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Last Updated: Jun 14, 2023
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कहीं आपके मवेशी को लंपी त्वचा रोग तो नहीं है, परेशान ना हों, ऐसे करें इलाज

Dr. M N Gupta0Dermatologist
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लंपी स्किन डिजीज / लंपी त्वचा रोग

मवेशियों मे होने वाला लंपी स्किन डिजीज जिसे लंपी रोग या लंपी त्वचा रोग भी कहा जाता है। यह रोग मवेशियों का एक वायरल संक्रमण है। मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है, यह मध्य पूर्व, एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों में भी फैल गया है। रोग के लक्षणों की बात करें तो मवेशियों में बुखार, लैक्रिमेशन, हाइपरसैलिवेशन और विशिष्ट त्वचा का फटना शामिल हैं। क्लीनिकल हिस्टोपैथोलॉजी, वायरस अलगाव, या पीसीआर द्वारा इसका पता लगाया जाता है। एटेन्यूएटेड टीके प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।

लंपी त्वचा रोग भारत में पहली बार 2019 में ओडिशा से रिपोर्ट किया गया था। हालांकि, वर्तमान में गुजरात और राजस्थान समेत की राज्यों में मवेशी इसकी चपेट में हैं। मवेशियों के बीच संक्रामक लंपी त्वचा रोग (एलएसडी) का प्रसार अधिक से अधिक क्षेत्रों से प्रभावित हो रहा है, जो अब तक भारत के छह राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में 5,000 से अधिक मवेशियों की जान ले चुका है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों से भी हजारों मवेशियों में संक्रमण के मामले सामने आए हैं। 15% तक की मृत्यु दर के साथ वर्तमान प्रकोप काफी व्यापक और घातक है, विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान सहित देश के पश्चिमी हिस्सों में इसका प्रभाव काफी ज्यादा है।  

समय के बीतने के साथ देश में इसके और ज्यादा फैलने की आशंका जताई गई है क्योंकि वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण के प्रयास अभी उतने तेज नहीं हो सके हैं। इस सबके बावजूद माना जा रहा है सरकार मवेशियों की सेहत लेकर जिस तरह गंभीर है उससे जल्द ही भारत में बने टीके को बाजार में पूरी तेजी से उतारा जा सकता है।

क्या है लक्षण और कारण

लंपी त्वचा रोग मवेशियों की एक संक्रामक, विस्फोटक बीमारी है जो कभी-कभी घातक रुप ले लेती है। इस बीमारी में त्वचा और शरीर के अन्य भागों पर गांठों का होना ही इसक सबके बड़ा लक्षण है। जीवाणु संक्रमण की सेकेंडरी स्टेज अक्सर स्थिति को और ज्याद गंभीर बना देते हैं। इस बीमारी का कारक वायरस चेचक से संबंधित है। लंपी त्वचा रोग छिटपुट रूप में पाया जाता है पर ये  महामारी का रूप भी अकसर ले लेता है। अकसर, संक्रमण के नए केंद्र प्रारंभिक प्रकोप से दूर क्षेत्रों में दिखाई देते हैं। यह बीमारी सबसे ज्यादा अधिक गर्मी और नमी वाले मौसम में होती है, लेकिन यह सर्दियों में नहीं होती ऐसा नहीं है। ये बीमारी सर्दियों में भी हो सकती है। मवेशियों में रोग की विशेषता त्वचा की गांठों के विकास से पहचानी जाती है। ये बीमारी बुखार, लिम्फ नोड्स के बढ़ने और अवसाद से जुड़ी होती है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः दूध की उपज कम हो जाती है, गर्भवती जानवरों में गर्भपात और सांडों में बाँझपन होता है।

