गर्भावस्था के दौरान फाइब्रॉएड से नुकसान और निपटने का तरीका?
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि कुछ समस्याएं ऐसी होती है जिनका अस्तित्व शरीर में रहता तो पहले से ही है लेकिन गर्भावस्था के दौरान वह ज्यादा जोखिम पैदा कर देती हैं। ऐसी ही एक समस्या है फाइब्रॉएड, जो गर्भावस्था के दौरान मिसकैरेज या प्रीमेच्योर लेबर-पेन का कारण बन सकता हैं। हालांकि इस फाइब्रॉएड से घबराने की जरूरत नहीं हैं, क्योंकि इसका इलाज संभव है। आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि यह फाइब्रॉएड है क्या।
क्या होता है फाइब्रॉएड
दरअसल फाइब्रॉएड एक प्रकार का ट्यूमर है, जो गर्भाशय में बनता है। इसे लियम्योमा या म्योमा भी कहा जाता है। वैसे तो फाइब्रॉएड से कैंसर का खतरा बहुत कम होता है लेकिन फिर भी 10 हजार में से किसी एक मामले में ऐसी स्थित बन भी सकती है। यह गर्भाशय में एक या एक से अधिक ट्यूमर के रूप में पनप सकता है। एक फाइब्रॉएड का आकार मटर के दाने से लेकर बॉलीबाल जितना या उससे भी बड़ा हो सकता है। 25 से 40 साल की आयु के बीच में महिलाओं को इसका खतरा ज्यादा होता है। जिन महिलाओं में एस्ट्रोजन अधिक मात्रा में होती है, उन्हें इससे कैंसर होने का खतरा भी ज्यादा होता है। माना जाता है कि हर पांच में से एक स्त्री में यूट्रस फाइब्रॉएड के लक्षण नजर आते हैं। जिन महिलाओं को ओवरवेट और ओबेसिटी की समस्या होती है, वो फाइब्रॉएड की चपेट में अधिक आती है।
क्या है फाइब्रॉएड के प्रमुख कारण
हार्मोन्स- जिन महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन अधिक मात्रा में होती है, उन्हें फाइब्रॉएड का खतरा ज्यादा होता है। या यूं समझे कि हॉर्मोनल बदलावों के कारण फाइब्रॉएड हो सकता है।
उम्र- महिलाओं में प्रजनन काल के दौरान फाइब्रॉएड का विकास होता है। ज्यादातर 25 से लेकर 40 की आयु के बीच या फिर रजनोवृत्ति (menopause) शुरू होने तक इसके होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। माना जाता है कि रजनोवृत्ति शुरू होने के बाद ये कम होने लगते हैं।
आनुवांशिक- आनुवांशिकता की वजह से भी महिलाएं फाइब्रॉएड का शिकार हो सकती है। मतलब अगर परिवार में पहले किसी महिला को यह समस्या रही होगी तो आगे की पीढ़ी में भी कोई महिला इस समस्या से पीड़ित हो सकती हैं।बताया जा रहा है कि अगर मां को यह समस्या है, तो बेटी को इस बीमारी का खतरा तीन गुना ज्यादा होता है।
मोटापा- जिन महिलाओं का वजन ज्यादा होता है उन्हें फाइब्रॉएड का खतरा भी ज्यादा होता है।
भोजन- लाल मीट या जंक फ़ूड खाने वाली महिलाओं का भी फाइब्रॉएड की चपेट में आने का खतरा ज्यादा होता है।
विटामिन-डी की कमी- इसके अलावा शरीर में विटामिन-डी की कमी से भी महिलाओं में फाइब्रॉएड का खतरा बढ़ जाता है।
फाइब्रॉएड के लक्षण
अगर महिलाओं को अत्यधिक रक्तस्राव और पीरियड्स के दौरान अहसनीय दर्द हो रहा है, या फिर शरीर में एनीमिया की कमी हो रही है तो इसकी वजह फाइब्रॉएड हो सकता है। इसके अलावा पेल्विक एरिया में भारीपन महसूस होना या फूलना, बार-बार पेशाब आने का अहसास होना, यौन संबंध बनाते समय ज्यादा दर्द होना, कमर के निचले हिस्से में दर्द होना, प्रजनन क्षमता में कमी, बार-बार गर्भपात होना, गर्भावस्था के दौरान ऑपरेटिव डिलीवरी का खतरा फाइब्रॉएड समस्या के प्रमुख लक्षण हैं।
फाइब्रॉएड के प्रकार
फाइब्रॉएड को मुख्यतः पांच प्रकार से विभाजित किया गया है।
सबम्यूकस फाइब्रॉएड- गर्भाशय की थैली में भीतर की ओर होने वाले फाइब्रॉएड को सबम्यूकस फाइब्रॉएड की श्रेणी में रखा गया है। इस प्रकार के फाइब्रॉएड के कारण महिलाओं को पीरियड्स में ज्यादा ब्लीडिंग और अनियमितता जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड- यह सबसे आम फाइब्रॉएड है। यह मुख्यतः महिलाओं के शरीर में यूट्रस की दीवार पर होते हैं। इन फाइब्रॉएड की वजह से यूट्रस बड़ा हो जाता है और इनसे पेल्विक पेन, हैवी ब्लीडिंग और कमर दर्द जैसी समस्याएं होती है।
