ल्यूकोडर्मा का आयुर्वेदिक इलाज - Leucoderma Treatment In Ayurveda In Hindi!
ल्यूकोडर्मा को ही सफ़ेद दाग या विटिलिगो भी कहते हैं. ल्यूकोडर्मा, हमारे बॉडी में होने वाला एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें बॉडी के विभिन्न भागों की त्वचा पर ल्यूकोडर्मा बनने शुरू हो जाते हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि त्वचा में रंग बनाने वाली सेल्स खत्म हो जाती हैं, इन कोशिकाओं को मेलेनोसाइट्स कहा जाता है. अगर ल्यूकोडर्मा बॉडी पर बहुत ज्यादा दिखने लगें तो शीघ्र ही डॉक्टर को जरूर दिखाएं. ल्यूकोडर्मा के शुरूआती लक्षणों को ठीक करने के लिए आप कुछ घरेलू उपायों का भी उपयोग कर सकते हैं. आइए इस लेख के माध्यम से हम ल्यूकोडर्मा के आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में जानें ताकि इस विषय में लोगों की जानकारी बढ़ सके.
ल्यूकोडर्मा के लक्षण-
यह एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें बॉडी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बॉडी को ही नुकसान पहुंचाने लगती है. इसमें स्किन का रंग बनाने वाले सेल्स मेलानोसाइट खत्म होने लगते हैं या काम करना बंद कर देते हैं, जिससे बॉडी पर जगह-जगह सफेद धब्बे बन जाते हैं. यह समस्या मोटे तौर पर लिप-टिप यानी होठों और हाथों पर, एक्रोफेशियर यानी हाथ-पैर और चेहरे पर, फोकल यानी शरीर में एक-दो जगह पर, सेग्मेंटल यानी शरीर के एक पूरे हिस्से पर और जनरलाइज्ड यानी शरीर के कई हिस्सों पर दाग के रूप में सामने आती है.
ल्यूकोडर्मा के आयुर्वेदिक उपचार-
आयुर्वेद के अनुसार, पित्त या वात्त की असंतुलन से ल्यूकोडर्मा की समस्या होती है. ऐसे लोग जो बहुत ज्यादा फ्राइड, मसालेदार, अनुचित समय पर खाने के अलावा विरुद्ध आहार (अथार्त दूध के साथ नमक या मछली आदि) लेता है, उसमें यह समस्या होने की जोखिम ज्यादा होती है. आयुर्वेद में पंचकर्म के माध्यम से बॉडी को डिटॉक्सिफाई किया जाता है. इसके अलावा बाकुची बीज, खदिर (कत्था), दारुहरिद्रा, करंज, आरग्यवध (अमलतास) आदि सिंगल हर्ब्स के जरिए भी ब्लड को साफ किया जाता है. इसके अलावा, कंपाउंड मेडिसिन जैसे कि गंधक रसायन, रस माणिक्य, मंजिष्ठादी क्वाथ, खदिरादी वटी आदि भी ले सकते हैं. त्रिफला भी इसमें बहुत प्रभावी होता है.
ल्यूकोस्किन भी अच्छी मेडिसिन है. यह ओरल लिक्विड और ऑइंटमेंट, दोनों ही रूप में उपलब्ध है. ओरल लिक्विड से नए ल्यूकोडर्मा नहीं बनने और बॉडी की इम्यूनिटी बढ़ने का दावा किया जाता है, जबकि ऑइंटमेंट से मौजूदा ल्यूकोडर्मा को ठीक किया जाता है. इसके परिणाम 3 महीने में दिखने लगते हैं, जबकि पूरी तरह ठीक होने में दो साल तक का समय लग सकता है.
ल्यूकोडर्मा के आयुर्वेदिक में बरतें ये सावधानियाँ-
आयुर्वेद इसके उपचार और बचाव के लिए आहार और उसके तरीकें पर बहुत बल देता है. आयुर्वेदिक एक्सपर्ट के मुताबिक, पीड़ित को कॉपर के बर्तन में पानी को 8 घंटे रखने के बाद पीना चाहिए. हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, लौकी, सोयाबीन, दाल ज्यादा खाना चाहिए. पेट में कीड़ा न हो और लीवर स्वस्थ रहे, इसकी चेकअप कराएं और डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवा लें. हर रोज एक कटोरी भीगे काले चने और 3 से 4 बादाम खाएं. इसक साथ ही ताजा गिलोय या एलोविरा जूस पीएं, जिससे इम्यूनिटी बढ़ती है.