संक्रमित मवेशियों में बुखार के अलाव कई लक्षण होते हैं जैसे लैक्रिमेशन, नाक से स्राव और हाइपरसैलिवेशन।  इसके बाद अतिसंवेदनशील मवेशियों में त्वचा और शरीर के अन्य हिस्सों पर खास तौर पर गांठें देखी जाती हैं। इसका बीमारी का इन्क्यूबेशन पीरियड  4-14 दिन है।

मवेशियों की गांठें यानी नोड्यूल अच्छी तरह से घिरे हुए, गोल, थोड़े उभरे हुए, दृढ़ और दर्दनाक होते हैं। ये नोड्यूल्स संपूर्ण कटिस और जीआई, श्वसन और जननांग पथ के म्यूकोसा में पाए जाते हैं। नोड्यूल्स थूथन पर और नाक और मुख म्यूकस झिल्ली के भीतर विकसित हो सकते हैं। इन नोड्यूल्स में टिश्यू का एक फर्म, मलाईदार-ग्रे या पीले रंग का द्रव्यमान होता है। रीजनल लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं, और एडिमा थन, छाती और पैरों में विकसित होती है। इसके परिणाम स्वरूप, जानवर बेहद कमजोर हो सकता है। समय के साथ, ये उभार वाले नोड्यूल्स या तो समाप्त हो जाते हैं या फिर  त्वचा की नेक्रोसिस की वजह से आसपास की त्वचा से अलग एक कठोर, उभरे हुए क्षेत्र के तौर पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। बाद में ये क्षेत्र धीरे-धीरे अल्सर बना देते हैं जो ठीक तो हो जाते हैं पर इनके निशान बन जाते हैं।

इस बीमारी की वजह से मवेशी की जीवन गुणवत्ता पर 5% -50% का असर पड़ता है; आमतौर पर इस बीमारी में मृत्यु दर कम होती है। सबसे बड़ा नुकसान दूध की कम उपज, जानवर की सेहत और गुणवत्ता में कमी, और मवेशी की स्किन गुणवत्ता होती है।

अकसर लंपी रोग को  चिकित्सकीय रूप से कम खतरनाक स्यूडो लंपी त्वचा रोग समझ लिया जाता है। इस भ्रम की वजह एक हर्पीसवायरस (गोजातीय हर्पीसवायरस 2) होती है।  ये रोग चिकित्सकीय रूप से समान हो सकते हैं, हालांकि दुनिया के कुछ हिस्सों में हर्पीसवायरस घाव गायों के टीट्स और थन तक ही सीमित लगते हैं, और इस बीमारी को बोवाइन हर्पीज मैमिलिटिस कहा जाता है।

स्यूडो लंपी त्वचा रोग एक हल्का रोग है, लेकिन इसकी पहचान जानवर को अलग कर उसके विस्तृत परिक्षण से ही हो सकती है।  लंपी त्वचा रोग के चेचक वायरस को प्रारंभिक त्वचा के घावों में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी द्वारा पहचाना जा सकता है। पीसीआर द्वारा इन दो बीमारियों की पहचान और उसमें अंतर के बारे में जाना जा सकता है। डर्माटोफिलस कांगोलेंसिस भी मवेशियों में त्वचा की गांठ का कारण बनता है।

लंपी त्वचा रोग की व्यापकता

हाल के वर्षों में अफ्रीका के अपने मूल स्थान से परे  लंपी त्वचा रोग का प्रसार चिंताजनक है। क्वारेंटाइन का उपयोग भी बहुत प्रभावी साबित नहीं हुआ है।  इस बीमारी का प्रसार टीकाकरण से ही रोका जा सकता है। टीकाकरण नियंत्रण का सबसे आशाजनक तरीका प्रदान करता है और बाल्कन देशों में इस तरह के टीकाकरण से इस रोग के प्रसार को प्रभावी रूप से रोका गया था।  वैसे तो लंपी त्वचा रोग मुख्य रूप से मवेशियों की बीमारी है, पर इस बीमारी के  भैंस, ऊंट, हिरण और घोड़े में हल्की लक्षण और  बीमारी के साक्ष्य भी मिले हैं।

