सिकल सेल के बचाव - Sickle Cell Ke Bachaw!
सिकल सेल रोग असामान्य जीन से उत्पन्न एक आनुवांशिक रोग है जो माता-पिता से प्राप्त होते हैं. शरीर के रक्त मे लाल रक्त कण का आकार सामान्यतः उभयातल डिस्क के तरह होता है जो रक्तवाहिकाओं में आसानी से गमन करते हैं. पर सिकल सेल की स्थिति में ये लाल रक्त कण उभयातल डिस्क के तरह न होकर अर्धचंद्राकार हंसिया (सिकल) के तरह हो जाता है. जिससे रक्तवाहिकाओं में इसका संचरण सही ढंग से नहीं हो पाता है. जिससे शरीर के विभिन्न अंगों में रक्त पहुँचने में अवरुद्ध होता है. ये असामान्य लाल रक्त कण जो हंसिया या सिकल के तरह होता है इसे ही सिकल सेल कहते है तथा जब इस स्थिति से शरीर में रोग हो जाती है तो उसे सिकल सेल रोग कहते हैं. ये सिकल सेल कठोर व चिपचिपा होता है. इसका आकार हंसिया (सिकल) के तरह होने के कारण रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है जिस कारण दर्द होता है और विभिन्न अंग तो क्षति भी पहुँचती है. सामान्य लाल रक्त कण की आयु 120 दिन होती है. जबकि सिकल सेल लाल रक्त कण की आयु 10 से 20 दिन होती है. इस प्रकार सिकल सेल के जल्द नष्ट हो जाने व इसके श्हरीर के विभिन्न भाग में पहुँचने में दिक्कत होने से शरीर में खून की कमी एनीमिया रोग हो जाती है.
क्या है सिकल सेल?
सिकल सेल की बीमारी खान-पान, छुआछूत या अन्य तरह से होने वाले बीमारी न होकर यह एक जेनेटिक बीमारी है जो जीन में हुये परिवर्तन के कारण होती है. चिकित्सा इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि हजारों वर्ष पूर्व कुछ स्थानों पर हमारे हिमोग्लोबीन के जीन्स में परिवर्तन हुये जिस कारण लाल रक्त कण का आकार गोलाकार से बदलकर अर्द्ध चंद्राकार हँसिये (सिकल) के रूप में हो गया. यह परिवर्तन उन क्षेत्रों में ज्यादा हुआ जहाँ मलेरिया बहुतायत में पाया जाता था. परिणामस्वरूप यह रोग अविकसित आदिवासी दुरूह क्षेत्र के जनजातियों में ज्यादा पाया गया. यह बीमारी अफ्रीका, बहरीन, तुर्की, ग्रीस, सऊदी, अरेबिया के साथ-साथ भारत में बहुतायत में पाया जाता है. महत्वपूर्ण बात है कि विश्व में समस्त सिकल सेल मरीजों में से आधे से ज्यादा भारत में हैं.
यदि बच्चे को माता व पिता दोनों से सिकल सेल के जीन मिले हों तो बच्चे सिकल सेल का रोगी होता है. पर यदि बच्चे को माता या पिता में से किसी एक से ही सिकल सेल के जीन मिले हों तो इन बच्चे में रोग के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं व उन्हें कोई इलाज की जरूरत नहीं होती है.
सिकल सेल रोग से बचाव-
सिकल सेल का रोग एक बहुत ही गंभीर बीमारी है. और इसकी रोकथाम जरूरी है. पर इसके इतनी बड़ी समस्या होने के बावजूद भी इस मामले में खामोशी होने का वजह है कि लोग इसे आनुवांशिक रोग मानकर इसलिए इसपर ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि आनुवांशिक रोग का कोई इलाज नहीं है. यह सत्य है कि आनुवांशिक रोग को जड़ से नष्ट करने का कोई उपाय नहीं है पर रोकथाम द्वारा इसे बढ़ने से रोका जा सकता है. शादी से पहले सिकल कुंडली मिला ली जाये तो 70 प्रतिशत तक इस रोग को कंट्रोल किया जा सकता है. इसके लिए शादी से पहले लड़का व लड़की दोनों का रक्त जाँच कर यह देख लेना चाहिए कि इनमें सिकल सेल के जीन तो नहीं है. यदि दोनों में सिकल सेल पाये जाते हैं या दोनों सिकल सेल रोगी हैं तो उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए. इस प्रकार ऐसे लोगों को आपस में शादी न करके सिकलग्रस्त बच्चे की उत्पत्ति रोकी जा सकती है.
सिकल कुंडली का मिलान करके ही शादी करने के लिए सामाजिक संगठन को आगे आना चाहिए. क्योंकि जनजागृति ही सिकल सेल रोग से बचने का एकमात्र उपाय है. साइप्रस व बहरीन जैसे देशों में शादी से पहले सिकल की जाँच हेतु खून जाँच अनिवार्य कर दिया गया है. इस प्रकार के व्यवस्था से वहाँ सिकलग्रस्त बच्चे के जन्म में काफी कमी आयी है.
सिकल रोग ग्रस्त बच्चे में खून की कमी होती है जिस कारण बच्चे कमजोर होते हैं व इन्हें संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे बच्चों का टीकाकरण व अन्य जरूरी दवाएँ देकर उन्हें दीर्घायु बनाया जा सकता है. सिकल रोग के कारण होने वाले प्रभाव व विकारों का उचित इलाज से सिकल रोगी को लंबा जीवन मिल सकता है. जमैका जैसे देशों में सिकल रोगियों का उचित इलाज व पुनर्वास की सुविधा है जिस कारण वहाँ सिकल ग्रस्त लोग भी लंबे जीवन जी रहे हैं. पर भारत में व्यवस्था के अभाव में सिकल ग्रस्त लोगों की आयु कम है.