क्या होती है आईवीएफ प्रेग्नेंसी, और क्या है इसकी प्रक्रिया?
किसी भी दंपति के लिए शादी के बाद सबसे बड़ा ख़ुशी का पल होता है, जब उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। लेकिन कई बाद कुछ शारीरिक विकारों और बीमारियों की वजह से दंपति को यह सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। हालांकि अब विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि अब दंपति को इस बात का भी डर नहीं रह गया है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी कि आईवीएफ की, जिसकी मदद से वह दंपति भी स्वयं की संतान हासिल कर सकती है, जिनको कोई जननिक (genetic) परेशानी या अन्य कोई शारीरिक विकार है या बांझपन जैसी बीमारी का सामना कर रहे हैं। सबसे पहले जानते हैं कि किस सूरत में कोई दंपति बच्चे पैदा करने में असमर्थ होते हैं। इसके बाद आईवीएफ पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
आखिर क्यों झेलना पड़ता है संतानहीनता का दुःख
महिलाओं और पुरुषों में संतानहीनता के कई कारण है। कई मामलों में इसका उपचार किया जा सकता है, लेकिन कुछ मामले ऐसे होने हैं जब इसका इलाज भी संभव नहीं है। जब करीब दो वर्षों तक साथ रहने के बाद परिवार नियोजन के उपायों का प्रयोग किये बिना भी यौन सम्बन्ध रखने के बावजूद अगर महिला गर्भ धारण करने में नाकाम है तो इसका अर्थ है कि इस दंपति को किसी न किसी ऐसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है जिसकी वजह से महिला गर्भ धारण नहीं कर पा रही। यह जरूरी नहीं कि यह समस्या महिला में ही है। कई मामलों में पुरुष भी दोषी पाए जाते हैं।
पुरुषों में संतानहीनता के मुख्य कारण- जब कोई पुरुष पर्याप्त मात्रा में शुक्राणु बनाने में असमर्थ होता हैं या उसके शुक्राणुओं की गुणवत्ता में कमी होती है। तो वह संतान पैदा करने में असमर्थ रहता है। कई बार पुरुषों के शुक्राणु गतिशील न होने की वजह से गर्भाशय में से तैर कर अंडे तक पहुंचने में असमर्थ होते हैं। ऐसे मामलों में भी पुरुष बच्चे पैदा करने का सामर्थ्य नहीं रखता है।
महिलाओं में संतानहीनता के मुख्य कारण- वहीं महिलाओं में संतानहीनता के मुख्य कारण उसकी फैलोपियन नलिकाओं, या गर्भाशय में संक्रमण या उनका बंद होना हैं । महिलाओं की ये नलिकाएं बंद होने की वजह से अंडा नलिकाओं में सक्रिय नहीं हो पाता है। इस वजह से कई बार शुक्राणु भी अंडे तक नहीं पहुंच पाते हैं। जिन महिलाओं में इस तरह की समस्या होती है वह गर्भ धारण करने की क्षमता नहीं रखती हैं।
क्या है आईवीएफ प्रक्रिया
दरअसल, आईवीएफ एक फर्टिलिटी उपचार है। इस उपचार के दौरान महिलाओं के अण्डों को अप्राकृतिक तरीकों से पुरुषों के शुक्राणुओं या वीर्य से मिलाया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया मेडिकल लैब में की जाती है। इसके बाद फर्टिलाइज़्ड अण्डों को एक छोटी सी प्रक्रिया के माध्यम से गर्भाशय में डाल दिया जाता है। इसके बाद महिला गर्भ धारण कर लेती है। इसी पूरी प्रक्रिया को आईवीएफ प्रक्रिया कहा जाता है।
सुपरओव्यूलेशन के माध्यम से अंडे का उत्पादन
महिला को पहले फर्टिलिटी दवाएं या इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे जो उत्तेजना या सुपरव्यूलेशन नामक प्रक्रिया शुरू की जा सके। महिला को जो दवाएं और इंजेक्शन दिए जाते हैं, उनमें फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन होता है जो शरीर में ज्यादा अण्डों की उत्पत्ति करने में मदद करता है। यह दवाएं या इंजेक्शन इसलिए दिए जाते हैं क्योंकि जितने अधिक अंडे का उत्पादन होगा, बाद में उपचार के दौरान सफल फर्टिलाइजेशन की संभावना उतनी ही अधिक होगी। आईवीएफ प्रक्रिया में इस चरण के दौरान अंडाशय की जांच करने और हार्मोन के स्तर की निगरानी करने के लिए नियमित रूप से ट्रांसवजाइनल अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण किया जाता है।
