससे पीड़ित के इलाज में मदद मिल सकती है। व्यसन का मुख्य लक्षण उपयोग का एक समस्याग्रस्त पैटर्न है, जो चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण हानि या संकट की ओर जाता है। व्यसन विकार के पीड़ित व्यक्ति के  विशिष्ट लक्षण होते हैं यह व्यक्तियों के हिसाब से अलग-अलग हो  सकते हैं।

किसी नशे की लत के शिकार व्यक्ति के लिए उस नशे को छोड़ना उसे नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है। नशे की लत का शिकार व्यक्ति भले ही नशे से होने वाले नुकसान के बारे में जानते हों या फिर उनके पास नुकसान के स्पष्ट प्रमाण हों फिर भी नशे को छोड़ नहीं पाते हैं। शक्तिशाली लालसा भी व्यसन की विशेषता है। व्यक्ति अगर अपना नशा छोड़ना भी चाहे तो भी इसी तीव्र इच्छा या लालसा के कराण छोड़ नहीं पाता है। पदार्थ उपयोग विकार के लक्षण और लक्षण व्यक्ति, जिस पदार्थ या व्यवहार का वे अति प्रयोग कर रहे हैं, उनके पारिवारिक इतिहास और उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के साथ भिन्न हो सकते हैं।

व्यसन के लक्षण अक्सर प्रतिकूल परिस्थितियों के 'डोमिनो इफेक्ट' की ओर ले जाते हैं। एक लक्षण जब दूसरे के होने का कारण बनता है तो डोमिनो इफेक्ट कहा जाता है।

लक्षण

नशीले पदार्थों के सेवन से कई तरह की दुष्प्रभाव और लक्षण देखने को मिलते हैं। इनमें मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक लक्षण शामिल हैं। यह लोगों के जीवन स्तर पर बहुत गहरा प्रभाव ड़ालते हैं।

मनोवैज्ञानिक लक्षण

मानसिक विकारों का कारण बनने वाले व्यसन के लक्षणों में मनोवैज्ञानिक कारण सबसे प्रमुख और मुखर होते हैं। इनमें  निम्नलिखित प्रमुख हैं, इनमें से कुछ या सारे ही एक साथ पीड़ित में दिख सकते हैं-

नशे की लत छोड़ने में अक्षम : निकोटीन, शराब या अन्य नशे के पदार्थों पर निर्भरता के कई मामलों में पीड़ित व्यक्ति कम से कम एक बार गंभीर प्रयास करता है पर अकसर वो अपने प्रयास में हार जाता है। इसकी वजह शारीरिक भी हो सकती है, क्योंकि कुछ पदार्थ, जैसे कि हेरोइन, रासायनिक रूप से लत लगाने वाले होते हैं और यदि कोई व्यक्ति उन्हें लेना बंद कर देता है तो उन्हें इनके विड्राल सिंप्टम का सामना करना पड़ता है

स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद पदार्थों का अनवरत उपयोग: व्यक्ति नियमित रूप से पदार्थ लेना जारी रखता है, भले ही इससे जुड़ी बीमारियों का सामना भी उसे करना पड़ता है।  उदाहरण के लिए, फेफड़े या हृदय रोग के विकास के बाद धूम्रपान करने वाला धूम्रपान जारी रख सकता है। वे पदार्थ या व्यवहार के स्वास्थ्य प्रभाव से अवगत हो भी सकते हैं और नहीं भी। ज्यादातर मामलों में नशे के शिकार इन दिक्कतों को जानते हैं पर इन्हें छोड़ नहीं पाते हैं।

जुनून: एक व्यक्ति किसी पदार्थ के प्रति जुनूनी हो सकता है, अधिक से अधिक समय और ऊर्जा खर्च करके अपने पदार्थ को प्राप्त करने के तरीके खोज सकता है। कई मामलो में ये उन्हें चोरी से लेकर बड़े से बड़े अपराध तक ले जा सकता है। , और कुछ मामलों में वे इसका उपयोग कैसे कर सकते हैं।

नशे के लिए जोखिम की परवाह ना करना: व्यसन से ग्रस्त व्यक्ति पदार्थ प्राप्त करने या व्यवहार में संलग्न होने के लिए जोखिम उठा सकता है, जैसे कि सेक्स का व्यापार करना या अवैध दवाओं के लिए चोरी करना, नशीली दवाओं को पाने के लिए उनका खुद ही व्यापार करने लगने, या सप्लायर बन जाना। कुछ पदार्थों के प्रभाव में, मादक द्रव्यों के सेवन विकार वाला व्यक्ति जोखिम भरी गतिविधियों में संलग्न हो सकता है, जैसे तेज और खतरनाक ड्राइविंग या हिंसा।

ज्यादा से ज्यादा नशे की खुराक की खोज: शराब के सेवन विकार के साथ यह आम है। प्रभाव महसूस करने और अच्छा महसूस करने के लिए व्यक्ति तेजी से बड़ी मात्रा में शराब का सेवन कर सकता है।

शारीरिक लक्षण

भूख में बदलाव

कुछ नशीले पदार्थ व्यक्ति की भूख को बदल देते हैं। उदाहरण के लिए, मारिजुआना का सेवन उनकी भूख को बहुत बढ़ा सकता है जबकि कोकीन इसे कम कर सकता है।

बीमारी

धूम्रपान करने वाले पदार्थ, उदाहरण के लिए, तंबाकू , असाध्य श्वसन रोग और फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकते हैं। अवैध दवाओं को इंजेक्ट करने से अंगों को नुकसान हो सकता है और नसों और धमनियों में समस्या हो सकती है, कुछ मामलों में संक्रमण के विकास और एक अंग की संभावित हानि हो सकती है। नियमित रूप से अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से लीवर की पुरानी समस्याएं हो सकती हैं।

अनिद्रा

अनिद्रा विड्रॉल का एक सामान्य लक्षण है। गति या परमानंद जैसे अवैध उत्तेजक पदार्थों का उपयोग करने से भी नींद के पैटर्न टूट सकते हैं या फिर डिस्टर्ब कर सकते हैं। कई बार लत की वजह से नशीले पदार्थ मिलने के इंतजार में व्यक्ति पार्टियों में जाने को लालायित रहता है और इसके लिए वो रात में सोता भी नहीं है। ऐसे में स्लीपिंग पैटर्न पूरी तरह से तहस नहस हो सकता है।

