डाउन सिंड्रोम के लक्षण कारण और इलाज - Down Syndrome Ke Lakshan, Karan Aur Ilaaj!
डाउन सिंड्रोम क्रोमोसोम के कारण होने वाले एक आनुवांशिक समस्या है. गर्भ में भ्रूण को एक कोशिका में कुल 46 गुणसूत्र यानि क्रोमोसोम मिलते हैं जिसमें से 23 गुणसूत्र माता से व 23 गुणसूत्र पिता से प्राप्त होते हैं. पर कभी-कभी भ्रूण या शिशु को एक अतिरिक्त गुणसूत्र क्रोमोसोम 21 मिल जाता है जिस कारण उसे हरेक कोशिका में 46 के बजाय 47 गुणसूत्र हो जाते हैं. इसी स्थिति को डाउन सिंड्रोम कहते हैं. डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने वाले बच्चे में चेहरा कुछ चपटा, कान छोटा या जीभ बड़ा या इसी तरह के अन्य शारीरिक अंतर देखने को मिलता है. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास देरी से होता है. इसके साथ ही ऐसे बच्चे को ह्रदय, आंत, श्वास संबंधी समस्या भी होती है. इस आलेख में हम डाउन सिंड्रोम के लक्षण, कारण व इलाज से संबंधित चर्चा करेंगे.
डाउन सिंड्रोम के लक्षण-
डाउन सिंड्रोम से ग्रसित अधिकांश बच्चों के मांसपेशियाँ व जोड़ ढीले व कमजोर होते हैं. सामान्य बच्चों की तुलना में डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे के बुद्धि का स्तर भी कम रहता है व इनका शारीरिक व मानसिक विकास देरी से होता है. ऐसे बच्चे देर से बैठना, देर से चलना व देर से बोलना शुरू करते हैं. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे कई तरह के जन्म दोष के साथ पैदा हो सकते हैं. डाउन सिंड्रोम वाले कई बच्चे ह्रदय, श्वास या आंत से संबंधित समस्या के साथ भी पैदा होते हैं. ऐसे बच्चे में हार्ट समस्या, श्वसन समस्या, अल्जाइमर या कैंसर की समस्या भी हो सकती है. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे में चेहरे पर विशेष लक्षण देखने को मिलते हैं. ऐसे बच्चे में छोटा मुंह, कान छोटा, आँखों के ऊपर तिरछापन, जीभ बड़ा, चेहरा सपाट, चौड़े हाथ, छोटी उँगलियाँ इत्यादि देखने को मिलता है. ऐसे बच्चे में रीढ़ के हड्डी में विकृति भी देखने को मिलती है. कुछ बच्चे में पाचन के समस्या या किडनी की समस्या या देखने व सुनने की क्षमता भी कम पाये जाते हैं.
डाउन सिंड्रोम के कारण-
सभी बच्चे में जीन उसके माता व पिता दोनों से मिलते हैं. ये जीन उनतक गुणसूत्र के माध्यम से पहुँचते हैं. गर्भ में बच्चे को हर कोशिका में अपने माता से 23 व पिता से 23 कूल 46 गुणसूत्र मिलते हैं. पर कई बार एक गुणसूत्र ठीक से अलग नहीं हो पाते हैं और बच्चे में 2 के बजाय 3 या एक अतिरिक्त गुणसूत्र (गुणसूत्र 21) पहुँच जाते हैं. इस प्रकार इस स्थिति में इनके हर कोशिका में 46 के बजाय 47 गुणसूत्र यानि क्रोमोसोम होते है. गुणसूत्र के इसी समस्या को डाउन सिंड्रोम कहते हैं व इसी अतिरिक्त गुणसूत्र के कारण ही बच्चे कई तरह के जन्म दोष के साथ पैदा होते हैं या बच्चे का मानसिक व शारीरिक विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है. डाउन सिंड्रोम की स्थिति क्यों होती है इसके पीछे के सही कारण स्पष्ट नहीं है.पर यह देखा जाता है कि यदि महिला देरी से गर्भधारण करती है यानि 35 वर्ष की उम्र या इसके बाद बच्चा पैदा करती है तो बच्चे में डाउन सिंड्रोम की संभावना ज्यादा होती है. इसके अलावा महिला को या उसके किसी भाई या बहन हो डाउन सिंड्रोम है तो उसके बच्चे को भी डाउन सिंड्रोम होने की संभावना रहती है. यदि महिला पहले डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे को जन्म दी है तो उसके द्वारा आगे जन्म दिये जाने वाले बच्चे को भी डाउन सिंड्रोम होने की संभावना अधिक होती है.
डाउन सिंड्रोम का इलाज-
जब भ्रूण गर्भाशय में है तभी जाँच द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे को डाउन सिंड्रोम है या नहीं. यदि जाँच से यह स्पष्ट होता है कि बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है तो गर्भाशय में ही इसका निदान किया जा सकता है. पर बच्चे के जन्म के बाद डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है. ऐसे बच्चे को प्यार व सहारा की ही जरूरत होती है. ऐसे बच्चे के माँ-बाप को चिंता नहीं करनी चाहिए व इस बीमारी के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहिए. माँ-बाप को परेशान होने के बजाय बच्चे के साथ प्यार से पेश होना चाहिए और उनको आगे बढ़ने में सहारा बनना चाहिए. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे व वयस्क भी आज अच्छी जिंदगी जी रहे हैं. ऐसे लोगों को आगे बढ़ने के लिए बस प्यार और सहारा की जरूरत होती है. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे भी अन्य बच्चे की तरह सारा काम कर सकते हैं बस उन्हें माँ-बाप व अपने परिवेश से थोड़ा सपोर्ट की जरूरत होती है. ऐसे बच्चों को स्पीच थेरोपी, फिजियोथेरोपी व अन्य तरीकों से सहायता की जा सकती है.