नोज़ रिशेपिंग सर्जरी - Nose Reshaping Surgery!
नसों की कमजोरी कई कारणों से हो सकते हैं. यह आपके जीवनशैली, आहार में प्सोहक तत्वों की कमी, कुछ बिमारियों के कारण या नर्वस सिस्टम की कमोज्री के कारण हो सकता है. संबंधित समस्या के कारण नसों मी कमजोरी हो सकती है. इन कारणों से तंत्रिका तंत्र (Nervous System) की कमजोरी भी होती है. इस समस्या में प्रभावित नस से संबंधित शरीर का अंग ठीक से काम नहीं करता है या गतिहीन हो जाता है या वहाँ सुन्न जैसी स्थिति हो जाती है. कुछ लोगों के लिए यह समस्या थोड़े समय के लिए रहता है व कुछ समय बाद ठीक हो जाता है, पर कुछ लोगों को यह समस्या स्थायी रूप से हो जाती है. इस समस्या के वजह का पता कर उसके इलाज करने से नस की कमजोरी ठीक हो सकती है. आगे हम जानेंगे कि किन-किन कारणों से नसों की कमजोरी हो सकती है.
नसों की कमजोरी के कारण-
कुछ बीमारी के कारण: - कुछ बीमारियों के कारण नसों में कमजोरी हो सकती है. जैसे मल्टीप्ल स्केलेरोसिस, गिल्लन बर्रे सिंड्रोम (एक ऐसा बीमारी जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली पेरिफेरल नसों को नुकसान पहुंचाती है), मायस्थीनिया ग्रेसिव (मांसपेशियों की कमजोरी व थकान की बीमारी), लुपस, इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज जैसे ऑटो इम्यून डिजीज के कारण नसों में कमजोरी हो सकती है. मोटर न्यूरॉन बीमारी (दिमाग तक संकेत भेजने वाले नसों को प्रभावित करने वाले बीमारी) भी नसों के कमजोरी के कारण हो सकते हैं. शुगर (मधुमेह) के कारण भी नसों में कमजोरी हो सकती है.
- किसी भी कारण से नसों पर दबाव के कारण: - हड्डी बढ़ने के कारण या अन्य किसी भी कारण से नसों में दबाव आ जाता है तो इस कारण से भी नसें कमजोर हो सकती है. नस या आसपास के उत्तक के ट्यूमर, जो नसों के उत्तक पर दबाव डालते हों या उन्हें नुकसान पाहुचाते हों, के कारण भी नसें कमजोर हो सकती हैं.
- जेनेटिक या अनुवांशिक समस्या के कारण: - नसों के स्वास्थ्य या कार्य को प्रभावित करने वाले आनुवांशिक समस्या या नसों के बनावट व विकास को प्रभावित करने वाले जन्मजात समस्या या विषाक्त पदार्थ भी नसों के कमजोरी के कारण हो सकते हैं.
- अन्य कारण: - दवाओं के दुष्प्रभाव, पोषण तत्वों में कमी या विषाक्त पदार्थ के कारण भी ऐसी समस्या हो सकती है. नसों को प्रभावित करने वाले पदार्थों का अधिक सेवन या नसों को नुकसान पहुंचाने वाले या नसों के कार्य को प्रभावित करने वाले ड्रग्स भी नसों की कमजोरी के वजह हो सकते हैं. हर्पीस, एचआईवी और हेपेटाइटिस सी जैसे बीमारी के संक्रमण से भी नसों में कमजोरी हो सकती है. अस्वस्थ आहार, तनाव (स्ट्रेस) भी नसों को कमजोर कर सकती हैं. इसके अलावा नसों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मिनरल व विटामिन की कमी के कारण भी नसें कमजोर हो सकती हैं.
नसों की कमजोरी के लक्षण-
जब व्यक्ति के नसों में कमजोरी होती है तो कई प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं. नसों की कमजोरी होने पर चुभन, गुदगुदी या दर्द हो सकती है. चिंता, डिप्रेशन या थकान भी नसों के कमजोरी के लक्षण हैं. नसों के कमजोरी में बीमारियों से लड़ने के क्षमता कम हो सकती है या देखने, सुनने, सूंघने, स्वाद चखने या छूने की क्षमता भी कम हो सकती है. मांसपेशियों की कमजोरी व थकावट के अलावा झटके लगना या अन्य व्यवहार संबंधी समस्याएँ भी नसों की कमजोरी के लक्षण हैं.