लंपी त्वचा रोग से बचाव, भारत में क्या करें पशुपालक

भारत में प्रभावित राज्य वर्तमान में गोट-पॉक्स के टीके के माध्यम से खतरे से लड़ रहे हैं जिसे लंपी त्वचा रोग के लिए विशिष्ट टीके के अभाव में आपातकालीन उपयोग के लिए अधिकृत किया गया है। राहत की बात यह है कि देश में ही इस लंपी त्वचा रोग के लिए टीका बना लिया गया है। एनआरसीई द्वारा आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (एलवीआरएल), लजतनगर (यूपी) के सहयोग से वैक्सीन विकसित की गई है। एनआरसीई वर्तमान में नए विकसित एलएसडी टीकों की सीमित मात्रा में 'गौशालाओं' और उन डेयरी किसानों को मुफ्त में आपूर्ति कर रहा है जिनके पास प्रभावित राज्यों में बड़ी संख्या में मवेशी हैं। हाल ही में बनाए स्वदेशी टीकों - लंपी-प्रोवैक्सइंड - का कर्मशियल प्रोडक्शन भी शुरु होने वाला है जिससे इसकी व्यापकता पर रोक लगाई जा सकेगी।

माध्यमिक संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं और अच्छी नर्सिंग से राहत मिल सकती है। लेकिन अगर ये बीमारी मवेशियों के झुंड के भीतर बड़ी संख्या में फैल चुकी है तो इससे इलाज प्रभावित हो सकता है।

इस बीमारी से ग्रस्त जानवरों को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एंटीपायरेटिक्स जैसे कि वेटलगिन, मेलॉक्सिकैम, केटोप्रोफेन इत्यादि के साथ प्रबंधित या ठीक किया जा सकता है। हालांकि, अगर बुखार बना रहता है या जानवर नाक से निर्वहन / श्वसन लक्षण दिखाता है, तो एंटीबायोटिक्स जैसे सीफ्टियोफुर, एनरोफ्लोक्सासिन, या सल्फोनामाइड्स को माध्यमिक संक्रमण की जांच के विचार किया जाना चाहिए।

 इसके अलावा, एंटीसेप्टिक मरहम को त्वचा पर लगाया जा सकता है इस एंसीसेप्टिक में मक्खी, कीड़े मकोड़े भगाने वाले गुण भी होने चाहिए। प्रभावित पशुओं का उपचार फार्म में ही किया जाना चाहिए; उन्हें अस्पतालों या पॉलीक्लिनिकों में नहीं ले जाया जाना चाहिए, क्योंकि उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण इन जानवरों में अक्सर तेज बुखार या अतिताप विकसित होता है।

बचाव के तरीके

  • जब लंपी त्वचा रोग फैला हो तो उस अवधि के दौरान अपने झुंड में नए जानवरों की खरीद ना करें।
  • अपने जानवरों के झुंड में नए जानवर को प्रवेश ना दें। 
  • जानवरों की आवाजाही को प्रतिबंधित करें, और पशु मेलों, शो आदि में अपने जानवरों की भागीदारी से दूर रहें।
  • अपने खेत में वेक्टर आबादी (टिक, मक्खियों, मच्छरों, पिस्सू, मिडज) को कम करने के प्रयास करें
  • अपने पास मौजूद सभी स्वस्थ पशुओं का लंपी त्वचा रोग/बकरी चेचक (गोट पॉक्स) के टीके से टीकाकरण कराएं।

घबराएं नहीं ये कोरोना की तरह नहीं

कोरोना के ड़र से सहमे हम सभी के लिए लंपी रोग से ड़रने की जरुरत नहीं है। मनुष्यों के लिए राहत की बात यह है कि यह रोग जूनोटिक नहीं है यानी ये रोग मवेशियों या दूसरे जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलता है, और इसलिए दूध पाश्चुरीकरण/उबालने के बाद मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है।

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