व्यक्तित्व में बदलाव

एक व्यक्ति अधिक अस्त-व्यस्त, थका हुआ और आलसी दिखना शुरू कर सकता है, क्योंकि पदार्थ का उपयोग करना या नशे की लत आपके पूरी व्यक्तित्व या दिनचर्या को बदल सकते हैं। कई बार आप अपने कपड़े धोने या स्वच्छ रहने में उदासीन हो सकते हैं। आपको ठीक से कपड़े पहनने की आवश्यकता समझ में आनी बंद हो सकती है।

बढ़ती सहनशीलता

शरीर समय के साथ नशीले पदार्थ के कम प्रभाव का अनुभव करता है, इसलिए एक व्यक्ति को उसी प्रभाव को प्राप्त करने के लिए और नशीली चीजों को अधिक मात्रा में ले सकता है।

विड्रॉल लक्षण

जब नशीले पदार्थ मिलने बंद हो जाते हैं या फिर किसी निश्चित मात्रा से कम मिलने लगते हैं तो पदार्थ के आधार पर कई  शारीरिक लक्षणों या समस्याओं का अनुभव कर सकते हैं। इनमें बेचैनी, कब्ज, दस्त, कंपन, दौरे, पसीना, और हिंसा सहित अस्वाभाविक व्यवहार शामिल हैं।

सामाजिक लक्षण

नशीले पदार्थों के लती लोग ज्यादातर अकेले रहना चाहते है और अपने आप को समाज से काट लेते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी ज्यादातर चीजें गोपनीय ढंग से ही हों। मादक द्रव्यों के सेवन का विकार एक व्यक्ति के अन्य लोगों के साथ मेलजोल और उनसे घुलने मिलने के तरीके को प्रभावित कर सकता है।

नशीले पदार्थ पर निर्भरता वाला व्यक्ति कुछ ऐसी गतिविधियों को छोड़ सकता है जो पहले उन्हें खुशी देती थीं। जैसे वो दोस्तों के साथ बाहर नहीं जाना चाहता, ऐसी जगहों पर नहीं जाता जहां उसका नशा मौजूद ना हो वो अपने शौक और गतिविधियों को छोड़ देता है या फिर नशा उन्हें अपनी गतिविधि से अलग कर देता है। नशीली चीजों का सेवन करने वाला सब कुछ छोड़ सकता है पर नशा नहीं। उसकी कोशिश होती है कि उसके नशे की आपूर्ति बनी रहे भले ही उनके पास ज्यादा पैसा न हो। वो इसकके लिए घर के जरुरी बजट को भी बिगाड़ देता है। मादक द्रव्यों के शिकार लोग किसी नशीले पदार्थ पर शारीरिक निर्भरता के बारे में जागरूक हो सकते हैं, लेकिन यह मानते हुए कि वे इसे कभी स्वीकार नहीं करते। कई बार लती लोग ओवर डोजिंग के शिकार हो जाते हैं। उन्हें कई बार कानून और पुलिस का सामना करना पड़ सकता है। नशे के लिए व्यक्ति सार्वजनिक अव्यवस्था या हिंसा पैदा करने की हद तक अधिक जोखिम लेने को तैयार रहता है। ऐसे लती लोग हमेशा वित्तीय कठिनाइयों का सामना करते हैं। उपाचार

डीटॉक्सिफिकेशन

नशा मुक्ति का पहला उपचार डीटॉक्सिफिकेशन है। इसमें शरीर से एक पदार्थ को साफ करना और निकासी प्रतिक्रियाओं को सीमित करना शामिल है। इसमे ज्यादातर नशे के प्रकार और उनके तरीकों के हिसाब से दवा दी जाती है। यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक पदार्थों का आदी है, तो उन्हें अक्सर प्रत्येक के लिए विड्राल सिंप्टम को कम करने के लिए दवाओं की आवश्यकता हो सकती है।

थेरैपी

डीटॉक्स के बाद यह उपचार का सबसे आम तरीका है। थेरेपी व्यक्ति की जरूरतों के आधार पर एक-से-एक, समूह या परिवार के आधार पर हो सकती है। यह आमतौर पर उपचार की शुरुआत में गहन होता है क्योंकि लक्षणों में सुधार होने पर सत्रों की संख्या धीरे-धीरे कम हो जाती है।

विभिन्न प्रकार की चिकित्सा में शामिल हैं:

  • कॉगनिटिव-बेहेवरल थेरैपी यह पीडित को उन सोचने के तरीकों को पहचानने और बदलने में मदद करता है।
  • बहुआयामी परिवारिक चिकित्सा (फैमिली थेरैपी)- किसी पदार्थ से संबंधित विकार वाले किशोर या किशोर के आसपास पारिवारिक कार्य को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है
  • प्रेरक साक्षात्कार (मोटीवेशनल इंटरव्यू)-जो एक व्यक्ति को व्यवहार में बदलाव और समायोजन करने की इच्छा को बढ़ाता है
  • इंसेंटिव- यह एक तरह का उपहार या पुरस्कार है जो पीडित को उसके हर सकारात्मक कदम के साथ दिया जाता है जो उसको नशे से मुक्ति की तरफ ले जाती है।

दवाएं

अल्कोहल उपयोग विकार वाले लोग क्रेविंग और वापसी के लक्षणों को कम करने के लिए निम्नलिखित दवाएं ले सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • नाल्ट्रेक्सोन
  • एकैम्प्रोसेट, या कैंप्रल:
  • डिसुलफिरम, या एंटाब्यूज:
  • रीहैब व्यवस्था

जब नशे की लत ज्यादा गंभीर हो तो रीहैब फैसिलिटी का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसमें लत की गंभीरता के हिसाब से कई तरह के रीहैब सेंटर्स का प्रयोग किया जाता है।

  • अल्पकालिक आवासीय हाउसिंग
  • चिकित्सीय समुदाय
  • रिकवरी हाउसिंग आवास
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कॉन्डोम्स के हैं बहुत से विकल्प, आइए जानते हैं 15 तरह के कॉन्डोम्स के बारे में

