स्वर्णप्राशन संस्कार- आयुर्वेदिक रोगप्रतिकार क्षमतावर्धक
स्वर्णप्राशन क्या है – मनुष्य के 16 संस्कारों में से एक सुवर्णप्राशन संस्कार स्वास्थ्य के नजरिये से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं में जिस तरह रोगो की रोकथाम, बचाव एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विभिन्न टीको (vaccination) का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार से आयुर्वेद में रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए सुवर्णप्राशन का वर्णन आया है स्वर्णप्राशन आयुर्वेद में बताया एक दिव्य योग है जिसका वर्णन कश्यप संहिता जैसे ग्रंथों में आया है यह एक अवलेह कल्पना है परंतु आज के समय में अवलेह एवं ड्रॉप (drops) के रूप भी मिलता है स्वर्ण प्राशन का निर्माण उच्च कोटि की स्वर्ण भस्म, मधु, गाय के घी एवं बुद्धि वर्धक औषधियों जैसे ब्राह्मी, वचा, शंखपुष्पी से किया जाता है
स्वर्णप्राशन में स्वर्ण का महत्व - सुवर्ण हमारे शरीर के पोषण के लिये श्रेष्ठत्तम धातु है। यह सभी उंमर के लोगो के लिये असरकारक और रोगप्रतिकार क्षमता बढानेवाली है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक विकार में महत्वपूर्ण प्रभाव होने के कारण ही उसको शुभ मान जाता है, उसका दान श्रेष्ठ माना गया है । हमारे आयुर्वेदा के ऋषियों को स्वर्ण के लाभ पता था इस लिए सोने का दैनिक जीवन में भी उपयोग करना शुरू करवा दिया जैसे कि, शुद्ध सोने के गहने पहनने का व्यवहार , सोने की थाली में ही खाना खाना , जिससे सुवर्ण घिसाता हुआ हमारे शरीर के भीतर जाये। हमारी मानसिक और बौद्धिक क्षमता भी बढाता है। यह शरीर, मन एवं बुद्धि का रक्षण करनेवाली अति तेजपूर्ण धातु है।
काश्यप संहिता में सुवर्णप्राशन- आयुर्वेद के बालरोग के ग्रंथ काश्यप संहिता के पुरस्कर्ता महर्षि काशयप ने सुवर्णप्राशन के गुणों का निम्न रूप से निरूपण किया है..
सुवर्णप्राशन हि एतत मेधाग्निबलवर्धनम् ।
आयुष्यं मंगलमं पुण्यं वृष्यं ग्रहापहम् ॥
मासात् परममेधावी क्याधिभिर्न च धृष्यते ।
षडभिर्मासै: श्रुतधर: सुवर्णप्राशनाद् भवेत् ॥
सूत्रस्थानम्, काश्यपसंहिता
अर्थात् सुवर्णप्राशन मेधा (बुद्धि), अग्नि ( पाचन अग्नि) और बल बढानेवाला है। यह आयुष्यप्रद, कल्याणकारक, पुण्यकारक, वृष्य, वर्ण्य (शरीर के वर्णको तेजस्वी बनाने वाला) और ग्रहपीडा को दूर करनेवाला है. सुवर्णप्राशन के नित्य सेवन से बालक एक मास मं मेधायुक्त बनता है और बालक की भिन्न भिन्न रोगो से रक्षा होती है। वह छह मास में श्रुतधर (सुना हुआ सब याद रखनेवाला) बनता है, अर्थात उसकी स्मरणशक्त्ति अतिशय बढती है।
स्वर्णप्राशन के लाभ-
- बुद्धि वर्धक - स्वर्णप्राशन का निर्माण बुद्धि वर्धक औषधियों जैसे ब्राह्मी, वचा, शंखपुष्पी से किया जाता है जो बुद्धि की धारण शक्ति को बढ़ती है यही कारण है की स्वर्ण प्राशन को निरंतर लेने से ६ माह में ही वह छह मास में श्रुतधर (सुना हुआ सब याद रखनेवाला) बनता है, अर्थात उसकी स्मरणशक्त्ति अतिशय बढती है।
- अग्नि वर्धक -स्वर्णप्राशन एक आचार्यो द्वारा बताया गया एक विशेष योग है जो की बुद्धि वर्धक होने के साथ साथ पाचनक्षमता भी बढाता है जिसके कारण उसको पेट और पाचन संबंधित कोई तकलीफ़ नही रहती है
- रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास - स्वर्णप्राशन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है जिस से बालकों के दांत आने पर होने वाले रोगों से भी छुटकारा मिलता है एवं बच्चों का बार बार बीमार होना, खांसी जुखाम बुखार बार बार होना इसमें भी लाभ मिलता है चुकि स्वर्ण प्राशन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है इसलिए यह अधिक दवाएं खाने से होने वाले दुष्परिणाम से रक्षा करती है और हर प्रकार की एलर्जी, वायरल इंफेक्शन,मौसम के परिवर्तन से होने वाली बीमारियों से भी रक्षा होती है
- शारिरीक विकास- स्वर्णप्राशन से अग्नि वर्धन एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है इस लिए के शरीर का तेजी से विकास होता है और धातु निर्माण भी उत्कृष्ट प्रकृति का होता है
- वर्ण- स्वर्णप्राशन से त्वचा में भी निखार आता है
स्वर्ण प्राशन कैसे लेना चाहिए- सुवर्णप्राशन यह हमारे 16 संस्कारो में से एक है । हमारे यहाँ जब बालक का जन्म होता है तब उसको सोने या चांदी की शलाका (सली) से उसके शहद चटाने की या जीभ पर ॐ लिखने की एक परँपरा रही है। यह परंपरा का मूल स्वरूप तो एक तरह से हमारा सुवर्णप्राशन संस्कार ही होता है । स्वर्णप्राशन एक उत्कृष्ट रसायन है इस देश का प्रयोग नवजात शिशु से लेकर सभी उम्र के बच्चों एवं बड़ों में किया जा सकता है इससे शारीरिक व मानसिक विकास अत्यंत तेजी से के साथ होता है स्वर्ण प्राशन रसायन होने के कारण प्रातः खाली पेट एवं अन्य औषधियों के साथ अनुपान के रूप में लिया जा सकता है सुवर्णप्राशन क्योंकि अवलेह है इसलिए इसको चाट कर निकलना ही श्रेष्ठ होता है
मात्रा – स्वर्णप्राशन स्वर्ण भस्म से बनाया हुआ योग होने के कारण अधिक मूल्यवान होता है कुछ लोग सप्ताह में से एक बार लेते हैं कुछ लोग पुष्य नक्षत्र के दिन ही एक बार सेवन करना अच्छा समझते हैं परंतु स्वर्ण प्राशन एक नित्य सेवन की जाने वाली प्रक्रिया है एक विशिष्ट मात्रा के अंदर सेवन करने से ही इसका लाभ दिखता है इसके लिए आप चिकित्सक से सलाह करके मात्रा का निर्धारण करवाते हुए उसी मात्रा का नित्य अभ्यास करें उसी से आपको इसका लाभ दिखेगा इसके सामान्य मात्रा 500mg से 1 ग्राम तक एवं बिंदु रूप में इसकी मात्रा 2 से 7 बूंद प्रतिदिन उम्र के अनुसार होती है
किन किन रोगों में दिया जा सकता है- क्योंकि स्वर्णप्राशन के घटक द्रव्यों में सभी द्रव्य रसायन करने वाले होते हैं इसलिए इसका सभी लोग सेवन कर सकते हैं फिर भी किसी विशेष रोग की अवस्था में चिकित्सक की सलाह के अनुसार प्रयोग करें
वर्ष 2019 में आगामी पुष्य नक्षत्र की तिथियां-
07 जून |
04 जुलाई |
01 अगस्त |
28 अगस्त |
24 सितंबर |
22 अक्टूबर |
17 नवंबर |
15 दिसंबर |
पुष्य नक्षत्र का महत्व - पुष्य नक्षत्र एक शुभ नक्षत्र है इसमें औषध निर्माण एवं सेवन प्रारम्भ करने से उत्तम लाभ मिलता है इसलिए स्वर्ण प्राशन का शुरुआत पुष्य नक्षत्र से करनी चाहिए एवं कुछ लोग सब पुष्य नक्षत्र के दिन ही स्वर्ण प्राशन करवाते हैं और इसके अलावा भी इसको प्राय किसी भी दिन किया जा सकता है