समाज में फैली हैं ये मिथ्याएं जो करती हैं भ्रूण के लिंग की जांच करने का दावा
वैसे तो प्रेग्नेंसी यानी कि गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग की जांच (ling ki jaanch) कराना असंवैधानिक है और ऐसा करने पर सजा का प्रावधान है, हालांकि समाज में कुछ ऐसी मिथ्याएं भी मौजूद हैं जो बिना भ्रूण के जांच के घर में ही गर्भवती महिला के कोख में पल रहे बच्चे के जेंडर का पता करने का दावा करती हैं। हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से कुछ ऐसी ही मिथ्याओं की जानकारी देते हैं, लेकिन इसके पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर प्रेग्नेंसी क्या है।
प्रेग्नेंसी क्या है
किसी भी महिला के गर्भ धारण करने की अवस्था को प्रेग्नेंसी या गर्भावस्था कहते हैं। गर्भावस्था की शुरुआत तब होती है जब महिला के गर्भ में एक शुक्राणु और अंडा आपस में मिलकर एक भ्रूण का निर्माण करते हैं। बाद में यही भ्रूण विकसित होकर एक शिशु का रूप ले लेता है। इसे आप यूं भी समझ सकते हैं कि गर्भावस्था किसी भी महिला के शरीर के भीतर विकासशील भ्रूण बनने की एक प्रक्रिया होती है, जो एक नए जीवन की शुरूआती प्रक्रिया है। भ्रूण बनने की इस प्रक्रिया की शुरुआत संभोग के दौरान पुरुषों के शुक्राणु कोशिशाओं और महिला के अंडे के मिलने से होती है।
दरअसल, पुरुष के अंडकोष में शुक्राणु कोशिकाओं का निर्माण होता है। जो अन्य तरल पदार्थों के साथ मिलकर वीर्य (सीमेन) का रूप ले लेती है। पार्टनर के साथ संभोग के दौरान यही वीर्य पुरुष के लिंग से स्खलित होकर महिला के अंडाशय में मौजूद अंडे से जाकर मिलता है। इसी शुक्राणु कोशिका और अंडे के मिलान से भ्रूण का निर्माण होता है। वैसे तो वीर्यस्खलन के दौरान लाखों की संख्या में शुक्राणु निकलते हैं लेकिन प्रेग्नेंसी होने के लिए अंडे के साथ केवल 1 शुक्राणु के मिलने की ही आवश्यकता होती है।
प्रेग्नेंसी के लक्षण
प्रेग्नेंसी के बाद महिला के शरीर में कई बदलाव भी देखने को मिलते हैं। जैसे पीरियड्स का न होना, कभी-कभी हल्की ब्लीडिंग होना, सामान्य से अधिक बार पेशाब करना, सिरदर्द रहना, वजन का बढ़ना, ब्लड प्रेशर हाई होना, हृदय में जलन (हार्ट बर्न), कब्ज की शिकायत, क्रैम्प्स (ऐंठन), बैकपेन (कमरदर्द), डिप्रेशन, एनीमिया, अनिद्रा की समस्या (Insomnia), स्तन के आकार में परिवर्तन, सूजे हुए या कोमल स्तन, मुँहासे, उल्टियाँ होना, जी मिचलाना, डायरिया (दस्त की समस्या), कूल्हे में दर्द, तनाव, पेट का फूलना। संभोग के बाद यदि महिलाओं को इन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो तो उन्हें अपना प्रेग्नेंसी टेस्ट जरूर करना चाहिए।
ये मिथ्याएं गर्भ में लड़का या लड़की पता चलने का करती हैं दावा
पेट का आकार- समाज में यह बात काफी प्रचलित है कि गर्भवती महिला के पेट के आकार को देखकर ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है गर्भ में लड़का है या लड़की। कहा जाता है कि प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला के पेट का निचला हिस्सा फूला और उभरा होना गर्भ में लड़के के होने का संकेत देता है। हालांकि इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है।
गर्भवती महिला का हाथ और हथेली- लोगों का कहना है कि किसी भी गर्भवती महिला के हाथ और उसकी हथेली से भी यह पता लगाया जा सकता है कि वह लड़के को जन्म देने वाली है या लड़की को। कई लोग दावा करते हैं कि गर्भवती महिला के हाथ सुन्दर और हथेली मुलायम नजर आए तो यह गर्भ में लड़की होने की ओर संकेत करता है। ऐसा माना जाता है कि लड़कियां सौम्यता का प्रतीक होती हैं, जिसके कारण गर्भवती महिला की सुंदरता बढ़ जाती है। हालांकि लोगों का यह दावा मात्र एक मनगढंत कहानी के सिवाय और कुछ नहीं।