Dr. Saatiish Jhuntrraa 91% (510 ratings)
Fellow,European Committee of Sexual Medicine, Diploma in Psychological Medicine, MBBS
Sexologist, Jaipur
कॉन्डोम्स के हैं बहुत से विकल्प, आइए जानते हैं 15 तरह के कॉन्डोम्स के बारे में

अंग्रेजी में एक कहावत है- वन साइड फिट्स आल। आज से करीब कई साल पहले तक कॉन्डोम्स के बारे में भी यही समझा जाता था। पर आज के समय में कॉन्डोम्स में कई तरह की विकल्प हैं। उनके मटीरियल से लेकर उनके गुणों तक, उनकी महक, उनके दिखने और उनके फ्लेवर तक हर चीज में विकल्प मौजूद हैं। इस लेख में विभिन्न तरह के कॉन्डोम्स के बारे में चर्चा करने वाले हैं। आइए जानते हैं कॉन्डोम्स के सबसे प्रमुख प्रकारों के बारे में-

लेटेक्स कॉन्डोम्स

आप पहले लेटेक्स कॉन्डोम्स का उल्लेख किए बिना वास्तव में विभिन्न कॉन्डोम्स और उनके उपयोगों के बारे में बात नहीं कर सकते।लेटेक्स कॉन्डोम्स गर्भावस्था को रोकने में लगभग 98 प्रतिशत प्रभावी होते हैं और एसटीआई के खिलाफ भी अत्यधिक प्रभावी होते हैं जब उनका सही तरीके से उपयोग किया जाता है।

मानक लेटेक्स कॉन्डोम्स का उपयोग केवल पानी या सिलिकॉन-आधारित चिकनाई के साथ किया जाना चाहिए। तेल के आधार वाले लुब्रीकैंट लेटेक्स के टूटने का कारण बन सकते हैं।

पॉलीयूरेथेन कॉन्डोम्स

उन लोगों के लिए जिन्हें लैटेक्स से एलर्जी है और लैम्बस्किन कॉन्डोम्स के विचार के लिए उत्सुक नहीं हैं, अन्य विकल्प मौजूद हैं। इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प पॉलीयुरेथेन और पॉलीसोप्रीम कॉन्डोम है।

पॉलीयुरेथेन और पॉलीसोप्रीन दोनों कॉन्डोम्स लेटेक्स मुक्त, पतली रबर सामग्री से बने होते हैं। चूंकि सामग्री लेटेक्स की तुलना में पतली है, कुछ पुरुषों को ये विकल्प अधिक आरामदायक लगते हैं और संवेदनशीलता में हस्तक्षेप करने की संभावना कम होती है। साथ ही, दोनों शरीर की गर्मी का संचालन करने में बेहतर हैं।

पॉलीयूरेथेन की तुलना में पॉलीसोप्रीन थोड़ा अधिक लचीला होता है, इसलिए पॉलीयुरेथेन कॉन्डोम्स आसानी से टूट सकते हैं। फिर भी, जब तक आप उपयोग के निर्देशों का पालन करते हैं, तब तक किसी भी सामग्री से बने अधिकांश कॉन्डोम्स शायद ही कभी टूटेंगे।

लैम्ब्स्किन कॉन्डोम्स

यदि आप कॉन्डोम्स के इतिहास पर नज़र डालें, तो आप जानेंगे कि मेमने की खाल की म्यान शायद कॉन्डोम्स के सबसे पुराने रूपों में से एक है। लैम्ब्स्किन कॉन्डोम्स मेमने की आंतों की त्वचा से बने होते हैं, जो कई पुरुषों के लिए थोड़ा हटकर होता है। हालांकि अभी भी इसे कुछ लोगों पसंद करते हैं क्योंकि यह अधिक प्राकृतिक लगता है।

लैम्ब्स्किन कॉन्डोम्स के साथ सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि वे अधिकांश एसटीआई या एसटीडी से बचाने के लिए प्रभावी नहीं हैं, और वे गर्भावस्था से बचाने के लिए भी प्रभावी नहीं हैं। त्वचा स्वाभाविक रूप से झरझरा होती है, जो सूक्ष्म तत्वों को फिसलने देती है।

लुब्रिकेटेड कॉन्डोम्स

कॉन्डोम्स के विकल्पों में सबसे लोकप्रिय लुब्रिकेटेड कॉन्डोम्स में भारी मात्रा में चिकनाई की होती है जो पहले से ही बाहरी परत को ढक लेती है। इस तरह के कॉन्डोम्स के गुणों पर विवाद हो सकता है पर एक बात से सभी सहमत कि लुब्रिकेटेड कॉन्डोम्स होने के बाद किसी भी दूसरे तरह के लुब्रिके्ट की जरुरत नहीं पड़ती है। त्वचा और कॉन्डोम्स के बीच घर्षण के कारण इस तरह के कॉन्डोम्स को शारीरिक चिकनाई के अलावा भी अतिरिक्त चिकनाई  की आवश्यकता  हो सकती है।

रिब्ड कॉन्डोम्स

इन दिनों रिब्ड कॉन्डोम का नाम विज्ञापन से लेकर लोगों की जबान पर ज्यादा है। यहां तक कि गूगल में भी  शायद ये सबसे ज्यादा खोजा जाने वाला कॉन्डों का प्रकार है।

रिब्ड कॉन्डोम्स में सिर और शाफ्ट के साथ रिब्ड शामिल होता है। ये अतिरिक्त रिब्स संभोग के दौरान अतिरिक्त मादकता उत्पन्न करती हैं।

इस तरह के कुछ कॉन्डोम्स अब पहनने वाले को सुख देने के लिए इन्हें अंदर से भी रिब्ड किया जाता है। ऐसा नहीं है कि लिंग परिधि के चारों ओर और सीधे जाने वाली रिब्स के अलावा भी कई तरह की रिब्स प्राप्त की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, आनंद के आकार के कॉन्डोम्स में घुमावदार या मुड़ी हुई रिब्स होती हैं।