नसों की कमजोरी से बचाव-
नसों की कमजोरी से बचने के लिए संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए व नियमित व्यायाम करना चाहिए. शराब व सिगरेट न पीना चाहिए व विषाक्त पदार्थ के सेवन से बचना चाहिए. पैरों को चोट लगने से बचाकर रखना चाहिए.
यदि डायबिटीज (मधुमेह) हो तो अपने पैरों का खास ख्याल रखना चाहिए. रोज अपने पैरों को धोकर उसकी जाँच करनी चाहिए व लोशन लगाकर त्वचा को नम रखना चाहिए.
यदि नस के कमजोरी की समस्या है तो छोटी-मोटी दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है. अतः इस दुर्घटना के जोखिम को कम करने के लिए पैरों में हमेशा जूते पहनकर रहना चाहिए व पैरों से किसी भी वस्तु में ठोकर लगने से व गिरने से बचना चाहिए. फिसलने व गिरने से बचने के लिए बाथरूम में पायदान का उपयोग करना चाहिए व बाथरूम में हैंडल लगवाना चाहिए. पानी का तापमान देखने के लिए हाथ या पैर का प्रयोग न करना करके केहुनी का प्रयोग करना चाहिए. एक ही अवस्था में ज्यादा देर तक नहीं रहना चाहिए बल्कि बीच-बीच में कुछ देर तक उठकर घूमना चाहिए.
नसों की कमजोरी का इलाज-
नसों की कमजोरी हो जाने पर इसके इलाज के लिए जाँच कर यह पता लगाया जाता है कि नसों में कमजोरी का वजह क्या है. फिर जिस वजह से नसों में कमजोरी आयी हो उसका इलाज किया जाता है. नसों की कमजोरी का वजह ठीक हो जाने पर नसें की कमजोरी भी ठीक हो जाने की संभावना रहती है.
यदि शुगर (डायबिटीज) के कारण नसों की कमजोरी हो तो इसके लिए डायबिटीज के इलाज के साथ-साथ जीवनशैली में परिवर्तन करना चाहिए. जैसे – धूम्रपान व शराब का सेवन छोड़ना, एक स्वस्थ वजन बनाए रखना, नियमित व्यायाम करना इत्यादि.
यदि विटामिन बी12 की कमी के कारण नसों में कमजोरी हुयी हो तो विटामिन बी12 की इंजेक्शन या टीके व दवाएँ दी जानी चाहिए. यदि किसी दवा के कारण नसों की कमजोरी हो तो उस दवा को लेना बंद कर देना चाहिए.
जरूरत के अनुसार नसों के कमजोरी के कारण के अनुसार डॉक्टर अन्य इलाज व दवाएँ का भी प्रयोग करते हैं. जैसे यदि ट्यूमर या किसी अन्य वजह से नसों पर दबाव के कारण नसों की कमजोरी या नसों की समस्या हो तो इसे ठीक करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है.
यह जरूरी नहीं है कि नसों की कमजोरी का वजह हमेशा इलाज से ठीक हो ही जाए. अतः नसों की कमजोरी के कारण हो रही परेशानी को कम करने के लिए मेडिटेशन (ध्यान), मसाज, एक्यूपंक्चर, ट्रान्स्क्यूटेनस इलेक्ट्रिक नर्व स्टिम्युलेशन, या फिजिकल थेरेपी का सहारा लिया जाता है.
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नाक को रिशेप कराने के लिए की जाने वाली सर्जरी को हम राइनोप्लास्टी सर्जरी के नाम से जानते हैं. आज हमारे समाज में इसकी आवश्यकता बढ़ती ही जा रही है. इसकी वजह है कि अधिक लंबी या छोटी, फैली हुई, टेढ़ी नाक और बड़े नासा-छिद्र चेहरे की सुन्दरता बिगाड़ देते हैं. आपने भी देखा होगा कि युवाओं को कॉलेज में दोस्तों या ऑफिस में ग्रुप के बीच चेहरे पर पसरी या नुकीली नाक की वजह से हंसी का पात्र बनना पड़ता है. इसलिए उनके मन में ये खयाल बार बार आता रहता है कि काश उनकी नाक का आकार भी सुन्दर हो पाता. तो ये लेख उन लोगों के लिए ही खुशखबरी लेकर आया है. यानि कि यदि नाक के आकार को लेकर चिंतित हैं, तो कॉस्मेटिक नोज रीशेपिंग (राइनोप्लास्टी) से अपने नाक को रीशेप करा सकते हैं. चेहरे की सुंदरता काफी हद तक नाक, होंठ और ठोड़ी के आकार और अनुपात पर निर्भर करती है. अगर आपकी आंख या होंठ आकर्षक हैं, लेकिन नाक का आकार असंतुलित है, तो चेहरे की सुंदरता प्रभावित होती है.