गर्भवती महिला के पैर, बाल और मूड- समाज में मिथ्या फैली है कि अगर गर्भवती महिला के पैर ठंडे रहते हैं और महिला के बाल भी झड़ते हैं तो यह गर्भ में लड़का होने का ख़ास संकेत है। लेकिन यह बात भी मात्र लोगों के मन की एक उपज है, जिसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है।
करवट लेकर सोना और सिर में दर्द होना- लोगों का मानना है कि गर्भवती महिला के सोने के तरीके से भी महिला के गर्भ में मौजूद लिंग की पहचान की जा सकती हैं। इसके अनुसार जब गर्भावस्था के दौरान गर्भ में एक बालक का विकास हो रहा होता है तो महिला बाईं ओर करवट लेकर सोती हैं। इसके अलावा उनके सिर में दर्द भी होता रहता है। हालांकि दाईं या बाईं ओर करवट लेकर सोना मात्र एक आदत होती है, इससे भ्रूण के लिंग का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।
- बेकिंग सोडा- ऐसा कहा जाता है कि बाजार में बहुत ही आसानी से मिल जाने वाले बेकिंग सोडा की मदद से भी बिना अल्ट्रासाउंड के गर्भ में मौजूद लिंग की पहचान की जांच की जा सकती है। हालांकि इस बात में कोई सच्चाई है। यह मात्र एक मिथ्या है जो समाज में फैली हुई है।
- यूरीन का रंग- मिथ्याओं के बाजार में यह बात भी तेजी से फैली हुई है कि गर्भवती महिला के यूरीन के रंग से भी गर्भ के लिंग की पहचान की जा सकती है। कई लोगों को गलतफहमी है कि अगर महिला के यूरीन का रंग हल्का गुलाबी व सफेद रहता है तो इसका मतलब गर्भ में लड़की है। वहीं अगर खूब पानी पीने के बावजूद भी यूरीन पीले रंग की हो रही है तो यह गर्भ में लड़का होने की ओर इशारा करता है। यह बात भी मात्र एक मिथ्या ही है।
- जुबान का स्वाद- कई लोगों को कहते सुना गया है कि गर्भावस्था के दौरान अगर महिला का आइसक्रीम, मिठाइयां जैसा मीठा खाने का ज्यादा मन करता है तो गर्भ में लड़की होने के संकेत मिलते हैं। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। खट्टा-मीठा या तीखा पसंद करना मन की इच्छा पर निर्भर करता है, न कि गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग पर।
- भूख न लगना- समाज में इस बात का भी दुष्प्रचार देखा गया है कि अगर गर्भावस्था के दौरान महिला को भूख कम लग रही है और उसका जी भी मचला रहा है तो इसे गर्भ से बालक होने का संकेत बताया जाता है। हालांकि इस बात भी सरासर गलत ही है।
- मुंहासे होना - लोगों को गलतफहमी है कि गर्भावस्था के दौरान अगर गर्भवती महिलाओं के चेहरे पर मुंहासे दाने, मुंहासे और दाग ज़्यादा दिखने लगे तो यह गर्भ में लड़का होने की ओर इशारा करता है। साथ ही साथ गर्भवती महिला का चेहरा भी मुरझाया-सा दिखने लगता है। जो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मुहासे निकलने, दाग होने के कई कारण होते हैं। इसको गर्भ में पल रहे लिंग से जोड़ना समाज में गलत धारणा फैलाने जैसा है।
पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होना- लोगों के बीच में मिथ्या फैली हुई है कि गर्भवती महिला के पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होने को लड़की होने का संकेत माना जाता है। उनका मानना है कि ऐसी महिलाओं में चिड़चिड़ापन भी देखने को मिलता है। माना जाता है कि लड़कियां लीवर के पास वाली जगह लात मारती हैं। जबकि किसी भी गर्भवती महिला के पेट में दर्द होना स्वाभाविक है और चिड़चिड़ापन कमजोरी की निशानी होती है। इसलिए इस बात पर बिल्कुल भी भरोसा न करें।
आज के समाज में लड़की या लड़का दोनों को एक समान नजर से देखा जाता है और समान रूप से उनकी परवरिश की जाती है। ऐसे में गर्भ में मौजूद शिशु के लिंग का पता लगाने का दावा करने वाली यह मिथ्याएं समाज को मात्र कुंठित करती हैं। इसलिए हम आपसे निवेदन करते हैं कि कृपया आप इन तरह की मिथ्याओं में न फंसे।