डॉटेड  कॉन्डोम्स

डॉटेड, स्कपाइक्ड या नबी—इन सभी कॉन्डोम्स का एक मात्र उद्देश्य होता है कि वे सेक्स के दौरान नई संवेदनाओं को प्रेरित करें। जब आप अंदर और बाहर जाते हैं तो उभरे हुए क्षेत्र स्वाभाविक रूप से को कामुक आघात पहुँचाते हैं। कुछ कॉन्डोम्स में बहुत कम डॉट्स या नब होते हैं, लेकिन ऐसे और भी नए कॉन्डोम्स होते है, जिनमें आनंद देने के लिए शाफ्ट और सिर के साथ-साथ पूरे कॉन्डोम्स में शानदार उभरे हुए धब्बे हों।

वार्मिंग कॉन्डोम्स

नई संवेदनाओं के साथ खेलने से इरेक्शन को लम्बा करने में मदद मिल सकती है और आम तौर पर सेक्स को और अधिक रोचक बना सकता है।

वार्मिंग कॉन्डोम्स ल्ब्रीकैंट्स युक्त होते हैं जिसमें पहनने वाले और  साथी के त्वचा के संपर्क में आने पर गर्माहट पैदा करने के लिए सामग्री होती है।

वार्मिंग क्रिया वाले अधिकांश कॉन्डोम्स लेटेक्स होते हैं, इसलिए यदि आपको लेटेक्स सूट नहीं करता है, तो आपको ऐसे कॉन्डोम्स नहीं इस्तेमाल करने चाहिए। अधिकांश वार्मिंग ल्यूब में ग्लिसरॉल होता है, जो एक चिपचिपा चीनी और शराब का कच्चा पदार्थ है।

अल्ट्राथिन कॉन्डोम

अगर किसी दंपत्ति को यह लगता है कि सेक्स के दौरान उन्हें स्पर्श का एहसास नहीं होता तो उनके लिए अल्ट्राथिन कॉन्डोम एक बेहतर विकल्प है। अल्ट्राथिन कॉन्डोम को एक्सट्रा सेंसिटिव कडोम माना जाता है।

लेटेक्स और पॉलीयूरेथेन दोनों से बने अल्ट्राथिन कॉन्डोम्स मिलते हैं हैं,लेकिन अल्ट्राथिन विशेषता वाले पॉलीयूरेथेन कॉन्डोम्स सबसे आम हैं।

एक्सएल कॉन्डोम

अधिकांश कॉन्डोम इतने लचीले और इतने लंबे होते हैं कि वे इसे आसानी से आपकी बांह की कलाई पर बना सकते हैं। हालांकि, कुछ पुरुष जिनके लिंग औसत से काफी बड़े हैं, उन्हें सामान्य कॉन्डोम्स के साथ थोड़ी परेशानी महसूस हो सकती है।

ऐसे लोगों को सामान्य कॉन्डोम लिंग के लिए बहुत तंग या बहुत छोटे लगते हैं।  इस तरह के लोगों के लिए ही एक्सएल कॉन्डोमएक बेहतर विकल्प हो सकते हैं।  ये कॉन्डोम्स उन पुरुषों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं जिनके लिंग की लंबाई मानक से अधिक है।

हालांकि, ध्यान रखें, केवल किसी को प्रभावित करने की कोशिश के उद्देश्य से एक्सएल कॉन्डोम्स खरीदना और उपयोग करना सबसे अच्छा विचार नहीं है। एक ढीला कॉन्डोम्स सेक्स के दौरान फिसल सकता है जिससे एसटीडी, एसटीआई, या अनियोजित गर्भावस्था के खतरे बढ़ जाते हैं।

महिला कॉन्डोम्स

महिला कॉन्डोम्स पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है, लेकिन यदि अगर कोई पुरुष अपने लिए मनचाहा कॉन्डोम नहीं तलाश कर पा रहा है तो यह एक व्यवहारिक विकल्प हो सकता है।

इस कॉन्डोम्स को योनि के मुख के अंदर रखा जाता है। इस बात का ध्यान रखना होता है कि इसे ठीक से रखा जाए। अगर ठीक से इस्तेमाल किया जाए, तो महिला कॉन्डोम्स गर्भावस्था, एसटीडी और एसटीआई दोनों से बचाने में लगभग 95 प्रतिशत प्रभावी हैं

कुछ महिलाएं महिला कॉन्डोम्स के साथ सहज नहीं हैं क्योंकि उन्हें स्थापित करना अजीब हो सकता है, लेकिन कई महिलाओं का दावा है कि कॉन्डोम्स उन्हें पुरुष साथी पर विचार छोड़ने के बजाय यह सुनिश्चित करने की शक्ति देता है कि वे सुरक्षित सेक्स करें।

शुक्राणुनाशक कॉन्डोम

शुक्राणुनाशक एक गर्भनिरोधक जेल है जो वास्तव में शुक्राणु को मारता है। उसे पंगु बना देता है जिससे उसे फर्टिलाइजेशन के लिए आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिलता है।

अकेले, शुक्राणुनाशक गर्भावस्था को रोकने में उतना प्रभावी नहीं है। सीडीसी के अनुसार, लगभग 28 प्रतिशत महिलाएं जो पूरी तरह से शुक्राणुनाशक पर भरोसा करती हैं, गर्भवती हो जाती हैं।

हालांकि, जब एक कॉन्डोम्स के साथ जोड़ा जाता है, तो शुक्राणुनाशक की प्रभावकारिता काफी हद तक बढ़ जाती है।

यह भी ध्यान रखें कि शुक्राणुनाशक किसी भी स्तर पर एसटीआई या एसटीडी से बचाव नहीं करता है। साथ ही, स्पर्मिसाइड से एलर्जी प्रतिक्रियाओं की एक उच्च घटना है, इसलिए उपयोग के बाद किसी भी जलन से सावधान रहें।

डीले कॉन्डोम

डीले कॉन्डोम्स यानी विलंबित कॉन्डोम विशेष रूप से उन लोगों की मदद के लिए डिज़ाइन किए गए हैं जिन्हें पीई (शीघ्रपतन) की समस्या है। चरमोत्कर्ष बिंदु पर पहुँचने और स्खलित होने से पहले औसत आदमी इसे केवल सात मिनट ही बना पाएगा।

पीई वाले लड़कों के लिए और भी बड़ी समस्याएं हैं क्योंकि वे इसे केवल दो मिनट में बना सकते हैं।