चेहरे की बनावट व विशेषताओं के बीच संतुलन बनाने के लिए नाक का विशेष महत्व है. राइनोप्लास्टी एक बहुत ही सुरक्षित और अत्याधुनिक वैज्ञानिक तरीका है जो नाक की सुंदरता और उसके आकार में परिवर्तन के लिए किया जाता है. इसे एक कॉस्मेटिक सर्जरी माना जाता है, जिससे नाक के आकार को छोटा या बड़ा किया जा सकता है और फैले हुए नोजट्रिल्स, नुकीली टिप, नासल ब्रिज पर हम्प आदि का आकार सही किया जा सकता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम राइनोप्लास्टी सर्जरी के विभिन्न पहलुओं को विस्तार पूर्वक जानें ताकि इस विषय में हम जागरूक हो सकें.
किसी दूसरे व्यक्ति के जैसी नाक संभव नहीं
परफेक्ट नोज जैसी कोई चीज नहीं होती है. आप किसी दूसरे व्यक्ति या मॉडल जैसी नाक का आकार देखना चाहते हैं, तो यह जरुरी नहीं की आपके नाक के आकार भी उसी तरह से हो. नाक में नोज रीशेपिंग से यथासंभव बदलाव जैसे बेढंगे तौर से फैली हुई, बड़ी या ज्यादा छोटी, दबी हुई और सपाट नाक, नाक का झुका हुआ सिरा या फूला हुआ गोल सिरा (बल्बस टिप) आदि को ठीक किया जा सकता है. ताकि आपकी नाक पहले से अच्छी लगे. लेकिन किसी दूसरे व्यक्ति की नाक की कॉपी मुमकिन नहीं है. इसकी वजह है कि हर चेहरे की आतंरिक बनावट और हड्डियों का आकार अलग होता है. इसलिए नोज सर्जरी तभी कराएं, जब आप नाक के आकार में सुधार चाहते हों, ना कि किसी दूसरे की नाक को कॉपी.
क्या होता है राइनोप्लास्टी सर्जरी के बाद?
राइनोप्लास्टी का लक्ष्य नाक को चेहरे के बाकी फीचर्स के साथ संतुलित करना व अनुपात में लाना है. आमतौर पर पूरी तरह से हीलिंग के बाद लोग चेहरे के बदलाव को बेहतर बताते हैं, लेकिन अधिकांश लोग नाक में बदलाव को नोटिस नहीं कर पाते हैं. राइनोप्लास्टी के बाद लोग आपके चेहरे के बाकी फीचर्स (जैसे आखें और होंठ आदि) की सुंदरता को नोटिस करने लगते हैं, जिन पर पहले का ध्यान नहीं जाता था. नाक की सर्जरी के बाद आप उसी दिन घर जा सकते हैं और रोजमर्रा का काम सामान्य रूप से कर सकते हैं. नाक पर कुछ दिनों तक एक बैंडेज रहता है, जिसे 8-10 दिनों के बाद निकाल दिया जाता है.
नोज रीशेपिंग के फाइनल रिजल्ट में कितना समय लग सकता है?
नोज रीशेपिंग के बाद नाक ओर उसके आस-पास के हिस्सों में सूजन रहती है, जो धीरे-धीरे कम हो जाती है. सूजन कुछ हफ्तों में सामान्य हो जाती है. पर अंदरूनी हिस्से (खासकर नोज टिप) की स्वेलिंग पूरी तरह से ठीक होने में आठ से बारह महीने तक का समय लग सकता है और सर्जरी के फाइनज रिजल्ट तभी दिखते हैं. इसलिए आपको सलाह दी जाती है कि नोज रीशेपिंग कराने के बाद फाइनल रिजल्ट के लिए एक साल तक इंतजार करें, क्योंकि भले ही आपको बाहर से पता ना चले, लेकिन आपकी नाक अभी भी हील कर रही होती है.