ल्यूकोडर्मा को तुलसी से दूर करें-
तुलसी, ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में मदद करती है. ल्यूकोडर्मा को हटाने के अलावा ये त्वचा में होने वाली खुजली और सूजन को भी ठीक करती है. रोजाना तुलसी के पत्ते चबाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और शरीर स्वस्थ होता है.
तुलसी का इस्तेमाल कैसे करें: तुलसी की 4 से 5 पत्तियों को कम से कम चार से छः महीने तक रोजाना जरूर खाएं. आप एक कप पानी में इन पत्तियों को डालकर भी तुलसी की चाय पी सकते हैं. ल्यूकोडर्मा को तेजी से ठीक करने के लिए प्रभावित क्षेत्र पर तुलसी के पाउडर को पानी में मिलाकर बनाए पेस्ट भी को लगा सकते हैं. तुलसी की पत्तियों का रस निकालें और इसे नींबू के रस के साथ मिलाकर पंद्रह मिनट के लिए प्रभावित जगहो पर लगाएं, इसके बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.
ल्यूकोडर्मा मिटाने के लिए नीम की पत्तियों का इस्तेमाल करें-
नीम को त्वचा संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए जाना जाता है, जो त्वचा के खोए हुए रंग को लौटाता है. नीम की पत्तियां रोग प्रतिरोधक की तरह कार्य करती हैं और ब्लड को साफ रखती हैं. इसे इस्तेमाल करने के लिए मुट्ठीभर नीम की पत्तियां ले और सबसे पहले मुट्ठीभर नीम की पत्तियों को मिक्सर में मिक्स कर लें. अब इसे एक कप छाछ के साथ मिला लें, जिससे एक नरम पेस्ट तैयार हो सके. अब इस पेस्ट को त्वचा पर लगा लें और फिर सूखने का इंतजार करें. इसके बाद त्वचा को पानी से धो लें और फिर इस उपाय को कई हफ्तों तक इसी तरह दोहराएं.
मूली के बीज ल्यूकोडर्मा को दूर करें-
मूली के बीज ल्यूकोडर्मा के निदान के लिए बेहद उपयोगी होते हैं. मूली के बीज त्वचा की अशुद्धियों को साफ करते हैं और इसमें विटामिन बी, विटामिन सी, जिंक और फास्फोरस होता है जो ल्यूकोडर्मा से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं. सबसे पहले 30 से 40 ग्राम मूली के बीज को पानी में रात भर भिगोने के लिए रख दें. अब सुबह, मूली के बीज को मिक्सर में मिक्स करने के लिए डाल दें. पेस्ट तैयार होने के बाद मिश्रण को प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं. लगाने के बाद दो घंटे के लिए पेस्ट को ऐसे ही लगा हुआ छोड़ दें. अब त्वचा को पानी से धो दें.
ल्यूकोडर्मा के दौरान क्या न करें-
खट्टी चीजें जैसे नीबू, संतरा, आम, अंगूर, टमाटर, आंवला, अचार, दही, लस्सी, मिर्च, मैदा, गोभी, उड़द दाल आदि कम खाएं. गर्मी बढ़ाने वाली चीजें न खाएं. नॉनवेज और फास्ट फूड कम खाएं. सॉफ्ट डिंक्स के सेवन से बचें.
नमक, मूली और मांस-मछली के साथ दूध न पीएं.
लंबे समय तक तेज गर्मी के एक्सपोजर से बचें.
क्या है इसकी वजह?
- फैमिली हिस्ट्री, यानी अगर पैरंट्स ल्यूकोडर्मा से पीड़ित रहे हैं तो बच्चों में इसके होने की आशंका रहती है. हालांकि ऐसे मामले 2 से 4 फीसदी ही होते हैं.
- एलोपेशिया एरियाटा यानी वह बीमारी, जिसमें छोटे-छोटे गोले के रूप में शरीर से बाल गायब होने लगते हैं.
- ल्यूकोडर्मा मस्से या बर्थ मार्क से मस्सा या बर्थ मार्क बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ आसपास की स्किन का रंग बदलना शुरू कर देता है.
- केमिकल ल्यूकोडर्मा यानी खराब क्वॉलिटी की चिपकाने वाली बिंदी या खराब प्लास्टिक की चप्पल इस्तेमाल करने से.
- ज्यादा केमिकल एक्सपोजर यानी प्लास्टिक, रबर या केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को खतरा ज्यादा. कीमोथेरपी से भी इसकी आशंका रहती है.
- थाइरॉयड संबंधी बीमारी होने पर.