थायराइड क्या है - Thyroid Kya Hai?
हाइपरथायरायडिज्म हमारे शरीर की एक ऐसी स्थिति है जिसमें हमारे बॉडी में मौजूद थायरॉयड ग्रंथि थायरोक्सिन हार्मोन का उत्पादन आवश्यकता से अधिक करने लगती है. थायरॉयड एक छोटी सी तितली के आकार की ग्रंथि होती है जो आपकी गर्दन के आगे वाले हिस्से में स्थित होती है. यह ग्रंथि टेट्रायोडोथायरोनिन (टी4) और ट्रीओडोथायरोनिन (टी3) बनाती है, जो दो प्राइमरी हार्मोन हैं. यह हार्मोन आपकी सेल्स को एनर्जी इस्तेमाल करने में कंट्रोल करते हैं. थायरॉयड ग्रंथि इन हार्मोनों के रिलीज के माध्यम से आपके मेटाबोलिक को कंट्रोल करती है. थायरॉयड में तब वृद्धि होता है जब थायरॉयड ग्रंथि टी4, टी3 या दोनों हार्मोन का उत्पादन ज्यादा होती है. हाइपरथायरायडिज्म आपके शरीर की मेटाबोलिक में तेजी ला सकता है, जिससे अचानक वजन घटना, तेज़ या अनियमित हार्ट रेट, पसीना आना और घबराहट या इर्रिटेशन हो सकते हैं. हाइपरथायरायडिज्म का सबसे सामान्य कारण ग्रेव्स डिजीज, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक सामान्य है. आइए इस लेख के माध्यम से हम थायराइड के बारे में विस्तारपूर्वक जानें ताकि इस विषय में हमारी जानकारी बढ़ सके.
थायराइड बढ़ने के कारण-
थायराइड कई कारणों से बढ़ सकता है. ग्रेव्स डिजीज, हाइपरथायरायडिज्म का सबसे सामान्य कारण है. यह एंटी बॉडीज को थायरॉयड को बहुत ज्यादा हार्मोन बनाने के लिए उत्तेजित करता है. ग्रेव्स डिजीज पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा सामान्य होती है. यह एक जेनेटिक बीमारी है, यदि आपके रिश्तेदारों को यह बीमारी है तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें.
हाइपरथायरायडिज्म के अन्य कारण हैं -
1. अधिक आयोडीन (टी4 और टी 3 में एक मेजर एलेमेंट्स).
2. थायरायडाइटिस या थायरॉयड की सूजन, जो टी4 और टी3 का ग्लैंड से बाहर निकलने का कारण बनती है.
3. टेस्टेस के फोड़े.
4. थायराइड या पिट्यूटरी ग्लैंड के छोटे फोड़े.
5. डाइट या मेडिसिन के माध्यम से बड़ी मात्रा में ट्रीओडोथायरोनिन (टी 3)का सेवन करना.
6. थायरॉयड सिस्ट का ज्यादा कार्य करना (जहरीला एडिनोमा, विषाक्त बहुपक्षीय गोइटर, प्लम्मर रोग). हाइपरथायरायडिज्म का यह रूप तब होता है जब आपके थायरॉयड के एक या अधिक एडेनोमा बहुत ज्यादा टी4 का उत्पादन करते हैं.
थायराइड कम होने के कारण-
हाइपोथायरायडिज्म एक बहुत ही आम स्थिति है. इसकी कुल आबादी में लगभग 3% से 5% तक की जनसंख्या में हाइपोथायरायडिज्म के कई प्रकार देखे जाते हैं. हाइपोथायरायडिज्म पुरूषों से ज्याादा महिलाओं में प्रचलित है और इसका जोखिम उनकी ऐज के साथ बढ़ता रहता है. एडल्ट में होने वाले हाइपोथायरायडिज्म के कुछ सामान्य कारण निम्नलिखित हैं:
1. हाशिमोटो थायरोडिटिस- हाशिमोटो थायरोडिटिस सामान्य रूप से तब होता है जब थायरॉयड ग्रंथि बढ़ जाती है और थायरॉयड हार्मोन बनाने की क्षमता को कम कर देती है. हाशिमोटो थायरोडिटिस एक ऑटोइम्यून डिजीज है, जिसमें बॉडी की इम्यून सिस्टम अनउपयुक्त तरीके से थायरॉइड टिश्यू पर अटैक करती है. अंशिक रूप से इस स्थिति को जेनेटिक्स का आधार माना जाता है.
2. लिम्फोसाइटिक थायरोडिटिस- लिम्फोसाइटिक थायरोडिटिस, थायरॉयड ग्लैंड की सूजन को संकेतित करता है. जब सूजन एक विशेष प्रकार के वाइट ब्लड के कारण होती है तो उसको लिम्फोसाइटिक के नाम से जाना जाता है. इस स्थिति को लिम्फोसाइटिक थायरोडिटिस भी कहा जाता है.