सबसीरस फाइब्रॉएड- ये गर्भाशय की दीवार के बाहर होते हैं और बाहर की ओर ही बढते हैं। इनसे पीरियड्स में परेशानियां नहीं होतीं लेकिन कमर दर्द हो सकता है। कई बार इससे गंभीर पेल्विक पेन हो सकता है।
सर्वाइकल फाइब्रॉएड- मुख्य तौर पर गर्भाशय की गर्दन पर पनप फाइब्रॉएड को सर्वाइकल फाइब्रॉएड माना जाता है।
इंट्रालिगमेंटस फाइब्रॉएड- यह गर्भाशय के साथ जुड़े टिश्यू में विकसित होते हैं। इससे मासिक धर्म अनियमित हो जाते हैं।
गर्भावस्था के दौरान फाइब्रॉएड
गर्भावस्था के दौरान फाइब्रॉएड से भ्रूण को खतरा बढ़ जाता है। कई बार यूट्रस में फाइब्रॉएड मटर के दाने की तरह छोटा होता है, लेकिन समय के साथ-साथ भ्रूण की तरह ही इसका साइज भी बढ़ता जाता है। इस वजह से दर्द बढ़ जाता है और ब्लीडिंग भी होती है। इस वजह से कई बार महिला को अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ता है। इसी वजह से गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर्स अल्ट्रासाउंड के माध्यम से फाइब्रॉएड की यह जांच करते हैं कि यह भ्रूण का स्थान न ले सके।
गर्भावस्था के दौरान जब यह फाइब्रॉएड सर्विक्स की साइड में या नीचे की साइड होता है तो इसकी वजह से बर्थ कैनाल ब्लॉक हो जाती है। इस वजह से नार्मल डिलीवरी नहीं हो पाती है और डॉक्टर्स को सी-सेक्शन करना पड़ता है। इसके अलावा फाइब्रॉएड की वजह से प्रीमेच्योर डिलीवरी की भी आशंका रहती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस फाइब्रॉएड का आकार अगर बड़ा हो तो इसे जल्द से जल्द हटा देना चाहिए क्योंकि इससे यूट्रस कमजोर होता है और ब्लीडिंग ज्यादा होती है। मेनोपॉज के बाद यूट्रस रिमूवल सर्जरी भी कराई जा सकती है।
डॉक्टर्स दे सकते हैं टेस्ट करवाने की सलाह
पेल्विक टेस्ट के दौरान जब डॉक्टर्स को गर्भाशय के आकार में कुछ परिवर्तन नजर आते हैं तो इससे ही डॉक्टर्स को फाइब्रॉएड के होने के संकेत मिलते हैं। फाइब्रॉएड का इलाज किस तरह से किया जाएगा इसके लिए डॉक्टर्स पहले अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह देते हैं। अल्ट्रासाउंड के दौरान जांचकर्ता ध्वनि तरंगों की मदद से गर्भाशय की तस्वीर लेता है और फाइब्रॉएड को डायग्नोस करता है। फाइब्रॉएड का इलाज उसके आकार पर निर्भर करता है। इसके अलावा डॉक्टर्स कई बार लैब टेस्ट की भी सलाह देते हैं। इसमें कंप्लीट ब्लड काउंड करके यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि कहीं ब्लीडिंग होने की वजह एनीमिया तो नहीं। इसके साथ ही ब्लीडिंग का पता लगाने के लिए डॉक्टर्स कुछ अन्य टेस्ट की सलाह भी दे सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान फाइब्रॉएड का इलाज
गर्भावस्था के दौरान फाइब्रॉएड का समय से इलाज करवाना बहुत जरूरी होता है क्योंकि कई मामलों में इसकी वजह से भ्रूण को खतरा होता है। इस समस्या के निवारण के लिए डॉक्टर्स बेड रेस्ट, हाइड्रेशन और दर्द निवारण दवाएं लेने की सलाह देते हैं, जिसकी वजह से फाइब्रॉएड से बहुत हद तक आराम मिल सकता है। इसके अलावा दवाओं और इंजेक्शन के माध्यम से डॉक्टर्स फाइब्रॉएड का आकार भी छोटा करने की कोशिश करते हैं। हालांकि, कुछ मामले ऐसे भी होते हैं, जिसमें डॉक्टर्स को गर्भावस्था के दूसरे तिमाही के दौरान महिला की मायोमेक्टॉमी करना पड़ता है। इस मायोमेक्टॉमी के माध्यम से डॉक्टर्स फाइब्रॉएड को गर्भाशय की दीवार के अंदर या बाहर से हटा देते हैं। हालांकि अगर फाइब्रॉएड यूटराइन कैविटी में बढ़ा हुआ होता है तो उसे छोड़ दिया जाता है, क्योंकि उसे हटाने की कोशिश करने की वजह से भ्रूण को खतरा होता है।