विलंबित कॉन्डोम्स, जिसे विलंबित चरमोत्कर्ष कॉन्डोम्स भी कहा जाता है, के अंदर बेंज़ोकेन होता है। विलंबित कॉन्डोम्स के अंदर सुन्न करने वाला एजेंट लिंग की त्वचा में अवशोषित हो जाता है, जो स्खलन को लम्बा करने के लिए उत्तेजना को कम करता है। जो पुरुष इन कॉन्डोम्स का चुनाव करते हैं वे लंबे समय तक सेक्स का आनंद लेना चाहते हैं।

चमकने वाला कॉन्डोम

क्या आपके साथी को कभी अंधेरे में आपके लिंग को ट्रैक करने में समस्या होती है? या, क्या आप यह देखना पसंद करते हैं कि आपका कॉन्डोम्स से ढका लिंग अंधेरे में कहाँ जा रहा है? यदि ऐसा है, तो अंधेरे में चमकने वाला नवीनता कॉन्डोम्स रात को रोशन करने का एक मादक तरीका हो सकता है।

इन कॉन्डोम्स में पिगमेंटेड फॉस्फोरस की आंतरिक परत होती है, जो अंधेरे में स्वाभाविक रूप से रोशन दिखती है। अधिकांश ग्लो-इन-द-डार्क कॉन्डोम हरे होते हैं, लेकिन आप कुछ मज़ेदार मैजेंटा या नारंगी रंग भी पा सकते हैं।

रंगीन कॉन्डोम

अधिकांश कॉन्डोम्स एक अपारदर्शी प्रकार के होते हैं। लेकिन इन दिनों ब्रांडिंग के लिए कई कॉन्डोम  रंगीन या सजावटी रूप में भी हो सकते हैं। लाल, हरा, फ्यूशिया, नारंगी, बैंगनी—अवसर के अनुरूप अलग-अलग कॉन्डोम्स रंगों के साथ खेलना निश्चित रूप से मजेदार है। रंगीन कॉन्डोम्स लिंग को एक नया रूप देता है और इंटरकोर्स को और दिलचस्प बनाता है। इन दिनों,रंगीन के साथ ही ऐसे कॉन्डोम्स भी मिलते हैं जिन पर दिलचस्प ग्राफिक्स भी बने होते हैं।

फ्लेवर्ड कॉन्डोम्स

ओरल सेक्स के दौरान फ्लेवर्ड कॉन्डोम्स को शामिल करने से अनुभव का मजा थोड़ा थोड़ा बढ़ जाता है। फ्लेवर्ड कॉन्डोम्स आमतौर पर चिकनाई की एक परत के साथ लेपित होते हैं जिसमें फ्लेवर एडिटिव्स होते हैं। बहुत सारे स्वाद विकल्प मौजूद हैं, जैसे कि वेनिला, चॉकलेट या फल स्वाद। जैसा कि फ्लेवर्ड ल्यूब के साथ होता है, कुछ वास्तव में वास्तव में स्वादिष्ट लगते हैं। 

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नस दबने का इलाज

Dr. Sanjeev Kumar Singh 92% (194 ratings)
BAMS
Ayurvedic Doctor, Lakhimpur Kheri
नस दबने का इलाज

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और लाइफस्टाइल की दिक्कतों की वजह से लोगों को तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लगातार लैपटाप पर काम करना, एसी जगहों पर रहना, सूरज की किरणों का ना मिलना और बहुत कम चलने फिरने की वजह से कई दिक्कतें आती हैं। इन दिक्कतों में नसों का दबना एक आम समस्या बन कर उभर रही है। नसों के दबने से बहुत सी समस्या होती है, दर्द से लेकर  दर्द कभी-कभार इतना तेज होता है, जीना दूभर कर सकता है।

दबी हुई नस एक ऐसी स्थिति  जब कोई नस आसपास के ऊतकों, जैसे हड्डियों, कार्टिलेज, मांसपेशियों या टेंडन द्वारा तंत्रिका पर बहुत अधिक दबाव डाला जाता है। यह दबाव दर्द, झुनझुनी, सुन्नता या कमजोरी का कारण बन सकता है।

दबी नस की स्थिति कहीं एक नहीं, बल्कि पूरे शरीर में कई क्षेत्रों में हो सकती है। उदाहरण के लिए, निचली रीढ़ में एक हर्नियेटेड डिस्क तंत्रिका जड़ पर दबाव डाल सकती है। इससे दर्द हो सकता है जो आपके पैर के पिछले हिस्सों तक पहुंच सकता है। इसी तरह, आपकी कलाई में एक चुटकी तंत्रिका आपके हाथ और उंगलियों (कार्पल टनल सिंड्रोम) में दर्द और सुन्नता पैदा कर सकती है।

नस दबने के लक्षण

  • दबी हुई नस या तंत्रिका के संकेत और लक्षणों में शामिल हैं:
  • प्रभावित तंत्रिका के क्षेत्र में महसूस करने की शक्ति का खत्म होना या फिर कम हो जाना।
  • तेज, दर्द या जलन के साथ ऐसा दर्द, जो बाहर की ओर फैलता है या फिर फैलता हुआ महसूस होना
  • झुनझुनी, पिन और सुई चुभने जैसी संवेदनाओं का अहसास (पेरेस्टेसिया)
  • प्रभावित क्षेत्र में मांसपेशियों की कमजोरी
  • बार-बार महसूस होना कि एक पैर या हाथ "सो गया है"
  • जब आप सो रहे हों, तो नस के दबने से संबंधित समस्याएं और भी बदतर हो सकती हैं।
  • उपचारों के साथ आराम से अधिकांश लोग कुछ दिनों या हफ्तों के भीतर दबी नस की समस्या से निजात पा सकते हैं।  कभी-कभी, दबी हुई नस के दर्द को दूर करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता भी हो सकती है।

दबी हुई नस का उपचार

आराम

एक दबी हुई नस  तंत्रिका की स्थिति के लिए सबसे ज्यादा कारगर उपचार आराम है। डॉक्टर ऐसी किसी भी गतिविधि को रोकने के लिए कहेगा जो संपीड़न का कारण बनती है या बढ़ जाती है।

दबी हुई नस के स्थान के आधार पर, आपको क्षेत्र को स्थिर करने के लिए एक पट्टी, कॉलर या ब्रेस की आवश्यकता हो सकती है। यदि आपके पास कार्पल टनल सिंड्रोम है, तो आपका डॉक्टर दिन के साथ-साथ रात में भी स्प्लिंट पहनने की सलाह दे सकता है क्योंकि कलाई फ्लेक्स होती है और नींद के दौरान बार-बार फैलती है।