3. थायरॉयड खंडन- जिन रोगियों का हाइपोथायरॉइड स्थिति का ट्रीटमेंट हो चुका है और उन्होनें रेडियोएक्टिव आयोडीन थैरेपी ली है और उपचार के बाद उनके थायरॉइड टिश्यू ने काम करना कम कर दिया है या बंद कर दिया है तो इस तरह कि संभावनाएं इस बात पर निर्भर करती है कि रोगी ने आयोडीन कि कितनी मात्रा को प्राप्त किया था या मरीज कि थायरॉइड ग्रंथि का साइज़ और उसकी गतिविधियां कैसी थी. रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट के 6 महीने के बाद भी अगर थायरॉयड ग्रंथि कोई जरुरी गतिविधि नहीं दे रही है तो आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि थायरॉयड ग्रंथि अब सही ढंग से काम नहीं कर पा रही है. इसका परिणाम हाइपोथायरायडिज्म ही निकलता है. ठीक उसी प्रकार सर्जरी की मदद से थायरॉइड ग्रंथि को हाइपोथायरायडिज्म का अनुसरण करते हुऐ हटा दिया जाता है.
4. पिट्यूटरी या हाइपोथेलैमस डिजीज- जब किसी कारण से पिट्यूटरी ग्रंथि या हाइपोथैलेमस, थायरॉयड को संकेत देने में सक्षम नहीं होते हैं और थायरॉयड हार्मोन को उत्पादित करने का निर्देश दे देते हैं. इसके परिणास्वरूप टी4 और टी3 का लेवल कम होने लगता है भले ही थायरॉयड ग्रंथि सामान्य हो. अगर यह प्रभाव पिट्यूटरी डिजीज के कारण होता है तो इस स्थिति को 'सेकेंडरी हाइपोथायरायडिज्म' कहा जाता है और अगर यही प्रभाव हाइपोथैलेमस डिजीज के कारण हो तो इसे टेर्टिअरी हाइपोथायरायडिज्म कहा जाता है.
5. पिट्यूटरी जख्म - जब दिमाग की सर्जरी या किसी कारण से उस हिस्से में ब्लड की आपूर्ती में कमी हो जाए तो उसका परिणाम पिट्यूटरी जख्म के रूप में होता है. पिट्यूटरी जख्म के इस मामले में टीएसएच लेवल जो पिट्यूटरी ग्लैंड के माध्यम से जारी किया जाता है वह कम हो जाता है और टीएसएच में ब्लड लेवल भी काफी कम हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप हाइपोथायरायडिज्म हो जाता है, क्योंकि थायरॉयड ग्लैंड अब पिट्यूटरी टीएसएच द्वारा उत्तेजित नहीं की जाती है.
6. दवाएं- एक ऑवर-एक्टिव थॉयरॉयड के ट्रीटमेंट के लिए प्रयोग की जाने वाली दवाएं ही वास्तव में 'हाइपोथायरायडिज्म' का कारण बनती हैं. ये दवाइयां जिनमें मेथिमाजॉल या टैपाजॉल और प्रोपिलथ्योरॉसिल शामिल हैं. साइकिएट्रिक दवाइयां लिथियम को थायरॉयड के कार्य को बदलने के लिए भी जाना जाता है जो 'हाइपोथायरायडिज्म' का कारण बनते हैं. विशेषतौर पर कुछ दवाओं में अधिक मात्रा में आयोडीन होता है, जिनमें ऐमियोडेरोन, पोटाशियम आयोडाइड और ल्यूगो सोल्यूशन शामिल हैं, जिनके कारण से थायरॉयड के फंक्शन में बदलाव आ सकते हैं. जिसका परिणाम ब्लड में थायरॉयड हार्मोन का लेवल कम होने लगता है.
7. आयोडीन में अत्यधिक कमी- दुनिया के उन हिस्सों में जहां डाइट में आयोडीन की कमी देखि गयी है वहां पर 5% से 15% तक की आबादी को गंभीर आयोडीन की कमी वाले रोग देखने को मिलता है. जैसे ज़ैरे, इक्वाडोर, भारत, और चिली आदि शामिल हैं. आयोडीन में गंभीर कमी के रोग दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में भी देखने को मिल जाते हैं, जैसे- एंडीज और हिमालयी क्षेत्रो में. इस कमी को दूर करने के लिए नमक में और रोटी में आयोडीन की वृद्धि कर दी जाती है. अमेरीका जैसे देशों में आयोडीन की कमी बहुत ही कम देखी जाती है.