पैरालिसिस का उपचार - Paralysis Ka Upchar!
पैरालिसिस यानि कि लकवे की बीमारी आजकल काफी सुनने को मिलती है. किसी की पूरी बॉडी पैरालिसिस का शिकार हो जाती है तो किसी की आधी बॉडी इस बीमारी के चपेट में आ जाती है. कुछ लोगों के शरीर के किसी विशेष अंग को भी पैरालिसिस हो जाता है. लकवे के रोग का कारण तो साफ है, लेकिन इसके कई प्रकार भी होते हैं. इस रोग में रोग में रोगी के शरीर के नीचे का भाग अर्थात कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर देता है. इस रोग के कारण रोगी के पैर तथा पैरों की अंगुलियां अपना कार्य करना बंद कर देती हैं. आइए इस लेख के माध्यम से हम पैरालिसिस के विभिन्न उपचारों के बारे में जानें.
लकवे के रोग के प्रकार-
अर्द्धांग का लकवा: - इसमें शरीर का आधा भाग कार्य करना बंद कर देता है अर्थात शरीर का दायां या बायां भाग कार्य करना बंद कर देता है. डॉक्टर बताते हैं कि बीते कुछ समय में इस प्रकार के लकवे के मामले काफी बढ़ गए हैं.
एकांग का लकवा: - तीसरा है एकांग का लकवा, जिसमें शरीर का केवल एक हाथ या एक पैर अपना कार्य करना बंद कर देता है. जब तक यह अंग दिमाग के जिस भाग से जुड़े हैं वह ठीक नहीं हो जाता, तब तक यह अंग काम नहीं करता.
मुखमंडल का लकवा: - लकवे का चौथा प्रकार है पूर्णांग का लकवा, इसमें ज्यादातर मामले दोनों हाथ के लकवे या दोनों पैर के लकवा हो जाने के सुनाई देते हैं. इसके बाद पांचवें प्रकार का लकवा है मुखमंडल का लकवा हो जाना, जिसमें रोगी के मुंह का एक भाग टेढ़ा हो जाता है जिसके कारण मुंह का एक ओर का कोना नीचे दिखने लगता है और एक तरफ का गाल ढीला हो जाता है. इस रोग से पीड़ित रोगी के मुंह से अपने आप ही थूक गिरता रहता है.
मेरूमज्जा लकवा: - इसके बाद छठे प्रकार का लकवा है मेरूमज्जा-प्रदाहजन्य लकवा. यह काफी समस्या उत्पन्न करता है. इस प्रकार के पैरालिसिस में शरीर का मेरूमज्जा भाग कार्य करना बंद कर देता है. यह रोग अधिक सेक्स क्रिया करके वीर्य को नष्ट करने के कारण होता है.
जीभ का लकवा: - अगला है जीभ का लकवा, जो इस श्रेणी में सातवें नंबर पर है. इस प्रकार के लकवे के कारण रोगी की जीभ में लकवा मार जाता है और रोगी के मुंह से शब्दों का उच्चारण सही तरह से नहीं निकलता है. क्योंकि इस रोग के कारण रोगी की जीभ अकड़ जाती है और रोगी व्यक्ति को बोलने में परेशानी होने लगती है तथा रोगी बोलते समय तुतलाने लगता है.
स्वरयंत्र का लकवा: - इसके बाद आठवें प्रकार का लकवा है स्वरयंत्र का लकवा. जी हां नाम से ही आप समझ गए होंगे कि यह लकवा बोलने की क्षमता को प्रभावित करता है. इस प्रकार के लकवे के रोग के कारण रोगी के गले के अन्दर के स्वर यंत्र में लकवा मार जाता है, परिणाम स्वरूप रोगी व्यक्ति की बोलने की शक्ति या तो काफी प्रभावित हो जाती है या पूर्ण रूप से नष्ट ही हो जाती है.
सीसाजन्य लकवा: - इसके कारण रोगी के मसूढ़ों के किनारे पर एक नीली लकीर पड़ जाती है. रोगी का दाहिना हाथ या फिर दोनों हाथ नीचे की ओर लटक जाते हैं. इतना ही नहीं रोगी की कलाई की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. कई बार तो रोगी की कलाई टेढ़ी भी हो जाती है और अन्दर की ओर मुड़ जाती है. इस लकवे के कारण रोगी की बांह और पीठ की मांसपेशियां भी रोगग्रस्त हो जाती हैं.
कैसे होता है
प्राकृतिक तरीका-
लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि प्राकृतिक रूप से लकवा जैसी बीमारी का इलाज संभव है. प्राकृतिक चिकित्सा से हर प्रकार के लकवा रोग का उपचार पाया जा सकता है. केवल जरूरत है तो एक-एक करके इस रोग के कारण और उपचार को समझने की.