शारीरिक चिकित्सा या थेरैपी

एक थेरेपिस्ट की मदद भी दबी हुई नस की स्थिति में बहुत कारगर साबित हो सकती है। थेरेपिस्ट ऐसे व्यायाम सिखा सकते हैं जो तंत्रिका पर दबाव को दूर करने के लिए प्रभावित क्षेत्र में मांसपेशियों को मजबूत और खिंचाव करता है। फिजियो थेरेपिस्ट या फिर फिजिकल थेरेपिस्ट  उन गतिविधियों में संशोधन की भी निर्देश दे सकते हैं जो दबी हुई तंत्रिका की स्थिति को बिगाड़ रहे हैं।

दवाएं

नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स जैसी सूजन रोधी दवा और पेन किलर दर्द को दूर करने में मदद कर सकते हैं। तंत्रिका संबंधी दर्द के इलाज के लिए अक्सर एंटीकॉन्वल्सेंट्स, और ट्राईसाइक्लिक दवाएं के साथ ही  एमिट्रिप्टिलाइन दवा का भी उपयोग किया जाता है। दवा या इंजेक्शन द्वारा दिए गए कॉर्टिकोस्टेरॉइड दर्द और सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं।

सर्जरी

यदि परंपरागत उपचार से कई हफ्तों या फिर कुछ महीनों के बाद भी दबी हुई नस में सुधार नहीं होता है, तो आपको नस से किसी भी तरह का दबाव हटाने के लिए सर्जरी करानी पड़ सकती है। दबी हुई तंत्रिका के स्थान के आधार पर अलग अलग तरह की सर्जरी की जाती है। उदाहरण के लिए,सर्जरी में रीढ़ की हड्डी के स्पर्स या हर्नियेटेड डिस्क के एक हिस्से को हटाने की आवश्यकता हो सकती है, या कार्पल लिगामेंट को तोड़ना ताकि तंत्रिका को कलाई से गुजरने के लिए अधिक जगह मिल सके।

दबी हुई नस को ठीक करने के आयुर्वेदिक औऱ घरेलू उपाय

नस दबने को हमेंशा ही गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि एक छोटी सी चूक भी इसमें खतरनाक हो सकती है। अगर समय रहते ठीक से इलाज ना किया जाय तो छोटी और सामान्य सी दिखने वाली तकलीफ काफी खतरनाक रूप ले सकती है। आयुर्वेद में बहुत से ऐसे उपाय हैं, जो दबी हुई नस को राहत देने में  इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इनमें बहुत से तो ऐसे हैं जिनका उपयोग और उपचार सामान्य घरों में भी किया जा सकता है। आइए इन उपायों पर नज़र डालते हैं -

चूना

दबी हुई नस को राहत पहुंचाने में पान के पत्ते पर प्रयोग किया जाने वाला चूना बहुत कारगरत साबित हो सकता है। इस चूने को लस्सी, दही, पानी, जूस में से किसी के साथ भी लिया जा सकता है। दिन भर में चुटकी भर चूने का प्रयोग करना है। इस बात का ध्यान रखें कि सुबह- सुबह खाली पेट इस नुस्खे को आजमाने पर दबी हुई नस में राहत मिलती है।

मेथी के बीज

साइटिका और या सामान्य नसों का दर्द या फिर नसों के दबने की तकलीफ मेथी के बीज हर स्थिति को ठीक करने में काफी लाभदायक साबित होती है। इसके लिए मेथी के बीजों को पानी में भिगो दें। इसके बाद इसे बाद में पीस लें और इसका लेप प्रभावित हिस्से पर लगाने पर काफी आराम मिलता है।

सिंगार का पौधा

सिंगार का पौधा दबी हुई नस को खोलने के लिए घरेलू तौर पर सबसे ज्यादा प्रयोग किए जाने वाले आसान तरीकों में से एक है। हरसिंगार के पत्तों को पानी में उबाल कर कुछ दिनों तक सेवन करने से दबी हुई नस में काफी फायदा होता है। इसके लिए एक दिन में चाय या पांच पत्तों को पानी में उबालकर पीना पर्याप्त है। हरसिंगार के पौधे के औषधीय गुणों का जिक्र शास्त्रों में भी है। इसके पत्ते को पारिजात भी कहा जाता है। इन पत्तों का असर  दबी हुई नस को खोलने में असर करता है।

सेंधा नमक

रुई या फिर सूती कपड़े में सेंधा नमक डालकर एक पोटली बना लें। अब इस पोटली को एक बाल्टी गर्म पानी में डाल दें। इस पानी से नहाने या फिर 30 मिनट के लिए उस पानी में बैठने से नसों का दर्द कम हो जाता है। वैसे सेंधा नमक और गर्मपानी से मांसपेशियों को भी राहत मिलती है जिससे नस पर भी दबाव कम होता है।  

दबी हुई नस की स्थिति में जाने से कैसे बचें

  • सक्रिय रहें अपने पैरों को आपस में एक ऊपर एक रखकर लंबे समय तक किसी एक स्थिति में न लेटें।
  • अपने  व्यायाम रुटीन में नसों की स्ट्रेंथनिंग और स्ट्रेचिंग के व्यायाम को शामिल करें जिससे नसों में शक्ति और लचीलेपन आ सके।
  • स्वस्थ वजन बनाए रखें।
  • क्यों दबती है नस
  • हर्नियेटेड डिस्क के कारण दबी हुई नस
  • दबी हुई मीडियन नस
  • जब आसपास के ऊतकों द्वारा तंत्रिका पर बहुत अधिक दबाव (संपीड़न) लगाया जाता है, तो नस दब जाती है।
  • कुछ मामलों में, यह टिश्यू,हड्डी या कार्टिलेड के कारण हो सकता है, जैसे कि हर्नियेटेड स्पाइनल डिस्क तंत्रिका जड़ को संकुचित करती है। अन्य मामलों में, मांसपेशियों या टेंडन की स्थिति इसका कारण बन सकते हैं।

