इबोला वायरस - Ebola Virus!
इबोला एक वायरस है. यह एक जानलेवा बिमारी है और लगभग 90% इबोला रोगियों की मृत्यु हो जाती है. इस रोग को सबसे पहले 1976 में इबोला नदी के समीप एक गाँव में देखा गया था. इसी कारण कागों की एक सहायक नदी इबोला के नाम पर इस वायरस का नाम भी इबोला रखा गया है. इस बीमारी के कारण बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होता और है और शरीर के अंग काम करना छोड़ देते है. यह एक जानलेवा रोग है. यह रोग संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने से होता है. यह रोगी के खून, पसीने या संक्रमित सुई के संपर्क में आने से होता है. यह बीमारी टाइफाइड, कॉलरा, बुखार और मांसपेशियों में दर्द का कारण बनता है. इसलिए है. इबोला के मरीजों की 50 से 80 फीसदी मौत रिकॉर्ड की गई है. आइए इस लेख के माध्यम से हम इबोला वायरस से संबन्धित विभिन्न पहलुओं को जानें.
इबोला वायरस के फैलने का कारण
इबोला वायरस संक्रमित जानवर या मृत जानवरों के रक्त, मूत्र, मल या अंगों या तरल पदार्थ के संपर्क में आने से होता है. ऐसा माना जाता है की इबोला वायरस इंसानों में, जंगलों में रहने वाले चिम्पांजी, गोरिल्ला, फ्रूट बैट, और बंदरों से होता है. इसके अतिरिक्त, यौन संबंध और इबोला से संक्रमित शव को ठीक तरह से व्यवस्थित न करने से भी यह रोग हो सकता है. यह संक्रामक रोग है.
इबोला वायरस के फैलने का लक्षण
इसके लक्षण हैं- सिरदर्द, उल्टी-दस्त, बुखार, ब्लीडिंग, आँखें लाल होना, जोड़ों मांशपेशियों में दर्द और गले में कफ़. अक्सर इसके लक्षण का अनुभव होने में तीन सप्ताह तक का समय लग जाता है.
रोग में शरीर को क्षति
इस रोग में रोगी की त्वचा के साथ हाथ-पैर से लेकर पूरा शरीर तक गलने लग जाता है. ऐसे स्थिति में बचाव के लिए संक्रमित रोगी से दूर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है रोगी से दूर रह कर ही इस रोग से बचा जा सकता है.
इबोला एक क़िस्म की वायरल बीमारी है. इसके लक्षण हैं अचानक बुख़ार, कमज़ोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में ख़राश.
ये लक्षण बीमारी की शुरुआत भर होते हैं. इसका अगला चरण है उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव.
उपचार
यह एक बहुत ही जटिल और घातक बिमारी है. यह लाइलाज बीमारी है और इसके लिए कोई दवा या एंटी-वायरस उपलब्ध नहीं है. हालांकि, इसके लिए टीका विकसित करने के कोशिश जारी हैं.
संक्रमण
इबोला वायरस चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि जैसे संक्रमित जानवरों के सीधे संपर्क में आने से होता है. यह संक्रमण संक्रमित रक्त, तरल या अंगों के माध्यम से होता है. इबोला के शिकार व्यक्ति का शव से भी संक्रमण से हो सकता है. यदि डॉक्टर प्रयाप्त सावधानी नहीं बरतते है तो वे भी संक्रमित हो सकते है. इस संक्रमण को गंभीर स्तर तक पहुंचने में लगभग दो दिन से लेकर तीन सप्ताह तक का समय लग सकता है. इसकी पहचान करना और भी जटिल है. इससे संक्रमित व्यक्ति के ठीक हो जाने के सात सप्ताह तक संक्रमण का ख़तरा बना रहता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़,ट्रॉपिकल बरसाती जंगलों वाले मध्य और पश्चिम अफ़्रीका के गावों में फैली थी. पूर्वी अफ़्रीका की ओर कांगो, युगांडा और सूडान में भी इसका संचार हो रहा है.
डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार, इबोला से पीड़ित रोगियों के शारीरिक द्रव और सीधे संपर्क से बचना चाहिए. इसके अलावा तौलिये साझा करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे सार्वजनिक स्थलों पर संक्रमित हो सकता है. डब्ल्यूएचओ ने मुताबिक़ इलाज करने वालें डॉक्टर को दस्ताने और मास्क पहनने चाहिए और समय-समय पर हाथ धोते रहना चाहिए.
चेतावनी
चमगादड़, बंदर आदि जानवरों से दूर रहना चाहिए और जंगली जानवरों के मीट के मीट खाने से बचना चाहिए. अभी तक इस बीमारी का इलाज नहीं खोजा जा सका है लेकिन नई दवाओं का प्रयोग चल रहा है.