नींबू पानी-
लकवा रोग को दूर करने का एक और इलाज मौजूद है, जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक है. इसके अनुसार पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नींबू पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को ऐसा इलाज कराना चाहिए जिससे कि उसके शरीर से अधिक से अधिक पसीना निकले. क्योंकि पसीना इस रोग को काटने में सहायक होता है.
भापस्नान-
एक अन्य उपाय के अनुसार लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन भापस्नान करना चाहिए. स्नान के बाद उसे गर्म गीली चादर से अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग को, यानि कि जिस भाग को लकवा हुआ है केवल उसी भाग को ढकना चाहिए. यह करने के बाद अंत में कुछ देर के बाद उसे धूप में बैठना चाहिए. उसके रोगग्रस्त भाग पर धूप पड़ना बेहद जरूरी है.
गर्म चीजों का सेवन-
लकवा रोग से पीड़ित रोगी यदि बहुत अधिक कमजोर हो तो रोगी को गर्म चीजों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए. इससे उसे रोग से लड़ने की शक्ति मिलेगी. लेकिन पैरालिसिस के जिन रोगियों को उच्च रक्तचाप की समस्या है, वे गर्म चीजों से पूरी तरह से परहेज करें.
रीढ़ की हड्डी को सही रखें-
लकवा रोग से पीड़ित व्यक्ति को अपनी रीढ़ की हड्डी को दुरुस्त बनाए रखने की भी कोशिश करनी चाहिए. क्योंकि मस्तिष्क की इंद्रियां यहीं से हो गुजरती हैं. यहां रोजाना गर्म या ठंडे पानी से सिकाई करनी चाहिए. जरूरी नहीं है कि गर्म पानी से ही सिकाई हो, यदि रोगी को ठंड़ा पानी सही लगे तो वह उससे भी सिकाई कर सकता है.
गीली मिट्टी का लेप-
लकवा रोग को काटने के लिए लकवा रोग से पीड़ित रोगी के पेट पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए. यदि रोजाना ना हो सके, तो एक दिन छोड़ कर यह उपाय जरूर करना चाहिए. इसके उसके बाद रोगी को कटिस्नान कराना चाहिए. यदि यह इलाज प्रतिदिन किया जाए, तो कुछ ही दिनों में लकवा रोग ठीक हो जाता है.
पर्याप्त पानी पिये-
इसके बाद अगला उपाय थोड़ा अनूठा है, लेकिन अगर सही तरीके से किया जाए तो सफल जरूर होगा. लकवा रोग से पीड़ित रोगी को सूर्यतप्त पीले रंग की बोतल का ठंडा पानी दिन में कम से कम आधा कप 4-5 बार पीना चाहिए तथा लकवे से प्रभावित अंग पर कुछ देर के लिए लाल रंग का प्रकाश डालना चाहिए और उस पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए. इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी का लकवा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है.
खानापान का ध्यान रखें-
इन उपायों के बाद अगले कुछ उपाय रोगी के खानपान से जुड़े हैं. यदि आगे बताए जा रहे खाद्य पदार्थों को रोगी की रोजाना डायट में जोड़ा जाए, तो उपरोक्त सभी उपाय अपना असर शीघ्र दिखाएंगे.
फलों के जूस-
सबसे पहले रोगी को जितना हो सके फलों का रस पिलाएं. कम से कम 10 दिनों तक फलों का रस, नींबू का रस, नारियल पानी, सब्जियों के रस या आंवले के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए. इसका अलावा एक और खास प्रकार का रस है जिसमें अंगूर, नाशपाती तथा सेब के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर रोगी को पिलाना है.
पका हुआ ना खाएं-
इसके अलावा रोगी को क्या नहीं खाना चाहिए यह भी जानना जरूरी है. रोगी को बाहर का तला-भुना खाना नहीं खाना चाहिए. इसके अलावा जब तक उसका उपचार चल रहा है और इलाज में कोई उन्नति ना दिखी हो, तब तक उसे पका हुआ भोजन बिलकुल ना दें.
तनाव बिलकुल ना लें-
लकवे रोग के कारण मस्तिष्क का चाहे कोई भी भाग नष्ट हुआ हो, भले ही पूर्ण मस्तिष्क नष्ट ना हुआ हो, लेकिन रोग के बढ़ने की संभावना बनी रहती है. इसलिए उपचार के दौरान रोगी के दिमाग को किसी प्रकार की कोई चोट ना पहुंचे, इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए. रोगी को किसी प्रकार का कोई मानसिक तनाव ना होने पाए, यह भी ध्यान रखें. यदि वह मानसिक रूप से स्वस्थ होगा, तो जल्द ही उसके ठीक होने की संभावना बनेगी.