बाहर निकालते है अंडे
अंडों के तैयार होने के बाद उन्हें शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू होती है। अंडे निकालने के एक दिन पहले हार्मोन इंजेक्शन दिया जाता है जिससे अंडों को जल्दी परिपक्व होने में मदद मिलती है। इसके बाद अंडों को हटाने के लिए एक मामूली सर्जिकल प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया को फोलिक्युलर एस्पिरेशन कहा जाता है। यह आम तौर पर डॉक्टर के कार्यालय में आउट पेशेंट सर्जरी के रूप में किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर योनि के माध्यम से प्रत्येक अंडाशय में एक पतली सुई का मार्गदर्शन करने के लिए एक अल्ट्रासाउंड का उपयोग करता है। सुई में एक उपकरण जुड़ा होता है जो एक बार में एक अंडे को सेक्शन करता है।
पुरुषों के शुक्राणुओं की होती है जांच
जिस दौरान महिलाओं के शरीर अंडे निकाले जाते हैं, उसी दौरान पुरुष के शुक्राणु का नमूना लिया जाता है। इसमें डोनर के शुक्राणु का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसके बाद स्वस्थ शुक्राणुओं की खोज की जाती है।
फिर होता है शुक्राणु और अंडे का संयोजन
अब आईवीएफ का हिस्सा आता है। इसमें सबसे अच्छे अंडे के साथ सबसे अच्छे शुक्राणु का संयोजन किया जाता है। इस चरण को गर्भाधान कहा जाता है। एक शुक्राणु को एक अंडे को फर्टिलाइजेशन करने में आमतौर पर कुछ घंटे लगते हैं। डॉक्टर शुक्राणु को सीधे अंडे में इंजेक्ट कर सकता है, इस प्रक्रिया को इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई) के रूप में जाना जाता है।
इसके बाद भ्रूण को प्राप्त करने के लिए गर्भाशय का अस्तर तैयार करने की जरुरत होती है। इसके लिए महिलाओं को एक बार फिर दवाई या इंजेक्शन दिया जाता है, जिसकी मदद से अंडे को दोबारा स्थानांतरित किया जाता है। फर्टिलाइजेशन के लगभग तीन से पांच दिनों के बाद, डॉक्टर कैथेटर का उपयोग करके भ्रूण को गर्भाशय में रख देता है।
कई भ्रूणों को इस उम्मीद में वापस स्थानांतरित कर दिया जाता है कि कम से कम एक आपके गर्भाशय की परत में खुद को प्रत्यारोपित कर लेगा और विकसित होना शुरू हो जाएगा। कभी-कभी एक से अधिक भ्रूण प्रत्यारोपित हो जाते हैं, यही कारण है कि आईवीएफ का उपयोग करने वाली महिलाओं में गुणक आम हैं। इसके बाद गर्भावस्था प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
आईवीएफ से गर्भधारण करने की संभावना लगभग 30 से 45% होती है। अगर अन्य फर्टिलिटी उपचारों से तुलना की जाए तो आईवीएफ का परिणाम सबसे अच्छा होता है। डॉक्टर्स का कहना है कि आईवीएफ से गर्भधारण की संभावना बहुत चीज़ो पर निर्भर करती है और इसीलिए यह हर किसी के लिए अलग है। आईवीएफ के सफलता कई अन्य बातों पर टिकी होती है। आइये इसपर भी एक नजर डालते हैं।
उम्र- दंपति जितना युवा होते हैं आईवीएफ के सफलता की उम्मीद उतनी बढ़ जाती है। डॉक्टर्स का कहना है कि जिन औरतों की उम्र 35 से कम होती है, उनके आईवीएफ से गर्भधारण करने की संभावना अधिक होती है।
पूर्व प्रेग्नेंसी- अगर दंपति पहले भी गर्भ धारण करने का प्रयास कर चुका है। तो आईवीएफ के माध्यम से गर्भ धारण करने की संभावना बढ़ जाती है।
फर्टिलिटी समस्या- आईवीएफ का परिणाम इस बात पर भी निर्भर करता है कि दम्पति को किस प्रकार की फर्टिलिटी समस्या है। यह समस्या दोनों को है या फिर किसी एक को।
जीवन शैली- जीवन शैली और तनाव भी आईवीएफ के परिणाम पर असर डाल सकता है। डॉक्टर्स का कहना है कि जीवन शैली में अनुशासन का बहुत महत्व होता है। इसके साथ हार्मोनल पर्यावरण और श्रोणि को स्वस्थ रखना भी जरुरी है। ऐसा करने वाले दम्पति में आईवीएफ के सफलता की संभावना बढ़ सकती है।