कार्पल टनल सिंड्रोम के मामले में, विभिन्न प्रकार के ऊतक कार्पल टनल की माध्यिका तंत्रिका के संपीड़न के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, जिसमें कनाल के भीतर सूजे हुए टेंडन, सुरंग को संकरी करने वाली बढ़ी हुई हड्डी, या एक मोटा और खराब हो चुका लिगमेंट शामिल है। कई अन्य स्थितियों के कारण ऊतक तंत्रिका या तंत्रिकाओं पर दबाव बढ़ सकता है जिनमें शामिल हैं:

  • रूमेटॉइड या कलाई गठिया
  • बार बार दोहराए जाने वाले काम से तनाव
  • शौक या खेल गतिविधियां
  • मोटापा
  • यदि तंत्रिका को केवल थोड़े समय के लिए दबी हुई हो, तो आमतौर पर कोई स्थायी क्षति नहीं होती है। एक बार दबाव से राहत मिलने के बाद, तंत्रिका कार्य सामान्य हो जाता है। हालांकि,अगर दबाव जारी रहता है, तो पुराना दर्द और स्थायी तंत्रिका क्षति हो सकती है।
  • दबी नस को बढ़ाने वाले खतरे

निम्नलिखित कारकों से नस के दबने और उसमें दर्द होने का खतरा बढ़ सकता है

लिंग

महिलाओं में कार्पल टनल सिंड्रोम विकसित होने की संभावना अधिक होती है, संभवतः छोटे कार्पल टनल होने के कारण।

बोन स्पर्स

आघात या ऐसी स्थिति जिसके कारण हड्डी मोटी हो जाती है,इसे बोन स्पर्स कहते हैं इसके लिए कई स्थितियां जिम्मेदार हैं जैसे कि ऑस्टियोआर्थराइटिस आदि। बोन स्पर्स रीढ़ को सख्त कर सकते हैं और साथ ही उस स्थान को भी संकीर्ण कर सकते हैं जहां आपकी नसें गुजरती हैं, इसके नसों पर दबाव बढ़ जाता है।

रूमेटाइड गठिया

रुमेटीइड गठिया के कारण होने वाली सूजन नसों को संकुचित कर सकती है, खासकर आपके जोड़ों में।

थायरॉइड

थायरॉइड रोग वाले लोगों को कार्पल टनल सिंड्रोम होने का अधिक खतरा होता है।

मधुमेह

मधुमेह से पीड़ित लोगों को तंत्रिका संपीड़न का अधिक खतरा होता है।

अति प्रयोग

अगर किसी खास अंग का प्रयोग ऐसे काम या शौक के लिए किया जाय जिनमें बार-बार हाथ, कलाई या कंधे की गति की आवश्यकता होती है, जैसे टेनिस खेलना, वेटलिफ्टिंग, असेंबली लाइन का काम, तो नस दबने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। हालांकि खेलों के मामले में अगर अच्छी तरह से वार्म आप और कूल डाउन किया जाय तो ये समस्या आने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

मोटापा

अधिक वजन नसों पर दबाव डाल सकता है।

गर्भावस्था

गर्भावस्था से जुड़े पानी और वजन बढ़ने से तंत्रिका मार्ग सूज सकते हैं, आपकी नसों को संकुचित कर सकते हैं।

लंबे समय तक बिस्तर पर आराम

लंबे समय तक लेटने से तंत्रिका संपीड़न का खतरा बढ़ सकता है।

 

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नये बाल कैसे उगाए

Dr. Dhananjay Chavan 87% (97 ratings)
MBBS, MD - Dermatology, DDV
Dermatologist, Pune
नये बाल कैसे उगाए

बालों का झड़ना आजकल बेहद आम समस्या है। लड़कियां हो या लड़के सभी इस समस्या से परेशान हैं।बालों के झड़ने के कई कारण हो सकते हैं।यह आपके शरीर में हार्मोन असंतुलन, सिर में फंगल इंफेक्शन, तनाव, ऑटोइम्यून रोग ,पोषण की कमी या फिर आनुवंशिक कारणों से हो सकता है। पर निराश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि कुछ बातों का ख्याल रखकर आप अपने बालों को प्राकृतिक रूप से फिर से उगा सकते हैं।

सिर की नियमित मालिश करें

सिर की त्वचा यानी स्कैल्प की मालिश करना आपके बालों के स्वासक्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तेल से सिर की मालिश करने से ना सिर्फ बालों को मज़बूती मिलती है बल्कि स्कैल्प में रक्त प्रवाह बढ़ता है जिससे बालों के विकास में मदद मिलती है और बालों के झड़ने की समस्या कम होती है। सप्ताह में दो से तीन बार गुनगुने तेल से अपने स्कैल्प की मालिश करें ,इससे आपको तनाव को दूर करने में मदद मिल सकती है।

एलोवेरा का इस्तेमाल करें

वैसे तो एलोवेरा के अनेक गुण हैं पर बालों के लिए ये खास तौर पर फायदेमंद है। एलोवेरा का प्रयोग बालों का झड़ना रोकने के लिए लंबे समय से किया जाता रहा है। यह स्कैल्प का स्वास्थ्य सुधारता है और साथ ही बालों को कंडीशन भी करता है। एलोवेरा के उपयोग से सिर की त्वचा पर जमी रूसी कम होती है और बालों के रोम खुलते हैं। स्कैल्प और बालों पर हफ्ते में एक बार एलोवेरा जेल लगाने से ना सिर्फ बाल झड़ना कम होता है बल्कि नए बाल भी उगते हैं।

नारियल का तेल लगाएं

नारियल का तेल हमेशा से ही बालों के लिए रामबाण माना जाता है। नारियल के तेल में लॉरिक एसिड नामक फैटी एसिड होता है, जो बालों के शाफ्ट के अंदर प्रवेश करता है और बालों में प्रोटीन की कमी को दूर करता है। नारियल के तेल की मालिश आपके बालों में नई जान डाल सकती है। इसे आप बालों को धोने से एक रात पहले या कुछ घंटे पहले लगा सकते हैं। अपने स्कैल्प और बालों में नारियल के तेल की मालिश करें। अगर आपके बाल रूखे हैं तो बाल धोने से एक रात पहले आप इसे गुनगुना कर लगाकर छोड़ दें।नारियल का तेल लगाने से स्कैल्प और बालों के रोम, दोनों ही स्वस्थ होते हैं।

मछली का तेल करें इस्तेमाल

यह तो सभी को ज्ञात है कि ओमेगा फैटी एसिड का सेवन आपके बालों के लिए बहुत कारगर होता है। इससे आपके बालों को भरपूर पोषक तत्व और प्रोटीन मिलता है। मछली के तेल के सेवन से बालों को सुधारने के लिए भरपूर  एंटीऑक्सिडेंट और ओमेगा सप्लीमेंट मिलता है जो बालों को घना बनाता है। यही नहीं इससे बालों का झड़ना भी कम होता है।ओमेगा फैटी एसिड आपकी कोशिकाओं को सही ढंग से काम करने में मदद करता है और प्रतिरक्षा को बढ़ा सकता है, जिससे आपका समग्र स्वास्थ्य बेहतर होता है।

प्याज़ का रस

आपके बालों को चमकदार बनाने औऱ नए बाल उगाने के लिए प्याज का रस किसी रामबाण से कम नहीं। जानकार मानते हैं कि प्याज का रस बालों के विकास को बढ़ावा देने में बहुत कारगर है।इसके अलावा इसके इस्तेमाल से पैची एलोपेसिया एरीटा का समाधान भी होता है।

यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है जिसमें शरीर बालों के रोम पर हमला करता है और शरीर के विभिन्न हिस्सों पर बालों के झड़ने का कारण बनता है।प्याज के रस का उपयोग करने के लिए प्याज को पीसकर उसका रस निकाल लें। इस रस को अपने स्कैल्प और बालों पर लगाएं और इसे कम से कम आधे घंटे के लिए छोड़ दें। फिर माइल्ड शैम्पू से धो लें।

माना जाता है बाल झड़ने के कारण खाली हो सके सिर की त्वचा पर ये रस लगाने से दोबारा बाल उगने की पूरी संभावना रहती है।

रोज़मेरी का तेल

रोज़मेरी एसेंशियल ऑयल बालों के विकास को बढ़ावा देने और बालों के झड़ने को कम करने के लिए किया जाता है। रोज़मेरी तेल की कुछ बूंदों को किसी वाहक तेल, जैसे आर्गन या जोजोबा ऑयल में मिलाकर इस्तेमाल करें।बालों को धोने से पहले अपने बालों और स्कैल्प की इस तेल से मालिश करें। आप इसे सप्ताह में दो ये तीन बार लगा सकते हैं।इसके अलावा अपने शैम्पू और कंडीशनर में रोज़मेरी के तेल की कुछ बूँदें भी मिला सकते हैं।

आंवला है फायदेमंद

बालों के स्वास्थ्य के लिए आंवला भी बेहद कारगर माना जाता है। बालों के झड़ने से लेकर ऑटोइम्यून विकारों तक की समस्याओं से निपटने के लिए आंवले का सेवन वर्षों से किया जाता रहा है। बालों के विकास,औऱ स्कैल्प को स्वस्थ रखने के लिए आंवला बहुत कारगर होता है। जानकार मानते हैं कि आंवले में बहुत सारे आवश्यक फैटी एसिड होते हैं जो बालों के रोम को मजबूत करते हैं, बालों को मजबूती और चमक देते हैं औऱ नए बाल उगाने में मदद करते हैं।

आंवले में मौजूद फाइटोन्यूट्रिएंट्स के साथ विटामिन और खनिज आपके सिर की त्वचा में रक्त के बहाव को बढ़ाते हैं जो बालों के विकास को तेज़ करता है। अच्छा ब्लड सर्कुलेशन सुनिश्चित करता है कि स्कैल्प को स्वस्थ रहने के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व और ऑक्सीजन मिलती रहे। इसके अलावा त्वनचा के नीचे का रक्त प्रवाह बालों के एनाजेन चरण में मदद करता है जिससे उनकी लंबाई बढ़ती है।

विशेषज्ञ बालों की जड़ों में आंवला पाउडर और अंडे की सफेदी का मिश्रण लगाने का सुझाव देते हैं जिससे बालों को स्वस्थ बनाया जा सके।

नींबू है बालों के लिए मुफीद

आपके बालों के स्वास्थ्य का ख्याल नींबू भी बखूबी रख सकता है। बालों के विकास को बढ़ावा देने के लिए आप ताजे नींबू के रस या फिर नींबू के तेल का भी उपयोग कर सकते हैं। ये दोनों ही आपके बालों की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए असरदार माने जाते हैं। नींबू का तेल आपको स्वस्थ स्कैल्प बनाए रखने और बालों के विकास को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है।

ये नए बाल उगाने में भी आपके काम आ सकता है। इसे इस्तेमाल करने के लिए शैम्पू करने से 15 मिनट पहले अपने स्कैल्प और बालों में ताजा नींबू का रस लगाएं। इसे करीब आधा घंटा लगा रहने दें औऱ फिर धो लें। इसके नियमित इस्तेमाल से आपको बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

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स्वस्थ्य जीवन के लिए कुछ सामान्य टिप्स!

Dr. Amit Kumar Gupta 87% (576 ratings)
Bachelor of Ayurveda, Medicine and Surgery (BAMS), M.D.(AYURVEDA)
Ayurveda, Alwar
स्वस्थ्य जीवन के लिए कुछ सामान्य टिप्स!
  • ज्यादा उपवास नहीं करना चाहिए! इसके अलावा भोजन के बीच लंबा गैप भी नही करना चाहिए! रोगी को हर 2-3 घंटे में कुछ न कुछ का सेवन करना चाहिए! एक समय पर बहुत सारा खाना पेट भर कर नहीं  खाएं! रात के खाने में हल्का भोजन करना चाहिए!
  • घी, तेल, मिर्चमसाला का दिनभर में कम से कम इस्तेमाल करें! हरी पत्तेदार सब्जियां ज्यादा से ज्यादा खाएं!
  • जीवनशैली में सुबह शाम घूमना, हल्का भोजन, मीठा खाना छोड़ना, बढ़ते हुए वजन पर ध्यान देना, चिंता, तनाव, भय, शोक आदि से दूर रहना, नियमित योग अभ्यास करना, इत्यादि जैसे जरूरी बदलाव करें! नियमित रूप से चिकित्सक के पास जांच कराएं.
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